कहानी मस्तिष्क चोर कीहत्यारा पुल- कर्नल रंजीत
स्वामी विवेकानंद पुस्तकालय-बगीचा
किताबें मेरी दृष्टि में...
Friday, 5 September 2025
Saturday, 23 August 2025
जानी दुश्मन- कर्नल रंजीत
एक फिल्म अभिनेत्री की हत्या
जानी दुश्मन- कर्नल रंजीत
नमस्ते पाठक मित्रो,
कर्नल रंजीत के उपन्यास पठन क्रम में एक रोचक उपन्यास मुझे मिला जिसका नाम है 'जानी दुश्मन' । यह एक रोचक उपन्यास है जो सिलसिलेवार हत्याओं पर आधारित है।
कर्नल रंजीत के उपन्यास पठन क्रम में एक रोचक उपन्यास मुझे मिला जिसका नाम है 'जानी दुश्मन' । यह एक रोचक उपन्यास है जो सिलसिलेवार हत्याओं पर आधारित है।
जानी दुश्मनअभिनेत्री की हत्याप्रियम्बदा ने अपने बाल संवारते हुए एक नजर आदम-कद नाइने पर पड़ते अपने अक्स पर डाली तो उसे लगा, वह आइने में जिस अक्स को देख रहीं है, वह अक्स उसका अपना नहीं किसी और का है। हर समय उदास और गम में डूबी-डूबी-सी आंखों में एक नई चमक थी, एक नया उल्लास था और चेहरे पर ऐसी ताजगी जैसी सुबह-सुबह खिले गुलाब के फूल की पंखुड़ियों पर दिखाई देती है। तराचे हुए सन्तरे की फांक जैसे भरे-भरे होंठों पर एक अन-चाही मुस्कान थिरक रही थी ।
और फिर अनचाहे, अनजाने वह हेमन्त के नए गीत के मुखड़े को गुनगुनाने लगी-गीत के बोल गुनगुनाते-गुनगुनाते अनायास ही उसके पांव बेडरूम के फर्श पर थिरक उठे। पैरों में पड़ी पायल के घुंघरू तालबद्ध लय में बज उठे ।छलका दो मदिरा के प्याले, तन-मन की सुध-बुध खो जाए।होंठों से यदि तुम छू दो तो । यह विष भी अमृत बन जाए।
और फर्श पर थिरकते-गुनगुनाते उसने मेज पर रखा श्री-इन-वन ऑन कर दिया।
Sunday, 17 August 2025
चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत
क्या था तूफानी रात में हत्याओं का रहस्य ?
चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत
तूफानी रात
अमावस की काली बरसाती रात । चारों और घटाटोप अंधकार छाया हुआ था।
बम्बई के मुख्य सागर-तट से लगभग आठ मील दूर, जहां समुद्र के किनारे किनारे दूर तक किसी मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेष फैले हुए थे, अमावस की काली बरसाती रात का अंधेरा और सन्नाटा और भी गहरा तथा भयानक लग रहा था। कभी-कभी बारिश की तेज बौछारें, बिजली की बादलों की गरज और सागर की लहरों की गर्जन बरसाती अंधियारी रात के उस सन्नाटे को भंग कर देते थे।
अचानक सन्नाटे को चीरती हुई किसी राइफल की गोली की आवाज समुद्र तट पर दूर तक बिखरी चट्टानों और प्राचीन मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेषों से टकराकर गूंजती चली गई। गोली की आवाज के साथ ही किसी व्यक्ति की हृदयबेधी चीख उभरी; लेकिन वह चीख बिजली की कड़क और घटाओं की गरज में दबकर रह गई।
राइफल की गोली की आवाज और उसके साथ ही उभरने वाली मानवीय चीख को सुनकर चैकपोस्ट पर तैनात सब-इंस्पेक्टर यशवंत खांडेकर और उसके साथी गुमटी में से निकलकर दौड़ते हुए बाहर आ गए। उन्होंने आंखें फाड़-फाड़कर इधर-उधर नजरें दौड़ाई; लेकिन उन्हें कहीं कुछ न दिखाई दिया। और न किसी प्रकार की आहट ही सुनाई दी। कोई यह तक अनुमान न लगा सका कि गोली और चीख की आवाज किस ओर से आई थीं। घटाटोप अंधियारे और मूसलाधार वर्षा की बूंदों की तनी हुई चादर को चीरकर यह देख पाना असंभव था कि गोली किसने चलाई और किस पर चलाई?
