Wednesday, 31 October 2018

150. अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती

 वह बन बैठा चाँद का शैतान.....
अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती, थ्रिलर उपन्यास, मध्यम स्तर।

वह खुद को अंतरिक्ष का खुदा मानता है।
वह चाँद की धरती पर अपना राज्य स्थापित करना चाहता था।
चाँद वासी उसे नक्षत्रों का खुदा कहते थे।
वह चन्द्र वासियों को मार रहा था।
वह पृथ्वी वासियों का दुश्मन था।
वह चन्द्रयान‌ को गायब/ नष्ट करता था।
वह ब्रह्माण्ड पर अपना विजयी परचम फहराना चाहता था।

कौन था वह?
वह कहां से आया था?

ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर तो सिर्फ राज भारती के उपन्यास 'अंतरिक्ष का खुदा' को पढ़कर ही मिल सकते हैं।


               लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में राज भारती एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने विभिन्न सीरिज लिखे हैं। हो सकता है यह अतिशयोक्ति हो पर राज भारती ने विभिन्न सीरिज और असंख्य उपन्यास लिखे हैं। (राज भारती द्वारा लिखे गये उपन्यासों की सही सख्या किसी को भी ज्ञात नहीं)
                      राज भारती द्वारा लिखा गया उपन्यास 'अंतरिक्ष का खुदा' विजय- सिंहगी सिरिज का उपन्यास है। इस उपन्यास का सारा घटनाक्रम चाँद की धरती पर घटित होता है।
              अमेरिका ने अपना अंतरिक्ष यान चाँद की धरती पर भेजा, जो पूर्णतः सफल रहा।
       चन्द्र विजय मानव की एक‌ महान विजय थी। इसलिए सारा विश्व हर्ष विभोर था। (पृष्ठ-06)
         इस अभियान से प्रेरित होकर अन्य देश भी इस लक्ष्य को हासिल करने को प्रेरित हुये। जिनमें एक भारत भी था। भारत के वैज्ञानिक बनर्जी जी ने व्यक्तिगत तौर पर एक घोषणा की "वह शीघ्र ही दो रॉकेटों के निर्माण में सफल हो जायेगा जो.. मानव को एक बार फिर चाँद की धरती पर उतारने में सफलता प्राप्त करेंगे।" (पृष्ठ- 09-10)
   
        अमेरिका का अपोलो सीरिज और भारत का साइको सीरिज चन्द्रयान चन्द्रमा की धरती पर पहुंचते हैं। यह भारत और विश्व के लिए खुशी का समय था। लेकिन एक समस्या आ गयी।
        एक भयानक घटना हो गयी।
        जिसने सारे विश्व को चौंका दिया बल्कि विश्व के वैज्ञानिकों को भी भयभीत कर दिया।
(पृष्ठ-49) यह घटना थी ऐसी की चन्द्रयान के यात्री भी दहल उठे।
अचानक अंतरिक्ष में रोशनी की एक लंबी और विचित्र सी लकीर खिंचती चली गयी और अपोलो तरह से टकरा गयी। (पृष्ठ-50)  इस समस्या का कोई समाधान भी नजर नहीं आ रहा था। अंतरिक्ष यात्रियों ने तुरंत पृथ्वी पर अपना संदेश भेजा।
हमें किसी अज्ञात खतरे का आभास हो रहा है। पता नहीं किस प्रकार बिजली की एक तेज लकीर अंतरिक्ष में उत्पन्न हुयी और हमारे यान को चारों तरफ से घेर लिया। (पृष्ठ-50,51)
यह बिलकुल नये ढंग की विपत्ति थी जिसका हल न तो अंतरिक्ष यात्रियों‌ के पास था और न धरती के वैज्ञानिकों के पास। (पृष्ठ-55) और किसी को यह भी नहीं न पता की वह अज्ञात लकीर कहां से आती है और उसे कौन भेजता है। कौन है वह शैतान।
चाँद की वह शक्ति नहीं चाहती कि चाँद की पृथ्वी पर कोई अन्य व्यक्ति उतरे। (पृष्ठ-57) और वह शक्ति अज्ञात है।
भारतीय अंतरिक्ष यान भी इस चमकती लकीर की चपेट में आकर नष्ट हो गया।
साइको प्रथम अंतरिक्ष में नष्ट हो चुका था। इस बारे में कोई संदेह न रह गया था।  क्योंकि धरती की प्रयोगशालाओं में टेलिविज़न स्क्रीनों पर उसे नष्ट होते हुए स्पष्ट देखा गया था।(पृष्ठ-69)
आखिर क्या रहस्य था चाँद पर जहां से अंतरिक्ष यान नष्ट हो गया?
   इसी रहस्य को सुलझाने को निकल पड़े दो और अंतरिक्ष यान।  भारत से साइको और अमेरिका से अपोलो। भारत का जासूस विजय, अशरफ, प्रोफेसर बनर्जी और अमरीका से जासूस माइक अपने अंतरिक्ष यात्रियों के साथ।
   लेकिन चाँद की तो दुनिया ही अलग थी। वहाँ तो चन्द्रवासी लोगों की आबादी थी। जब अंतरिक्ष यात्रियों ने वहाँ लोगों को देखा तो हैरान रह गये।  "मैं तुम्हारी दशा समझ सकता हूँ पृथ्वी के वासियो। तुम मुझे यहाँ देखकर चकित हो लेकिन तुम नहीं जानते कि चाँद पर मैं पचास वर्ष पूर्व आया था।" (पृष्ठ-129) और यहाँ  चाँद पर एक मूल‌ जाति का निवास है। (पृष्ठ-130)
   "पृथ्वी के वैज्ञानिक.... वे  यह भी नहीं जानते कि पचास वर्ष पूर्व एक पृथ्वी का वासी चाँद पर पहुँच चुका है।" (पृष्ठ-130)
   लेकिन चाँद के वासी भी एक शैतान से परेशान हैं। वह शैतान जिसने चाँद के लोगों का जीना हराम कर रखा है।  "चाँद पर इतनी शक्ति किसी के पास नहीं है जो इस शैतान से टक्कर ले सके।" (पृष्ठ-157)
  
