Friday 31 August 2018

137. बीस लाख का बकरा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक ब्लैकमेलिंग की कथा।
बीस लाख का बकरा- सुरेन्द्र मोहन पाठक, रोचक,पठनीय।
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    रणवीर राणा एक कारोबारी व्यक्ति था लेकिन वह एक युवा लड़की के प्यार के चक्कर में वह ब्लैकमेलिंग का शिकार हो गया।
   एक तरफ राणा का परिवार, समाज में इज्जत और कारोबार था और दूसरी तरफ वे ब्लैकमेलर थे जिन्होंने राणा का जीना मुश्किल कर रखा था।
    अभी राणा इस मुश्किल से निकला भी न था ब्लैकमेलर द्वारा पैदा की गयी नयी‌ मुसीबत 'एक लड़की की हत्या' का आरोप उस पर लगा दिया गया।
        लेकिन रणवीर राणा की भी जिद्द थी की  ब्लैकमेलर को एक रुपया तक नहीं देना और  फिर वह रकम बीस लाख की थी।
 
ब्लैकमेलिंग मकड़ी के उस जाले की तरह है जिसमें आदमी एक बार फंस गया तो वह उसी में उलझ कर खत्म हो जाता है। कुछ लोगों ने ब्लैकमेलिंग को अपना रोजगार बना रखा है। इस काले कृत्य ने न जाने कितनी जिंदगियां तबाह कर दी। इस जाल में‌ फंसा आदमी अपनी बात न तो किसी को कह सकता है और न सहन कर सकता है।
       ब्लैकमेलर जोक की तरह होता है जो धीरे-धीरे खून चूसता रहता है और एक दिन आदमी परेशान होकर कोई न कोई कदम उठाने को मजबूर हो ही जाता है।
       
             रणवीर राणा को जब ब्लैकमेलिंग की धमकी मिली तो पहले तो वह घबराया लेकिन उसे पता था घबराने से काम नहीं चलने वाला उसे कोई न कोई ठोस कदम उठाना ही पड़ेगा और जब रणवीर राणा ने कदम उठा ही लिया तो ....
रणवीर राणा एक फैक्ट्री का मालिक था और उसका कारोबार भी ठीक था। सभ्य और इज्जतदार आदमी था लेकि‌न एक बार एक युवा लड़की के प्यार में वह सब कुछ भूल गया।
              राणा की यह भूल उसे एक खतरनाक ब्लैकमेलर रैकेट के जाल में फंसा गयी। ब्लैकमेलर उसे उस जाल से निकालने की कीमत चाहते थे और राणा उन्हें एक रुपया तक नहीं देना चाहता था।
"क्या कीमत चाहते हो तुम इसकी ?"- राणा कठिन स्वर में बोला।
" ज्यास्ती नहीं। बहुत कम। अपुन को लालच बिलकुल नेई है।"
"कीमत बोलो।"
"बीस लाख। सिर्फ। बस।" (पृष्ठ-11)
 
           ब्लैकमेलिंग एक ऐसा जाल है जिसमें आदमी एक बार फंस गया तो उम्र भर उसी में उलझा रहेगा। इसलिए तो राणा के‌ मित्र खेतान ने उसे पहले ही सावधान कर दिया था।
"राणा, तुमने एक बार उन लोगों की मांग पूरी कर दी तो विश्वास जानो वे जिंदगी भर जोंक की तरह तुम्हारा खून चूसते रहेंगे। ब्लैकमेलिंग रैकेट ऐसे ही चलता है।" (पृष्ठ-23)
     
      रणवीर राणा घबराने वाला व्यक्ति न था। उसने तो सोच ही लिया था की वह ब्लैकमेलर से टकरायेगा।
हालात से घबराकर हथियार डाल देने वाला वह भी नहीं था। हर दुश्वारी का कोई हल होता था, हर सवाल का कोई जवाब होता था, हर भूल-भूलैया का कोई रास्ता होता था। अगर वह इतना भी‌ मालूम कर पाता कि वे मवाली असल में कौन थे तो कुछ बात बन सकती थी, उनसे निपटने की कोई सूरत निकल सकती थी। (पृष्ठ-63)
     
