Sunday, 31 December 2023

595. चंपक 2023, दिसम्बर -द्वितीय

बाल पत्रिका चंपक
चंपक 2023, दिसम्बर -द्वितीय
लो जी, एक साल और खत्म हो गया। जिस वर्ष )2023) का उत्साह के साथ स्वागत किया था, वह साल अपने साथ बहुत सी यादें लेकर चला गया।
जब नया आयेगा तो तय है पुराना तो जायेगा ही। सन् 2023 चला गया और हम नववर्ष 2024 का स्वागत करते हैं।
       जब से मैंने यह ब्लॉग आरम्भ किया है तो उसमें सन् 2023 पहला वर्ष है जिसमें सब से कम किताबें पढी हैं और उस से भी कम किताबों पर अपने विचार लिखे हैं। इस साल कुल 40 किताबों पर अपनी समीक्षाएं लिखी हैं और लगभग पचास किताबें पढी हैं।
इस वर्ष (2024) में यह संख्या कैसी रहेगी,यह तो पता नहीं, फिर भी अच्छी किताबें पढने की कोशिश रहेगी।
       वर्ष 2023 का समापन बाल पत्रिका चंपक के साथ किया है। चंपक वह पत्रिका है जिसमें मेरी सब से पहले रचना 'जंगल में प्रजातंत्र' प्रकाशित हुयी थी।
अब बात करते हैं पत्रिका चंपक की। समय के साथ चंपक में बहुत परिवर्तन आये हैं। अब इसका आकार भी बदल गया है। प्रस्तुत अंक (दिसंबर- द्वितीय, 2023) क्रिसमिस पर आधारित है। इस अंक में कुल सात कहानियाँ है, जिसमें से तीन कहानियाँ क्रिसमस से संबंधित हैं। कुछ चित्रकथाएं और नियमित स्तम्भ भी है।

Tuesday, 26 December 2023

593. मनोहर कहानियां- नवम्बर 1998

रहस्य-रोमांच विशेषांक
मनोहर कहानियां- नवम्बर 1998

हिंदी रोमांच साहित्य में मनोहर कहानियाँ पत्रिका का कभी अतिविशिष्ट नाम रहा है। इलाहाबाद के मित्र प्रकाशन से सन् 1944 में प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका में काल्पनिक रोमांचक कहानियों के साथ-साथ सत्य पर आधारित कहानियाँ भी प्रकाशित होती थी। इन कहानियाँ में  अपराध पर आधारित कहानियाँ ही होती थी। इसके अतिरिक्त छोटी-छोटी रोचक जानकारियाँ भी समाहित थी।
   लम्बे समय पश्चात मनोहर कहानियाँ पत्रिका का एक पुराना अंक 'नवम्बर 1998' पढने को मिला। यह अंक 'रहस्य- रोमांच' विशेषांक है।

        जिसमें कुछ सत्य, कुछ काल्पनिक और कुछ मिश्रित कहानियाँ शामिल हैं। समस्त कहानियाँ रोचक हैं।
इस अंक की प्रथम रचना है 'सलमान खान-मुल्जिम बने शिकार के'

Saturday, 2 December 2023

591. महाबली टुम्बकटू- वेदप्रकाश शर्मा

चीन में टुम्बकटू और विकास का हंगामा
महाबली टुम्बकटू- वेदप्रकाश शर्मा

लम्बे, तगड़े और शक्तिशाली इन्सान ने सिगरेट में अंतिम कश लगाया और फिर ध्यान से उस सात-मंजिली इमारत को देखा। इस समय वह उस इमारत से लगभग पचास गज दूर झाड़ियों में खड़ा हुआ था। उसके जिस्म पर एक स्याह पतलून और गर्म लम्बा ओवरकोट था। सिर पर एक अजीब-सी गोल कैप थी। हाथों पर सफेद दस्ताने चढ़े हुए थे। समय रात्रि के दो बजे का था और सरदी नलों में जल को जमा देने वाली थी। आसपास गहरी निस्तब्धता का साम्राज्य था। यह सात-मंजिली इमारत राजनगर से थोड़ा अलग एकान्त में थी। अतः यहां यह केवल एक ही इमारत थी। (महाबली टुम्बकटू के प्रथम पृष्ठ से)
  वेदप्रकाश शर्मा उपन्यास साहित्य में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके द्वारा रचित पात्र आज भी अमर हैं, उनके पात्रों को आधार बना कर बहुत से उपन्यासकारों ने उपन्यास लिखे हैं और आज भी लिखे जा रहे हैं। हालांकि यह पात्र स्वयं वेदप्रकाश शर्मा जी ने आदरणीय वेदप्रकाश काम्बोज जी के उपन्यासों से लिये हैं और उनमें कुछ अपने पात्र भी शामिल किये हैं।
  वेदप्रकाश शर्मा जी के आरम्भिक उपन्यास स्थापित पात्रों कर क्रियाकलाप ही वर्णित होते रहे हैं, ज्यादातर कथानक अंतरराष्ट्रीय अपराधी वर्ग, विदेशी जासूसों से टकराव आदि।
   प्रस्तुत उपन्यास की कहानी भारत और चीन के  जासूसों के बीच संघर्ष की कहानी है।