   -  क्या जासूस मित्र इस रहस्य को सुलझा पाये?
   - कहां गायब हो गये चन्द्रयान?
   - पचास वर्ष पूर्व चाँद पर पहुंचने वाला व्यक्ति कौन था?
   - चाँद का शैतान कौन था?
    राज भारती का यह उपन्यास एक अलग विषय को प्रस्तुत करता एक जासूसी-थ्रिलर उपन्यास है।
उपन्यास की कहानी अलग विषय और पृष्ठभूमि पर आधारित है। जो पाठक के लिए रोचकता पैदा करती है। लेकिन उपन्यास में लेखक चाँद की धरती को प्रस्तुत तो करता है लेकिन पाठक को कहीं यह अहसास दिलाने में सफल नहीं हो पाता की घटनाक्रम चाँद पर घटित हो रहा है।
              उपन्यास पढते वक्त कुछ अलग अहसास नहीं होता। लेखक अगर कोशिश करता तो यह उपन्यास बहुत अच्छा बन सकता था। लेकिन अब यह मात्र एक एक्शन उपन्यास बन कर रह गया। अगर चाँद की भूमि का अच्छा वर्णन होता, वहाँ के लोगों के बारे में और जानकारी मिलती तो अच्छा था। चन्द्र वासियो और शैतान की लड़ाई का  भी ज्यादा वर्णन नहीं है। एक वह व्यक्ति जो चाँद पर पहुँच गया, वहाँ अपना अधिकार जमा लिया, वह शक्तिशाली तो रहा होगा लेकिन विजय-माइक के समक्ष वह एक मामूली सा गुण्डा नजर आता है जो अनावश्यक डायलाॅग बाजी करता रहता है।
                 उपन्यास का आरम्भ वैज्ञानिक/ तकनीकी जानकारी से संबंधित है तो उपन्यास का अंत एक्शन दृश्यों से भरपूर है।  अगर उपन्यास के अंत में विलन को खत्म करते वक्त कुछ तकनीक इस्तेमाल होती हो उपन्यास में रोचकता अवश्य बढती लेकिन लेखक उपन्यास के अंत में जासूस और खलनायक को आपस में ऐसे उलझते दिखाता है जैसे दोनों सड़क पर लड़ने वाले बदमाश हों।
        अगर इस उपन्यास पर अच्छी मेहनत की जाती तो यह एक अच्छा विज्ञान गल्प उपन्यास साबित हो सकता था।
             