बम्बई के मुख्य सागर-तट से लगभग आठ मील दूर, जहां समुद्र के किनारे किनारे दूर तक किसी मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेष फैले हुए थे, अमावस की काली बरसाती रात का अंधेरा और सन्नाटा और भी गहरा तथा भयानक लग रहा था। कभी-कभी बारिश की तेज बौछारें, बिजली की बादलों की गरज और सागर की लहरों की गर्जन बरसाती अंधियारी रात के उस सन्नाटे को भंग कर देते थे।
अचानक सन्नाटे को चीरती हुई किसी राइफल की गोली की आवाज समुद्र तट पर दूर तक बिखरी चट्टानों और प्राचीन मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेषों से टकराकर गूंजती चली गई। गोली की आवाज के साथ ही किसी व्यक्ति की हृदयबेधी चीख उभरी; लेकिन वह चीख बिजली की कड़क और घटाओं की गरज में दबकर रह गई।
राइफल की गोली की आवाज और उसके साथ ही उभरने वाली मानवीय चीख को सुनकर चैकपोस्ट पर तैनात सब-इंस्पेक्टर यशवंत खांडेकर और उसके साथी गुमटी में से निकलकर दौड़ते हुए बाहर आ गए। उन्होंने आंखें फाड़-फाड़कर इधर-उधर नजरें दौड़ाई; लेकिन उन्हें कहीं कुछ न दिखाई दिया। और न किसी प्रकार की आहट ही सुनाई दी। कोई यह तक अनुमान न लगा सका कि गोली और चीख की आवाज किस ओर से आई थीं। घटाटोप अंधियारे और मूसलाधार वर्षा की बूंदों की तनी हुई चादर को चीरकर यह देख पाना असंभव था कि गोली किसने चलाई और किस पर चलाई?
Sunday, 10 August 2025
गहरी चाल- कर्नल रंजीत
कौन था पारसी समुदाय का दुश्मन
गहरी चाल- कर्नल रंजीत
उपहार
सोनिया ने एक बहुत ही सुंदर फूलदार मोमी कागज और चार रंगों के रिबन में लिपटे हुए उस चौड़े बक्स को खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो मेजर बलवंत ने उसका हाथ पकड़ लिया "इस सुंदर बक्स को देखकर पागल क्यों हुई जाती हो ? यह बक्स खतरनाक भी हो सकता है। हो सकता है कि हमारे किसी शत्रु ने भेजा हो। इसमें कोई बम, कोई सांप या कोई खतरनाक यंत्र हो यह बक्स मैं खोलूंगा।"
सोनिया ने भयभीत होकर तुरंत अपना हाथ पीछे हटा लिया।
मेजर ने उस सुंदर बक्स को ध्यान से देखा। उसे उस बक्स में. कोई असाधारण बात नजर न आई। उसने कागज काटने वाली छुरी उठाकर उस बक्स के रिबन काट दिए । उसने फूलदार मोमी कागज उतारकर बक्स खोला। बक्स के भीतर टिशू पेपर की तह थी। उसके ऊपर एक खूबसूरत कार्ड था, जिस पर लिखा था- 'मेजर साहब की सोनिया के लिए।'
सोनिया भी वह कार्ड पढ़ चुकी थी और मुस्करा रही थी। मेजर ने टिशू पेपर हटा दिया। उसने सबसे पहली चीज उठाई। वह एक नये डिजाइन की अंगिया थी, जो बढ़िया किस्म के दोहरे कपड़े से बनी थी। मेजर ने वह अंगिया सोनिया की ओर फेंकते हुए कहा, "तुम्हारे जोबन का गिलाफ।"
