Tuesday, 21 October 2025

मुझे मौत चाहिए - अनिल सलूजा

दिल्ली के डाॅन से बलराज गोगिया की टक्कर
मुझे मौत चाहिए - अनिल सलूजा
# साठ लाख शृंखला +
- बलराज गोगिया सीरीज- 14

  एक कातिल को ढूंढकर उस मौत के घाट उतारने का काम मिला था बलराज गोगिया को। तफ्तीश करते हुये वह आगे बढा तो उल्टा अपनी ही जान के लाले पड़ गये उसे और....
और किसने कहा था- मुझे मौत चाहिए

"नहीं... नहीं... भगवान के लिये मेरे बेटे को कुछ मत कहना... मुझ गरीब का बस एक ही बेटा है...। अगर उसे कुछ हो गया तो मेरी पत्नी रो-रो कर अपनी जान दे देगी...। त... तुम मेरी पत्नी की हालत जा कर देखो... बेटे की जुदाई में वह मरने को हो रही है।" अपने कमरे की तरफ बढ़ते बलराज गोगिया के कदम वहीं ठिठक गये।
मोहन गेस्ट हाउस के बारह नम्बर कमरे में ठहरा हुआ था वह... ।

Friday, 10 October 2025

शूटर- अनिल सलूजा

एक मंत्री की हत्या का मामला
शूटर- अनिल सलूजा
- बलराज गोगिया- राघव सीरीज - 05

   आज हम चर्चा कर रहे हैं अनिल सलूजा जी और बलराज गोगिया सीरीज के पांचवें उपन्यास शूटर की। यह एक एक्शन-थ्रिलर उपन्यास है। बलराज गोगिया एक महिला की सहायता के लिए मंत्री की हत्या करने मैदान में उतरता है और एक गहरी साजिश में फंस जाता है।
     आपने पिछले दो भागों में विभक्त उपन्यास 'बारूद की आंधी' और 'खूंखार' में पढा होगा की बलराज गोगिया और राघव का पासपोर्ट और वीजा तैयार है और दोनों शांति का जीवन जीने के लिए देश छोड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचते हैं लेकिन वहां की विक्टर बनर्जी के धोखे के चलते पुलिस पहुँच जाती है और दोनों जान बचाकर दिल्ली छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।
एक लम्बे समय पश्चात दोनों आगरा से दिल्ली पहुंचते हैं और वह भी सीधे विक्टर बनर्जी के दरवाजे पर दस्तक देते हैं।

"खट... खट... खट।"
दरवाजे पर दस्तक पड़ी।
विक्टर बनर्जी फोल्डिंग पलंग से नीचे उतरा... चप्पल पहनी और चश्मा उतारकर उसे अपनी मैली शर्ट के पल्लू से साफ करते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ा।
"कौन...?"

Sunday, 5 October 2025

बारूद की आंधी- अनिल सलूजा

बलराज गोगिया का तीसरा कारनामा
बारूद की आंधी- अनिल सलूजा

बलराज गोगिया सीरीज- 03

"अब क्या ख्याल है ?*
"कैसा ख्याल?"
"भई विदेश जाने का।
"वो तो जाना ही है, यहां रहा तो कभी न कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाऊंगा और अगर में एक बार पकड़ा गया तो इस बार कोई अवतार सिंह या इकबाल बचाने के लिए नहीं आने वाला और अदालत भी जल्द से जल्द फांसी पर चढ़ाने का हुक्मनामा जारी कर देगी।"
"एक जरिया था। एक वही दोस्त था लेकिन यह भी हरामजदगी दिखा गया।" एक लंबी सांस छोड़ते हुए राघव बोला।
"इसमें तेरा क्या कसूर था और फिर तूने उसे उसकी गद्दारी की सजा खुद अपने हाथों से दे दी थी।" बलराज गोगिया रुमाल निकालकर मुंह पौंछते हुए बोला।
     गंगानगर पुलिस के हाथों आते-आते बचे थे बलराज गोगिया और राघव अगर ऐन वक्त पर वे इन्दिरा गांधी नहर में छलांग न मार गए होते तो दोनों की लाशें, वहीं पुल पर हो बिछी नजर आती।