                      
   निष्कर्ष-
                  उपन्यास मध्यम स्तर का है। उपन्यास अपने पृषठभूमि के आधार पर पठनीय है, लेकिन इस उपन्यास को जिस स्तर तक रोचक होना था उतना रोचक है नहीं।
           उपन्यास एक बार अच्छा मनोरंजन साबित हो सकता है।
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उपन्यास- अंतरिक्ष का खुदा
लेखक-    राज भारती
प्रकाशक- पवन पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-       203
उपन्यास लिंक-     अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती        



149. वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा

खून का प्यासा मानव भेड़िया
वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा।
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एक शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' के लिए फिल्म की टीम एक खतरनाक जंगल में अपनी फिल्म की शुटिंग करने के लिए पहुंची।
             अभी शुटिंग आरम्भ भी न हुयी और एक खतरनाक वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेडिया वास्तव में वहां आ पहुंचा।
             जो घटनाक्रम एक शाॅर्ट फिल्म में दर्शाना था वह खूनी खेल वहाँ वास्तव में खेला गया।
             क्या यह संयोग था या एक षड्यंत्र?
            
उपन्यास की कहानी वास्तव में दिल दहला देने वाली है। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ यही सोचता है की आखिर वास्तविकता क्या है। क्या यह षड्यंत्र है या फिर संयोग। अगर संयोग है तो बहुत भयानक संयोग है अगर षड्यंत्र है तो कौन है षड्यंत्र कर्ता।
            
                         उपन्यास का आरंभ होता है शांंतनु से। शांतनु ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी अपने आखरी दाँव, अपनी शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' पर लगा दी। शांतनु अपनी टीम के साथ 'ब्लैक आॅर्किड वुड्स' नामक  जंगल में फिल्म की शुटिंग के लिए पहुंचा।
वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेड़िया पर आधारित थी यह शाॅर्ट फिल्म। लेकिन आपसी तकरार के चलते फिल्म के पात्र फिल्म में काम‌ करने के लिए मना कर देते हैं और शुटिंग स्थल से फिल्म को छोड़ कर निकलने की तैयारी करते हैं।
          इसी दौरान कहानी में‌ प्रवेश होता है मानव भेड़िये का।  सभी सदस्यों पर मानव भेड़िये के आक्रमण आरम्भ हो जाता है।  इस बार पेड़ के पीछे से निकलने वाली आकृति एक मानव भेड़िये यानी वेयरवुल्फ की थी। (पृष्ठ-24)
        

Thursday, 25 October 2018

148. बम ब्लास्ट- वेदप्रकाश कंबोज

वेदप्रकाश कंबोज जी ले साथ। 3.06.2018
न्यूट्रॉन बम का ब्लास्ट
वेदप्रकाश कंबोज उपन्यास जगत के एक वो सितारे हैं जिनकी लौ उस सुनहरे समय के समाप्त होने के बाद भी जगमगा रही है। उनके उपन्यास की चर्चा आज भी है।

      वेदप्रकाश कंबोज जी का मेरे द्वारा पढे जाना वाल शायद यह प्रथम उपन्यास है। अगर किशोरावस्था में कोई पढा भी होगा तो याद नहीं रहा। वह दौर भी ऐसा था जिसमें पढा तो खूब लेकिन आज स्मृति में नहीं।

3 जून 2018 को दिल्ली में कंबोज जी के आवास पर उनसे मिलना हुआ और उपन्यास संबंधी खूब चर्चाएँ भी चली।
         वेदप्रकाश कंबोज जी के कुछ उपन्यास घर पर उपलब्ध हैं, लेकिन पढने का समय न मिल पाया। अब आबू रोड़ के लेखक मित्र अमित श्रीवास्तव जी के पास कंबोज जी का उपन्यास 'बम ब्लास्ट' मिला तो पढने के किए ले आया।
      'बम ब्लास्ट' उपन्यास आज तक के सबसे विध्वंसक बम न्यूट्रॉन पर आधारित है। भारतीय जासूस विजय, अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे, अफगानिस्तान के वैज्ञानिक ....बर्फीले तूफान में फंस जाते है। वह भी ऐसी परिस्थिति में जहाँ न्यूट्रॉन बम का विस्फोट होने वाला है।
           एम. एल. बिरजोई एक भारतीय वैज्ञानिक है जिसका प्लेन एक तूफान में घिर कर पड़ोसी देश जगरान के बर्फीले पहाड़ पर दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है। एम. एल. बिरजोई के पास होता है एक न्यूट्रॉन बम।
          हमारा एक सैनिक प्लेन बिना इजाजत के दूसरे देश की सीमा में जाकर क्रैश हो गया....हमारे दुश्मन इस दुर्घटना का नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश करेंगे....।(पृष्ठ-34) 