        और जब रणवीर राणा सक्रिय हुआ तो ब्लैकमेलर रैकेट भी कहां शांत बैठने वाला था आखिर उनका बकरा उनके हाथ से निकल रहा था।
...हैरान था कि पूरी तरह से जकड़ा हुआ बकरा एकाएक इतना बेकाबू कैसे हो गया था कि उस पर सींग चलाने तक की हिम्मत कर बैठा था?.(पृष्ठ-114)
      
      ब्लैकमेलर रैकेट भी तैयार था रणवीर राणा को सबक सिखाने के लिए।
...चैंबर गोलियों से भरा चेट्टियार ने उसे बंद कर दिया-"अब समझ लो फिक्स हो गया।"
"क...कौन?"
"अपना बकरा। और कौन?"
"हां, बकरा।" (पृष्ठ-146)
- आखिर राणा इस ब्लैकमेलिंग रैकेट में कैसे फंस गया?
- क्या राणा ने बीस लाख रुपये दिये?
- ब्लैकमेलर कौन थे?
- आखिर इस कथा का परिणाम क्या निकला?
   इस प्रश्नों के उत्तर तो सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक जी का उपन्यास 'बीस लाख‌ का बकरा' पढ कर ही जाने जा सकते हैं।
       उपन्यास रोचक है जो आदि से अंत तक जिज्ञासा बनाये रखता है।‌ पाठक  भी यह सोचता है की आगे क्या होगा।
       उपन्यास नायक रणवीर राणा को जब ब्लैकमेल किया जाता है तो उसे यह नहीं पता होता की आखिरी ब्लैकमेलर हैं‌ कौन?
     लेकिन उसके दिमाग में एक बात सवार होती है की अगर वह ब्लैकमेलर का पता लगा ले तो इस चक्रव्यूह से बाहर निकल सकता है और इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए वह तैयार हो जाता है।
‌     उपन्यास में यह रोचक प्रसंग है की रणवीर राणा ब्लैकमेलर का पता कैसे लगता है। हालांकि रणवीर राणा जिस तरह से, जिस व्यक्ति पर बार-बार शक करता है वह कुछ उचित नहीं लगता क्योंकि रणवीर राणा के पास उस व्यक्ति को ब्लैकमेलर ठहरा‌ने का कोई पुख्ता तथ्य नहीं है।
"तुम फिर आ गये।"- वह हड़बड़ा कर बोला।
" हाँ।' - राणा मेज कर करीब पहुंच कर ठिठका-"तुम्हारे ही काम से आया हूँ।"
"मेरे काम से। यानि कि वो सुबह वाली तस्वीर वापिस करने आये हो जो की तुम्हें खींचनी ही नहीं चाहिये थी।"
"नहीं।"- राणा बड़े इत्मीनान से बोला।
" तो?"
'मैं"- राणा ने जेब में हाथ डालकर नोटों से भरा लिफाफा बाहर निकाल लिया - "रोकङा अदा करने आया हूँ।"
"क्या?" नागवानी अचकचा कर बोला।
.......
.....
"तुम रुपया लेना चाहते हो या नहीं?"
"रुपया कौन नहीं लेना चाहता। लेकिन सांई, रुपया मिलने की कोई वजह भी तो  समझ में आये।"
"वजह तुम्हें नहीं मालूम?"
"नहीं"
".....यानि की तुम‌ उन लोगों में से नहीं हो।"
"किन लोगों में से नहीं हूँ मैं?"
"जब तुम‌ कुछ जानते ही नहीं हो तो बात करना बेकार है।" (पृष्ठ संख्या-91-92)
        रणवीर राणा अपने मकसद में आगे बढता है और वह सफल भी होता है लेकिन अगर वह पुख्ता तथ्यों के साथ आगे बढता तो उपन्यास में रोचकता में वृद्धि होती।
      
        उपन्यास में रणवीर राणा की पत्नी रश्मि का किरदार बहुत सशक्त होकर उभरा है। रश्मि एक ऐसी सशक्त नारी के रूप में उपन्यास में आयी है जो गंभीर परिस्थितियों में भी अपने पति के साथ डट कर खङी होती है और रणवीर राणा उसी की वजह से सफल होता है।
  