Monday, 29 September 2025

भयानक बौने- कर्नल रंजीत

विश्व पर छाया बौनों का आतंक
भयानक बौने- कर्नल रंजीत

चार और खूंख्वार जीव उस गढ़े में से निकले । उनकी शक्लें बौनों जैसी थीं । उनकी आंखें क्रोध से अंगारा बन गईं । चारों तेज़ी से उछले और दो बलदेव के सीने से और दो उसकी गर्दन से चिपट गए-जोंकों की तरह ! देखते ही देखते उसके सारे कपड़े खून से तर हो गए। वह आकाश की ओर देखने लगा । उसकी आंखें खुली की खुली रह गई थीं । उसपर अचानक विषैले खूंख्वार बौनों ने आक्रमण कर दिया था । एक सनसनीभरा उपन्यास, जिसमें मानवता के शत्रुओं का भयानक षड्यंत्र विफल हो जाता है ।

       कर्नल रंजीत अपने अनोखे कथानक और रहस्यमयी पात्रों के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं। उनके उपन्यासों के कथानक मर्डर मिस्ट्री होते हुये भी बहुत अलग होते हैं और पात्र भी बहुत अजीब ।
   एक ऐसे ही अलग कथा पर आधारित उनका उपन्यास मिला है- भयानक बौने। प्रस्तुत उपन्यास ऐसे भयानक और जानलेवा चूहों पर आधारित है जो एक तरफ जहां लोगों की जान ले रहे हैं वहीं वह खाद्यान्न भी खत्म कर रहे हैं ।
ऐसे खतरनाक और जानलेवा चूहे कहां से आये ?

देख लिया तेरा कानून- कर्नल रंजीत

ग्यारह हत्याओं की मिस्ट्री
देख लिया तेरा कानून- कर्नल रंजीत

ऐसे सफेदपोश लोगों की अजब-जब कहानी, जो शराफत, इन्सानियत, समाज सेवा का खूबसूरत चोला पहने हुए थे; लेकिन थे वे सिर तक अपराध में डूबे हुए, ढोंगी, मक्कार और घिनौने चेहरे ।
मुखौटेघारी ऐसे लोग, जो कहने को तो कानून के रखवाले थे; लेकिन वास्तव में थे कानून के भयानक दुश्मन ।
एक नौजवान जिसे अगले दिन फांसी दी जाने वाली थी जेल से फरार !
कड़ी सुरक्षा के बीच हथियारों और गोला-बारूद की चोरी, फांसी के फंदों में लटकाकर हत्याएं करने का अनोखा सनसनीखेज तरीका !
चीखते-पुकारते-कराहते बेगुनाह लोगों पर भी अत्याचार, और भी ढेरों रहस्य छिपे पड़े हैं कर्नल रंजीत के इस नये दमदार धमाके में

  देख लिया तेरा कानून

भयानक सपना
"नहीं -ऽ ऽ ऽ ई ऽऽ ई..!"
एक हृदयवेधी चीख रात के सन्नाटे को चीरती हुई नैनी सेण्ट्रल जेल के वार्ड नम्बर तीन की छत और दीवारों से टकराकर गूंज उठी ।
उस दर्द-भरी चीख को सुनकर वार्ड के सोये कैदी जाग उठे और अपने चारों ओर छाए मलगजी अंधेरे में इधर-उधर देखने लगे ।
"क्या हुआ काका !" चीख सुनते ही मंगल की आंख सबसे पहले खुली थी। वह अपने बिस्तर से उठकर झपटता हुआ वार्ड के दरवाजे के सामने सोये लक्षमन सिंह के पास पहुंच गया था ।
लक्षमन सिंह के उत्तर न देने पर उसने दोनो हाथों से उनके कन्धे पकड़ लिए और उन्हें हिलाते हुए उसने फिर पूछा, "क्या बात है काका ! क्या कोई डरावना नपना देखा था तुमने ?"
लक्षमन सिंह का सारा शरीर पसीने में डूबा हुआ था । उनके हाथ-पांव इस तरह कांप रहे थे जैसे उन्हें जूड़ी चढ़ आई हो। उनकी बड़ी-बड़ी फटी हुई आंखें सलाखों के पार कहीं शून्य में टिकी हुई थीं।
          मंगल की आवाज सुनकर वार्ड में सोये कैदी उठकर लक्षमन सिंह के पास आ गए थे। मंगल ने अपने सिरहाने रखें बड़े से गिलास में पानी उड़ेला और तीन-चार साथी कैदियों की सहायता से लक्षमन सिंह को बैठाकर गिलास उनके होंठों से लगा दिया। (उपन्यास के पृष्ठ से)

    प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री रचना है और जिसमें कुल ग्यारह हत्याएं होती हैं। पहली हत्या होती है इलाहाबाद  के प्रसिद्ध 'विजय पैलेस' में।