सोनिया खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसे वह अंगिया बहुत अच्छी लगी। बक्स में अंगिया के नीचे से क्रोशिए की कढ़ी हुई जालीदार शिफ्ट अर्थात बनियान के स्थान पर पहनने वाली छोटी कमीज निकली। मेजर ने उसे भी सोनिया की ओर फेंकते हुए कहा, "तुम्हारी केंचुली।" सोनिया को मेजर की यह बात पसंद न आई तो मेजर हंसा। उसने कहा, "सोनिया। सुंदरता को उजागर करने की बजाय उसे ढांपने वाली हर चीज से मुझे नफरत है। इसीलिए मैंने शिफ्ट को केंचुली कहा है।" यह कहकर मेजर ने एक जांघिया सोनिया की ओर उछाल दिया और बोला, "यह है..." लेकिन सोनिया ने मेजर के मुंह पर हाथ रख दिया । अब मेजर ने बक्स में से दूसरा कार्ड निकाला और पढ़ना शुरू कर दिया 'मेजर बलवंत! ब्यूटीफुल गारमेंट्स की ओर से सोनिया के लिए यह उपहार स्वीकार कीजिए और आज रात को साढ़े सात बजे सोनिया और अपने अन्य मित्रों के साथ 18, लैम्पशेड बिल्डिंग हार्नबी रोड पर पधारिए। हम अपनी एक नई शाखा खोल रहे हैं। हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे।'
"क्या आप चलेंगे?" सोनिया ने पूछा।
"तुम जाना चाहती हो तो जरूर चलेंगे।"
"मेरा ख्याल है कि हमें चलना चाहिए।" सोनिया ने परामर्श दिया ।
'गहरी चाल' कर्नल रंजीत का नई पृष्ठभूमि पर लिखा गया अत्यंत रोचक जासूसी उपन्यास है। इसमें अपने हित के लिए देश-हित को भेंट चढ़ाने वाले एक खूंखार गिरोह की दिल दहला देने वाली काली करतूतों की बड़ी ही रोमांचक कहानी है। इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ करने में मेजर बलवंत जैसे कुशल जासूस को भी अपनी जान की बाजी लगा देनी पड़ी; और अंत में जब रहस्योद्घाटन हुआ तो सभी आश्चर्यचकित रह गये।
नमस्ते पाठक मित्रो,
एक बार फिर आपके लिए प्रस्तुत है कर्नल रंजीत के उपन्यास 'गहरी चाल' की समीक्षा । और कर्नल रंजीत के उपन्यास पर लिख गयी मेरी सोोलहवीं समीक्षा है। इस से पूर्व में पन्द्रह समीक्षाएं लिख चुका हूँ।
Friday, 1 August 2025
खून के छींटे- कर्नल रंजीत
खत्म होते रिश्तों की हत्या
खून के छींटे- कर्नल रंजीत
नमस्ते पाठक मित्रो,उपन्यास समीक्षा लेखन के इस सफर में आप इन दिनों पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित मेजर बलवंत सीरीज के अदभुत उपन्यास ।
यह उपन्यास अदभुत कैसे हैं, यह आप समीक्षाएं पढकर जान चुके होंगे, अगर नहीं जान पाये तो आप इंतजार करें हमारे कर्नल रंजीत के उपन्यासों पर आधारित आलेख 'कर्नल रंजीत के उपन्यासों की रहस्यमयी दुनिया' का । इस आलेख में आपको कर्नल रंजीत के उपन्यासों के विषय मे अदभुत और रोचक जानकारी मिलेगी।कर्नल रंजीत के अब तक पढे गये उपन्यास 'हत्या का रहस्य, सफेद खून, चांद की मछली, वह कौन था, सांप की बेटी, काला चश्मा, बोलते सिक्के, लहू और मिट्टी, खामोश ! मौत आती है , मृत्यु भक्त, अधूरी औरत, हांगकांग के हत्यारे, 11 बजकर 12 मिनट, और अब प्रस्तुत है आपके लिए कर्नल रंजीत के उपन्यास 'खून के छींटे' की समीक्षा ।