Thursday, 18 October 2018

147. मुअनजोदड़ो- ओम थानवी


       मुअनजोदड़ो नाम सुनते ही आँखों के समक्ष एक तस्वीर उभरती है, एक प्राचीन और सुव्यवस्थित शहर की। इस तस्वीर के साथ एक कसक भी उठती है वह कसक है की यह शहर क्यों, कैसे जमीन में दफन हो गया। कहां गये इस प्राचीन सभ्यता के लोग। लेकिन उत्तर आज तक न मिल सके।
सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में स्कूल, काॅलेज से ही पढते आये हैं। जितना इस सभ्यता को जाना उतनी ही इच्छा और प्रबल हो उठी।


अगर आपको सिंधु घाटी सभ्यता को समझना है तो ओम थानवी जी द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'मुअनजोदडो' बहुत उपयोगी है। यह पुस्तक न तो इतिहास की है ना साहित्य की। यह तो साहित्य और इतिहास का मिश्रण कर उसे एक कलात्मक रूप प्रदान करती है। इस यात्रा वृतांत के माध्यम से मुअनजोदड़ो का जो कलात्मक शैली में चित्रण यहाँ किया गया है वह एक अनोखी अनुभूति देता है, एक ऐसी अनुभूति जिसमें आपको अहसास होगा की आप स्वयं मुअनजोदङो की गलियों में घूम रहे हो।
मुअनजोदड़ो अर्थात् मुर्दों का टीला। रांघेग राघव ने भी इस विषय पर एक उपन्यास लिखा है 'मुर्दों का टीला'।

यह एक संस्मरणात्मक यात्रा वृतांत है। जनसत्ता अखबार के संपादन ओम थानवी का। इस यात्रा वृतांत या मुअनजोदड़ों वर्णन की विशेषता है की यह वर्णन जीवंत है, और इस जीवन को पाठक भी महसूस करता है।
                   मुझे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के दौरान इस वृतांत को पढने का अवसर मिला, हालांकि वह इस पुस्तक का कुछ अंश ही था, लेकिन उसने जो मन पर प्रभाव छोड़ा वह प्रभाव ही इस पुस्तक को पढने को प्रेरित करने के लिए काफी था। अब यह पुस्तक 'राजकीय आदर्श माध्यमिक विद्यालय-माउंट आबू' में‌ मिला तो पढने बैठ गया।
ओम थानवी की भाषा शैली ही इतनी अच्छी है की वह मन पर एक अमिट प्रभाव छोडती है।


               पाकिस्तान में स्थित एक प्राचीन नगर है मुअनजोदड़ो जो वक्त के साथ खत्म हो गया। उस पर न जाने कितनी मिट्टी की परतें बिछ गयी। वक्त के साथ मुअनजोदड़ो अपना अस्तित्व गया बैठा तो अपने समय का एक महानगर गायब हो गया।
                    मिट्टी के नीचे एक शहर दब गया, क्यों और कैसे यह प्रश्न आज भी अनुतरित है। इस शहर पर मिट्टी के टीले स्थापित हो गये। अब शहर न रहा वहाँ मिट्टी के टीले थे। उन्हीं टीलों पर बौद्ध धर्म के मठ स्थापित हो गये। वक्त फिर बदला और वह बौद्ध मठ भी खत्म हो गये। यहाँ एक बौद्ध स्तूप भी था।
                  एक पुरातत्त्वज्ञ यहाँ आये। सन् 1922 जब राखालदास बद्योपाध्याय‌ यहाँ आए, तब वे इसी स्तूप की खोजबीन करना चाहते थे। ....धीरे-धीरे यह खोज विशेषज्ञों को सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आयी। (पृष्ठ-50)
लेकिन खुदाई ले दौरान उनको एहसास हुआ की इन बौद्ध मठों/ स्तूप के नीचे भी कुछ और है। इस तरह एक स्तूप की खोज से वे विश्व की प्राचीन सभ्यता तक पहुंचे। यहाँ स्थित बौद्ध स्तूप को नागर भारत का सबसे पुराना लेंड स्केप कहा जाता है। (पृष्ठ-51)
               इस खोज से भारत की गणना भी एक प्राचीन सभ्यता वाले देश के रूप में होने लगी। मुअनजोदडो ही था जिसने सबसे पहले भारत के इतिहास को पुरातत्त्व का वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।(पृष्ठ-38)