Friday, 26 September 2025

टेढा मकान- कर्नल रंजीत

शिलखण्डी से सावधान
टेढा मकान - कर्नल रंजीत
मेजर बलवंत सीरीज

नमस्ते पाठक मित्रो,
आज 'SVNLIBRARY' ब्लॉग पर हम लेकर उपस्थित हैं प्रसिद्ध उपन्यासकार कर्नल रंजीत के एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास 'टेढा मकान' की समीक्षा।
इस उपन्यास का घटनाक्रम उत्तर प्रदेश के शहर गाजियाबाद से संबंध रखता है।
तो चलो हम पहले उस मकान के विषय में ही पढ लेते हैं ।
गाजियाबाद के मुकुन्दनगर मुहल्ले की आठवीं गली में एक मकान था, जो एक मंजिल का होते हुए भी बहुत ऊंचा था। अधिक पुराना नहीं था, लेकिन टेढ़ा जरूर था। यह मकान एक बहुत ही कंजूस बूढ़े का था। उस कंजूस बूढ़े के बारे में यह प्रसिद्ध था कि उसके पास सोने-चांदी और हीरे-जवाहरात का विशाल भंडार है जिसकी वह रात-दिन चौकीदारी करता रहता है और जानबूझकर फटे हाल रहता है। बूढ़े की इस बनी हुई साख ने कि उसके पास सोने-चांदी और हीरे-जवाहरात का विशाल भंडार है, उसे परेशान कर रखा था । कई बार उसके घर में सेंध लगाई गई। उसके हाथ-पांव और मुंह बांधकर मकान के फर्श की खुदाई की गई। दीवारें जगह-जगह से खोद डाली गई । छतों के शहतीर टटोले गए; लेकिन हीरे-जवाहरात का भंडार किसी को नहीं मिला। चोरों के हाथ बल आठ-दस रुपये या थोड़ी-सी रेजगारी लगी। कंजूस बूढ़ा एक समय में अपने आठ-दस रुपये से अधिक नहीं रखता था। उसके संदूक में पुराने घिसे पिटे और पैबन्द लगे कपड़े भरे रहते थे, जिन्हें चोर भी चुराना अपना अपमान समझते थे । 
    उस कंजूस बूढे का नाम था देवकीनन्दन पराशर । वह स्वयं जैसा था उसे ठीक वैसा ही एक नौकर मिल गया था। उस कंजूस पराशर के नौकर को लोग विद्वान रतनू कहते थे।
एक प्रसिद्ध कंजूस और एक कथित विद्वान । दोनों का इस दुनिया में नितांत अकेले थे और यह अकेलापन उन दोनों ने मालिक नौकर बनकर दूर किया।
और एक दिन बूढा पराशर उस मकान के सबसे गंदे कमरे में एक पुरानी और टूटी हुयी कुर्सी पर मृत्यु पाया गया ।(पृष्ठ-11)
बूढा और कंजूस पराशर तो मर गया लेकिन उसके साथ ही कुछ कहानियाँ प्रचलित हो गयी।
बूढे नौकर रतनू का बयान था कि सागरचंद के भूत ने उसके मालिक को डराकर उसकी जान ली है ।(पृष्ठ-11)
अब यह सागरचंद कौन है और वह भूत कैसे बना यह भी जान लीजिए-

Friday, 5 September 2025

हत्यारा पुल- कर्नल रंजीत

कहानी मस्तिष्क चोर की
हत्यारा पुल- कर्नल रंजीत

एक्सीडेण्ट या हत्या
भादों की काली-अंधियारी रात में लखनऊ से आठ मील दूर बरसाती काली रात के अंधकार में लिपटे नाहर फार्म में गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। कभी-कभी बिजली कड़ककर उस सन्नाटे को भंग कर देती थी।
नाहर फार्म की मालकिन गोमती देवी अपने बेडरूम में चुपचाप लेटी हुई थीं। वह न जाने अतीत की किन यादों में खोई हुई थीं कि उन्हें पद्मा के आने तक का पता न चला।
        पद्मा गोमती देवी की पालिता पुत्री मोलिना की गवर्नेस थी, सुशिक्षित, सभ्य, शिष्ट और सुन्दर। पद्मा को रूप और गुण प्रदान करते समय तो विधाता ने कंजूसी नहीं की थी। लेकिन वह पद्मा को सुहाग देने में कृपणता कर गया। रूप और गुणों से भरपूर पद्मा विवाह के तीन वर्ष बाद ही विधवा हो गई थी। उस समय पद्मा की उम्र चौबीस साल थी। अचानक उन्हीं दिनों गोमती देवी के भाई अजयसिंह का देहान्त हो गया। अजयसिंह की पत्नी एक बच्ची को जन्म देने के एक वर्ष बाद ही स्वर्ग सिधार चुकी थीं। गोमती देवी अपने भाई की अंतिम और एकमात्र निशानी मोलिना को ले आई। क्योंकि उनका अपना कोई बच्चा न था।