        उपन्यास का अंत बहुत रोचक है। रणवीर राणा जैसा एक सामान्य आदमी जब अपनी पर आता है तो वह बहुत खतरनाक होता है। इस उपन्यास का समापन भी ऐसे ही एक कारनामें‌ के साथ होता है
निष्कर्ष-
            प्रस्तुत उपन्यास ब्लैकमेलिंग जैसे काले कृत्य पर लिखा गया है रोचक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास पठनीय है यह पाठक को किसी भी स्तर पर निराश नहीं करता।
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उपन्यास- बीस लाख का बकरा
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स
वर्ष- 1988
पृष्ठ-
मूल्य-
थ्रिलर उपन्यास
( 'बीस लाख का बकरा' उपन्यास आबू रोड़ के लेखक मित्र अमित श्रीवास्तव जी से पढने को मिला)

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कुछ उपन्यासों की समीक्षा


Tuesday 21 August 2018

136. रोड़ किलर- शुभानंद

ट्रैफिक नियम उल्लंघन करने वालों का दुश्मन...
रोड़ किलर- शुभानंद, जासूसी बाल उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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             इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग अक्सर नियमों की अवहेलना कर देते हैं। वो ये नहीं देखते की इस अवहेलना से किसी को नुकसान भी हो सकता है। मात्र स्वयं को आगे रखने की यह कोशिश किसी की जान भी ले सकती है।
       अगर बात करें ट्रैफिक नियमों की तो भारत में बहुत से लोग ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते और कुछ लोगों को नियमों का पता भी नहीं होता। जिनकों पता होता है वे भी जानबूझ कर नियमों की अनदेखी करते हैं। यह उपन्यास ऐसे ही नियमों के उल्लंघन करने वालों की कथा कहता है।

शाम का वक्त था।
चौराहे पर रेड लाइट होने पर भी किसी से सब्र नहीं हो रहा था।
गिनती के कुछ वाहन ही स्टॉप लाइन के पीछे रुके थे। बाकी सभी ने धीरे-धीरे आगे बढना आरम्भ कर दिया।
हवा में सनसनाते हुए एक के बाद एक तीर उड़ते हुए आये और स्टॉप लाइन से आगे निकले लोगों के जिस्म में घुसते चले गये। (पृष्ठ-05)

                       वह एक ऐसा व्यक्ति था जो नियमों की अवहेलना करने वालों को मौत के घाट उतार देता था। उस के कारण लोगों में दहशत है। लोग ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने से डरते हैं,  वह चाहे जो भी हो लेकिन उस के डर से लोगों ट्रैफिक नियमों का पालन करना आरम्भ कर दिया।
रोड़ किलर की करतूतों का शहर के लोगों पर कुछ असर जरूर पड़ा था।
काफी लोग सड़क पर ढंग से चलने लगे थे। (पृष्ठ-18)

- आखिर वह लोगों को क्यों मार रहा था?
- उसका ट्रैफिक नियमों से क्या संबंध था।?
- आखिर कौन था रोड़ किलर?
     
           यह एक छोटा सा उपन्यास है जो एक ऐसे युवक की कहानी है जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों को मार देता है। यही से यह प्रश्न उठता ही वह कौन है और क्यों लोगों को मार रहा है। हालांकि यह रहस्य ज्यादा देर तक नहीं रहता,  एक दो पंक्तियों से ( रोड़ किलर जो गीत गुनगुनाता है) से आभास हो जाता है की वह लोगों को क्यों मार रहा है।
         लेकिन इस के बाद भी उपन्यास में यह रहस्य बना रहता है की उसके जीवन में जो घटना घटित हुयी तो कैसे जिसके कारण वह रोड़ किलर बना। उपन्यास के अंत में भी एक रोचक ट्विस्ट है, हालांकि यह ट्विस्ट पहले कई फिल्मों में प्रयुक्त हो चुका है।
       इस रोड़ किलर को खोजने के लिए राजन- इकबाल, शोभा-सलमा की चौकड़ी तैनात की जाती है और वह रोड़ किलर को खोजती है।
   