         मुअनजोदड़ो एक विशाल और विकसित सभ्यता थी। इसकी सभ्यता की संस्कृति की झलक वहाँ से प्राप्त अवशेषों से भी होती है। यहाँ का नगर, गलियाँ, नालियाँ आदि एक तय पैमाने के अनुसार निर्मित है। वर्तमान में हमारे पास चाहे जितनी सुविधा है लेकिन हम कोई व्यवस्थित शहर नहीं बसा सके लेकिन मुअनजोदड़ो की उस समय की व्यवस्था वर्तमान चंडीगढ़ शहर से मिलती है। क्या चंडीगढ़ की प्रेरणा वहीं से आयी है। कोई घर सङक पर नहीं खुलता, उनके प्रवेश द्वार अंदर गलियों में है। (पृष्ठ-61)
                यहाँ बहुत कुछ अदभुत मिला। यहाँ से लगभग सात सौ के करीब कुएं मिले। एक तरफ यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी दूसरी तरफ सात सौ के करीब कुएं, यह रहस्य समझ में नहीं आया। विद्वान इरफान हबीब कहते हैं -"सिंधु घाटी सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है, जो कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुंची। (पृष्ठ-63)
सिर्फ कुएं ही नहीं और भी बहुत कुछ यहाँ से मिला। याजक नरेश, नर्तकी मूर्ति........... यहाँ से प्राप्त एक नर्तकी की मूर्ति के विषय में पुरातत्त्वज्ञ मार्टिन वीलर ने कहा है- "मुझे नहीं लगता कि संसार में इसके जोङ की कोई दूसरी चीज होगी। (पृष्ठ-43)


                   ओम थानवी साहब ने इस संस्मरणात्मक यात्रा वृतांत को जिस भाषा शैली लिखा है वह पाठक को अनुभूति करवा देती है जैसे पाठक स्वयं उसी प्राचीन महानगर नें खड़ा है। उसकी गलियां में घूम रहा है। वहाँ के घरों को, वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को महसूस कर रहा है।   मुअनजोदड़ो की खूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़को और गलियों में आप आज भी घूम-फिर  हैं। यहां की सभ्यता और संस्कृति का सामान चाहे अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहां था अब भी वहीं है। आप इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह कोई खण्डहर क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रख कर सहसा सहम जा सकते हैं, जैसे भीतर अब भी काई रहता हो। रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं। (पृष्ठ-49,50)

                 इस सभ्यता की खुदाई तो काफी समय तक चलती रही लेकिन‌ इसकी प्राचीनता का आंकलन काफी समय बाद हो सका। मुअनजोदड़ो के खण्डहर 1924 में दुनियां के सामने आए। इनकी खुदाई का श्रेय जाॅन‌ मार्शल को दिया जाता है। (पृष्ठ-44) और उसके बाद तो काफी पुरातत्ववेता यहाँ खुदाई करते रहे। जैसे, डीआर भण्डारकर -1911, दयाराम साहनी- 1917, राखालदास बनर्जी- 1922-23, माधोस्वरुप वत्स, काशीनाथ दीक्षित आदि।

         समय के साथ मुअनजोदड़ो की खुदाई बंद हो गयी। लेकिन कुछ प्रश्न आज भी अधूरे हैं जिनका उत्तर किसी भी विद्वान के पास नहीं। यह अधूरापन कब खत्म होगा यह तो भविष्य ही तय करेगा लेकिन जब भी इन अधूरे प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे तब सिंधु घाटी सभ्यता प्राचीन इतिहास पर ....
1. यह सभ्यता खत्म कैसे हो गयी?
2. इस शहर का वास्तविक नाम क्या था?
3. आखिर कहां और क्यों चले गये एक विकसित सभ्यता के लोग?
4. इस सभ्यता की लिपि आज तक पढी नहीं गयी।

          ओम थानवी का यात्रा वृतांत 'मुअनजोदड़ो' बहुत ही रोचक है। पाठक को यह प्राचीन सभ्यता के शहर मुअनजोदड़ो का भ्रमण करवाने में सक्षम है। अगर सहृदय पाठक है तो ओम थावनी जी भावों को जगाने वाली इस शैली में खो जायेगा।

किताब आवरण चित्र मुअनजोदड़ो से प्राप्त मिट्टी का मुखौटा है।
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पुस्तक- मुअनजोदड़ो (यात्रा वृतांत)
लेखक- ओम थानवी
प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
पृष्ठ-118
मूल्य- 200₹
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किताब का लिंक- वाणी प्रकाशन