       और जब मोलिना की देखभाल के लिए गवर्नेस की जरूरत पड़ी तो गोमती देवी ने इंटरव्यू के लिए आई हुई लगभग दो दर्जन महिलाओं में से पद्मा को चुन लिया।
          तब से यानी पिछले दस वर्ष से पद्मा गोमती देवी के साथ ही रह रही थी। गोमती देवी प‌द्मा के गुणों के कारण, जहां उसका सम्मान करती थीं, वहां उसके सौम्य स्वभाव के कारण उससे स्नेह भी करती थीं। प‌द्मा उनके परिवार की एक सदस्या बन गई थी। (हत्यारा पुल- कर्नल रंजीत, प्रथम पृष्ठ)

Monday, 25 August 2025

रेत की दीवार - कर्नल रंजीत

समुद्रगुप्त की प्रेयसी की रक्तरंजित गाथा
रेत की दीवार- कर्नल रंजीत 




Saturday, 23 August 2025

जानी दुश्मन- कर्नल रंजीत

एक फिल्म अभिनेत्री की हत्या
जानी दुश्मन- कर्नल रंजीत

नमस्ते पाठक मित्रो,
कर्नल रंजीत के उपन्यास पठन क्रम में एक रोचक उपन्यास मुझे मिला जिसका नाम है 'जानी दुश्मन' । यह एक रोचक उपन्यास है जो सिलसिलेवार हत्याओं पर आधारित है।

जानी दुश्मन
अभिनेत्री की हत्या
प्रियम्बदा ने अपने बाल संवारते हुए एक नजर आदम-कद नाइने पर पड़ते अपने अक्स पर डाली तो उसे लगा, वह आइने में जिस अक्स को देख रहीं है, वह अक्स उसका अपना नहीं किसी और का है। हर समय उदास और गम में डूबी-डूबी-सी आंखों में एक नई चमक थी, एक नया उल्लास था और चेहरे पर ऐसी ताजगी जैसी सुबह-सुबह खिले गुलाब के फूल की पंखुड़ियों पर दिखाई देती है। तराचे हुए सन्तरे की फांक जैसे भरे-भरे होंठों पर एक अन-चाही मुस्कान थिरक रही थी ।
और फिर अनचाहे, अनजाने वह हेमन्त के नए गीत के मुखड़े को गुनगुनाने लगी-
छलका दो मदिरा के प्याले, तन-मन की सुध-बुध खो जाए।
होंठों से यदि तुम छू दो तो । यह विष भी अमृत बन जाए।
गीत के बोल गुनगुनाते-गुनगुनाते अनायास ही उसके पांव बेडरूम के फर्श पर थिरक उठे। पैरों में पड़ी पायल के घुंघरू तालबद्ध लय में बज उठे ।
और फर्श पर थिरकते-गुनगुनाते उसने मेज पर रखा श्री-इन-वन ऑन कर दिया।

Sunday, 17 August 2025

चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत

क्या था तूफानी रात में हत्याओं का रहस्य ?
चीखती चट्टानें- कर्नल रंजीत

तूफानी रात
अमावस की काली बरसाती रात । चारों और घटाटोप अंधकार छाया हुआ था।
      बम्बई के मुख्य सागर-तट से लगभग आठ मील दूर, जहां समुद्र के किनारे किनारे दूर तक किसी मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेष फैले हुए थे, अमावस की काली बरसाती रात का अंधेरा और सन्नाटा और भी गहरा तथा भयानक लग रहा था। कभी-कभी बारिश की तेज बौछारें, बिजली की बादलों की गरज और सागर की लहरों की गर्जन बरसाती अंधियारी रात के उस सन्नाटे को भंग कर देते थे।
         अचानक सन्नाटे को चीरती हुई किसी राइफल की गोली की आवाज समुद्र तट पर दूर तक बिखरी चट्टानों और प्राचीन मराठा दुर्ग के ध्वंसावशेषों से टकराकर गूंजती चली गई। गोली की आवाज के साथ ही किसी व्यक्ति की हृदयबेधी चीख उभरी; लेकिन वह चीख बिजली की कड़क और घटाओं की गरज में दबकर रह गई।