Monday, 21 July 2025
THE डेड MAN'S प्लान - समीर सागर
जो मरकर भी लोगों को मार रहा था
THE डेड MAN'S प्लान - समीर सागर
मेरा नाम अजय शास्त्री है! एक सीधी साधी और प्यारी सी बेटी का बाप। वीणा, मेरी बच्ची ! मेरी मासूम चिड़िया। जिसके बिना में एक पल भी नहीं रह सकता। पर मुझे अपनी उस लाड़ली से हमेशा के लिए दूर जाना होगा। इतनी दूर जहां से वो मुझे कभी बुला नहीं पाएगी। मुझे जाना ही होगा। क्योंकि जो खेल मैंने रचा है, वो मेरी मौत के बिना शुरू नहीं हो सकता और मेरी मौत ही इस खेल की पहली आहुति है। जी हाँ, पहली। क्योंकि मेरी मौत के बाद इस शहर में मौत का एक ऐसा खेल शुरू होगा, जो इस दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा। जिन लोगों की मौत मैंने तय कर दी है, मैं उन्हें मरने के बाद भी मारता रहूँगा। कानून अपनी पूरी ताकढत लगा ले उन्हें बचाने के लिए, पर मैं उन्हें मारता रहूँगा। अब क़ानून का मुकाबला एक ऐसे खिलाड़ी के साथ है, जो अपनी हर एक चाल, हर मोहरा अपनी मौत से पहले ही चल चुका है। और ये मरा हुआ आदमी, तुम्हें जीतने नहीं देगा।
अगर तुम ये जान लो कि मौत का ये खेल मैंने क्यूँ रचा, तो शायद मुझे रोक लो, पर मेरे इस खेल का मजा ही ये है कि, मुझे जितना हराओगे, मैं अपनी जीत के उतने करीब पहुँचता जाऊँगा। अब मेरे दोस्त, अगर आपको लगता है कि शायद आप मुझे रोक सकते थे,
तो खुद को आजमा कर देख लो !
THE डेड MAN'S प्लान - समीर सागर
मेरा नाम अजय शास्त्री है! एक सीधी साधी और प्यारी सी बेटी का बाप। वीणा, मेरी बच्ची ! मेरी मासूम चिड़िया। जिसके बिना में एक पल भी नहीं रह सकता। पर मुझे अपनी उस लाड़ली से हमेशा के लिए दूर जाना होगा। इतनी दूर जहां से वो मुझे कभी बुला नहीं पाएगी। मुझे जाना ही होगा। क्योंकि जो खेल मैंने रचा है, वो मेरी मौत के बिना शुरू नहीं हो सकता और मेरी मौत ही इस खेल की पहली आहुति है। जी हाँ, पहली। क्योंकि मेरी मौत के बाद इस शहर में मौत का एक ऐसा खेल शुरू होगा, जो इस दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा। जिन लोगों की मौत मैंने तय कर दी है, मैं उन्हें मरने के बाद भी मारता रहूँगा। कानून अपनी पूरी ताकढत लगा ले उन्हें बचाने के लिए, पर मैं उन्हें मारता रहूँगा। अब क़ानून का मुकाबला एक ऐसे खिलाड़ी के साथ है, जो अपनी हर एक चाल, हर मोहरा अपनी मौत से पहले ही चल चुका है। और ये मरा हुआ आदमी, तुम्हें जीतने नहीं देगा।
अगर तुम ये जान लो कि मौत का ये खेल मैंने क्यूँ रचा, तो शायद मुझे रोक लो, पर मेरे इस खेल का मजा ही ये है कि, मुझे जितना हराओगे, मैं अपनी जीत के उतने करीब पहुँचता जाऊँगा। अब मेरे दोस्त, अगर आपको लगता है कि शायद आप मुझे रोक सकते थे,
तो खुद को आजमा कर देख लो !
