Saturday 22 December 2018

160. दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक खतरनाक दहशत का खेल...
दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुरेन्द्र मोहन पाठक जासूसी उपन्यास साहित्य में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उपन्यास पर लिखा उ‌नका नाम ही पाठक के लिए बहुत होता है।
        ‌पाठक जी मूलतः 'मर्डर मिस्ट्री ‌लेखक' हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'दहशतगर्दी' उनका मर्डर मिस्ट्री न होकर एक थ्रिलर उपन्यास है।
            यह उपन्यास मुख्यतः आतंकवादियों को आधार बनाकर लिखा गया है। 
"अपनी ताकत दिखाने का हमारे पास एक ही कार आमद तरीका है।"- खान गर्जा " और वो है दहशतगर्दी।" 
दहशतगर्दों का एक  टारगेट है भारत से सिंगापुर को चलने वाली लग्जरी  कन्टीनैंटल एक्सप्रेस ट्रेन को निशाना बनाना। दूसरी तरफ भारत, बांग्लादेश, फ्रांस और स्विटजरलैंड की पुलिस/जासूस/अधिकारी  है जो इन दहशतगर्दों/ आतंकवादियों के विरोध में, उनके मिशन को असफल करने में और असली अपराधी को पकड़ने के लिए सक्रिय हैं। 
    रूसी सर्कस के अंदर पी. सेनगुप्ता को मारने के लिए जो हत्यारा भेजा जाता है वह बिलकुल फिल्मी तरीका अपनाता है।  हत्यारा 'काॅमेडियन' का वेश धारण करके स्टेज पर काॅमेडी करता नजर आता है।
    एक लंबा, बहुत लंबा दृश्य/ संवाद भी देख लीजिएगा। दोपहर का वक्त था जब कलकता के ग्रैड होटल के एक डीलक्स सुइट में चार व्यक्तियों की एक मीटिंग का आयोजन था। (पृष्ठ-57) चार आदमियों का यह आयोजन पृष्ठ संख्या 57 से आरम्भ होकर पृष्ठ संख्या 74 पर जाकर खत्म होता है। इस दृश्य का अनावश्यक रूप से विस्तार दिया गया है।
            दहशतगर्दी एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास की कहानी एक ट्रेन को बम विस्फोट से उठाने की है। उपन्यास का भारी कथानक, अनावश्यक विस्तार और बोझिलपन कहानी को नीरस बना देता है।
            पहली बार पाठक जी के किसी उपन्यास को पढकर ऐसा लगा की ये उपन्यास शायद ही पाठक जी ने लिखा हो।
                उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- दहशतगर्दी
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक-  मनोज पब्लिकेशन
पृष्ठ-     261
मूल्य- 25₹
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      एक ऐसा षड्यंत्र जिसकी नींव पेरिस, जनेवा और सिंगापुर में रखी गयी।  जिसकी चपेट में भारत को लाने के लिए एक खतरनाक टैरेरिस्ट, एक इंटरनेशनल आर्म्स डीलर, एक प्रोफेशन किलर,  एक गद्दार इन्डस्ट्रिलिस्ट और एक वतन फरोश कर्नल एक ही थैली के चट्टे- बट्टे बने हुए थे। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
क्या वो अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो सके?
       सुरेन्द्र मोहन पाठक मूलतः एक 'मर्डर मिस्ट्री लेखक' हैं, लेकिन यह उपन्यास उनके जेनर से अलग तरह का है। इसका कथानक भी ऐसा है जिसे पाठक जी ने कभी नहीं लिखा। लेखकीय में लिखा है उपन्यास मैंने लिख तो लिया है लेकिन बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि भविष्य में दोबारा शायद  कभी मैं न करुं। (पृष्ठ-05, लेखकिय)
'दहशतगर्दी' उपन्यास की कहानी कश्मीरी दहशतगर्दों पर आधारित है जो कश्मीर को भारत से अलग करने की घटिया कोशिश में असफल होने पर भारत के विभिन्न जगहों पर अपनी दहशतगर्दी फैलाना चाहते हैं।
          उपन्यास का आरम्भ ही इतना नीरस लगता है की 10-15 पृष्ठ के पश्चात ही बोरियत महसूस होने लगती है। उपन्यास बहुत ज्यादा 'भारी' सा महसूस होता है, कथानक है ही इतना भारी की पाठक को समझना ही मुश्किल हो जाता है की लेखक लिख क्या रहा है।
    कुछ दृश्य और संवाद अनावश्यक रूप से विस्तार पाकर उपन्यास को नीरस बनाने में सहायक बने हैं।
निष्कर्ष-
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Friday 21 December 2018

159. आखरी मौका- प्रकाश भारती

लूटेरों को मिला घर वापसी का आखिरी मौका
आखरी मौका- प्रकाश भारती, थ्रिलर उपन्यास।
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प्रकाश भारती अपने समय के एक बेहतरीन उपन्यासकार रहे हैं। इनके लिखे उपन्यासों की कहानियाँ बहुत ही जबरदस्त और अलग प्रकार की होती थी। 
          प्रचलित जासूसी उपन्यासों से अलग हटकर लेखन इनकी विशेषता रही है। 'आठवां अजूबा' और 'काली डायरी' जैसे शानदार उपन्यास प्रकाश भारती जी की कलम की विशेष रचनाएँ हैं।
              प्रकाश भारती जी का उपन्यास 'आखरी मौका' एक डकैती पर आधारित उपन्यास है। बैंक डकैती तो उपन्यास के नेपथ्य में ही है वास्तव में यह उपन्यास डकैती के बाद के घटनाक्रम पर आधारित है। 
आखरी मौका- प्रकाश भारती
टीकम गढ।
      हरिपुर, नारायण गंज और निजारा नदी के उपर शान से सर उठाये खड़े पहाड़ का सबसे ज्यादा ऊँचाई वाला शहर था।
      भारी बख्तरबंद वैन नारायणगंज से अपने अगले पड़ाव टीकमगढ के लिए रवाना हुयी और प्रभावदार चढाई चढने लगी। (पृष्ठ-07)
          इस वैन को कुछ अज्ञात लूटेरे लूट लेते हैं।  पुलिस लाख कोशिश करने के बाद भी लूटेरों का पता न लगा पायी। पुलिस को लाख सिर पटकने के बाद भी नाकामियों का मुँह सेखना पड़ा। तब हकबकाये बैंक अधिकारियों ने 'क्राइम रिपोर्टर अजय' से एक समझौता किया और अजय कूट पड़ा कातिलों और लूटरों से भरी अपराध की उस दलदल में....फिर शुरु हुआ क्राइम रिपोर्टर अजय और अपराधियों के बीच एक रोमांचक व सनसनीखेज जंग.....। 

Sunday 16 December 2018

158. डार्क नाइट- संदीप नैयर

कुण्ठा के शिकार युवक की अश्लील कथा।

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           कुछ रचनाएँ अपनी चंद पंक्तियों से ही प्रभावित कर लेती हैं। एक ललक पैदा कर देती हैं, पढने की इच्छा जगा देती हैं। जो प्रभाव शब्दों में होता है वैसा प्रभाव और किसी में नहीं होता। ऐसे ही प्रभावशाली शब्द थे संदीप नैयर जी के उपन्यास 'डार्क नाइट' के।
      ‌‌ ‌ इस उपन्यास के सूत्रधार  'काम' के शब्दों में -
      -'आखिर सौन्दर्य है क्या? क्या सौन्दर्य सिर्फ मूर्त में है? सिर्फ रंगों और आकृतियों में‌ बसा है? क्या वह सिर्फ रूप और श्रृंगार में समाया है? क्या वह दृश्य में है? या दृश्य से परे दर्शक की दृष्टि में है? या दृश्य और दृष्टि के पारस्परिक नृत्य से पैदा हुए दर्शन में है? मगर जो भी है, सौन्दर्य में एक पवित्र स्पंदन है।  सौन्दर्य हमारी आध्यात्मिक प्रेरणा होता है। हमारे मिथकों में, पुराण में, साहित्य में, सौन्दर्य किसी गाइड की तरह प्रकट होता है, जो अँधेरी राहों को जगमगाता है, पेचिदा पहेलियों को सुलझाता है, भ्राँतियों की धुंध को चीरता है, और पथिक को कठिनाइयों के कई पड़ाव पार कराता हुआ सत्य की ओर ले जाता है।'
      - इन प्रभावशाली शब्दों को पढ कर मैं सौन्दर्य के सत्य को जानने का इच्छुक हुआ।  आखिर वह सत्य क्या है? इस सौन्दर्य से परे वह कौनसा सौन्दर्य है जिसे हम समझ नहीं पाये।
      - साहित्यकार समाज का निर्माता होता है, उसकी दृष्टि आप पाठक से अलग हटकर होती है। वह पाठक को एक नया दृष्टिकोण देता है।   मैं‌ लेखक से इसलिए प्रभावित हुआ की इस उपन्यास में मात्र पढने को ही नहीं कुछ नया समझने/ सीखने को भी मिलेगा।

            यह कहानी एक एक भारतीय युवक कबीर की जो लगभग पन्द्रह वर्ष की उम्र में ब्रिटेन का निवासी हो गया। भारतीय समाज के संस्कारों में पोषित कबीर लंदन के उन्मुक्त समाज में स्वयं को सहज नहीं बना पाता और कुण्ठा का शिकार हो जाता है।
               मूलतः लेखक इस कहानी के माध्यम से एक ऐसे युवक की कहानी दर्शाना चाहता है जो एक स्वच्छंद वातावरण में आकर कैसी घुटन महसूस करता है। वह स्वयं को एक अजीब सी स्थिति में पाता है।