      राइफल की गोली की आवाज और उसके साथ ही उभरने वाली मानवीय चीख को सुनकर चैकपोस्ट पर तैनात सब-इंस्पेक्टर यशवंत खांडेकर और उसके साथी गुमटी में से निकलकर दौड़ते हुए बाहर आ गए। उन्होंने आंखें फाड़-फाड़कर इधर-उधर नजरें दौड़ाई; लेकिन उन्हें कहीं कुछ न दिखाई दिया। और न किसी प्रकार की आहट ही सुनाई दी। कोई यह तक अनुमान न लगा सका कि गोली और चीख की आवाज किस ओर से आई थीं। घटाटोप अंधियारे और मूसलाधार वर्षा की बूंदों की तनी हुई चादर को चीरकर यह देख पाना असंभव था कि गोली किसने चलाई और किस पर चलाई?

Sunday, 10 August 2025

गहरी चाल- कर्नल रंजीत

कौन था पारसी समुदाय का दुश्मन

गहरी चाल- कर्नल रंजीत
उपहार
सोनिया ने एक बहुत ही सुंदर फूलदार मोमी कागज और चार रंगों के रिबन में लिपटे हुए उस चौड़े बक्स को खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो मेजर बलवंत ने उसका हाथ पकड़ लिया "इस सुंदर बक्स को देखकर पागल क्यों हुई जाती हो ? यह बक्स खतरनाक भी हो सकता है। हो सकता है कि हमारे किसी शत्रु ने भेजा हो। इसमें कोई बम, कोई सांप या कोई खतरनाक यंत्र हो यह बक्स मैं खोलूंगा।"
सोनिया ने भयभीत होकर तुरंत अपना हाथ पीछे हटा लिया।
मेजर ने उस सुंदर बक्स को ध्यान से देखा। उसे उस बक्स में. कोई असाधारण बात नजर न आई। उसने कागज काटने वाली छुरी उठाकर उस बक्स के रिबन काट दिए । उसने फूलदार मोमी कागज उतारकर बक्स खोला। बक्स के भीतर टिशू पेपर की तह थी। उसके ऊपर एक खूबसूरत कार्ड था, जिस पर लिखा था- 'मेजर साहब की सोनिया के लिए।'
सोनिया भी वह कार्ड पढ़ चुकी थी और मुस्करा रही थी। मेजर ने टिशू पेपर हटा दिया। उसने सबसे पहली चीज उठाई। वह एक नये डिजाइन की अंगिया थी, जो बढ़िया किस्म के दोहरे कपड़े से बनी थी। मेजर ने वह अंगिया सोनिया की ओर फेंकते हुए कहा, "तुम्हारे जोबन का गिलाफ।"
सोनिया खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसे वह अंगिया बहुत अच्छी लगी। बक्स में अंगिया के नीचे से क्रोशिए की कढ़ी हुई जालीदार शिफ्ट अर्थात बनियान के स्थान पर पहनने वाली छोटी कमीज निकली। मेजर ने उसे भी सोनिया की ओर फेंकते हुए कहा, "तुम्हारी केंचुली।" सोनिया को मेजर की यह बात पसंद न आई तो मेजर हंसा। उसने कहा, "सोनिया। सुंदरता को उजागर करने की बजाय उसे ढांपने वाली हर चीज से मुझे नफरत है। इसीलिए मैंने शिफ्ट को केंचुली कहा है।" यह कहकर मेजर ने एक जांघिया सोनिया की ओर उछाल दिया और बोला, "यह है..." लेकिन सोनिया ने मेजर के मुंह पर हाथ रख दिया । अब मेजर ने बक्स में से दूसरा कार्ड निकाला और पढ़ना शुरू कर दिया 'मेजर बलवंत! ब्यूटीफुल गारमेंट्स की ओर से सोनिया के लिए यह उपहार स्वीकार कीजिए और आज रात को साढ़े सात बजे सोनिया और अपने अन्य मित्रों के साथ 18, लैम्पशेड बिल्डिंग हार्नबी रोड पर पधारिए। हम अपनी एक नई शाखा खोल रहे हैं। हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे।'
"क्या आप चलेंगे?" सोनिया ने पूछा।
"तुम जाना चाहती हो तो जरूर चलेंगे।"
"मेरा ख्याल है कि हमें चलना चाहिए।" सोनिया ने परामर्श दिया ।