THE डेड MAN'S प्लान- समीर सागर
Saturday, 5 July 2025
अदल बदल - आचार्य चतुरसेन शास्त्री
स्त्री स्वतंत्रता या उच्छृंखल
अदल-बदल - आचार्य चतुरसेन शास्त्री
भारतीय समाज में नारी को धार्मिक दृष्टि से चाहे उच्च श्रेणी दी गयी हो पर समाज में उसका स्थान बहुत पीछे है। वह गर की चारदीवारी तक सीमित थी, शिक्षा से दूर रही लेकिन बदलते वक्त के साथ औरत को स्वतंत्रता मिली, वह घर की चारदीवारी से बाहर निकली, यहाँ तक तो सब उचित था लेकिन इस से आगे जो घटित हुआ वह अनुचित था।
हम पहले चतुरसेन शास्त्री जी के उपन्यास 'अदल-बदल' का एक पृष्ठ देखें-डाक्टर कृष्णगोपाल आज बहुत खुश थे। वे उमंग में भरे थे, जल्दी-जल्दी हाथ में डाक्टरी औजारों का बैग लिए घर में घुसे, टेबल पर बैग पटका, कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गए । बाथरूम से सीटी की तानें आने लगीं और सुगन्धित साबुन की महक घर-भर में फैल गई। बाथरूम ही से उन्होंने विमलादेवी पर हुक्म चलाया कि झटपट चाइना सिल्क का सूट निकाल दें।
विमलादेवी ने सूट निकाल दिया, कोट की पाकेट में रूमाल रख दिया और पतलून में गेलिस चढ़ा दी, परन्तु डाक्टर कृष्णगोपाल जब जल्दी-जल्दी सूट पहन, मांग-पट्टी से लैस होकर बाहर जाने को तैयार हो गए तो विमलादेवी ने उनके पास आकर धीरे से कहा, "और खाना ?"
Tuesday, 1 July 2025
नीलमणि- आचार्य चतुरसेन शास्त्री
परिवार और आधुनिक में घिरी औरत की कहानी
नीलमणि- आचार्य चतुरसेन शास्त्री
हिंदी कथा साहित्य में आचार्य चतुरेसन शास्त्री जी का नाम उनके उपन्यासों के कारण ज्यादा जाना जाता है । उनके लिखे सामाजिक, ऐतिहासिक और प्रेमपरक उपन्यास पाठकों में प्रिय रहे हैं।श्री चतुरसेन शास्त्री जी का उपन्यास पढने का यह पहला अवसर है। इनके एक जिल्द में दो उपन्यास मिले थे, एक था 'नीलमणि' और दूसरा था 'अदल- बदल' । दोनों सामाजिक उपन्यास बदलते परिवेश को आधार बनाकर लिखे गये हैं। पहले उपन्यास 'नीलमणि' का प्रथम पृष्ठ पढे-
मालकिन रसोईघर में बैठी बड़ी तत्परता से पकवान बना रही थीं। महाराजिन सामने बैठी उनकी मदद कर रही थी। रसोई के द्वार के पास मही बैठी दरांत से तरकारी काट रही थी। बहुत-से मीठे और नमकीन पकवान बन चुके थे और उनकी सोंधी सुगन्ध घर में भर रही थी। दिन काफी चढ़ चुका था; हवा में अधिक उष्णता न थी । सूरज की धूप खिल गई थी। परिश्रम और चूल्हे की गर्मी के कारण मालकिन के उज्ज्वल ललाट पर पसीने की बूंदें मोती की लड़ी के समान सोह रही थीं। उन्होंने फुर्ती से हाथ चलाते हुए महरी से कहा - "देख तो री रधिया, यह लड़की अभी सोकर उठी या नहीं। इस लड़की से तो भई नाक में दम है, दिन बांस-भर चढ़ आया और महारानी अभी सो रही हैं। लड़की क्या है, कुम्भकरण की दादी !"
