Wednesday, 17 February 2021

420. शूर्पणखा- डाॅ. अशोक शर्मा

शूर्पणखा का नया रूप...
शूर्पणखा- डाॅ. अशोक शर्मा, उपन्यास

भारतीय जनमानस में दो महाग्रंथ अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। एक रामायण और द्वितीय महाभारत। सदियों पूर्व लिखे गये ये ग्रंथ आज भी प्रासंगिक है,ब्लकि वर्तमान समम में समस्याओं को देखते हुये इनका महत्व और भी बढ जाता है।
   इन दोनों ग्रंथों असंख्य टीका और इनके पात्रों को लेकर असंख्य रचनाएँ रची गयी हैं। बस फर्क इतना है कि हर लेखन का उसमें अपना दृष्टिकोण शामिल हो जाता है। नया लेखन -नया दृष्टिकोण।
    डाॅक्टर अशोक शर्मा जी ने रामायण के खल पात्र राक्षेन्द्र रावण की बहन शूपर्णखा का आधार बना 'शूर्पणखा- एक लड़की अलग सी' शीर्षक से रचना की है। 

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   उपन्यास का कथानक चाहे आम भारतीय के लिए जाना पहचाना है लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में शूपर्णखा को आधार बना कर लिया है तो कहानी का केन्द्र बिंदु यही पात्र है। शेष घटनाएं इसी के इर्द-गिर्द और इसी पात्र शूपर्णखा के कारण ही घटित होती हैं।
   शूर्पणखा के साथ उसकी एक और पारिवारिक बहन‌ कुम्भनसी भी है और यही दोनों रावण के विनाश के लिए रास्ता बनाती हैं।
   स्त्री के साथ अक्सर अत्याचार होते हैं और वह भाग्य लिखा का मान कर चुप हो जाती हैं। लेकिन यहाँ शूर्पणखा और कुम्भनसी चुप नहीं होती, वे तो अपने ऊपर हुये अत्याचार के लिए अत्याचारी को उसका दण्ड देने की इच्छुक हैं। वे स्पष्ट रूप से रावण को गलत मानती हैं। और अपने साथ हुये अत्याचार का बदला रावण से लेती हैं। 

Thursday, 11 February 2021

419. माया मिली न राम- संतोष पाठक

नाम और दाम के लिए चली अनोखी चाल...
माया मिली न राम- संतोष पाठक, उपन्यास

लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में संतोष पाठक जी ने जो ख्याति अर्जित की है, वह प्रशंसनीय है। जितनी अच्छी कहानी है उतना ही तीव्रता से लेखन करने में वे सक्षम है।
  एक के बाद एक मर्डर मिस्ट्री लिखना,और वह भी रहस्य और रोमांच से परिपूर्ण। कभी कभी तो यूं प्रतीत होता है जैसे संतोष पाठक जी लेखन‌ की मशीन हो।
  मर्डर मिस्ट्री लेखन‌ में संतोष जी ने अपने नवसर्जित पात्रों और थ्रिलर के माध्यम से अपने सक्षम लेखन का सबूत दिया है प्रस्तुत उपन्यास 'न माया मिली न राम' के माध्यम से।
   यह कहानी एक ऐसे पुलिसकर्मी की जो हर हाल में नाम और दाम दोनों कमाना चाहता है। उसे तलाश है एक अच्छे मौके की और संयोग से यह मौका भी उसे मिल ही गया। 
 
दौलत और शोहरत दो ऐसी चीजें थीं, जिन्हें हासिल करने की खातिर सब-इंस्पेक्टर निरंकुश राठी किसी भी हद तक जा सकता था। स्याह को सफेद कर सकता था, बेगुनाह को फांस सकता था, मुजरिम के खिलाफ जाते सबूतों को नजरअंदाज कर सकता था। प्रत्यक्षतः वह ऐसा करप्ट पुलिसिया था जिसका नौकरी को लेकर कोई दीन ईमान नहीं था। ऐसे में एक रोज जब वह सड़क पर हुई एक मौत को अपने हक में करने की कवायद में जुटा, तो जल्दी ही यूं लगने लगा जैसे उसकी किस्मत रूठ गयी हो! जैसे ऊपरवाला उसके गुनाहों का हिसाब मांगने लगा हो।