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अतिरिक्त तथ्य किताब से...
- पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हिंदू- कोई पच्चीस लाख- सिंध में रहते हैं। (पृष्ठ-23)
- मुस्लिम राज सबसे पहले सिंध में स्थापित हुआ।(पृष्ठ-23)
सन् 711 में सिंध शासक दाहर पर मोहम्मद बिन कासिम ने हमला किया।

- पुरातत्त्व को इतिहास का रोशनदान कहा जाता है। (पृष्ठ38)
- झूले लाल जी के गीत 'दमा दम मस्त कलंदर' में आया 'सेवण' शब्द सिंध की एक जगह का नाम है।


Friday, 12 October 2018

146. सात रोचक कहानियाँ

सात अधूरी कहानियाँ....


                    राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- माउंट आबू, सिरोही के पुस्तकालय में मुझे एक पुस्तक मिली, जिसमें कहानियाँ काफी रोचक हैं। इस कहानी संग्रह पर लेखक, प्रकाशक और पुस्तक का भी नाम भी नहीं है। पुस्तकालय के रिकाॅर्ड में भी सिर्फ पुस्तक का क्रमांक वर्णित है। इस कहानी संग्रह की कहानियाँ काफी रोचक और दिलचस्प है। 

 
                       संग्रह में कुल सात कहानियाँ है, और सभी कहानियाँ एक अधूरेपन को सूचित करती हैं। इस संग्रह की सभी कहानियाँ हत्या से से संबंधित है और सविधान की दृष्टि में हत्यारा अज्ञात हैं, लेकिन जन दृष्टि में हत्यारे कौन है यह सब को पता है।
                     इसे भारतीय सविधान का लचीलापन कहें या कमजोरी की लोग हत्या जैसा निकृष्ट कृत्य करके भी आजाद हैं और जो इस दुनियां से चला गया उसके साथ कोई इंसाफ नहीं। यह कैसी न्याय प्रणाली, यह कैसा सविधान। मूलतः यह कहानी संग्रह कुुुछ ऐसे अधूरे किस्सों का संग्रह है।


इस संग्रह में कुल सात कहानियाँ है।
1. हत्या बनाम आत्महत्या
2. इनाम कहकहे का
3. पति या प्रेमी
4. ...और वह गायब हो गयी
5. ?
6. किस्सा एक राजा की प्रेमिका का
7. किस्सा एक और राजा की प्रेमिका का।
कहानी संख्या पांच का शीर्षक प्रश्नवाचक चिह्न (?) है।

                 पहली कहानी हत्या बनाम आत्महत्या एक ऐसे प्रेमी जोड़े की कहानी है जिसमें प्रेमी की हत्या हो जाती है और शक प्रेमी पर जाता है। पूर्वी पंजाब की उस सुंदर किंतु विधवा रानी भगवान कौर ने अपने प्रेमी को अमृत के रूप में विष दिया या अभागे प्रेमी काहनचंद ने स्वयं विष पीकर अमर होने की कोशिश की, यह समस्या आज तक नहीं सुलझ सकी।
                    यह एक विधवा रानी की प्रेम कथा है जो काहन चंद नामक व्यक्ति से प्रेम कर बैठती है। लेकिन समय के साथ और लोक लाज के कारण रानी प्रेम राह से कदम पीछे हटा बैठी।
               एक दिन महल में प्रेमी काहन चंद का शव मिलता है और इल्जाम लगता है रानी पर। लेकिन संदेह का लाभ देते हुए रानी को बरी कर दिया गया।
                 माननीय जजों के उस मान्य फैसले के बावजूद जनसाधारण के दिमाग में मुद्दतों एक प्रश्न रह-रहकर उभरता रहा कि आखिर - वह हत्या थी या आत्महत्या?