        हम नारी की देह, उसके रूप, और उसके श्रृंगार में ही सौन्दर्य देखते हैं, पुरुष ही नहीं, नारी भी यही करती है। मगर नारी का सौन्दर्य, उसकी देह, रुप और शृंगार से परे भी बसा होता है।
उसके सौम्य स्वभाव में, उसकी ममता में, उसकी करुणा में उसके नारीत्व की दिव्य प्रकृति में।

          ‌ इस सौन्दर्य तक कोई पहुंच भी नहीं पाता। न तो कबीर इस सौन्दर्य को समझ पाता है और न ही प्रिया, माया, हिकमा और टीना। समझ तो इस सौन्दर्य को योग गुरु 'काम' भी नहीं पाता।
         क्योंकि कबीर का जो प्रेम है वह मात्रा शारिरिक है। उसके लिए बाहरी आकर्षण महत्व रखता है। जब वह शारीरिक सौन्दर्य की पूर्ति नहीं कर पाता तो वह मानसिक कुंठा का शिकार हो जाता है। लेखक के शब्दों में कहें तो वह 'डार्क नाइट' में चला जाता है।
             आखिर डार्क नाइट है क्या? आप भी देख लीजिएगा-
'द डार्क नाइट एक मानसिक या आध्यात्मिक संकट होता है, जिसमें मनुष्य के मन में जीवन और अस्तित्व पर प्रश्न उठते हैं, जीवन जैसा है, उसके उसे मायने नहीं दिखते, जीवन को उसने जो भी अर्थ दिये होते हैं वे टूटकर बिखर जाते हैं, जीवन उसे निरर्थक लगने लगता है।"(पृष्ठ128
            लेकिन यहाँ कबीर का कोई आध्यात्मिक संकट उत्पन्न नहीं होता, उसके एक ही संकट उत्पन्न होता है वह है शारीरिक वासना की पूर्ति न होना। क्योंकि उसका प्रेम.....कबीर का प्रेम भी देख लीजिएगा‌। वह प्यार नहीं मात्र मानसिक विकृति है, जिसे अच्छे मनोचिकित्सक की जरुरत है। 'नेहा की हील्स से उठती ताजे लेदर की गंध, उसे और उत्तेजित कर गयी।(पृष्ठ-97)
        क्या किसी चमड़े से उठती बदबू (गंध) से संबंधित लड़की से प्यार होना, कहां का प्यार है। 'हील्स से उठती मादक गंध, उसे एक बार फिर मदहोश कर गई'(पृष्ठ-98)

     योग गुरु की मदद से कबीर इस डार्क नाइट से बाहर भी निकल आता है। आखिर उसने योग गुरु से क्या सीखा, आप भी पढ लीजिएगा।   वो पूरे आत्मविश्वास से किसी लड़की पर अपना प्रेम जाहिर कर सकता है, उसे आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर अपने बिस्तर तक ला सकता है। (पृष्ठ-)186
         तो यह है डार्क नाइट या कबीर का सच। उसका प्रेम 'बिस्तर' से आगे का नहीं है। लेखक जिसे आध्यात्मिक संकट बता रहा है वह आध्यात्मिक नहीं मात्र वासना पूर्ति का संकट है।
         वह हर लड़की से यही चाहता है।     
"कबीर, क्या तुम प्रिया को बिलकुल भूल जाना चाहते हो?"- माया ने धीमी आवाज में पूछा।
" माया, मैं तुम्हें चाहता हूँ, और तुम्हारे लिए मैं सब कुछ भूलने को तैयार हूँ।"- कबीर ने भावुक स्वर में कहा। (पृष्ठ-166,67)

    कबीर ही नहीं प्रिया भी इसी प्रकार की पात्र है। "हाँ, कबीर मुझे माया से जलन हो रही है। माया में ऐसा क्या है, क्या वो मुझसे ज्यादा हाॅट है? मुझसे ज्यादा सेक्सी है? मुझसे ज्यादा सुंदर है?"(पृष्ठ-176)
               

     एक तो यह पता नहीं चलता की लेखक आखिर साबित क्या करना चाहता है। लेखक उपन्यास का आरम्भ/ लेखकीय में‌ बहुत उच्च कोटि की दार्शनिकता दिखाता है लेकिन उपन्यास की कहानी उससे जरा भी नजदीक नहीं है।  लेखक जहां देह से परे के सौन्दर्य की बात करता है लेकिन पूरा का पूरा उपन्यास मूर्त सौन्दर्य तो क्या स्त्री की नाभि से भी उपर नहीं उठ पाता।
          उपन्यास का नायक हो सकता है किसी कुण्ठा का शिकार रहा हो, उसकी दमित इच्छाएँ हो, लेकिन क्या यह लेखक का भी अनुभव है....?
          उपन्यास का नायक अपने योग गुरु से मिलता है। जी हां, योग गुरु से। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से योग आपकी कलुषित विचारधारा को भी शुद्ध कर देता है। लेकिन उपन्यास पढकर लगता है जैसे लेखक ने योग का नाम ही सुना है वह भी योगा रूप में। जहां 'भोग से समाधि की ओर' की चर्चा चलती वहीं यह उपन्यास योग से भोग की ओर संकेत करता नजर आता है।
         
             भक्तिकाल के भक्त कवि कबीर ने कहा है-
जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध ।
अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत ।।

                                  ‌   अज्ञानी गुरु का शिष्य भी अज्ञानी ही होगा। ऐसी स्थिति में दोनों ही नष्ट होंगे।  यहाँ नायक कबीर और उसके गुरु काम, दोनों का स्वभाव एक जैसा ही है। लेखक चाहता तो कम से कम योग गुरु को तो सही दिखा सकता था लेकिन उपन्यास के अंत तक पहुंचते पहुंचते योग गुरु भी कामवासना से आगे नहीं बढ पाता।
            साहब, आप सिर्फ 'ओम' का उच्चारण ही शुद्ध रुप से करते रहो, तो भी आपका आत्मा पवित्र हो जायेगी। यहाँ तो आपने लिख दिया योग गुरु लेकिन उस गुरु को भी योग की समझ नहीं है।

उपन्यास के कुछ संवाद बहुत अच्छे और रोचक हैं। अगर उपन्यास की कोई विशेषता है तो सिर्फ संवाद हैं।

प्रेम में समर्पण का अर्थ है....अपने प्रेमी का संबल और सम्मान बनना...।(पृष्ठ-213)
-  एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है....थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास। (पृष्ठ-120)

लेखक ने एक तरफ तो ब्रिटेन का स्वच्छंद वातावरण चित्रित किया है। वहीं माया और कबीर के संबंध पर लिखता है।
          आॅफिस में भी यह फुसफसाहट होने लगी थी, कि कबीर और माया के बीच कुछ गड़बड़ है। (पृष्ठ163)
          इतने स्वच्छंद वातावरण में यह फुसफुसाहट क्यों?

  उपन्यास का सच तो यह है की लेखक ने उपन्यास के लेखकीय में जो बहुत उच्च कोटि का दर्शन दर्शाया है वहाँ तक स्वयं भी पहुंच नहीं पाया।  उपन्यास नायक कबीर के शब्दों में - "कबीर ने नशे में बात कुछ गहरी ही कह दी थी, मगर उसे खुद अपनी बात का मकसद समझ में नहीं आया था।" (पृष्ठ-180)
      यह बात इस उपन्यास के लेखकीय पर सत्य साबित होती है।

   उपन्यास में अश्लील चित्रण ज्यादा है, हद से ज्यादा है। लेखक शायद अश्लीलता बेचना चाह रहा है। लेखक वह होता है जो विकृत को भी सुंदर ढंग से प्रस्तुत करे। लेकिन यहाँ तो सुंदर को विकृत ढंग से प्रस्तुत किया गया है।   किसी बुरी चीजों को एक अंग्रेजी नाम देने से उसकी सुंदरता नहीं बढती। उपन्यास को मात्र 'इरोटिक' कह देने मात्र से उसकी अश्लीलता खत्म नहीं हो जाती। यह मात्र हल्की लोकप्रियता प्राप्त करने जैसा है।

निष्कर्ष-
            यह उपन्यास एक अच्छी थीम से आरम्भ अवश्य होता है लेकिन उस पर स्थिर नहीं रह पाता। लेखक ने 'इरोटिक' शब्द देकर स्वयं को 'साहित्य का दिनेश ठाकुर' बनाने की कोशिश की है।
             यह उपन्यास अश्लीलता से आगे बढ ही नहीं पाया। बात चाहे नारी के श्रृंगार से परे की सौन्दर्य की हो लेकिन वह लेखक की नजर में सौन्दर्य नाभि से नीचे ही रहा है।
              मैं इस उपन्यास को न पढने की राय देता हूँ।
             
            हालांकि किसी एक रचना से किसी लेखन को नकारा नहीं जा सकता। संदीप नैयर जी की 'समरसिद्धा' भी एक रोचक उपन्यास बतायी जाती है। वह एक काल खण्ड की कथा है, इस तरह के उपन्यास मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। अब 'समरसिद्धा' पठन की कतार में है।

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उपन्यास- डार्क नाइट
लेखक-     संदीप नैयर
ISBN- 978-93-87390-03-4
प्रकाशक- redgrab
www.redgrabbooks.com
पृष्ठ-
मूल्य- 175₹, $8
लेखक संपर्क- info@sandeepnayyar.com

