एक हजार चौरासी वें की माँ- महाश्वेता देवी
सन् 1947 के बाद भारतीय जनता के स्वप्न बहुत थे। स्वतंत्र राष्ट्र में एक स्वतंत्र नागरिक बहुत सी इच्छाएं, स्वप्न संजोता है। आजादी, न्याय, समानता और एक खुशहाल परिवार, समृद्ध राष्ट्र। लेकिन 70 के दशक में यह स्वप्न खण्डित होने लग गये। जनता ने जो स्वतंत्र राष्ट्र से इच्छाएं रखी थी वह भ्रष्ट राजनीति की शिकार हो गयी। भारतीय युवा बेरोजगार था, आक्रोशित था और इस आक्रोश का परिणाम था आंदोलन। इंकलाब जिंदाबाद।
इस आंदोलन से उपजी विभीषिका और उस विभीषिका के शिकार हुये युवा। और उन युवाओं के परिवार और वह भी विशेष कर एक माँ के दर्द की कथा है -1084 वें की माँ।