              दूसरी कहानी 'इनाम कहकहे का' तीस वर्षीय नौजवान नवाब मुहम्मद नवाज खां की कहानी है। नवाब की बगल में उसकी प्रेयसी शमशाद बाई मृत्यु पड़ी थी। उसकी हत्या किसी ने गोली मार कर दी। लेकिन नवाब साहब का कहना वह हत्या उन्होंने नहीं की- "भला मैं शमशाद बाई को कैसे कत्ल कर सकता था? वह मुझे बहुत पसंद थी।"
यह मुकदमा भी किन्हीं कारणों से अधूरा रह गया।


तीसरी कहानी पति या प्रेमी है।  यह कहानी यह कहानी है अंबाला शहर की, 6 फरवरी 1950 ई. की। मैं बाहर बैठी थी कि उन्होंने पूछा, दवा कहां है? मैंने बता दिया कि अलमारी में है- बस, गलती से वे नेगेटिव धोने की दवा पी गये। (पृष्ठ-33) यह बयान है मृतक की पत्नी पलविन्द्र कौर  का।
                     हत्या का इल्जाम लगा पत्नी पलविन्द्र कौर पर और उसके एक भाई कथित प्रेमी पर। कारण- अपनी जांच-पड़ताल द्वारा पुलिस भी इस नतीजे पर पहुंची थी कि अपने ताऊ के लड़के महेन्द्र सिंह के साथ पलविन्द्र कौर के अनुचित संबंध थे।(पृष्ठ-37)
                          इस हत्याकाण्ड के बाद महेन्द्र सिंह फरार हो गया। एक लंबी जांच के पश्चात पलविन्द्र कौर को बरी कर दिया गया, लाश कहीं मिली नहीं। लेकिन प्रेमी महेन्द्र सिंह अब भी लापता था।(पृष्ठ-42)


                       .....और वह गायब हो गयी!  
शीर्षक स्वयं में बहुत रोचक है। ऐसी ही रोचक यह कहानी है। यह कहनी है लखनऊ की बाईस वर्षीय बिसलिया की। लेखक लिखता है- आज से बाईस वर्ष पूर्व 26 मई 1943 की रात को वह ऐसी गायब हुयी की आज तक उसका सुराग नहीं मिल सका।
           बिलसिया गायब कर दी गयी या स्वयं कहीं चली गयी यह रहस्य तो आज भी यथावत है। लेकिन स्थानीय जनता जानती है की असली कहानी क्या है।
          लखनऊ की एक सरकारी अफसरों की बस्ती में अपने इस रंग-रूप तथा यौवन के कारण बिलसिया आफत की परकाला कहलाती थी, और एक आई. सी. एस. अफसर ब्रजभूषण सिंह के यहाँ आया का काम करती थी। (पृष्ठ-43)
           गरीब बिलसिया को प्रेम करने की सजा उसके अफसर ने ऐसी दी की बिलसिया का आज तक पता न चला। क्या प्रेम इतना बङा गुनाह हो गया जिसकी सजा उसे मौत के रूप में‌ मिली।
बिलसिया गायब हो गयी या कर दी गयी अदालत यह तय ना कर पायी और अफसर ब्रजभूणष सिंह को बरी कर दिया गया। और यह भी सिध्द नहीं होता कि बिलसिया वाकई मर चुकी है या गायब हो हुयी है। हालांकि कुछ गवाह, पुलिस और मरने वाली की हड्डियां अदालत में पेश भी की गयी।
               कहते हैं भगवान के घर न्याय अवश्य मिलता है। यही ब्रजभूणष सिंह के परिवार और स्वयं ब्रजभूणष सिंह के साथ हुआ- बरी होने के कुछ माह बाद ही आई. सी. एस. अफसर ब्रजभूषण सिंह अपने रिवॉल्वर से अपने भेजे में गोली मार कर आत्महत्या कर ली। (पृष्ठ-53)
बिलसिया की आत्मा को शांति मिली या न मिली यह तो पता नहीं पर ब्रजभूषण सिंह को अपने कृत्य की सजा आखिर मिल ही गयी।

कहानी ? तो एक ऐसा प्रश्नचिह्न है जो पुलिस से लेकर सी. बी. आई. के लिए एक प्रश्नचिह्न बन कर रह गया।
      यह घटना कानपुर में 4 जुलाई 1955 की रात को एक ऐसी भयकंर दुर्घटना घटित हुयी कि उसका उदाहरण भारतीय अपराधों के इतिहास में मुश्किल से मिलेगा। (पृष्ठ-54)

      एक ही परिवार के दो सदस्यों की हत्या और एक का अपहरण। अगले दिन एक सड़क के किनारे अपहरणकर्ता और अपहर्त लङकी की लाश कार में मिलती है।

         आखिर यह क्या मामला था। 4 जुलाई की रात को हुई ये चार हत्याएं पुलिस और सी. आई. डी. के लिए सिर दर्द बन गयी। (पृष्ठ- 63)