Monday, 30 June 2025
सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत
विचित्र हत्याएं और विश्वासघात
सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत
अपराधों की बाढ़
इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ने अपने सामने खुली पडी फाइल पर सूखे पेंसिल से जगह-जगह निशान लगाए और फिर जहां-जहां उसने सुखं निशान लगाए थे उन्हें अपनी डायरी में नोट करने लगा।
रात के ग्यारह बज चुके थे लेकिन वह अभी तक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में जुटा हुआ था। लक्ष्मी इस बीच उसे तीन बार फोन कर चुकी थी और हर बार उसने यही कह दिया था कि वह दस-पन्द्रह मिनट में काम खत्म करके आ रहा है। लेकिन नौ बजे से बैठे-के ग्यारह बज चुके थे उसका काम खत्म नहीं हुआ था।
इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ज्यों-ज्यों उस फाइल को पढ़ता चला जा रहा था उसकी चिन्ता और परेशानी में बद्धि होती चली जा रही थी। उसे इस पुलिस स्टेशन का चार्ज लिए बभी एक सप्ताह ही हुआ था। पुलिस कमिश्नर मिस्टर देश-पांडे ने उसकी नियुक्ति इस पुलिस स्टेशन पर करते समय उससे कहा था- "इंस्पेक्टर प्रधान, मैं बहुत कुछ सोच-समझ कर ही आपका ट्रांसफर इस पुलिस स्टेशन पर कर रहा हूं। पिछले कुछ महीनों से ऐसा महसूस होने लगा है कि बांदरा एरिया में रहने वाले सभी शरीफ आदमी इलाके को छोड़कर किसी दूसरे इलाके में चले गए हैं और उनके स्थान पर बड़े-बड़े स्मगलर, और घंटे हुए जरायम पेशा लोग आ बसे है या फिर इस इलाके में रहने वाले शरीफ आदमियों ने गैर-कानूनी कामों को अपना लिया है। पिछले छः महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो जब इस इलाके में कोई लाश न मिली हो, फौजदारी की वारदात न हुई हो। चोरी, डकैती, मार-पीट ता बहुत ही मामूली बात है। मैं आपकी सूझ-बूझ, साहस और कर्तव्यपरायणता से भली-भांति परि-चित हूं। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि आप इस इलाके में बढ़ते हुए अपराधों की बाढ़ को रोकेंगे ही नहीं बल्कि उस स्रोत को ही समाप्त कर देंगे जहां से इन अपराधों की धारा निकलती है।" (सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत, प्रथम दृश्य)
रात के ग्यारह बज चुके थे लेकिन वह अभी तक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में जुटा हुआ था। लक्ष्मी इस बीच उसे तीन बार फोन कर चुकी थी और हर बार उसने यही कह दिया था कि वह दस-पन्द्रह मिनट में काम खत्म करके आ रहा है। लेकिन नौ बजे से बैठे-के ग्यारह बज चुके थे उसका काम खत्म नहीं हुआ था।