Tuesday 11 December 2018

157. रूठी रानी- मुंशी प्रेमचंद

मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।

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मुंशी प्रेमचन्द उपन्यास साहित्य में 'उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास इतने सरल और रोचक होते हैं की सहज ही आकर्षित कर लेते हैं।
               सामान्य परिवेश की कहानी और रोचक भाषा शैली होने के कारण मन को छूने की क्षमता रखते हैं।
               'रूठी रानी' मुंशी प्रेमचंद जी का एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो पहले उर्दू में लिखा गया और फिर हिंदी में। इसका प्रकाशन वर्ष 1907 है।
                   यह कहानी है जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की। उमादे का विवाह मारवाड़ के शक्तिशाली राव मालदेव के साथ होता है।  मालदेव एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा है, लेकिन उसके पराक्रम पर उसके ऐब हावी हैं। इसी ऐब के चलते, नशे की हालत में वे शादी के शुभ अवसर पर एक ऐसा कुकृत्य कर बैठते हैं जो एक राजा को शोभा नहीं देता।
                         प्रथम दिवस पर ही ऐसे कुकृत्य की खबर जब रानी उमादे को पता चलती है तो वह राव मालदेव से रूठ जाती है। स्वाभिमानिनी रानी उमादे एक बार ऐसी रूठी की वह ताउम्र राजा से नाराज ही रही। इसी रूठने के कारण वह इतिहास में 'रूठी रानी' के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
                         मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।
                         दोमी हाथी बाँधिये एकड़ खतमो ठान।
                        
                         यह कहानी मात्र 'रूठी रानी' की नहीं है, यह राजस्थान के उस गौरवशाली अतीत का चित्रण करती है जहां योद्धा गरदन कटने के बाद भी युद्ध करते रहे।
                         एक तरफ शक्तिशाली राव मालदेव है और दूसरी तरफ विदेशी आक्रांता हुमायूँ और शेरशाह सूरी जैसे लोग हैं।   एक पराक्रमी राजा जिसके पास शेरशाह सुरी से भी ज्यादा सेना थी, लगभग सत्तर हजार सेना आखिर वह कहां मात खा गया।
          
            कम रूठी रानी भी नहीं थी। वह चाहे अपने पति से रूठी हुयी थी लेकिन मुगलों को हमेशा टक्कर देने के लिए तैयार थी। उससे शेरशाह सूरी के सेनापति को जवाब दिया-"मैं लड़ने को तैयार हूँ, तेरा जब जी चाहे, आ जा। मैं औरत हूँ तो क्या, मगर राजपूत की बेटी हूँ।"(पृष्ठ-45)      
       
                        
                        राजस्थान के राजपूत योद्धा, छलकपट न जानते थे। वे तो बस लड़ना और शत्रु को मारना जानते थे। -"हम तो शेरशाह से यहीं जमकर लड़ेंगे। वह भी तो देख कि राजपूत जमीन के लिए कैसी बेदर्दी से लड़कर जान देते हैं।"(पृष्ठ-43)
                         जब शेरशाह सूरी का इनसे सामना हुआ था सूरी को भी कहना पड़ा -"...मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की सल्तनत हाथ से गयी थी।"(पृष्ठ-43)
                         यह उपन्यास एक तरफ रूठी रानी की कथा प्रस्तुत करता है, तो दूसरी तरफ राजमहल में पनपने वाले षड्यंत्रों का भी चित्रण करता है, तीसरी तरफ यह विदेशी आक्रमणकारी और भारतीय राजाओं की आपसी द्वेष को भी प्रस्तुत करता है।
                         उपन्यास की भाषा शैली सामान्य और सहज है। कहीं कोई क्लिष्ट शब्दावली प्रयुक्त नहीं हुयी, हां, उसमें उर्दू के शब्द काफी मात्र में मिल सकते हैं।
                         अगर आपको राव मालदेव, रूठी रानी, शेरशाह सूरी को समझना है तो यह उपन्यास कुछ हद तक आपको इतिहास के उस रोचक पृष्ठ की जानकारी देगी।
                         उपन्यास अच्छा और पठनीय है। अगर ऐतिहासिक उपन्यास कोई पढना चाहता है तो यह निराश नहीं करेगा, क्योंकि उपन्यास लघु कलेवर और तेज प्रवाह का है।
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उपन्यास- रूठी रानी
लेखक- मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशन- साहित्यागार, जयपुर
संस्करण-1989
पृष्ठ-54
मूल्य-55₹

Sunday 9 December 2018

156. यमराज का नोटिस- विमल मित्र

तीन रोचक कहानियाँ


         विमल मित्र जी का एक छोटा सा कहानी संग्रह यमराज का नोटिस मेरे विद्यालय के पुस्तकालय में उपलब्ध था।‌ खाली समय था,  जिसका सदुपयोग पढने में किया।
    इस कहानी संग्रह में विमल मित्र जी की तीन बांगला भाषा की कहानियों का हिंदी अनुवाद है। तीनों कहानियाँ रोचक, बहुत रोचक हैं। कहानियाँ का आकार मध्यम है इसलिए पढने में ज्यादा समय नहीं लगा।
        ‌
        इस संग्रह में शामिल कहानियाँ है।
       1.  यमराज का नोटिस (यमराजेर नोटिस)
       2. चुहिया सुंदरी           (ईदुरेर स्त्रीर कथा)
       3. सबसे ताकतवर कौन (सब थेके शक्तिमान के?)

प्रथम कहानी यमराज का नोटिस एक अच्छी और भावुक कहानी कही जा सकती है। भावुकता के साथ साथ इसमें हास्य का पुट है। यह हास्य कहानी में भावुकता को हावी नहीं होने देता।

       लेखन ने लेखन शैली में भी रोचकता कायम रखी है। बड़े बाजार से भवानी पुर। भवानी पुर से बालीगंज। बालीगंज से बेहला। इस बेहला के भूमिपति बाबू के मकान पर आते ही केष्ठो बाबू बिलकुल आटे की तरह अटक गये। (पृष्ठ-3)
      यह कहानी भी केष्ठो और भूमिपति बाबू पर आधारित है।  जब यमराज का नोटिस आता है तो मनुष्य की स्थिति क्या होती है। भूमिपति बाबू के लिए यह नोटिस भी उनका नौकर केष्ठो लेकर आया था।
        क्या मालिक एक नौकर का आदेश मानेगा या नहीं?

       नौकर यमराज का नोटिस कैसे लाया?   

       
         द्वितीय कहानी चुहिया सुंदरी बचपन में पढी हुयी कहानी है। आज इस कहानी के लेखक का भी पता चल गया की यह रचना विमल मित्र जी की है।  शायद यह कहानी लगभग पाठकों ने पढी होगी।
      यह कहानी एक ऐसे चूहे की है जो एक साधु के आशीर्वाद से चूहे से बिलाव और बिलाब कुत्ता.... क्रमश: शरीर बदलता रहा लेकिन वह कभी संतुष्ट न हो सका।
      इस कहानी का अंत बहुत रोचक और अलग है। कहानी पूर्णतः हास्य पर आधारित है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भी देती है कि ज्यादा उच्चाकांक्षा अच्छी चीज नहीं है, उसमें खतरा है।(पृष्ठ-33)

          इस संग्रह की अंतिम कहानी सबसे ताकतवर कौन है भी एक अच्छी व पठनीय कहानी है। जो बचपन में लगभग बाल पुस्तकों में पढने को मिलती थी। लेखक भी लिखता है यह कहानी बचपन में पिताजी से सुनी थी।
     यह कहानी एक साधु और कुत्ते की है। कुत्ते की इच्छा होती है सबसे ताकतवर के साथ रहने की। इसलिए वह इधर-उधर भटकता रहता है और एक दिन साधु के पास पहुंच जाता है।
     सबसे ताकतवर तो मनुष्य भी नहीं है।
     साधु बाबा ने कहा,"तुमने भूल की है। मुझसे ताकतवर जीव भी संसार में है।"
     "कौन है वह?"

    उस ताकतवर की तलाश है यह कहानी ।

इस संग्रह की तीनों कहानियाँ रोचक और पठनीय है। बच्चों के लिए अच्छा संग्रह है। अगर इस संग्रह में कुछ और कहानियाँ होती तो बहुत अच्छा था। मात्र तीन कहानियों का संग्रह बहुत छोटा होता है। वह भी जब शब्दों का आकार बढाकर इसे 64 पृष्ठ में किया गया है।
        फिर भी कहानियाँ पठनीय है।
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कहानी संग्रह- यमराज का नोटिस
लेखक- विमल मित्र
प्रकाशक- सुरुचि साहित्य, शाहदरा, दिल्ली
संस्करण- 1997
मूल्य-50₹
पृष्ठ-64

      

Saturday 1 December 2018

155. एक खून और- सुरेन्द्र मोहन पाठक

खून और खून और खून।
एक खून और - सुरेन्द्र मोहन पाठक, रोचक मर्डर मिस्ट्री, पठनीय।
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      कुछ कहानियाँ इतनी रोचक होती हैं की वे प्रथम पृष्ठ से ही पाठक को प्रभावित कर लेती हैं। यह रोचकता जब आदि से अंत तक बनी रहे तो पाठक एक बैठक में ही पुस्तक को पढ जाना चाहता है।
        प्रस्तुत उपन्यास 'एक खून और' भी इतनी ही रोचक और दिलचस्प उपन्यास है।

