Friday 31 May 2019

196. वायुपुत्रों की शपथ- अमीश

शिव रचना त्रय का तृतीय भाग
वायुपुत्रों की शपथ- अमीश

वायुपुत्रों की शपथ अमीश द्वारा रचित शिव रचना त्रय का तृतीय भाग है। एक शिव रचना एक विशाल ग्रंथ है और यह उसका अंतिम भाग है।
        वायुपुत्रों की शपथ के अंतिम आवरण पृष्ठ लिखा हुआ उपन्यास अंश पहले पढ लेते हैं।
शिव अपनी शक्तियाँ जुटा रहा है। वह नागाओं की राजधानी पंचवटी पहुंचता है और अंततः बुराई का रहस्य सामने आता है। नीलकण्ठ अपने वास्तविक शत्रु के विरूद्ध धर्मयुद्ध की तैयारी करता है। एक ऐसा शत्रु जिसका नाम सुनते ही बडे़ से बड़ा योद्धा थर्रा जाता है।
एक के बाद एक होने वाले नृशंस युद्ध से भारतवर्ष की चेतना दहल उठती है। ये युद्ध भारत पर हावी होने के षड्यंत्र हैं। इसमें अनेक लोग मारे जायेंगे। लेकिन शिव असफल नहीं हो सकता, चाहे जो भी मूल्य चुकाना पड़े। अपने साहस से वह वायुपुत्रों तक पहुंचता है, जो अब तक उसे अपनाने को तैयार नहीं थे


- क्या वह सफल हो पायेगा?
- बुराई से लड़ने का उसे क्या मूल्य चुकाना होगा?


इस कथा का आरम्भ होता है। शिव के नागाओं से मिलने के बाद जहाँ उन्हें पता चलता है की 'बुराई क्या है।' और शिव उस बुराई को खत्म करने की ओर बढते हैं। यहाँ शिव का सामना उन से होता है जिन्होंने शिव को नीलकण्ठ नाम दिया।

195. नागाओं का रहस्य- अमीश

शिव रचना त्रय का द्वितीय भाग
नागाओं का रहस्य- अमीश त्रिपाठी

'मेलूहा के मृत्युंजय' ने शिव और सूर्यवंशियों की कहानी का सिरा जहाँ छोड़ा है ठीक वहीं से 'नागाओं का रहस्य' की कहानी आगे बढती है।
नागाओं ने शिव के मित्र बृहस्पति की हत्या की और अब उसकी पत्नी सत्ती की जान के पीछे पड़े हुए हैं। क्रूर हत्यारों की जाति नागाओं के इरादों का विफल करना ही शिव का एकमात्र लक्ष्य बन जाता है। प्रतिशोध की राह पर चलते हुए शिव नागवंशियों के क्षेत्र में पहुंचता है। यहाँ उसे मेलूहा के हमलवार को ढूंढना है। इस रोमांचक और खतरों से भरे सफर में दोस्त कब दुश्मन बन जाते हैं पता ही नहीं चलता।

- क्या शिव चन्द्रवंशियों और नागाओं से जुड़े सत्य तक पहुंच पाएगा?
- आखिर नागाओं का रहस्य क्या है?
- क्या शिव अपनी यात्रा में विजयी हो पायेगा?

रहस्य और रोमांच की दुनियां को जानने के लिए पढें -'नागाओं का रहस्य।'

Thursday 30 May 2019

194. मेलूहा के मृत्युंजय- अमीश

शिव रचना त्रय का प्रथम भाग।
मेलूहा के मृत्जुंजय - अमीश त्रिपाठी

अमिश त्रिपाठी की 'शिव रचना त्रय' काफी चर्चित रही है। इस रचना त्रय के तीन भाग हैं। प्रथम 'मेलूहा के मृत्युंजय', द्वितीय 'वायुपुत्रों की शपथ' और तृतीय भाग है 'नागाओं का रहस्य'।
मेलूहा शब्द 'मोहन जोदड़ो' के निवासियों के लिए प्रयुक्त होता रहा है, हां यह भी संभव है यह शब्द सिंधु घाटी सभ्यता के लिए प्रयुक्त होता रहा हो।