           उपन्यास अम्बाबाद शहर की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। अगर देखा जाये तो यह अम्बाबाद शहर गुजरात का अहमदाबाद लगता है। क्योंकि उपन्यास में गुजराती खानपान और बोली प्रयुक्त होती है।
   
          एक अजीब/ सनकी/ सिरफिरे रोड़ किलर और जासूस चौकड़ी का यह उपन्यास रोमांच से भरपूर है।
             
निष्कर्ष-
            एक अलग विषय पर लिखा गया यह लघु उपन्यास बहुत ही रोचक है। पृष्ठ चाहे इसके  कम हैं लेकिन कथा उतनी ही रोचक है।
         उपन्यास रोचक और पठनीय है। पाठक का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है।
         
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उपन्यास- रोड़ किलर (बाल उपन्यास)
ISBN-
लेखक-    शुभानंद
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-    ‌‌‌‌‌    
मूल्य-       50₹

   विशेष-   यह राजन -इकबाल Reborn Series का चौथा उपन्यास है।
         

135. वो भयानक रात- मिथिलेश गुप्ता

एक भयानक रात जंगल में...
वो भयानक रात- मिथिलेश गुप्ता, हाॅरर लघु उपन्यास, रोचक-पठनीय।
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वह एक भयानक रात थी, अमावश की भयानक रात और ऐसी भयानक रात में एक परिवार जंगल में फंस गया।  उस परिवार कर साथ एक हादसा हुआ एक ऐसा हादसा जिसने पूरे परिवार को दहला दिया।
       उस हादसे बाद समय रुक गया....जी हां, समय वहीं ठहर गया।
क्या यह हादसा था या परिवार का वहम।
   
            लोकप्रिय उपन्यास जगत में सूरज पॉकेट बुक्स ने बहुत कम समय में अपनी पहचान स्थापित की है। परम्परागत जासूसी उपन्यासों के कागज के स्तर से मुक्त होकर अच्छे स्तरीय कागज पर उपन्यासों का प्रकाशन आरम्भ किया।
               सूरज पॉकेट बुक्स ने सभी श्रेणी के उपन्यासों का प्रकाशन किया है और इसी क्रम में मिथिलेश गुप्ता का उपन्यास है 'वो भयानक रात'। यह एक हाॅरर उपन्यास है।
                
                  वो भयानक रात की घटना है 11 जनवरी 2004 की जब रिटायर्ड आर्मी मेजर संग्राम सिंह अपनी पत्नी अर्चना, पुत्र राहुल और पुत्रवधु गीता के साथ एक पार्टी से घर लौट रहे थे।  रास्ते में एक भयानक जंगल था और रात का समय था।
  अमावश की एक मनहूस काली रात
   चारों तरफ घनघोर अंधेरा।
एक सुनसान सड़क और सड़क के दोनों तरफ फैला हुआ एक घना जंगल।
सड़क पर तेजी से दौड़ती हुयी एक कार। (पृष्ठ-09)
   उस भयानक जंगल में कार का एक्सीडेंट हो गया।  यह भी एक रहस्य था की आखिर एक्सीडेंट किस के साथ हुआ।
"....सड़क पर तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा है, न ही आसपास कोई परछाई। फिर तुम टकराए किस चीज से....मतलब कार किस चीज से टकराई थी?"- संग्राम सिंह ने राहुल को अजीब तरह से घूरते हुए कहा।
" पता नहीं पापा ऐसा लगा कोई था सड़क पर....लेकिन‌ मुझे कोई दिखाई नहीं दिया लगता है ऐसा लगा जैसे कोई अचानक से कार के सामने आया हो....।"(पृष्ठ-13)
- आखिर इस परिवार के साथ जंगल‌ में क्या हादसा पेश आया?
- आखिर कार का एक्सीडेंट किस के साथ हुआ?
- क्या यह परिवार जंगल से सुरक्षित लौट पाया?
- क्या रहस्य था इस अमावस्य की काली रात का?
            मिथिलेश गुप्ता का यह उपन्यास आकार में चाहे छोटा हो लेकिन कथ्य में बहुत शानदार है। कहानी आरम्भ से अंत रहस्य के आवरण में‌ लिपटी रहती है। उपन्यास में हर पल यह रहस्य बना रहता है की इस परिवार के साथ आगे क्या होगा।
    