            माला और सरिता अपने करोड़पति अंकल की संपत्ति की वारिस थी। अंकल की मौत के बाद दोनों के हिस्से में तीन-तीन करोड़ संपत्ति आती।
      करोड़पति माला जायसवाल से स्थानीय समाचार पत्र का खोजी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती इंटरव्यू लेने पहुंचा।
      "....मैं तो यहाँ अपने अखबार के लिए आपका इंटरव्यू लेने आया था।"
      "अखबार! इंटरव्यू! तुम क्या चीज हो।"
      .......
      और सुनील ने अपना  विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसकी और बढाया।"
      माया जायसवाल ने कार्ड लिया, उस पर एक सरसरी निगाह डाली और कार्ड को मेज पर उछाल दिया।
      .....
      "अभी मुझे वक्त नहीं है।  फिर आना।"
      "फिर कब?"
      "आधी रात को ।"
      "जी"
              यह थी करोड़पति बहन सरिता जायसवाल की करोड़पति बहन माला जायसवाल। सरिता शादी शुदा थी और माला अभी शादी के लिए लड़का तलाश कर रही थी। वह भी एक अजीब तरीके से।
              "और तुम्हें मेरे साथ जिंदगी भर बंधे रहने की भी जरूरत नहीं। तुम्हें सिर्फ दो तीन महिने मेरा पति बन कर रहना होगा...।"
              ........
              "दो तीन महि‌ने बाद मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी और साथ में पच्चीस हजार रुपये बोनस दूंगी"
              तो यह थी माला जायसवाल। अजीब फितरत की मालकिन। कम सुनील चक्रवर्ती भी नहीं था। वह भी पट्ठा रात को, आधी रात को माला जायसवाल का इंटरव्यू लेने जा पहुंचा। लेकिन वहाँ तो स्थिति ही कुछ और थी।
              "ड्राइंगरूम के बीचो-बीच औंधे मुँह माला जायसवाल पड़ी थी। उसके सिर का पिछला भाग तरबूज की तरह फट गया था और उसमें से खून बह-बह कर उसकी गरदन और कंधों के आस पास जमा हो रहा था।"

              यही थी माला जायसवाल की जिंदगी, करोड़पति माला जायसवाल एक रात को अपने घर में मृत्यु पायी गयी। जिसका न कोई दुश्मन ना न कोई बैरी,न कोई बैगाना। आखिर ऐसा क्या हुआ की माला जायसवाल को कोई मौत के घटा उतार गया।

             सुरेन्द्र मोहन पाठक वर्तमान उपन्यास जगत में टाॅप मर्डर मिस्ट्री राइटर माने जाते हैं। उनके सुनील सीरिज और सुधीर सीरिज उपन्यास मर्डर मिस्ट्री होते हैं, लेकिन दोनों सीरिज का फ्लेवर अलग-अलग है। जहाँ स्वयं पाठक जी को सुनील ज्यादा पसंद हैं वहीँ मेरे जैसे ज्यादा पाठक सुधीर को पसंद करते हैं।
                 प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है जो मुझे बहुत पसंद आयी‌। कुछ दिन पूर्व पाठक जी का सुनील सीरिज 'सिंगला मर्डर केस' उपन्यास पढा था, एक दम बकवास लगा। लेकिन यह उपन्यास उसके विपरीत है। वह चाहे कहानी के स्तर पर हो या पृष्ठ संख्या के स्तर पर।

                      बात करे इस उपन्यास 'एक खून और' की तो यह काफी दिलचस्प उपन्यास है। पहला कैरेक्टर उभर कर आता है माला जायसवाल का। वह भी एक अजीब तरीके से। माला शादी तो करवाना चाहती है लेकिन दो या तीन महिनों के लिए। आखिर इसके पीछे क्या कारण था?
                      माला इसी दौरान अपने घर में मृत्यु पायी जाती है और उस समय सुनील चक्रवर्ती भी वहाँ उपस्थित होता है।  
    पत्रकार सुनील इस केस को हल करता है, लेकिन यह कातिल को सहन नहीं होता। वह तो सुनील को भी धमकी दे देता है।
    सुनील को एक लिफाफा मिलता है। जिसमें लिखा था।

खुल गया।                      खुल गया।              खुल गया।
    फ्री शशान घाट
    अब आपको मरने के बाद इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं की आपका क्रिया कर्म कैसे होगा?
    हमारे श्मशान घाट की अनोखी आॅफर।
    फ्री लकड़ियाँ।
    फ्री कफन।
    फ्री आहुति।
    हमारी सेवाओं से आज ही लाभ उठाईये। और जल्दी से जल्दी जिंदगी से किनारा कीजिए।
    काजी दुबला बाहर के अंदेशे जैसी नियत वाले अखबार के रिपोर्टरों के लिए एडवांस बुकिंग विशेष सुविधा है।
     सुनील को ऐसी क्लासिक धमकी आज तक नहीं मिली थी।

    सुनील जैसे -जैसे सत्य के नजदीक पहुंचता जाता है वैसे -वैसे उपन्यास में रोचकता बढती जाती है, एक तरफ जहाँ उपन्यास रोचक होता है, वही सुनील के लिए और इंस्पेक्टर प्रभुदयाल के लिए परेशानियां बढती जाती हैं।
        इन परेशानियों ‌में सुनील प्रभुदयाल को फोन करता है।
  "मैं सुनील बोल रहा हूँ।"
  "अब क्या हो गया।"
  "एक खून और" सुनील बोला।

         एक खून और फिर एक खून......यह सिलसिला खतरनाक हो उठता है।
         आखिर कातिल कौन था?
         वह कत्ल क्यों कर रहा था?

   उपन्यास की मिस्ट्री अजब है। पाठक के लिए प्रथम पृष्ठ से ही रहस्य बनता जाता है। एक ऐसा रहस्य जो धीरे धीरे उलझता ही जाता है।   
   उपन्यास में पात्र भी सीमित हैं लेकिन असली कातिल को पहचानना बहुत मुश्किल है। शक सभी पर हो कसता है लेकिन सत्य की पहचान कठिन है।
        उपन्यास में सुनील के साथ यूथ क्लब के मालिक रमाकांत का किरदार भी बहुत अच्छा है, हालांकि उसको उपन्यास में ज्यादा स्पेश नहीं, स्पेश तो ज्यादा प्रभुदयाल को भी नहीं मिला। यही वजह है की उपन्यास में कसावट है। अक्सर लेखक पात्रों का अनावश्यक विस्तार देकर कहानी को धीमी कर देते हैं।
               इस उपन्यास में सीमित पात्र, दमदार कथानक, तेज रफ्तार और जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री पाठक को प्रभावित करने में सक्षम है।
                अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढने की इच्छा रखते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें। इसमें वह सभी मनोरंजन सामग्री उपलब्ध है जो किसी पाठक को प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष-   अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा। उपन्यास एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है जिसे हल करते-करते एक के बाद एक और खून होते चले जाते हैं।
            पाठक को तेज प्रवाह में बहा लेने जाने में सक्षम और एक ही बैठक पठनीय उपन्यास कहानी के अतिरिक्त कुछ सोचने का अवसर भी नहीं देता।
              उपन्यास रोचक, दिलचस्प और पठनीय है।
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उपन्यास - एक खून और
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
पृष्ठ-100
             
             
     

Tuesday 27 November 2018

154. The जिंदगी- अंकुर मिश्रा

 जिंदगी के विविध रंगों की कथा...

The जिंदगी- अंकुर मिश्रा कहानी संग्रह, रोचक, पठनीय। ---------- 
          कहानी सुनना या सुनाना मनुष्य का आदिकाल से मनोरंजन का साधन रहा है। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो मानव मन के हृदयतल को छू जाती हैं। कहानियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मनुष्य जीवन से संबंध रखती हैं। मनुष्य जीवन में हमेशा विविधता रही है, कभी सुख, कभी दुख तो कभी समभाव। जिंदगी के कई रंग होते हैं,‌ जिंदगी के इन रंगों से मिलकर बनी है अंकुर मिश्रा जी की किताब 'The जिंदगी। जैसे मनुष्य की जिंदगी में विविधता है, ठीक वैसे ही इस कहानी संग्रह की कहानियोों में विविधता मिलेगी। पहला रंग कहानी संग्रह के शीर्षक में ही देखा जा सकता है- The जिंदगी। 

             कहानी संग्रह को दो भाग में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग 'किस्से-कहानियाँ' जिसमें छह कहानियाँ है। द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' जिसमें दस लघुकथाएं शामिल की गयी हैं। लेकिन साथ में एक और प्रयोग भी शामिल है वह है प्रत्येक कहानी से पूर्व एक कविता। छह कहानियाँ है और सभी से पूर्व एक-एक कविता है जो कहानी के भाव को स्पष्ट करने की क्षमता रखती है।

              प्रथम कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' से पूर्व एक कविता है।

           'ये जो बैठे हुए हैं, 
           चुपचाप से, 
            सहते हैं, 
                       पर बोलते नहीं, 
                       पास कुछ रहता तो है, 
                       पर उगलते नहीं, ...................।
 'अभी जिंदा हूँ मैं' खत्म होती मानवीय संवेदना की कहानी है। भौतिकवादी युग में मनुष्य एक यंत्र होकर रह गया है। पूंजीवाद सभी पर हावी हो रहा है जिसके नीचे मनुष्य की संवेदना दब गयी है और आत्मसम्मान। आत्मसम्मान तो सब किताबी बातें हैं। (पृष्ठ-22) कहानी का नायक नीलेश भी एक ऐसी ही जिंदगी जीता है। जहाँ मनुष्य पर यांत्रिकता हावी है। ऐसी एक और कहानी है 'घुटन'। दोनों कहानियाँ बहुत ही अच्छी और मन को छूने वाली हैं।
             'लाल महत्वाकांक्षाएं' हमारे तेज रफ्तार जीवन की कहानी है। वह जीवन, जिसके लिए हम कमाते तो हैं, लेकिन उसके लिए हमारे समय नहीं है। है ना अजीब बात। बस ऐसी ही अजीब है यह कहानी। मनुष्य जीवन इतना यंत्र बन गया की उसके लिए मानवीय रिश्ते भी कोई महत्व नहीं रखते। हमारी बढती महत्वाकांक्षा एक दिन हमें ही लील जायेंगी। कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' का नायक कहता है "दरअसल पूंजीवाद हमको सोचने की इजाजत नहीं देता।(पृष्ठ-23)। वही स्थिति 'लाल महत्वाकांक्षाएं' के नायक मनीष की है। हम जो सोचते हैं वह बहुत ही निकृष्ट सोचते हैं। पूंजीवाद हमारी सोच के दायरे को बहुत छोटा कर रहा है। कहानी नायक मनीष भी अपनी पत्नी को इसी सोच से प्रेरित होकर कहता है -" कैरियर के इतने गोल्डन पीरियड में तुमने ऐसा डिसीजन कैसे ले लिया बच्चा पैदा करने का?"(पृष्ठ-33) 
               अब इससे आगे कहने/लिखने को कुछ भी नहीं रहा। अगर कुछ है तो यही, यह एक युद्ध है मानवता और स्वार्थ के बीच। (पृष्ठ-25) 
       