               'मेलूहा के मृत्युंजय' पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं का एक अजीब सा काल्पनिक मिश्रण है। यह अजीब सा इस दृष्टि से है की लेखन ने जो कल्पनाएँ की वह भारतीय पौराणिक दृष्टिकोण से और समय के अनुसार बहुत तर्कसंगत नहीं हैं।

           यह कहानी आरम्भ होती है मानसरोवर निवासी 'गुण कबीले' के युवक शिव से। शिव जो गुण कबील का प्रमुख है। परिस्थितियाँ गुण कबीले को मेलूहा ले आती हैं। और परिस्थिति ही एक साधारण मानव शिव को पूज्य शिव बनाती है।
             शिव जो अपने क्षेत्र (मानसरोवर) का एक योद्धा है लेकिन मेलूहा में उसे नीलकण्ठ के नाम से विशेष प्रसिद्धि मिलती है। मेलूहावासियों का विश्वास है की प्रभु नीलकण्ठ का वर्णन पौराणिक गाथाओं में है और एक दिन प्रभु नीलकण्ठ उनकी मुसीबतों के निवारण के लिए अवश्य आयेंगे।

Monday 27 May 2019

193. धर्मयुद्ध- वेदप्रकाश शर्मा

एक युद्ध आधारित रोमांचक उपन्यास
धर्मयुद्ध- वेदप्रकाश शर्मा, जासूसी उपन्यास

वह धर्मयुद्ध था। जो मानवता और सैन्य प्रशासन के मध्य लड़ा गया। वह युद्ध जिसके लिए क्रांतिकारी अपनी जान‌पर खेल गये। सत्य और असत्य का युद्ध ।

वेदप्रकाश शर्मा जी के आरम्भिक उपन्यास पूर्णतः एक्शन उपन्यास होते थे। जिनके नायक 'विजय-विकास होते थे।
धर्मयुद्ध भी एक ऐसा ही एक्शन प्रधान उपन्यास है। यह कहानी है 'मजलिस्तान' नामक देश की, जिस पर कुछ बड़े देश अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। कुछ अपने होकर कुछ दुश्मन होकर।

मजलिस्तान एक छोटा सा देश है। वहाँ के राष्ट्रपति है सादात। देश की आंतरिक दशा ठीक न होने पर मजलिस्तान को एक अन्य देश 'सेमिनार' की सैन्य मदद लेनी पड़ती है।
...कोई भी बड़ा मुल्क किसी भी छोटे मुल्क का दोस्त नहीं हो सकता,....—हां, अपना उल्लू सीधा करने के लिए दोस्ती का मुखौटा जरूर चढ़ा सकता है। और सेमिनार ने अपना उल्लू सीधाा किया।
एक दिन मजलिस्तान का सैन्य जनरल इबलीस सेमिनार सेना के साथ मिलकर विद्रोह कर देता और राष्ट्रपति भवन पर आक्रमण कर देता है।
राष्ट्रपति भवन के अन्दर कोहराम-सा मचा हुआ था—बाहर निरन्तर गनों की गर्जना एवं टैंकों की हुंकार गूंज रही थी—इंसानी चीखो-पुकार का बाजार गर्म था।
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे राष्ट्रपति भवन के आस-पास का क्षेत्र एकाएक ही किसी युद्धस्थल में बदल गया हो—बाहर आग बरस रही थी—इंसानी चीखें गूंज रही थीं।
प्रलय-सी आ गई थी।
हर तरफ चीखो-पुकार, हाहाकार, कोहराम और मारकाट।
एक ही मुल्क की सेना दो हिस्सों में बंटकर युद्ध करने लगी थी। एक हिस्से का प्रयास राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लेना था और दूसरे का उसकी हिफाजत करना।

      अब मजलिस्तान पर अन्य देश की सेना का कब्जा है और जनता पर अत्याचार होते हैं। लेकिन देश की जनता इसके खिलाफ मोर्चा लेती है। और एक संस्था 'रक्त तिलक' का जन्म होता है।
   

