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Friday, 25 April 2025

11 बजकर 12 मिनट - कर्नल रंजीत

प्रोफेसर की हत्या शृंखला
11 बजकर 12 मिनट

- मिस मालिनी के खुले मुंह में जहर किसने डाल दिया?
- प्रो० पालीवाल को तलवार से किसने चीर दिया?
-वाॅलीबाॅल खेलती लड़कियों के साथ किसने बलात्कार किया ?
-क्या इस सबके लिए छात्र उत्तरदायी थे?
देश के जाने-माने वैज्ञानिकों और शिक्षकों की योजनाबद्ध हत्याओंकी अनोखी कहानी। छात्र जब देश की गरीबी के विरोध में आन्दोलन कर रहे थे तो उनके आन्दोलन को एक घिनौनी राजनीति ने जकड़ लिया।
इसी षड्यंत्र का पर्दाफाश किया आपके चहेते जासूस मेजर बलवन्त ने। कर्नल रंजीत की जादूभरी कलम का एक नया कमाल !

छात्र आंदोलन के पीछे काम करने वाले षड्‌यंत्रकारियों का पर्दाफाश करने वाली रोमांचक कहानी

11 बजकर 12 मिनट

गुजरात में लगी हुई आग सवा दो महीने के बाद बुझी। इस बीच क्या कुछ नहीं हुआ! गोदाम, मंडियां और दूकानें लूटी गई। रेलवे स्टेशनों और पुलिस चौकियों पर हमले हुए। अधिकारियों का घेराव किया गया। गाड़ियां रोकी गई। बसें जला दी गई। सरकारी इमारतों को जलाकर खाक कर दिया गया। गोलियां चलीं। आंसू गैस छोड़ी गई। कई शहरों में कर्फ्यू लगा। जीवन-क्रम अस्त-व्यस्त हो गया। पुलिस-फायरिंग से बीसियों व्यक्ति मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। चारों ओर भय, आतंक और निराशा का अंधकार छा गया। और फिर महंगाई और बेरोजगारी के विरुद्ध छात्रों द्वारा छेड़े गए आन्दोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया। प्रदेश की विधानसभा भंग करनी पड़ी। तब कहीं जाकर गुजरात में लगी हुई आग ठण्डी हुई।
गुजरात की इस स्थिति पर लोगों ने विभिन्न मत व्यक्त किए। विरोधी पार्टियों के सिर इन दुर्घटनाओं का आरोप थोपा गया। कुछ विचारकों ने विदेशी आतंकवादी और तोड़‌फोड़ करने वाली शक्तियों को अपराधी ठहराया, कुछ गंभीर राजनीतिज्ञों ने गुजरात की दुर्घटना को छात्रों के हृदय में धधकती हुई आग का परिणाम बताया। राजनीतिज्ञों की राय चाहे कुछ भी थी, लेकिन एक बात पर सभी एकमत थे कि छात्र अशान्त हैं, निराश हैं और अपने भविष्य के प्रति निश्चिन्त और आश्वस्त नहीं हैं। यही कारण है कि उनके हृदय में आग धधक रही है। लेकिन वही आग लूटमार, अग्निकांडों और अशान्ति की जनक है, यह विचार सही नहीं था। छात्र वैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
गुजरात की आग ठंडी हो गई, लेकिन यही आग धीरे-धीरे बिहार में सुलगने लगी । वहाँ छात्र नेता नारे लगाने लगे,-"गुजरात की जीत हमारी है- अब बिहार की बारी है।"