              मेरे मन को अगर किसी ने सर्वाधिक प्रभावित किया या जिस कहानी को पढकर आँखों से आंसू बह निकले वह कहानी है -आत्महत्या। दरअसल 'अभी जिंदा हूँ मैं', 'घुटन' और 'आत्महत्या' तीनों कहानियाँ का केन्द्र बिंदु एक ही है लेकिन उनका विस्तार अलग-अलग है। तीनों कहानियाँ के गर्भ में एक घुटन है जिससे बच कर कोई 'अभी जिंदा हूँ मैं' कहकर संतुष्टि प्राप्त करता है और कोई उस घुटन में दबकर आत्महत्या कर लेता है।
             कहानी 'आत्महत्या' तो वास्तव में राज‌न की मौत के बाद मनीषा के उस संघर्ष पूर्व जीवन की कथा है जहाँ पर वह निर्दोष होकर भी सजा भुगत रही है। यह कहा‌नी हमारे समाज के एक वर्ग का यथार्थवादी चित्रण करती है। ऐसा चित्रण जो पाठक के मर्म को अंदर तक सालता है। ऐसी ही एक और संवेदनशील कहानी है 'वो कुछ अजीब सा था'। हालांकि इस कथ्य पर बहुत सी कहानियाँ बहुत बार लिखी और पढी गयी हैं लेकिन अपने प्रस्तुतीकरण के कारण यह रचना भी अच्छी है।
          
                     "कोई इबादत कहता है,
                     तो कोई आदत कहता है, 
                     आंसुओं का सैलाब है,
                      दरिया-ए-आग है इश्क़। 
                                           पर जो भी है, 
                                            हल्की सी चुभन, 
                                            मीठी सी तड़प है, 
                                            रुसवाइयों में, 
                                           जीने का बहाना है इश्क़। 

                       ये पंक्तियाँ है कहानी 'इश्क़ ऐसा भी' के आरम्भ से पूर्व की। यह कहानी कथा शिल्प के आधार पर सभी कहानियों से अलग है। लेखक ने भाषा का प्रयोग कहानी के अनुरूप ही किया है जो कहानी को वास्तविकता प्रदान करता है। लेकिन कथ्य के स्तर पर कहा‌नी कोई प्रभावशाली नहीं लगी। कहानी में चार दोस्तों का प्रसंग भी कहानी से कोई संबंध नहीं रखता। 

                    इस कहानी संग्रह का द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' है। जिसमें दस लघुकथाएं' संकलित हैं। इस संग्रह की कहानियाँ जितनी अच्छी हैं लघुकथाएं उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी। मेरा लघुकथाओं के साथ काफी समय बीता है। लघुकथाएं अपने एक निश्चित दायरे से आगे नहीं बढ पायी। ज्यादातर लेखक कुछ निश्चित विषयों से आगे नहीं सोच पा रहे। 

                          प्रथम लघुकथा 'फिजुलखर्ची' एक संवेदनशील कथा है। जो वर्तमान संबंधों का यथार्थ चित्रण करती है। लघुकथा 'नारी' लघुकथा है या कविता। यह अभी समझना बाकी है। क्योंकि इस कथा में कथा तो नहीं है सिर्फ संवेदना है और वह भी काव्यनुमा।
                  'द्विसंवाद' हमारे दोहरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है। यह लघुकथा हर दूसरी-तीसरी लघुकथा पत्रिका पात्रों के नाम परिवर्तन के साथ मिल जायेगी। यही हाल 'बरसातें और भी हैं' का है। 
                     अन्य लघुकथाएं कुछ स्तर ठीक हैं और पठनीय हैं। मेरे विचार से लेखक धैर्य के साथ कुछ और कहानियों के साथ एक अच्छा कहानी संग्रह प्रकाशित करवाता तो ज्यादा अच्छा रहता। 
          कहानी संग्रह की भाषाशैली सामान्य पाठक को भी समझ आने वाली और रोचक है। कहीं किसी प्रकार की क्लिष्टता नहीं है। भाषा शैली का एक रोचक उदाहरण देखें। एक ढलकी हुई, खाँसती हुई, तानों के बोझ से झुकी हुई, शीत ऋतु की घनी अंधकारमय रात सी बूढी पर लंबी जिंदगी। (56) 

      प्रस्तुत कहानी संग्रह मानव मन को छू लेने वाला है। कहानियाँ पाठक प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं।
     ----- 
पुस्तक- the जिंदगी (कहानी संग्रह) 
लेखक- अंकुर मिश्रा 
Email- mynameankur@mail.com
 प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- 
पृष्ठ-90 
मूल्य-100