"सच्चाई ये है किसी मजलिस्तान की जनता की आवाज और आरजुओं का गला घोंटा जा रहा है। उन पर मनमाने जुल्म किए जा रहे हैं। सच्चाई ये है कि इस मुल्क को गुलाम बना लिया गया है—मुल्क पर हुकूमत करने वाला इबलीस, कर्नल तोम्बो और गार्जियन की कठपुतली है—सेमिनार नाम के बड़े मुल्क ने मजलिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया है—इबलीस ने सेमिनार की शर्तें स्वीकार की थीं, उनके मुताबिक मजलिस्तान में सेमिनार के लड़ाकू हवाई अड्डे—नौसैनिक अड्डे और छावनियों की स्थापना की जा रही है—सच्चाई वही है—यह कि एक बार फिर वही हुआ है जैसा इतिहास के मुताबिक हमेशा ही सम्पन्न देश अपने छोटे मित्र देश के साथ करते रहे हैं।


         'रक्त तिलक' मजलिस्तान के देशभक युवाओं की एक संस्था जो अपने देश से विदेशी शासन से मुक्त देखना चाहती है।
           रक्त तिलक भारतीय डाक्टर भसीन का अपहरण कर लेती है। ताकी प्रशासन पर दवाब बनाया जा सके। डाक्टर भसीन को रक्त तिलक से मुक्त करवाने भारत से जासूस डबल एक्स फाईव यानि के विकास मेमिनार आता है।
पहली टक्कर में ही रक्त तिलक भी स्वीकार कर लेता है की विकास में दम है। "लोग इसे शेर का बच्चा कहते हैं, ....और आज के टकराव के बाद मैंने जाना कि डबल एक्स फाइव वाकई शेर के बच्चे का नाम है।"

              मजलिस्तान के सैन्य प्रशासन को सीधी धमकी मिलती है।- दुनिया के लिए मेरा सन्देश खत्म—और अब वे सुनें जिन्होंने इस मुल्क को गुलाम बना रखा है—हां—मैं तुम्हीं से कह रहा हूं गद्दार इबलीस—कर्नल तोम्बो—गार्जियन और यदि सेमिनार सुन रहा है तो वह भी कान खोलकर सुन ले—..... इस मुल्क की जनता पर हुए एक-एक जुल्म का हिसाब लेगा—इस मुल्क के आवाम को गुलाम बनाने के तुम्हारे जुर्म की सजा देने के लिए आया हूं मैं।

लेकिन परिस्थितियों जल्द ही बदल जाती हैं। विजय और अलफांसे भी मैदान में आ जाते हैं। एक तरफ मजलिस्तान के विद्रोही हैं एक तरफ मजलिस्तान के शासक हैं। विजय और विकास की टक्कर है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी अपने गुल खिला रहा है।
क्या रहस्य है इनके पीछे, क्यों टकरा जाते हैं सभी आपस में।
- क्या मजलिस्तान स्वतंत्र हो पाया?
- रक्त तिलक से विकास डाक्टर को आजाद करवा सका?
- रक्त तिलक और विकास की जंग का परिणाम क्या निकला?
- इन सबके बीच अलफांसे का क्या काम था?
- आखिर क्यों विजय और विकास एक दूसरे से टकरा बैठे?
- करनल इबलीस, तोम्बो और गार्जियन का क्या हुआ?


इन प्रश्नों के उत्तर तो वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'धर्मयुद्ध' में ही मिलेंगे।


उपन्यास में विकास का रौद्र रुप वर्णित है। 'रक्त तिलक' के सदस्य इशाक के साथ उसका वीभत्स व्यवहार बहुत बुरा लगता है।
             विजय की भूमिका एक हास्य के रूप में आरम्भ होती है। बहुत से उपन्यासों में देखा गया है की विजय की 'बकवास' वास्तव में अपठनीय होती है लेकिन इस उपन्यास में विजय का इबलीस, तोम्बो आदि के साथ वार्तालाप पाठक के चेहरे पर मुस्कान ला देता है।
                 राष्ट्रपति सादात की पुत्री मुमताज का करैक्टर बहुत अच्छा और मन को छू लेने वाला है। यह पठनीय है की एक राष्ट्रपति की बेटी अपने दुश्मनों से कैसे टकराती है।
               अलफांसे, बस नाम ही काफी है। लूमड़- यह एक ऐसी चिड़िया का नाम है, जो जिस खेत में चाहें दाना चुग लेती है।
उपन्यास में अलफांसे उर्फ लूमड की उपस्थित उपन्यास को और भी रोचक बना देती है।
     उपन्यास में वर्णित 'बख्तरबंद वैन' का वर्णन अविस्मरणीय है। एक ऐसी वैन जो काल का दूसरा नाम है। किस वैन की उपन्यास में जबरदस्त भूमिका है।