इंस्पेक्टर शेखर प्रधान ज्यों-ज्यों उस फाइल को पढ़ता चला जा रहा था उसकी चिन्ता और परेशानी में बद्धि होती चली जा रही थी। उसे इस पुलिस स्टेशन का चार्ज लिए बभी एक सप्ताह ही हुआ था। पुलिस कमिश्नर मिस्टर देश-पांडे ने उसकी नियुक्ति इस पुलिस स्टेशन पर करते समय उससे कहा था- "इंस्पेक्टर प्रधान, मैं बहुत कुछ सोच-समझ कर ही आपका ट्रांसफर इस पुलिस स्टेशन पर कर रहा हूं। पिछले कुछ महीनों से ऐसा महसूस होने लगा है कि बांदरा एरिया में रहने वाले सभी शरीफ आदमी इलाके को छोड़कर किसी दूसरे इलाके में चले गए हैं और उनके स्थान पर बड़े-बड़े स्मगलर, और घंटे हुए जरायम पेशा लोग आ बसे है या फिर इस इलाके में रहने वाले शरीफ आदमियों ने गैर-कानूनी कामों को अपना लिया है। पिछले छः महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो जब इस इलाके में कोई लाश न मिली हो, फौजदारी की वारदात न हुई हो। चोरी, डकैती, मार-पीट ता बहुत ही मामूली बात है। मैं आपकी सूझ-बूझ, साहस और कर्तव्यपरायणता से भली-भांति परि-चित हूं। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि आप इस इलाके में बढ़ते हुए अपराधों की बाढ़ को रोकेंगे ही नहीं बल्कि उस स्रोत को ही समाप्त कर देंगे जहां से इन अपराधों की धारा निकलती है।" (सिरकटी लाशें- कर्नल रंजीत, प्रथम दृश्य)
Thursday, 26 June 2025
अधूरी औरत- कर्नल रंजीत
सात हत्याओं की अनोखी कहानी
अधूरी औरत- कर्नल रंजीत
नकाबपोश ने अपनी बाईं बांह मिसेज जैसवाल की पीठ पर लपेट ली और दायां हाथ अपने चौगे से निकालकर नकाब उठाया। मिसेज जैसवाल ने तड़पकर नकाबपोश से अलग होने की कोशिश की। नकाबपोश के हाथों में काले दस्ते का चाकू था।"आखिरी का !" यह कहकर नकाबपोश ने वह चाकू पूरे जोर से मिसेज जैसवाल की पीठ में घोंप दिया और फिर एक बार उन्हें अपने सीने से सटाकर अलग कर दिया।
प्रेम और हत्या की अनेक उत्तेजक तथा रोमांचपूर्ण घटनाओं से ओतप्रोत एक जासूसी उपन्यास-
अधूरी औरत
Sunday, 22 June 2025
सफेद खून- कर्नल रंजीत
कर्नल रंजीत मार्का असली उपन्यास
सफेद खून- कर्नल रंजीत
इन दिनों कर्नल रंजीत के उपन्यास पढे जा रहे हैं। जो लाफी रोचक और रहस्यमयी होते हैं। वैसे कर्नल रंजीत का लेखन सबसे अलग तरह का होता था, कहानी में अत्यधिक घुमाव और अत्यधिक ही रहस्य होता था।मैंने अप्रेल माह में कर्नल रंजीत के पांच उपन्यास पढे थे- मृत्यु भक्त, लहू और मिट्टी, हांगकांग के हत्यारे, 11 बजकर 12 मिनट और एक उपन्यास था बोलते सिक्के ।
फिर मई माह में कर्नल के उपन्यास नहीं पढे लेकिन जून में एक बार फिर कर्नल रंजीत पढना आरम्भ किया है। जून माह में 'काला चश्मा, सफेद खून, चांदी की मछली, रात के अंधेरे में और एक उपन्यास आग का समंदर आदि पढे और पढे जायेंगे।
अब हम चर्चा कर रहे हैं, उस उपन्यास का नाम है -सफेद खून।
और सफेद खून के बाद 'चांदी की मछली' उपन्यास की समीक्षा प्रकाशित की जायेगी जो 'सफेद खून' के साथ ही संलग्न है।
पहले हम प्रस्तुत उपन्यास का प्रथम दृश्य पढते हैं जिसका शीर्षक है बनफ्शई आंखें
बनफ्शई आंखें
वह शहर का सबसे महंगा होटल था। उसका नाम भी बहुत प्यारा था-'महबूबा', 'होटल महबूबा', जैसे वह होटल न हो, मेहमानों की महबूबा हो। उसका हर कमरा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात प्रेम-कथाओं के हीरो और हीरोइनों के मोहक चित्रों से सजा हुआ था, जैसे सेम्सन और डिलायला, अन्तोनी और क्लियोपेट्रा, रोमियो और जूलियट, हीर-रांझा, सोहनी महिवाल आदि। होटल महबूबा की दूसरी मंजिल के 29 नम्बर फ्लैट में दो स्त्रियां कामकाजी बातें कर रही थीं। उनमें एक स्त्री की आयु कुछ अधिक थी और दूसरी भरपूर जवान थी। लेकिन अधिक आयु वाली स्त्री भी अत्यधिक सुन्दर और आकर्षक थी। अधिक आयु की स्त्री युवा स्त्री का इंटरव्यू लें रहीं थी।