Friday 23 November 2018

153. लव जिहाद-राम पुजारी

   जिहाद से लव की ओर...
लव जिहाद...एक चिड़िया- राम पुजारी,सामाजिक उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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लव जिहाद...एक चिड़िया उपन्यास मूलत एक प्रेम कथा है,वह प्रेम कथा जो समाज, धर्म, राजनीति के कई पहलुओं को उजागर करती है।
           उपन्यास प्रेम को आधार बना कर लिखा गया है। एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़के की प्रेम कथा है। दोनों काॅलेज में मिलते हैं, साहिल का काॅलेज में यह अंतिम साल था और सोनिया का ये पहला साल था। (पृष्ठ-03) फिर धीरे-धीरे दोनों में प्रेम प‌नपता है।  बहरहाल दोनों- साहिल और सोनिया, एक ही कश्ती में सवार थे- प्रेम की कश्ती। (पृष्ठ-35)
        कवि बोधा ने कहा है। -"यह प्रेम को पंथ कराल महां, तरवारि की धार पर धावनो है।"
        यह प्रेम का रास्ता बहुत विकट है, यह तो तलवार की धार पर चलने जैसा है और प्रेमी फिर भी चलते हैं। साहिल और सोनिया भी इस राह पर चलते हैं।
   दोनों ही आने वाले भविष्य से बेखबर, ख्वाबों की दुनियां में प्रेम की उड़ान भर रहे थे। (पृष्ठ-35)। लेकिन यह उड़ान सोनिया के परिवार को रास नहीं आयी।  सोनिया के परिवार को रास नहीं आयी लेकि‌न साहिल का तो किस्सा ही कुछ और था।
- एक तरफ जहां, सोनिया पर पाबंदियाँ लगाई जाने लगी और ये रोक-टोक दिन प्रतिदिन बढने लगी। (पृष्ठ-49)। वहीं साहिल के सिर पर एक खतरनाक तलवार लटक रही थी। हमसे गद्दारी की सजा सिर्फ मौत है-सिर्फ मौत। (पृष्ठ-259)
-       जो प्रेम की राह पर चलते हैं, उन्हें पता है यह राह बहुत कठिन है। लेकिन वो फिर भी चलते हैं। इसी राह पर सोनिया चली, घर और समाज की बंदिश तोड़ कर चली। लेकिन क्या साहिल इस राह पर चल पाया। यही प्रश्न  सोनिया ने साहिल से पूछा-मैंने तुम्हें अपना दिल दिया बस और बदले में तुम्हारा प्यार चाहती हूँ । बोलो क्या तुम मेरा साथ दोगे। -(पृष्ठ-196)
- क्या साहिल सोनिया का साथ दे पाया?
     इस प्रेम कथा के साथ एक और कथा है, वह है धार्मिक -साम्प्रदायिक। यह समाज में व्याप्त राजनीति के घिनौने रूप को पाठक के समक्ष लाती है। 
...पिछले कुछ दिनों से उत्तम प्रदेश के एक इलाके सलामतगंज की स्थिति कुछ असामान्य सी थी। दो धार्मिक गुटों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। (पृष्ठ-52)
          उपन्यास एक प्रेम कथा होने के साथ-साथ समाज में व्याप्त और भी बहुत सी बुराईयों का वर्णन करता है।
          समाज में औरत का क्या स्थान है और हम उसे कौनसा स्थान देते हैं। क्या हम औरत की इज्जत करते हैं। इस उपन्यास के संदर्भ में प्रकाशन ने भी लिखा है।- क्या हमारी बेटियों की ईज्जत का पैमाना इस बात पर निर्भर होगा कि वह लड़की किस जाति, धर्म और सम्प्रदाय की है। (प्रकाशक कथन)। औरत होने की पीड़ा रज्जो तो भुगत रही है पर वह चाहती है की उसकी बेटी सोनिया न भुगते।
- औरत होने की सजा रज्जो, इस घर में भुगत रही थी और सोनिया को ये सजा कभी भी भुगतनी पड़ सकती थी। (पृष्ठ--88)।
औरत होने की सजा नेहा और रोशनी को आखिर भुगतनी पड़ती है। आखिर कसूर क्या था दोनों का, प्रेम करना।
   उपन्यास में अंकुर का भी दोहरा व्यक्तिगत सामने आता है। वह स्वयं प्रेम करता है लेकिन अपनी बहन के प्रति सख्त है।- अपनी बहन को यूँ किसी लड़के के साथ हँसी-मजाक करना, अंकुर को रास न आया। (पृष्ठ-82)
     उपन्यास का मुख्य विषय 'लव जिहाद' है। क्या यह वास्तविक है, या काल्पनिक। क्या सच में कुछ ऐसा चल रहा है कि हमारी लड़कियों को 'दूसरे लोग' अपने प्यार में फंसा कर शादी करते हैं और इसके एवज में उन्हें रुपया-पैसा दिया जाता है। (पृष्ठ-203)।
            आखिर कौन है ये लोग?
            क्या है इनका मकसद?
            कौन फंसा लव जिहाद?
            क्या रहा परिणाम?
  इन प्रश्नों के उत्तर तो 'लव जिहाद...एक चिड़िया' उपन्यास पढकर ही मिल सकते हैं।
      भोपाल के पाठक मित्र बलविन्द्र सिंह ने इस उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा है की "जिसे पढते वक्त आपके भाव कुछ और होंगे, समाप्त करने के बाद कुछ और।"
          जैसे -जैसे कहानी आगे बढती है वैसे ही कहानी में रोचकता बढती जाती है। पाठक की जिस सोच के साथ उपन्यास आरम्भ होता है वह सोच पृष्ठ दर पृष्ठ बदलती रहती है। कभी सोच सकारात्मक होती है तो कभी नकारात्मक। एक अच्छे लेखक की यह खूबी है की वह कहानी में‌ निरंतर सस्पेंश बना कर रखे, उसमें रोचकता बना कर रखे। इस उपन्यास को पढते वक्त रोचकता और सस्पेंश बना रहता है।
कहानी का विस्तार  'जुलाई 2013, दिल्ली' से लेकर 'मई 2014 कश्मीर' से उत्तम प्रदेश(उत्तर प्रदेश) होते हुए बैंगलोर तक फैला है।
संवाद
         किसी भी कहानी के संवाद उसके महत्व को बढाने में सहायक होते हैं। संवाद पात्र और परिस्थितियों का वर्णन करने में सक्षम होते हैं।
     इस उपन्यास के संवाद भी बहुत अच्छे हैं।
- लड़की के किशोरावस्था से युवा होने तक का समय हर माता-पिता के लिए चिंता का विषय होता है।(पृष्ठ-49)
- जब ये दंगा होता है न। तो ये गाँव, इलाका‌ नहीं देखता- बस भड़कता जाता है और ऐसे में मारे जाते हैं-गरीब, बूढे, बच्चे और औरतें। (पृष्ठ-53)
- लड़कियों‌ का भी अजीब ही मसला है, खूबसूरत हो तो समाज में बैठे 'शिकारियों' का डर और खूबसूरत न हो तो लड़के वालों से शादी के इंकार का डर। (पृष्ठ-81)
नारी की इज्जत, किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति और वर्ण से ऊपर होती है। (पृष्ठ-175)
ये समाज की ऊँच-नीच, धर्म और राजनीति के ठेकेदार,...क्या उन्हें प्रेम के मायने भी मालूम हैं। (पृष्ठ-196)
- शादी के बाद लड़कियां अपनी किस्मत से समझौता करने की जिंदगी में आगे बढ जाती हैं। (पृष्ठ-204)
आजकल अपराधी तो रोशनी में ही ऐसे-ऐसे अपराध करके चुपचाप निकल जाते हैं जिनके बारे में पहले कभी शैतान सोच भी नहीं पाता था। (पृष्ठ-217)
- बसी हुयी दुनियां को उजाड़ने में एक पल नहीं लगता, मगर लाख कोशिशों के बाद भी उजड़ी हुई दुनियां अपने पहले वाले रुप में नहीं लौट पाती। (पृष्ठ-273)
उपन्यास में कमियाँ-
किसी रचना में कमियाँ रह जाना स्वाभाविक है। कुछ कमियाँ सामान्य हैं जिससे कहानी पर कोई असर नहीं पड़ता।
     - उपन्यास की सबसे बड़ी कमी‌ मेरी दृष्टि में उपन्यास का अतिविस्तार है। अगर लेखक इसमें कुछ कोशिश करता तो इस विस्तार को कम करके उपन्यास को कसावट दी जा सकती थी।
     
तभी बाहर से किसी ने झाँककर दरवाजे पर दस्तक दी।(पृष्ठ-)
    यहाँ 'झाँककर' गलत है, हालांकि यह टंकण में गलती हो कसती है।
- अंकुर उर्फ 'भैया जी' ऊँचे तबकों वालों के गाँव के स्थानीय नेता मलखान सिंह का बेटा था। (पृष्ठ-80)
सोनिया ग्राम सभा के मुखिया की बेटी थी। (पृष्ठ-175)
मलखान सिंह को कभी 'ग्राम मुखिया', कभी...ग्रामों का सरपंच और एक जगह MLA दिखाया गया है।
   ये सामान्य गलतियाँ है जो कथा को प्रभावित ‌नहीं करती।
निष्कर्ष-
           हमारे समाज में पनप रहे जातिवाद, धर्मगत भेदभाव आदि प्रासंगिक विषयों को आधार बना कर लिखा गया यह उपन्यास एक अच्छी रचना है। उपन्यास में वर्तमान में पनप रही बुराइयों का भी चित्रण है।  उपन्यास का अतिविस्तार कहानी को बहुत धीमा बना देता है, जो पाठक को नीरस बना देता है।
              उपन्यास एक बार पढा जा सकता है। मन को छू लेने वाली कथा।
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उपन्यास- लव जिहाल...एक चिड़िया
ISBN- 978-93-86276-55-1
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- गुल्ली बाबा
पृष्ठ- 280
मूल्य- 180
उपन्यास लिंक- Amazon link
समाचार पत्र में प्रकाशित समीक्षा- लव जिहाद उपन्यास

Friday 9 November 2018

152. स्वामी विवेकानंद- अपूर्वानंद

स्वामी विवेकानंद-संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
- स्वामी अपूर्वानंद
स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। इनके जन्म दिवस (12 जनवरी) को 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कम उम्र में स्वामी‌ जी ने जो मार्ग/उपदेश विश्व को दिया वह अतुलनीय है।
      प्रस्तुत पुस्तक स्वामी जी सम्पूर्ण जीवन की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत करती है। उनके जीवन का आदि -अंत इस पुस्तक में वर्णित है। स्वामी जी के जीवन को पढना बहुत रोचक और प्रेरणादायक है। उनके जीवन के संघर्ष मनुष्य को बहुत कुछ सिखाते हैं।
       उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने तो वह विवेकानंद जी के बारे में कहा था,-"नरेन्द्र मानो सहस्रकमल है। इतने सारे लोग यहाँ आते हैं, किंतु नरेन्द्र जैसा दूसरा कोई भी नहीं आया।"
          गुरु रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद (नरेंद्र) की दैवीय प्रतिभा को सबसे पहले पहचान‌ लिया था। उन्हीं के ही मार्गदर्शन में स्वामी जी आगे बढे और आगे 'स्वामी विवेकानंद  रामकृष्ण की वाणी के मूर्तरूप थे।(पृष्ठ-03)
          प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी जी के जीवन का काफी रोचक वर्णन मिलता है।  नरेन्द्र के अंतर में जो विराट पुरुष वास करता था, उसी की सक्रिय शक्ति के प्रभाव से उसमें बाल्यावस्था से ही महान तेज दिखायी देता था। (पृष्ठ-7)
             स्वामी विवेकानंद ने भारतवर्ष का भ्रमण भी किया और इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। स्वामी जी भारत की दशा देखकर बहुत परेशान होते थे। वे कहते थे-"मैंने समूचे भारत का भ्रमण किया है।....सर्वत्र ही आम जनता का भयावह दुःख-दैन्य मैंने अपनी आँखों से देखा। वह सब देखकर मैं व्याकुल हो उठता हूँ। "(पृष्ठ-37)
             गुरु रामकृष्ण जी के सोलह शिष्य थे जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया और यही वो शिष्य थे जो बाद में विवेकानंद जी के सहयोगी रहे।
          कुछ सीखने के उद्देश्य से स्वामी जी विदेश यात्रा पर भी गये और यही विदेश यात्रा ने संपूर्ण विश्व के सम्मुख भारत की पहचान बदल दी। विवेकानंद जी के लिए यह यात्रा प्रवास बहुत ही कठिन रहा। श्वेतांग युरोपीय न होने के कारण उन्हे पग-पग पर अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। (पृष्ठ-47)
            11 सितंबर 1883 ई. सोमवार धर्मजगत के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। ...इसी दिन प्राचीन भारत के वेदांत धर्म ने स्वामी विवेकानंद को अपना यंत्र बनाकर महान् धर्मसम्मेलन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।(पृष्ठ-48)
                     उन्होंने अपना संबोधन 'बहनों और भाईयों '  शब्दों से आरम्भ किया। स्वामी जी के संबोधन में विश्व भ्रातृत्व का बीज, विश्व मानवता की झंकार, वैदिक ऋषि की वाणी सभी कुछ निहित था। (पृष्ठ-49)। स्वामी जी के भाषण से आर्यधर्म, आर्यजाति और आर्य भूमि संसार की नजरों में पूजनीय हो गयी। (पृष्ठ-51)
          स्वामी जी की शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन का काम करती है। उनके विचार किसी धर्म, सभ्यता या देश के न होकर सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ हैं।
         