अगर आप वेदप्रकाश शर्मा के विजय- विकास सीरिज के पाठक हैं तो यह उपन्यास आपका भरपूर मनोरंजन करेगा।

निष्कर्ष-
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लिखा तेज -रफ्तार एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास में जहाँ एक तरफ विकास का खतरनाक रूप सामने है वहीं विजय की बुद्धि।
गुरु-शिष्य की टक्कर और अलफांसे की चालाकी से भरा यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- धर्मयुद्ध
लेखक-  वेदप्रकाश  
शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स-मेरठ

192. रोबोटोपिया- संदीप अग्रवाल

मनुष्य और रोबोट की अदभुत कहानियाँ
रोबोटोपिया- संदीप अग्रवाल

नये प्रकाशक fly Dreams के अंतर्गत लेखक संदीप अग्रवाल जी का कहानी संग्रह 'रोबोटोपिया' एक टैग लाइन 'निकट भविष्य की कहानियाँ' के शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ। कहानी संग्रह पढते वक्त आप स्वयं महसूस करेंगे की ये सब कहानियां भविष्य में सत्य साबित हो सकती हैं। 

     "सवाल यह नहीं है कि रोजिना के साथ बलात्कार किया जा सकता है या नहीं? सवाल यह है कि विक्रम ने जो किया वह बलात्कार था या नहीं? उसने रोजिना के साथ जो किया, वह उसकी मर्जी के खिलाफ था।.........और इसे बह सजा मिलनी चाहिए जो कानून ने एक रेपिस्ट के लिए मुकर्रर की है।" (किताब अंश)
ध्यान दें, रोजिना एक रोबोट है।
क्या एक रोबोट से बलात्कार संभव है?
क्या उसके लिए सजा दी जा सकती है?
मनुष्य और रोबोट के ऐसे संबधों को उजागर करती है 'रोबोटोपिया'। 


विकसित होती प्रौद्योगिकी एक दिन इस स्तर पर आ जायेगी की‌ मनुष्य और रोबोट में अंतर खत्म हो जायेगा। मनुष्य और रोबोट का यह मिलन भविष्य में सही होगा या गलत यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन‌ दोनों के मिलन को लेकर जो कहानियाँ रची गयी है वह आप वर्तमान में भी पढ सकते हैं।
यहाँ कुछ कहानियों की चर्चा करेंगे बाकी कहानियाँ आप 'रोबोटोपिया' कहानी संग्रह में‌ पढे यकीनन ये कहानियाँ आपको पसंद आयेगी।
इस संग्रह में कुल नौ कहानियाँ है। हम कुछ कहानियों पर यथासंभव चर्चा करते हैं।
 

Sunday 26 May 2019

191. कुआं- ब्रजेश कुमार

एक दहशत की घटना- कुआं
       वह कुआं एक श्राप था, ऐसी मान्यता थी कि एक राजा ने वो कुआं तब बनवाया था, जब वो ये फैसला लेने को तैयार हुआ कि सजाए मौत से बढकर किसी को कोई सजा दी जा सकती है।
कुआं...जो एक रहस्य था....कहते हैं वो कुआं क्रूरता का एक सूचक था। एक ऐसा कुआं, जहाँ मौत भी दुहाई मांगती थी। शायद वो एक प्रतीक था हैवानियत का। जहाँ कैदियों सजा के नाम पर मौत से भी बढकर सजा दी जाती थी। ऐसा भी माना जाता था है कि आजतक वहाँ से कोई बचकर कभी नहीं निकला। समय के साथ-साथ उसके आसपास बना बीहड़ और वो कुआं रहस्यमयी और हैवानियत का घर बनता गया। कहा जाता है, ये उन कैदियों की आत्माएं हैं, जिन्हें उस कुएं में फेंका गया था और जिन्हें मौत तो मिली मुक्ति नहीं।