         इस कहानी संग्रह की अंतिम दो कहानियाँ राजवर्ग से संबंधित है। 'किस्सा एक राजा की प्रेमिका का' कहानी पटियाला के राजा भूपेन्द्र सिंह के जीवन से संबंधित है। 

राजा भूपेन्द्र सिंह को अपने एक कार्मिक लाल सिंह की पत्नी दलीप कौर पसंद आ गयी। अब राजा तो राजा ठहरा, अब राजा के सामने किसकी चले, लाल सिंह की भी ना चली और दलीप कौर एक दिन रानी दलीप कौर हो गयी।
दूसरी तरफ  लाल सिंह ने धमनियां देनी शुरु की कि वह दौलते -इंग्लिशिया की सहायता से अपनी पत्नी को वापस लेकर रहेगा।  इस बदमानी से बचने के लिए भूपेन्द्र सिंह ने एक युक्ति सोची  महाराजाओं को युक्तियां भी चुटकी बजाते सूझ जाती है।(पृष्ठ-82)
       इधर चुटकी बजी और उधर लाल सिंह की चुटकी बजनी हमेशा के लिए बंद हो गयी।
                   यह मामला भी उच्च स्तर पर पहुंचा लेकिन सामने भी राजा था, वह भी अंग्रेज सरकार का खास। मामला जब ज्यादा उछला तो स्वयं राजा भूपेन्द्र सिंह की इच्छा अनुसार रियासती एजेण्ट पेट्रिक ने इस मामले की सुनवायी की। निर्णय आया वे बिलकुल निर्दोष हैं।(पृष्ठ-65)
लेकिन इस केस में एक आदमी और भी था वह था सुपरिण्टेण्डेण्ट पुलिस नानक सिंह। जिसने राजा की इच्छा और आज्ञा अनुसार इस कार्य को अंजाम दिया। नानक सिंह जेल में बैठा था, कहीं न कहीं उसे लगा की उसने गलत किया है। नानक सिंह चाहता तो राजा का दोबारा पक्षधर बन कर आजाद हो सकता था लेकिन उसकी आत्मा ने यह स्वीकार नहीं किया।
               

                        राजा तो आखिर राजा ही होता है वह चाहे भूपेन्द्र सिंह हो या इंदौर का तुकाजी राव होल्कर‌। जब प्रेम रंग चढता है तो वह सब कुछ भूल जाता है। किस्सा एक और राजा की प्रेमिका का की यही कथा है। राव होल्कर को अमृतसर की वेश्या बाजार की गुलबदन मुम्ताज पसंद आ गयी। एक दिन मुम्ताज राव होल्कर घर भी आ गयी।
                  बगुलबदन के प्रेम रंग में भीगे राव होल्कर ने गुलबदन का धर्म बदल दिया। वस यहीं से गुलबदन और उसकी माँ का मन बदल गया। या यूं कहें राव होल्कर से मन भर गया।
कुछ समय बाद मुम्ताज और उसकी माँ ने मुंबई में एक नया शिकार ढूंढ लिया, और राजा होल्कर मुम्ताज को ढूंढ रहा था।
एक दिन यह प्रेम प्रकरण इस मोड़ तक आ गया की एक व्यक्ति की जान और राव होल्कर की गद्दी चली गयी।

          इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ रोचक हैं। जहाँ इनमें एक रोचकता है वहीं एक अधूरापन भी है, यही अधूरापन पाठक को अंदर तक सालता है। यही अधूरापन इस संग्रह की विशेषता है।  हमारे सविधान की कमी का वर्णन यहाँ है, जहां चालाक हत्यारा हत्या करके भी सुरक्षित बच जाता है, और एक निर्दोष बेवजह फंस जाता है। 

           इस कहानी संग्रह की कहानियाँ सत्य है या काल्पनिक यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस कहानी संग्रह में जो तथ्य दिये गये हैं वे इन घटनाओं के सत्य होने की पुष्टि अवश्य करते हैं। जैसे पटियाला महाराज भूपेन्द्र सिंह, वकील तेज बहादुर स्प्रु,तुकाजी राव होल्कार आदि।

        इस पुस्तक/ कहानी संग्रह के विषय में (लेखक, प्रकाशक, वर्ष) में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

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पुस्तक-
लेखक-
पृष्ठ- 110
प्रकाशक-
इस किताब के विषय में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं। किताबें आदि-अंत के आवरण पृष्ठ गायब है।





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