            एक समय था जब छात्र राजनीति ने भारत में कई बड़े आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, देश के कई शीर्ष नेता छात्र राजनीति से ही आगे आये थे। बदलते समय के साथ-साथ वर्तमान समय में छात्र राजनीति कमजोर हो चली है। छात्र आंदोलन नगण्य हो गये हैं।
        अगर मैं अपने क्षेत्र की बात करूं तो यहाँ रायसिंहनगर से मार्क्सवादी कालू थोरी और श्योपत मेघवाल ने छात्र राजनीति से अपना वर्चस्व स्थापित किया है। श्योपत मेघवाल की एक बात यहाँ उल्लेखनीय है। उनका एक कथन-"अगर राजनीति हमारा भविष्य तय करती है तो यह भी तय है हम राजनीति ही करेंगे।"
अब हम बात करते हैं इस उपन्यास के कथानक की। बिहार के पटना में जब छात्र आंदोलन चरम पर था तब सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर शंकरदयाल ने बिहार छात्र नेताओं का इंटरव्यू लेने का विचार किया क्योंकि वह देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति से संतुष्ट नहीं थे और जानते थे कि आखिर छात्र इतने उग्र क्यों हैं। वह छात्रों की आवाज सरकार तक पहुंचाना चाहते थे।
छात्रों ने भी प्रोफेसर साहब के सामने अपने विचार रखे ।
एक छात्र-नेता ने कहा, "हम क्यों न कसमसाएं? हमारी बांहें क्यों न फड़कें ? जब हम यह देखते हैं कि हमारे माता-पिता दुख सहकर, भूखे पेट रहकर और फटे-पुराने कपड़े पहनकर हमें पढ़ाएं-लिखाएं और हम कॉलेजों से निकलकर जूतियां चटखाते फिरें! शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब हम अपने मां-बाप के दुख दूर करने में अपने-आपको असमर्थ पाते हैं तो हमारा खून खौलने लगता है। हम कोई कारोबार नहीं कर सकते, नौकरी हमें मिलती नहीं। फिर इन स्कूल और कॉलेजों से लाभ क्या है?"
प्रोफेसर शंकरदयाल को उनके होटल के कमरे में दैनिक समाचार पत्र के साथ एक चिट मिलती है।
उस चिट पर लिखा थाः
"प्रोफेसर शंकरदयाल, कुशल चाहते हो तो वापस चले जाओ । तुम हमारे आंदोलन को बहुत हानि पहुंचा रहे हो। हम तुम्हारी बकवास सुनने के लिए तैयार नहीं। अगर तुम आज रात आठ बजे तक वापस न गए तो रात के ग्यारह बजकर बारह मिनट पर एक खून होगा। समझे, खून!"
        और फिर रात 11 बजकर 12 मिनट पर प्रोफेसर साहब का खून हो जाता है। ऐसा नहीं कि प्रोफेसर साहब असावधान थे, उन्होंने अपनी सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था की थी। पर हत्यारा तय समय पर उनका खून करने में सफल हो गया और खून करने के पश्चात पीछे एक चिट छोड़ गया जिस पर लिखा था- 'नम्बर 1-आपको श्यामा का प्रणाम ।'
यह एक पहेली की तरह था ।
        वहीं छात्रों के लिए प्रोफेसर साहब की हत्या एक मुसीबत की तरह थी क्योंकि ज्यादातर लोगों का यह भी मानना था कि यह हत्या छात्रों ने की है। प्रोफेसर की हत्या की जांच के  लिए छात्र संघर्ष समिति ने याद किया मेजर बलवंत को।
"ओह हां मेजर बलवंत को बुलवाया जाए। हम प्रोफेसर दयाल की हत्या की जांच का काम पुलिस पर नहीं छोड़ेंगे। उनकी हत्या की जांच का हम अपना अलग प्रबन्ध करेंगे।"
  मेजर बलवंत के लिए प्रोफेसर के पास मिली दोनों चिट ही एकमात्र सूत्र थी। मेजर बलवंत अभी प्रोफेसर दयाल की हत्या का रहस्य सुलझा भी नहीं पाये थे कि उन पर जानलेवा हमला हुआ ।
वहीं छात्र आंदोलन चरम पर था ।