दो दोस्त अजय और सतीश अपने गाँव जाते हैं। रास्ते में एक कुआं है। अजय उस कुएं पर चला जाता है और वहीं से कुछ खौफनाक घटनाओं का आरम्भ हो जाता है।
एक दोस्त के शरीर में प्रविष्ट शैतानी आत्मा अपना प्रतिशोध लेना चाहती है।
- कुएं का राज क्या था?
- आत्मा किससे प्रतिशोध लेना चाहती थी?
- कौन था असली गुनहगार?
- अजय और सतीश का क्या हुआ?

आदि प्रश्नों के लिए 'कुआं' नामक किताब पढनी होगी। जो की हाॅरर श्रेणी की कथा है।



देखा जाये तो 'कुआं' कोई कहानी नहीं है, यह मात्र एक घटना का विवरण मात्र है। जैसे अखबार/ मौखिक किसी से कोई हम घटना पढते/ सुनते हैं। कुआं उसी तरह की एक घटना प्रधान कथा मात्र है। इस कथा का आरम्भ अवश्य होता है लेकिन कोई अंत नहीं कहा जा सकता।

    कथा का आरम्भ बहुत रोचक तरीके से होता है लेकिन अंत नहीं। एक अधूरापन सा छोड़ कर कहानी 'अतार्किक' रूप से खत्म हो जाती है और पाठक ठगा सा रह जाता है।
लेखक/प्रकाशक चाहते तो इस कहानी को एक क्लाईमैक्स तक ले जा सकते थे।

किताब में शाब्दिक गलतियाँ बहुत है। मेरे पास fly dreams publication की पांच किताबे हैं और सभी में शाब्दिक गलतियाँ देखने को मिलती हैं। इस तरफ ध्यान देना आवश्यक है। कुछ उदाहरण देखें
थुक (पृष्ठ-12), दुसरे(पृष्ठ-16), "...तो ये साच है।" (पृष्ठ-42)
"तब पण्डित जी, कहां है लड़का?" (पृष्ठ-23)
(अब पण्डित... होना था।)
"रुको अभी आरती होने तक नहीं करना है कुछ।" (पृष्ठ-23)
"कमरे में पंखे के आवाज..." (पृष्ठ-26)

मेरे विचार से 49 पृष्ठ की किताब पर 75₹ खर्च करना उचित नहीं है।

लघु उपन्यास- कुआं
लेखक- ब्रजेश कुमार
संस्करण- ‌‌ सितंबर- 2018
पृष्ठ- 49
मूल्य- ‌‌‌‌ 75₹
प्रकाशक- FlyDream Publication, Patna
Email- teamflydreams@gmail.com

190. छोटू- अरुण गौड़

कुछ संवेदनशील कहानियाँ
छोटू- अरुण गौड़

फ्लाईड्रिम्स पब्लिकेशन पटना द्वारा प्रकाशित 'छोटू' अरुण गौड़ जी का एक 'छोटा' सा कहानी संग्रह है। कहानी संग्रह चाहे छोटा है लेकिन कहानियों की संवेदना का फलक विस्तृत है।

इस संग्रह में कुल चार कहानियाँ है और चारों कहानियाँ ही बच्चों से संबंधित है। कहानियों के पात्र चाहे बच्चे हैं लेकिन कहानियों में व्याप्त भाव सभी सहृदय को प्रभावित करने में सक्षम है।

1. गुलामी का पट्टा
              इस संग्रह की प्रथम कहानी, एक ऐसे बच्चे की कहानी है जो परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण मजदूरी करने को विवश हो जाता है।
        कथा का मुख्य पात्र किशन बिहार के एक गाँव में एक चौधरी के खेत पर काम करता है। चौधरी मजदूरों का शोषण करता है और उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह रखता है।
ज्वर पीडित किशन के मन में इस बंधन से मुक्त होने की इच्छा है।
    किशन अपनी मुक्ति के लिए क्या प्रयास करता है, वह जैसे आजाद होता है। यह सब रोचक है। एक छोटे से बच्चा का शोषण और उसकी कोमल भावनाओं को खत्म करने वाला चौधरी। फिर भी किशन के मन में स्वतंत्रता की उमंग है। 