Tuesday, 17 June 2025
चांदी की मछली - कर्नल रंजीत
मेजर बलवंत की एक मर्डर मिस्ट्री कहानी
चांदी की मछली- कर्नल रंजीत
SVNLIBRARY में आप इन दिनों लगातार पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित रोचक उपन्यास । यह उपन्यास जहाँ मनोरंजन करने में सक्षम है वहीं आपको तात्कालिक जटिल कहानियों से भी परिचित करवाते हैं।
तो अब आप पढें कर्नल रंजीत के उपन्यास 'चांदी की मछली' की समीक्षा-
गरीबी और बेकारीरमणीक देसाई के लिए जीवन अचानक एक कटु यथार्थ बन गया था। ऐसा विषैला घूंट जिसे हलक से उत्तारना कठिन था। वह रेलवे - हड़ताल का शिकार हो गया था। उसने किसी प्रकार की तोड़-फोड़ में भाग नहीं लिया था, लेकिन उस पर तोड़-फोड़ करने के आरोप में मुकदमा चल रहा था। उसे आशा थी कि उसके साथ न्याय किया जाएगा। वह तीन महीने से बेकार था। बेकारी के भूत ने उसका स्वास्थ्य चौपट कर दिया था। चिन्ता और परेशानी से उसका रंग पीला पड़ गया था। उसकी जेब में आज केवल अट्ठाईस रुपये बाकी रह गए थे। उसकी आंखों में उसका भविष्य अंधकारमय हुआ जा रहा था और उसको यह भी दिखाई दे रहा था कि राधिका और उसके प्रेम की धज्जियां उड़ जाएंगी और उसका प्यार आत्महत्या कर लेगा।
Sunday, 1 June 2025
काला चश्मा- कर्नल रंजीत
चित्रों की चोरी और अंधेरे का रहस्य
काला चश्मा- कर्नल रंजीत
इन दिनों मेरे द्वारा कर्नल रंजीत के उपन्यास पढे जा रहे हैं। इस क्रम में एक और उपन्यास शामिल होता है जिसका नाम है 'काला चश्मा'।वह काला चश्मा जिसे लोग काली रात में भी पहनते हैं, क्यों?
इसके लिए उपन्यास पढना होगा। पर अब हम बात करते हैं उपन्यास के प्रथम दृश्य की को एक बैंक डकैती से संबंधित हैं और अध्याय का नाम भी 'बैंक डकैती' है।
सुबह के ठीक नौ बजे थे। प्रिन्सेज स्ट्रीट के दोनों ओर बड़ी बहुमंजिला इमारतों में स्थित शोरूम, विभिन्न कम्पनियों के कार्यालय, बैंक और दुकानें खुलने लगी थीं। बाजार में भीड़-भाड़ बढ़ने लगी थी।
नेशनल ग्रांड बैंक का आगे की ओर का दरवाजा अभी तक बन्द था लेकिन बैंक के कर्मचारी पिछले दरवाजे से अन्दर आ चुके थे। उन्होंने अपनी-अपनी सीटें संभाल ली थीं और अब साढ़े नौ बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
ठीक साढ़े नौ बजे दरबान शक्तिसिंह ने ब्रांच मैनेजर रविराय से सामने वाले दरवाजे की चाबियां लीं और बाले खोलकर शटर ऊपर उठा दिया ।
बाहर खड़े चार-पांच व्यक्ति अन्दर आ गए । बैंक के काम की दैनिक प्रक्रिया आरम्भ हो गई। लेकिन बैंक का काम आरम्भ हुए अभी पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए थे कि अचानक हॉल में हल्का-हल्का-सा अंधेरा छाने चगा।
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