                 संग्राम सिंह का परिवार जब जब जंगल में कार एक्सीडेंट के पश्चात एक अदृश्य जाल में फंस जाता है। यहीं से उपन्यास में जबरदस्त मोड आरम्भ हो जाता है। राहुल जब एक्सीडेंट वाली जगह से लौट कर आता है तो वह गुमसुम सा रहता है।
       संग्राम सिंह जब राहुल को ढूंढकर लाता है तो कार के पास से अर्चना और गीता को गायब पाता है। उपन्यास में इस प्रकार के घटनाक्रम उपन्यास को बहुत रोचक बनाते हैं।
       उपन्यास में शाब्दिक/मुद्रण गलतियाँ हैं, हालांकि यह कोई ज्यादा नहीं है।
    उपन्यास का अंतिम दृश्य जो की लेखक ने मेरे विचार से फिल्मी रूप से लिख दिया, क्योंकि वहाँ कुछ स्पष्ट नहीं किया। मिल में दृश्य पाठक ले समक्ष होता है तो वहाँ दृश्य को समझाने की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन उपन्यास में दृश्य को शब्दों से जीवित करना पड़ता है।
"पापा"
"आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे?"
अचानक संग्राम सिंह राहुल की तरफ एकदम से पलटा।
उसका चेहरा देख कर राहुल सकते में गया। (पृष्ठ-47)
       अब राहुल क्यों चौंका?
        बाकी परिवार केे सदस्य क्यों नहीं चौंके?
अगर लेखक यहाँ कुछ कोशिश करता तो यह दृश्य और भी अच्छा बनता व सार्थक बनता।
    
       उपन्यास की कहानी अच्छी व रोचक है। लेखक का प्रयास वास्तव में सराहनीय है।
          
निष्कर्ष-
           हाॅरर उपन्यास बहुत अच्छा व दिलचस्प है। कहानी में पृष्ठ दर पृष्ठ रहस्य पढता चला जाता है। पाठक प्रतिपल यही सोचता है की आगे क्या होगा।  यह रहस्य अंत तक यथावत रहता है।
उपन्यास जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।
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उपन्यास- वो भयानक रात
लेखक- मिथिलेश गुप्ता
ISBN- 978-1-944820-21-3
प्रथम संस्करण- Set. 2015
द्वितीय संस्करण- Feb. 2017
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 52
मूल्य-80₹
लेखक ब्लॉग
www.mihileshgupta152.blogspot.in

Saturday 18 August 2018

134. मौत का रहस्य- परम आनंद

आखिर आ ही गयी मौत...
मौत का रहस्य-परम आनंद, जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय।