Sunday, 7 February 2021

418. वे दिन- निर्मल वर्मा

कहां गये वो दिन...
वे दिन- निर्मल वर्मा, उपन्यास

हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर निर्मल वर्मा को पढने का अर्थ है उनके पात्रों में स्वयं को ढाल लेना, उन में जी लेना।
   शिमला में जन्में निर्मल वर्मा कथाकार और पत्रकार रहे हैं। उनकी रचनाओं को पढने से यह तो स्पष्ट होता है कि वे ठण्डे दिनों की बात अवश्य करते हैं, क्या यह उन पर शिमला का ही प्रभाव है। निर्मल वर्मा चेकोस्लोवाकिया रह चुके हैं, इसका प्रभाव 'वे दिन' रचना में दृष्टिगत होता है।
  मैंने सबसे पहले निर्मल वर्मा जी की रचना 'परिंदे' पढी थी। अवसाद से ग्रस्त पात्रों की मार्मिक रचना थी। उसके बाद लंबे समय पश्चात उपन्यास 'वे दिन' पढा। दोनों में बहुत समानता भी है और अंतर भी। 

वे दिन- निर्मल वर्मा
वे दिन- निर्मल वर्मा
   वे दिन उपन्यास चेकोस्लोवाकिया में रह रहे एक भारतीय विद्यार्थी की कथा है। क्रिसमस के दिनों में जब काॅलेज- यूनिवर्सिटियां बंद हो जाती हैं, तब भी कुछ प्रवासी विद्यार्थी होस्टल में रहते हैं। इन्हीं में से एक है भारतीय विद्यार्थी इंदी।
   एक आस्ट्रिया महिला रायना जो की अपने पति से अलग रहती है। वह अपने पुत्र मीता के साथ चेकोस्लोवाकिया के शहर प्राग में घूमने आती है। 

Thursday, 4 February 2021

417. मर्डर आॅन वैलंटाइंस नाइट- विजय कुमार बोहरा

प्रेम दिवस पर कत्ल की कहानी
मर्डर आॅन वैलेंटाइंस नाइट- विजय कुमार बोहरा
मर्डर मिस्ट्री

      आधी रात को सुनसान राह पर कत्ल हुआ। न कोई गवाह था और न कोई सबूत। ऐसी स्थिति में कातिल का पता लगना बहुत ही मुश्किल काम है। कातिल का पता तभी चलता है जब कोई सबूत या गवाह हो, लेकिन यहाँ तो कुछ भी न था। बस एक लाश थी...डिटेक्टिव साकेत अग्निहोत्री के समक्ष यही चुनौती थी की वह इस लाश के हत्यारे को खोजे तो कैसे खोजे। 

     राजस्थान के बेगूँ (चित्तौड़गढ़) के युवा उपन्यासकार विजय कुमार बोहरा द्वारा लिखा गया 'मर्डर आॅन वैलेंटाइंस नाइट' उनका प्रथम उपन्यास है। वैसे विजय जी online साइट आदि पर लिखते रहते हैं। इस उपन्यास की शुरुआत भी एक online प्लेटफॉर्म से ही हुयी थी जो बाद में हार्डकाॅपी में भी प्रकाशित हुआ।
   उपन्यास पढते वक्त कहीं से भी ऐसा नहीं लगता की यह कोई अपरिपक्व रचना है या लेखक का प्रथम उपन्यास है।

   उपन्यास की कहानी-

करीब 9 बजे जैसे ही साकेत तैयार हुआ, उसके मोबाइल पर एक कॉल आयी।
“हैलो !” कॉल रिसीव करते हुए साकेत बोला।
“हैलो ! अग्निहोत्री सर बोल रहे हैं ?” फोन के उस तरफ से एक महिला स्वर उभरा, “डिटेक्टिव साकेत अग्निहोत्री !” “बोल रहा हूँ, आप कौन ?”
“सर, मैं रागिनी बोल रही हूँ।”
“कौन रागिनी ?”
“आप मुझे नहीं जानते सर, लेकिन मैं आपको जानती हूँ।” “कैसे ?”
“जैसे पूरा शहर जानता है।”
“मैं समझा नहीं !”
“सर, आप शहर के सबसे अच्छे प्राइवेट डिटेक्टिव हैं ! मुझे आपकी मदद की जरूरत है ।”
“ओह !” साकेत को अब कुछ-कुछ समझ आया, “तो क्लाइंट हो !”
“जी सर !” रागिनी बोली, “आप ऐसा कह सकते हैं।” “कहिये, क्या मदद कर सकता हूँ आपकी?”
“फोन पर नहीं बता सकती। क्या हम कहीं मिल सकते हैं?” “ओके, मेरे घर आ जाओ।”
“ठीक है सर ! मैं बस आधे घंटे में पहुँचती हूँ।” (उपन्यास अंश)

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...