'गहरी चाल' कर्नल रंजीत का नई पृष्ठभूमि पर लिखा गया अत्यंत रोचक जासूसी उपन्यास है। इसमें अपने हित के लिए देश-हित को भेंट चढ़ाने वाले एक खूंखार गिरोह की दिल दहला देने वाली काली करतूतों की बड़ी ही रोमांचक कहानी है। इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ करने में मेजर बलवंत जैसे कुशल जासूस को भी अपनी जान की बाजी लगा देनी पड़ी; और अंत में जब रहस्योद्घाटन हुआ तो सभी आश्चर्यचकित रह गये।

नमस्ते पाठक मित्रो,
एक बार फिर आपके लिए प्रस्तुत है कर्नल रंजीत के उपन्यास 'गहरी चाल' की समीक्षा । और कर्नल रंजीत के उपन्यास पर लिख गयी मेरी सोोलहवीं समीक्षा है। इस से पूर्व में पन्द्रह समीक्षाएं लिख चुका हूँ।

Friday, 1 August 2025

खून के छींटे- कर्नल रंजीत

खत्म होते रिश्तों की हत्या
खून के छींटे- कर्नल रंजीत

नमस्ते पाठक मित्रो,
उपन्यास समीक्षा लेखन के इस सफर में आप इन दिनों पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित मेजर बलवंत सीरीज के अदभुत उपन्यास ।
 यह उपन्यास अदभुत कैसे हैं, यह आप समीक्षाएं पढकर जान चुके होंगे, अगर नहीं जान पाये तो आप इंतजार करें हमारे कर्नल रंजीत के उपन्यासों पर आधारित आलेख 'कर्नल रंजीत के उपन्यासों की रहस्यमयी दुनिया' का । इस आलेख में आपको कर्नल रंजीत के उपन्यासों के विषय मे अदभुत और रोचक जानकारी मिलेगी।
कर्नल रंजीत के अब तक पढे गये उपन्यास 'हत्या का रहस्य, सफेद खून, चांद की मछली, वह कौन था, सांप की बेटी, काला चश्मा, बोलते सिक्के, लहू और मिट्टी, खामोश ! मौत आती है , मृत्यु भक्तअधूरी औरत, हांगकांग के हत्यारे, 11 बजकर 12 मिनट, और अब प्रस्तुत है आपके लिए कर्नल रंजीत के उपन्यास 'खून के छींटे' की समीक्षा ।

Monday, 21 July 2025

THE डेड MAN'S प्लान - समीर सागर

जो मरकर भी लोगों को मार रहा था
THE डेड MAN'S प्लान - समीर सागर

मेरा नाम अजय शास्त्री है! एक सीधी साधी और प्यारी सी बेटी का बाप। वीणा, मेरी बच्ची ! मेरी मासूम चिड़िया। जिसके बिना में एक पल भी नहीं रह सकता। पर मुझे अपनी उस लाड़ली से हमेशा के लिए दूर जाना होगा। इतनी दूर जहां से वो मुझे कभी बुला नहीं पाएगी। मुझे जाना ही होगा। क्योंकि जो खेल मैंने रचा है, वो मेरी मौत के बिना शुरू नहीं हो सकता और मेरी मौत ही इस खेल की पहली आहुति है। जी हाँ, पहली। क्योंकि मेरी मौत के बाद इस शहर में मौत का एक ऐसा खेल शुरू होगा, जो इस दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा। जिन लोगों की मौत मैंने तय कर दी है, मैं उन्हें मरने के बाद भी मारता रहूँगा। कानून अपनी पूरी ताकढत लगा ले उन्हें बचाने के लिए, पर मैं उन्हें मारता रहूँगा। अब क़ानून का मुकाबला एक ऐसे खिलाड़ी के साथ है, जो अपनी हर एक चाल, हर मोहरा अपनी मौत से पहले ही चल चुका है। और ये मरा हुआ आदमी, तुम्हें जीतने नहीं देगा।
अगर तुम ये जान लो कि मौत का ये खेल मैंने क्यूँ रचा, तो शायद मुझे रोक लो, पर मेरे इस खेल का मजा ही ये है कि, मुझे जितना हराओगे, मैं अपनी जीत के उतने करीब पहुँचता जाऊँगा। अब मेरे दोस्त, अगर आपको लगता है कि शायद आप मुझे रोक सकते थे,
तो खुद को आजमा कर देख लो !

      THE डेड MAN'S प्लान- समीर सागर