अगले दिन विद्यार्थियों का अपने ढंग का आंदोलन आरम्भ हो रहा था। आंदोलन का उद्देश्य महंगाई और बेरोजगारी के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन था। शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट था। आंदोलन का जो कार्यक्रम बनाया गया था उसमें तोड़फोड़ की कोई चर्चा न थी। शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट का प्रोग्राम यह था-अधिकारियों का घेराव किया जाए, रेलगाड़ियों को चेन खींचकर रोका जाए, .......  और शहर में पोस्टर लगाए जाएं, दूकानें बंद कराई जाएं, मौन जुलूस निकाले जाएं।
लेकिन आंदोलन के दौरान जो घटनाएं घटित हुयी वह अत्यंत शर्मनाक थी न तो छात्र नेता ऐसा सोच सकते थे और न ही मेजर बलवंत ।
"वर्तमान स्थिति बहुत ही भयंकर है। मैं यह देख रहा हूं कि केवल छात्र-आंदोलन को जड़ से उखाड़ फेंकने की ही कोशिश नहीं की जा रही बल्कि एक नया फितना जगाने की कोशिश की जा रही है।"
        तो क्या कोई छात्र आंदोलन के माध्यम से राजनैतिक षड्यंत्र था या कोई विदेश अपराधी कहीं सक्रिय थे। एक तरफ छात्र आंदोलन था, वहीं दूसरी तरफ छात्रों आंदोलन के माध्यम से देश और मानवता को तार-तार किया जा रहा था और इन दोनों के मध्य बुद्धिजीवी वर्ग की हत्यायें की जा रही थी।
          प्रोफेसर यादवेन्द्र शुक्ला जी प्रोफेसर शंकरदयाल के मित्र थे । शुक्ला जी ने अपने पुत्र वीरेन्द्र शुक्ला को इसलिए घर से निकाल दिया था कि उसने प्रेम विवाह किया था । एक दिन प्रोफेसर शुक्ला जी को एक चिट मिली
.......आप एक खतरनाक सड़क पर दौड़ते रहे हैं। आप जितना दौड़ सकते थे दौड़ चुके हैं। रात के दस बजकर बावन मिनट पर खून होगा। समझे, खून!
        और फिर प्रोफेसर शुक्ला साहब का तय समय पर खून हो गया। और इस बार भी हत्यारा पूर्व सूचना के अनुसार कत्ल करने में सफल रहा और आगे भी वह अपनी सफलता को निरंतर दोहराता रहा और मेजर साहब अपने प्रिय कुत्ते क्रोकोडायल और इंस्पेक्टर गंगेश्वर गौड के साथ रात दिन हत्यारे की तलाश में भटकते रहे ।
और अब तक चार कत्ल हो चुके थे।
मेजर, गौड़ और उसके साथी रात के दो बजे संघर्ष समिति के ऑफिस में वापस पहुंचे।
मेजर ने अपने कमरे में पहुंचकर चारों कार्ड निकाले। पहला कार्ड जो प्रोफेसर दयाल के दाएं जूते में से निकला था, उस पर लिखा थाः 'नम्बर 1 - आपको श्यामा का प्रणाम'। दूसरा कार्ड प्रोफेसर यादवेन्द्र शुक्ला की मेज पर मिला था। उस पर लिखा थाः 'नम्बर 2-आपको श्यामा का प्रणाम' । तीसरा कार्ड जो प्रोफेसर उमेश के सीने में धुपे खंजर के फल में पिरो दिया गया था उस पर लिखा थाः 'नम्बर 3-आपको श्यामा का प्रणाम'। यह खंजर नर्तकी सार्षिका का था। चौथा कार्ड जो मिस मालिनी के सिर के नीचे तकिये पर मिला था उस पर लिखा थाः 'नम्बर 4-आफ्को श्यामा का प्रणाम' ।
अब आगे था नम्बर पांच और अंतिम वार । इस अध्याय का नाम 'पांचवा कार्ड' है।
- क्या मेजर बलवंत इस पांचवे कत्ल को रोक पाये?
- क्या हत्यारा अपने अंतिम मकसद में कामयाब हो पाया?
शेष उपन्यास में मेजर बलवंत और हत्यारा के मध्य संघर्ष है और देखना है कौन सफल होता है। देखना यह भी है कि आखिर कोई क्यों निरंतर हत्याएं कर रहा था ।
और अंत मेजर बलवंत होंठ गोलकर सिटी बजाकर समस्या अंत करते हैं और असली अपराधी को कानू‌न के हवाले कर देते हैं।।
उपन्यास में मेजर बलवंत के विषय में एक रोचक बात कही गयी, आप भी पढें-
"ईमानदारी नाम की चिड़िया की नस्ल खत्म हो चुकी है।" एक और छात्र बोल उठा।
"आजकल ईमानदार कौन है?" दूसरे छात्र ने चीखते हुए कहा।
"एक ईमानदार है-बस एकㅡ" तीसरे छात्र ने बाजू लहराते हुए कहा, "और वह है मेजर बलवंत, जिसे कोई पूंजीपति या प्रतिक्रियावादी खरीद नहीं सकता; जो किसी हत्यारे या अपराधी के साथ किसी भी प्रकार की रियायत नहीं करता; जो सीना ठोंककर बात करता है। मेजर बलवंत को यह शक्ति उसके आदर्श ने दी है।"