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  कुछ कहानियाँ इतनी रोचक होती हैं‌ की वे पाठक को स्वयं में समाहित कर लेती हैं। मौत का रहस्य भी एक ऐसा उपन्यास है जो पाठक को अपनी तरफ आकृष्ट करने में सक्षम है।
        दमदार कहानी, अच्छा संपादन और तेज गति का कथा‌नक पाठक को अपने साथ बहा ले जाता है।
       मौत का रहस्य की‌ कहानी एक ऐसी युवती की कहानी है जिसके परिचित यही कहते थे की इसके कारनामें एक दिन इस के मौत के कारण बनेंगे। "जल्दी या देर में कोई कोई उसे कत्ल कत्ल करने ही वाला था"- इकबाल ने जवाब दिया-" वह हरकतें ही ऐसी करती थी। (पृष्ठ-70)
दूसरी तरफ एक सीधा-सादा युवक लड़की के आकर्षण में ऐसा फंसा की वह कातिल नजर आने लगा।
मौत का रहस्य एक जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री है जिसके रहस्य में पाठक डूब जाता है।
उपन्यास 'मौत का रहस्य' की कहानी कहानी आरम्भ होती है, प्रसिद्ध समाचार पत्र लोकवाणी के प्रबंधक राजन से।   राजन लगभग चार वर्ष से प्रसिद्ध समाचार पत्र 'लोकवाणी' के स्थानीय कार्यालय का प्रबंधक था। (पृष्ठ-03) जुलाई का महीना था। दिन का तीसरा पहर था। राजन अपने कार्यालय में बैठा ऊंघ रहा था। (पृष्ठ-03)      लोकवाणी का प्रकाशक है श्री हरिपद ठीकरी। श्री ठीकरी‌ की गणना अरबपतियों में होती थी। लोकवाणी प्रकाशन समूह में उन का स्थान पूर्णतयाः एक तानाशाह जैसा था। (पृष्ठ-03)
   श्री ठीकरी जी की बेटी मृदुला ठीकरी पढने के लिए शहर आती है और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी राजन को मिलती है। एक दो मुलाकतों के पश्चात राजन और मृदुला नजदीकी शहर अलकापुरी में गुप्त रूप से घूमने का प्रोग्राम बनाते हैं।
    तय जगह पर जब राजन पहुंचता है तो मृदुला की लाश उसे मिलती है। परिस्थितियाँ ऐसी बनी की राजन उसका कातिल नजर आ रहा था। दूसरी तरफ श्री ठीकरी जी ने राजन को यह जिम्मेदारी दी की वह असली कातिल का पता लगाये।  श्री ठीकरी बोले-"तुम उस व्यक्ति का पता लगाकर बताओ..फिर मैं‌ उस से निपट लूंगा।"(पृष्ठ-47)
अब राज‌न को स्वयं को दोषमुक्त करने के लिए असली कातिल की‌ तलाश थी।
- मृदुला ठीकरी का कत्ल किसने किया?
- मृदुला का कत्ल आखिर क्यों किया गया?
- राजन को कौन अपराधी सिद्ध करना चाहता था और क्यों?
- क्या राजन असली कातिल तक पहुंच पाया?
    
इन प्रश्नों के उत्तर तो परम आनंद का उपन्यास 'मौत का रहस्य' पढकर ही‌ मिल सकते हैं।
     

133. द टाइम मशीन- एच. जी. वेल्स

समय से परे की एक यात्रा।
द टाइम मशीन- एच. जी. वेल्स, फतांसी उपन्यास, मध्यम।
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     अगर इस दुनियां के अलावा किसी और दुनियां की कल्पना करते हो और उस दुनियां में जाने के इच्छुक हो तो यह भी अब संभव है। अगर आप अपना अतीत या भविष्य देखना चाहते हो तो यह भी संभव है। आप को कुछ नहीं करना बस एक मशीन, टाइम मशीन में‌ बैठ कर एक बटन दबायें और पहुंच जाये अपनी‌ मनपसंद दुनियां में।
     एच. जी. वेल्स का उपन्यास 'दी टाइम मशीन' एक ऐसे ही काल्पनिक लोक की यात्रा की सैर करवाता है।
इस उपन्यास में लेखक की कल्पना की उपज टाइम मशीन, उस पर सवार होकर समय का सोपान तय करता समय यात्री.... उस की रोमांचक यात्रा में अजीबोगरीब स्थितियों में मिलते और उस की कटु मधु स्मृतियों‌ का हिस्सा बनते तिलस्मी पात्र ...सब अभिभूत कर देने वाले हैं।

Wednesday 8 August 2018

132. जैक द क्लाक राइडर- खुशी सैफी

  एक नये संसार का रोमांचक सफर...
जैक- द क्लाॅक राइडर- खुशी सैफी, फतांसी‌ लघु बाल उपन्यास, रोचक।
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हादसे अक्सर जिंदगियां बदल देते हैं और आज भी शायद ऐसा ही कुछ हो चुका था।(पृष्ठ-13)
प्रोफेसर कैन एक वैज्ञानिक हैं और वे अक्सर कुछ प्रयोग करते हैं, एक ऐसा ही प्रयोग उनकी जिंदगी को बदल देता है। एक दिन प्रोफेसर कैन रहस्यम तरीके से अपनी लैब में से गायब हो जाते हैं।

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...