                    हमारे प्रिय प्रेरणा पुरुष भारतीय धर्म संस्कृति के ध्वजावाहक अपने पीछे हम युवा वर्ग पर एक जिम्मेदारी छोड़ कर इस नश्वर संसार से चले गये।
4 जुलाई 1902 ई. को स्वामी विवेकानंद की आत्मा देह-पिंजर से मुक्त होकर असीम में विलीन हो गयी। (पृष्ठ-78)
                        शान्ति:! शान्तिः! शान्तिः!!
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पुस्तक-   स्वामी विवेकानंद, संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
लेखक-   स्वामी अपूर्वानंद
अनुवाद-  स्वामी वागीश्वरानंद, स्वामी विदेहात्मानंद
प्रकाशक- स्वामी ब्रह्मास्थानंद, धंतोली, नागपुर-440012
पृष्ठ-         90
मूल्य-       10₹
प्रथम प्रकाशन- 1984
प्रकाशन-    सत्रहवाँ-07.06.2013
 

Wednesday 7 November 2018

151. सिंगला मर्डर केस- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सिंगला मर्डर केस- सुरेन्द्र मोहन पाठक, मर्डर मिस्ट्री, मध्यम स्तर।

     - हिमेश सिंगला एक पचास वर्ष का गंजा व्यक्ति था जो विग लगाकर अपना बचाव करता था।
      - हिमेश सिंगला मामूली शक्ल- सूरत वाला व्यक्ति था लेकिन औरतों का रसिया था।
    - हिमेश सिंगला एक लम्पट प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था जो एक रात अपने घर के ड्राइंगरूम में मरा पड़ा था।


      हिमेश सिंगला की अस्वाभाविक मौत या हत्या के शक के दायरे में कई लोग आते हैं।
          हिमेश सिंगला का एक भाई है शैलेष सिंगला जिसके बुलावे पर ब्लास्ट समाचार पत्र के रिपाॅर्टर सुनील चक्रवर्ती का इस केस में हस्तक्षेप होता है। सुनील ही वह व्यक्ति है जो असली कातिल तक पहुंचता है।
    -  एक बड़े सम्पन्न परिवार का रोशन चिराग बताया जाता है। यानि कि फाईनांशल फैमिली बैकग्राउंड तो बढ़िया है ही, ऊपर से ब्रोकेज का उसका अपना बिजनेस भी ऐन फिट है। कैसानोवा जैसी छवि का आदमी था और सोसायटी के लिहाज से पेज थ्री पर्सनैलिटी माना जाता था। (पृष्ठ-16)
 और एक दिन इसी पर्सनैलिटी की कोई हत्या कर देता है।
वो एक सॊफाचेयर बैठा हुआ था जबकि किसी ने उसका भेजा उड़ा दिया था। (पृष्ठ-17)
         उसके घर में, उसी की गन से, उसी के सोफाचेयर पर किसी ने उसकी हत्या कर दी। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल इस केस की जाँच करता है और दूसरी तरफ पत्रकार सुनील चक्रवर्ती भी इस केस पर कार्यरत है। लेकिन दोनों का तरीका अलग-अलग है। पुलिस की जाँच में एक व्यक्ति स्वयं को कातिल के तौर पर पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करता है लेकिन वह सुनील को कातिल नजर नहीं आता।
 एक आदमी अपनी जुबानी कहता है की वो कातिल है, तुम कहते हो नहीं है। (पृष्ठ-189) 
           सुनील जो की एक खोजी पत्रकार है वह इस मर्डर केस पर कार्य करता है। इसके लिए वह समय-समय पर अपने मित्र रमाकांत और पुलिस विभाग से भी जानकारी एकत्र करता है। सुनील का अपना एक अलग तरीका है जो पुलिस विभाग से अलग है। इस मर्डर की छानबीन पुलिस भी करती है लेकिन सुनील चक्रवर्ती अपने तरीके से पुलिस से कुछ ज्यादा सक्रिय है लेकिन जहां उसे पुलिस की जरूरत होती है वह पुलिस की मदद लेता है।

      उपन्यास में एकमात्र रमाकांत ही ऐसा व्यक्ति है जो कुछ स्तर तक प्रभावित करता है स्वयं सुनील भी कोई अच्छा प्रभाव पाठक पर स्थापित नहीं कर पाता।
- यूथ क्लब के रमाकांत का अंदाज ही निराला है- "मैं कार पर यहाँ से निकला तो मोड़ पर ही एक्सीडेंट हो गया। फौरन मैंने महाराज को फोन खड़काया तो जानते हो क्या जवाब मिला?"
- "क्या?"
- कार कुंभ राशि थी और उसके लिए उस शनिवार की भविष्यवाणी थी कि गैराज से ..बाहर न निकाले।"
- "क्या कहने।"
- "दो राशियां क्लैश कर गयी इसलिए नतीजा उलट हुआ।" (पृष्ठ-163)
    रमाकांत का बोलने का अंदाज उपन्यास को कुछ हद तक संभालने में सक्षम है।
     उपन्यास मूलतः एक मर्डर मिस्ट्री है। जो एक कत्ल से आरम्भ होकर एक -एक संदिग्ध से होकर आगे बढती है। उपन्यास में या पात्रों में भी ज्यादा रोचकता या कहानी में कोई घूमाव नहीं बस एक जगह जब एक पात्रों स्वयं को कातिल के तौर पर प्रस्तुत करता है तो कुछ रोचकता बढती है।
         
- उपन्यास इतनी धीमी रफ्तार से आगे बढता है की पाठक उकता जाता है। कहानी का अनावश्यक विस्तार और धीमी गति और उस पर एक जैसे दृश्य उपन्यास के पाठन को बाधित करते हैं। पत्रकार सुनील के पास भी ज्यादा संभावनाएं नहीं है वह बस चंद पात्रों से प्रश्न-उत्तर करता रहता है जिससे सभी दृश्य एक जैसे नजर आते हैं।
     उपन्यास कहानी के स्तर पर अच्छी है लेकिन प्रस्तुतीकरण इसका अच्छा न हो सका
निष्कर्ष- 
                    प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे सुनील नामक पत्रकार हल करता है।   उपन्यास की रफ़्तार बहुत ही धीमी है। इसलिए उपन्यास ज्यादा दिलचस्प नहीं बन पाया। उपन्यास नीरस ज्यादा लगता है।
  उपन्यास को बस एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- सिंगला मर्डर केस
लेखक- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 263
मूल्य- 100₹



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असली अपराधी - सुरेन्द्र मोहन पाठक
थ्रिलर।

उपन्यास के साथ एक और कहानी उपलब्ध है लगभग पचास पृष्ठ की यह कहानी उपन्यास पर भारी पड़ती है। जो लगभग 250 पृष्ठ का उपन्यास न कर सका वह मनोरंजन 50 पृष्ठ की कहानी कर गयी।
        यह कहानी भी एक मर्डर मिस्ट्री है। तीन व्यापारिक दोस्त हैं,बंसल, माथुर और विनोद बाली।
        एक व्यापारिक बात पर माथुर और बाली की आपस में बहस होती है और उसी रात माथुर का कत्ल हो जाता है। कत्ल का इल्जाम आता है विनोद बाली पर।

              यह कहानी क्रिमिनालोजिस्ट विवेक आगाशे सीरिज की है। "मैं क्रिमिनालोजिस्ट हूँ। अब तक दिल्ली में फेमस हो चुकी 'क्राइम क्लब' का संचालक हूँ।" 
                'मुझे हर उस मर्डर केस में दिलचस्पी है जिसमें मुझे कोई पेच दिखाई दे।"
                और उस पेच के बल विवेक आगाशे इस केस को देखता है। अपने स्तर पर कार्यवाही करता है।
              विनोद बाली अपने पक्ष में जो भी सबूत इकटे करता है वे भी एक-एक कर गायब हो जाते हैं। विवेक आगाशे भी इस घटना हैरान है।
              कहानी में रहस्य शुरु से अंत तक जबरदस्त है। कहानी स्वयं में बांधने में सक्षम है।
              पाठक भी आश्चर्यचकित होता है की आखिर ये सब कैसे हो रहा है हालांकि पाठक भी यहाँ एक जासूस बनता‌नजर आता है लेकि‌न यह लेखक की प्रतिभा है की वो असली कातिल तक किसी जो भी पहुंचने नहीं देता।
                कहानी जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।

       


      

Wednesday 31 October 2018

150. अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती

 वह बन बैठा चाँद का शैतान.....
अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती, थ्रिलर उपन्यास, मध्यम स्तर।

वह खुद को अंतरिक्ष का खुदा मानता है।
वह चाँद की धरती पर अपना राज्य स्थापित करना चाहता था।
चाँद वासी उसे नक्षत्रों का खुदा कहते थे।
वह चन्द्र वासियों को मार रहा था।
वह पृथ्वी वासियों का दुश्मन था।
वह चन्द्रयान‌ को गायब/ नष्ट करता था।
वह ब्रह्माण्ड पर अपना विजयी परचम फहराना चाहता था।

कौन था वह?
वह कहां से आया था?

ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर तो सिर्फ राज भारती के उपन्यास 'अंतरिक्ष का खुदा' को पढ़कर ही मिल सकते हैं।


               लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में राज भारती एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने विभिन्न सीरिज लिखे हैं। हो सकता है यह अतिशयोक्ति हो पर राज भारती ने विभिन्न सीरिज और असंख्य उपन्यास लिखे हैं। (राज भारती द्वारा लिखे गये उपन्यासों की सही सख्या किसी को भी ज्ञात नहीं)
                      राज भारती द्वारा लिखा गया उपन्यास 'अंतरिक्ष का खुदा' विजय- सिंहगी सिरिज का उपन्यास है। इस उपन्यास का सारा घटनाक्रम चाँद की धरती पर घटित होता है।
              अमेरिका ने अपना अंतरिक्ष यान चाँद की धरती पर भेजा, जो पूर्णतः सफल रहा।
       चन्द्र विजय मानव की एक‌ महान विजय थी। इसलिए सारा विश्व हर्ष विभोर था। (पृष्ठ-06)
         इस अभियान से प्रेरित होकर अन्य देश भी इस लक्ष्य को हासिल करने को प्रेरित हुये। जिनमें एक भारत भी था। भारत के वैज्ञानिक बनर्जी जी ने व्यक्तिगत तौर पर एक घोषणा की "वह शीघ्र ही दो रॉकेटों के निर्माण में सफल हो जायेगा जो.. मानव को एक बार फिर चाँद की धरती पर उतारने में सफलता प्राप्त करेंगे।" (पृष्ठ- 09-10)
   
        अमेरिका का अपोलो सीरिज और भारत का साइको सीरिज चन्द्रयान चन्द्रमा की धरती पर पहुंचते हैं। यह भारत और विश्व के लिए खुशी का समय था। लेकिन एक समस्या आ गयी।
        एक भयानक घटना हो गयी।
        जिसने सारे विश्व को चौंका दिया बल्कि विश्व के वैज्ञानिकों को भी भयभीत कर दिया।
(पृष्ठ-49) यह घटना थी ऐसी की चन्द्रयान के यात्री भी दहल उठे।
अचानक अंतरिक्ष में रोशनी की एक लंबी और विचित्र सी लकीर खिंचती चली गयी और अपोलो तरह से टकरा गयी। (पृष्ठ-50)  इस समस्या का कोई समाधान भी नजर नहीं आ रहा था। अंतरिक्ष यात्रियों ने तुरंत पृथ्वी पर अपना संदेश भेजा।
हमें किसी अज्ञात खतरे का आभास हो रहा है। पता नहीं किस प्रकार बिजली की एक तेज लकीर अंतरिक्ष में उत्पन्न हुयी और हमारे यान को चारों तरफ से घेर लिया। (पृष्ठ-50,51)
यह बिलकुल नये ढंग की विपत्ति थी जिसका हल न तो अंतरिक्ष यात्रियों‌ के पास था और न धरती के वैज्ञानिकों के पास। (पृष्ठ-55) और किसी को यह भी नहीं न पता की वह अज्ञात लकीर कहां से आती है और उसे कौन भेजता है। कौन है वह शैतान।
चाँद की वह शक्ति नहीं चाहती कि चाँद की पृथ्वी पर कोई अन्य व्यक्ति उतरे। (पृष्ठ-57) और वह शक्ति अज्ञात है।
भारतीय अंतरिक्ष यान भी इस चमकती लकीर की चपेट में आकर नष्ट हो गया।
साइको प्रथम अंतरिक्ष में नष्ट हो चुका था। इस बारे में कोई संदेह न रह गया था।  क्योंकि धरती की प्रयोगशालाओं में टेलिविज़न स्क्रीनों पर उसे नष्ट होते हुए स्पष्ट देखा गया था।(पृष्ठ-69)
आखिर क्या रहस्य था चाँद पर जहां से अंतरिक्ष यान नष्ट हो गया?
   इसी रहस्य को सुलझाने को निकल पड़े दो और अंतरिक्ष यान।  भारत से साइको और अमेरिका से अपोलो। भारत का जासूस विजय, अशरफ, प्रोफेसर बनर्जी और अमरीका से जासूस माइक अपने अंतरिक्ष यात्रियों के साथ।
   लेकिन चाँद की तो दुनिया ही अलग थी। वहाँ तो चन्द्रवासी लोगों की आबादी थी। जब अंतरिक्ष यात्रियों ने वहाँ लोगों को देखा तो हैरान रह गये।  "मैं तुम्हारी दशा समझ सकता हूँ पृथ्वी के वासियो। तुम मुझे यहाँ देखकर चकित हो लेकिन तुम नहीं जानते कि चाँद पर मैं पचास वर्ष पूर्व आया था।" (पृष्ठ-129) और यहाँ  चाँद पर एक मूल‌ जाति का निवास है। (पृष्ठ-130)
   "पृथ्वी के वैज्ञानिक.... वे  यह भी नहीं जानते कि पचास वर्ष पूर्व एक पृथ्वी का वासी चाँद पर पहुँच चुका है।" (पृष्ठ-130)
   लेकिन चाँद के वासी भी एक शैतान से परेशान हैं। वह शैतान जिसने चाँद के लोगों का जीना हराम कर रखा है।  "चाँद पर इतनी शक्ति किसी के पास नहीं है जो इस शैतान से टक्कर ले सके।" (पृष्ठ-157)
  
   -  क्या जासूस मित्र इस रहस्य को सुलझा पाये?
   - कहां गायब हो गये चन्द्रयान?
   - पचास वर्ष पूर्व चाँद पर पहुंचने वाला व्यक्ति कौन था?
   - चाँद का शैतान कौन था?
    राज भारती का यह उपन्यास एक अलग विषय को प्रस्तुत करता एक जासूसी-थ्रिलर उपन्यास है।
उपन्यास की कहानी अलग विषय और पृष्ठभूमि पर आधारित है। जो पाठक के लिए रोचकता पैदा करती है। लेकिन उपन्यास में लेखक चाँद की धरती को प्रस्तुत तो करता है लेकिन पाठक को कहीं यह अहसास दिलाने में सफल नहीं हो पाता की घटनाक्रम चाँद पर घटित हो रहा है।
              उपन्यास पढते वक्त कुछ अलग अहसास नहीं होता। लेखक अगर कोशिश करता तो यह उपन्यास बहुत अच्छा बन सकता था। लेकिन अब यह मात्र एक एक्शन उपन्यास बन कर रह गया। अगर चाँद की भूमि का अच्छा वर्णन होता, वहाँ के लोगों के बारे में और जानकारी मिलती तो अच्छा था। चन्द्र वासियो और शैतान की लड़ाई का  भी ज्यादा वर्णन नहीं है। एक वह व्यक्ति जो चाँद पर पहुँच गया, वहाँ अपना अधिकार जमा लिया, वह शक्तिशाली तो रहा होगा लेकिन विजय-माइक के समक्ष वह एक मामूली सा गुण्डा नजर आता है जो अनावश्यक डायलाॅग बाजी करता रहता है।
                 उपन्यास का आरम्भ वैज्ञानिक/ तकनीकी जानकारी से संबंधित है तो उपन्यास का अंत एक्शन दृश्यों से भरपूर है।  अगर उपन्यास के अंत में विलन को खत्म करते वक्त कुछ तकनीक इस्तेमाल होती हो उपन्यास में रोचकता अवश्य बढती लेकिन लेखक उपन्यास के अंत में जासूस और खलनायक को आपस में ऐसे उलझते दिखाता है जैसे दोनों सड़क पर लड़ने वाले बदमाश हों।
        अगर इस उपन्यास पर अच्छी मेहनत की जाती तो यह एक अच्छा विज्ञान गल्प उपन्यास साबित हो सकता था।
             
                      
   निष्कर्ष-
                  उपन्यास मध्यम स्तर का है। उपन्यास अपने पृषठभूमि के आधार पर पठनीय है, लेकिन इस उपन्यास को जिस स्तर तक रोचक होना था उतना रोचक है नहीं।
           उपन्यास एक बार अच्छा मनोरंजन साबित हो सकता है।
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उपन्यास- अंतरिक्ष का खुदा
लेखक-    राज भारती
प्रकाशक- पवन पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-       203
उपन्यास लिंक-     अंतरिक्ष का खुदा- राज भारती        



149. वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा

खून का प्यासा मानव भेड़िया
वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा।
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एक शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' के लिए फिल्म की टीम एक खतरनाक जंगल में अपनी फिल्म की शुटिंग करने के लिए पहुंची।
             अभी शुटिंग आरम्भ भी न हुयी और एक खतरनाक वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेडिया वास्तव में वहां आ पहुंचा।
             जो घटनाक्रम एक शाॅर्ट फिल्म में दर्शाना था वह खूनी खेल वहाँ वास्तव में खेला गया।
             क्या यह संयोग था या एक षड्यंत्र?
            
उपन्यास की कहानी वास्तव में दिल दहला देने वाली है। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ यही सोचता है की आखिर वास्तविकता क्या है। क्या यह षड्यंत्र है या फिर संयोग। अगर संयोग है तो बहुत भयानक संयोग है अगर षड्यंत्र है तो कौन है षड्यंत्र कर्ता।
            
                         उपन्यास का आरंभ होता है शांंतनु से। शांतनु ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी अपने आखरी दाँव, अपनी शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' पर लगा दी। शांतनु अपनी टीम के साथ 'ब्लैक आॅर्किड वुड्स' नामक  जंगल में फिल्म की शुटिंग के लिए पहुंचा।
वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेड़िया पर आधारित थी यह शाॅर्ट फिल्म। लेकिन आपसी तकरार के चलते फिल्म के पात्र फिल्म में काम‌ करने के लिए मना कर देते हैं और शुटिंग स्थल से फिल्म को छोड़ कर निकलने की तैयारी करते हैं।
          इसी दौरान कहानी में‌ प्रवेश होता है मानव भेड़िये का।  सभी सदस्यों पर मानव भेड़िये के आक्रमण आरम्भ हो जाता है।  इस बार पेड़ के पीछे से निकलने वाली आकृति एक मानव भेड़िये यानी वेयरवुल्फ की थी। (पृष्ठ-24)
        

आश्रिता- संजय

कहानी वही है। आश्रिता- संजय श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सू...