मेजर बलवंत को शे'र कहने का शौक भी है। उनके उपन्यास में एक- दो शे'र भी मिल जाते हैं।
आप भी एक शे'र का आनंद लीजिए-
आम जो देने हैं या रब, तोड़कर कच्चे न दे।
खून जो मां-बाप का पी जाएं वो बच्चे न दे।"

        उपन्यास मर्डर मिस्ट्री आधारित है जिसमें छात्र आंदोलन के दौरान होने वाले प्रोफेसरों की हत्याओं का क्रम है और हत्यारे द्वारा 'श्यामा' नामक एक रहस्य छोड़ दिया जाता है, हालांकि यह रहस्य अंत में प्रासंगिकता सार्थक नहीं रख पाता और फिर पता नहीं हत्यारा ऐसा करता ही क्यों ।
वहीं मेजर बलवंत होटल के मीनू  कार्ड की सहायता से अपराधी तक पहुंचता है। वहीं इस अध्याय का नाम भी 'मीनू कार्ड' है।
आप देखें-
       सुधीर को लाने के बाद मेजर अपने कमरे में मेज के पास बैठ गया। उसने वे कार्ड अपने सामने रख लिए जो मृतकों के पास से मिलें थे। वह उनकी इबारत को ध्यान से देखने लगा। फिर उसने जेब से फाउंटेन पेन निकाला और डोरा से राइटिंग पैड मंगवाया।
मेजर देर तक उन कार्डों की इबारत की नकल करता रहा। वह पच्चीस मिनट तक ऐसा करता रहा। अन्तिम नकल को देखकर उसने संतोष की सांस ली। इसके बाद उसने वे तीनों मीनू कार्ड निकाले जिनको वह 'गजराज होटल' के मैनेजर से मांगकर लाया था। उन कार्यों पर उसने उसी लिखावट में एक इबारत लिखी जिस लिखावट में मृतकों के पास से मिले काडों में इबारत लिखी हुई थी। वह तीनों काडों पर मृतकों के पास से मिलने वाले काडों में मिलती-जुलती लिखावट देखकर बहुत खुश हुआ। वह होंठ गोल करके सीटी बजाने लगा। उसे वह लड़की याद आ गई जो नर्तकी सार्पिका का खंजर चुराकर ले गई थी।
(पृष्ठ-110-11)
यह उपन्यास का वह अध्याय है जिस के आधार पर मेजर बलवंत को अपराधी का पता चलता है लेकिन यह कहीं भी स्पष्ट नहीं की मेजर बलवंत ने उन मीनू कार्डों में क्या खोजा ।
बस सीटी बजाकर यह प्रदर्शित कर दिया गया की मेजर बलवंत ने रहस्य को खोज लिया।
किसी भी उपन्यास में सकारात्मक और नकारात्मक बिंदु होते ही हैं। जिन्हें हम छोड़कर कहानी का आनंद ले सकते हैं।
यहां चलते-चलते एक बात का वर्णन आवश्यक है। मेजर बलवंत के शब्दों को पढें-
"हत्या के इस केस का सम्बंध इस प्रकार की हिंसा, उत्तेजना और बर्बरता से है जिसे प्रतिक्रियावादी, पूंजीपति और वामपंथी उग्रवादी तत्व एक विशेष उद्देश्य से उभार रहे हैं। ये तत्व सत्ता प्राप्त करने के संघर्ष में असफल रहे हैं। इसलिए वैधानिक उपायों को ठुकराकर जनतांत्रिक ढांचे को नष्ट करने पर तुल गए हैं। ये देश को ऐसी हानि पहुंचा रहे हैं जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। ये लोगों की मुसीबतों को और भी बढ़ा रहे हैं तथा जनता के उचित और शांतिपूर्ण आंदोलनों में घुसकर उन्हें विकृत करके घिनौना रूप दे रहे हैं। इन्हीं लोगों ने इन पांच हत्यारों को, जिनकी कहानी मैं अभी आपको सुनाऊंगा, इस्तेमाल किया। जहां इन हत्यारों ने देश के महत्वपूर्ण व्यक्तियों की हत्या की, वहां इन शक्तियों ने बड़े पैमाने पर अव्यवस्था फैलाकर इन लोगों के लिए वातावरण तैयार किया।"
कर्नल रंजीत के उपन्यास की यह विशेषता है की उनमें ज्यादातर घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय अपराधी, देश को अस्थिर करने वाले लोग, दंगाई आदि कहीं नहीं उपस्थित होते हैं। जैसा की प्रस्तुत उपन्यास में उनका कुछ विवरण आपने पढा।
कर्नल रंजीत द्वारा लिखित प्रस्तुत उपन्यास मर्डर मिस्ट्री रचना है, जो मनोरंजन करने में औसत रहा है। फिर भी यह उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास-   11 बजकर 12 मिनट
लेखक-      कर्नल रंजीत
पृष्ठ -          124
प्रकाशक-   मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली

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