189. तिलिस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा

अर्जुन -पण्डित का रोमांचक सफर
तिलिस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
Fly Dream Publication
द्वारा कुछ अत्यंत रोचक किताबों की श्रृंखला जारी की गयी है। मैंने इन दिनों प्रकाशन की पांच किताबे सतत पढी, और सभी मेरे को अच्छी लगी।
रोबोटोपिया - संदीप अग्रवाल
तिलस्मी खजाना- नृपेन्द्र शर्मा
कुआं- ब्रजेश गौड
छोटू - अरुण गोड़
भूतिया हवेली- मनमोहन भाटिया

          पांचों किताबों हाॅरर, फैंटेसी, इलैक्टोनिक युग और मानवीय संवदेना जैसे विषयों पर आधारित हैं।
अब बात करते हैं नृपेन्द्र शर्मा के उपन्यास 'तिलस्मी खजाना' की। सबसे पहले उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ पर उपन्यास के बारे में जो जानकारी दी गयी है वह पढ लेते हैं।

बंद खण्डहर के दरवाजों में, तिलस्मी खजाना कर रहा है, सदियों से इंतजार।
आखिर क्या है रहस्य, खण्डहर में बिखरे नर कंकालों का?
और किसको बुला रही हैं खण्डहर से आती आवाजें?
दो वीर युवक 'अर्जुन- पण्डित' निकल पड़े हैं तिलस्मी खजाने की तलाश में।
क्या परियों का नृत्य देखने के बाद, वो उनके मायाजाल से बच पायेंगे?
और क्या राह में आने वाली मुसीबतों से लड़ पायेंगे?
और क्या भेद पायेंगे अपने बल और बुद्धि से खजाने का तिलिस्म का रहस्य....?
जानने के लिए पढें 'अर्जुन-पण्डित' की तिलिस्म, युद्ध और मोहब्बत की दास्ताँ -'तिलिस्मी खजाना'। 

Tuesday 21 May 2019

188. हर मोड़ पर हत्या- जोरावर सिंह वर्मा

एक वहशी अपराधी की कथा।
हर मोड़ पर हत्या- जोरावर सिंह वर्मा, जासूसी उपन्यास

पत्रकार मनीष शहर के अमीर सेठ चेतन की पुत्री मोना से प्यार करता था। दोनों अक्सर स्विमिंग पूल पर मिलते थे। एक दिन स्विमिंग पूल से मोना गायब हो गयी।
जब इंस्पेक्टर सुधीर और जासूस 'ओ हिन्द' इस रहस्यपूर्ण केस को सुलझाने निकले तो उन्हें हर मोड़ पर लाश नजर आने लगी।
        जोरावर सिंह वर्मा का मेरे द्वारा पढे जाने वाला यह प्रथम उपन्यास है। उपन्यास आकार में चाहे लघु है लेकिन कथा रोचक और दिलचस्प है। कहानी प्रथम पृष्ठ से ही रोचक बन जाती है और सतत् रोचक बरकरार रहती है।
           उपन्यास की कथा सेठ चेतन की पुत्री मोना के अपहरण/गायब होने से आरम्भ होती है। सेठ का अनुमान है की उसकी पुत्री को खूंखार अपराधी चीतल उठा कर ले गया। मुझे लगता है यह काम भयानक अपराधी चीतल का है। (पृष्ठ-16)
           होटल 'स्काई लार्क' एक तरह से अपराधीवर्ग का ठिकाना है। एक पार्टी के दौरान होटल मालकिन कमला की हत्या हो जाती है वहीं एक सेठ आत्महत्या कर लेता है।
इंस्पेक्टर सुधीर और जासूस 'ओ हिन्द' अभी मोना के केस का रहस्य भी न खोल पाये थे और ये दो हत्यायें केस को और उलझा देती हैं।

Saturday 18 May 2019

187. काली आँखों वाली बिल्ली- चन्द्रेश

एक खतरनाक बिल्ली का कारनामा
जासूसी उपन्यास

        जासूसी उपन्यासकार चन्द्रेश का नाम मेरे लिए नया ही है, इस से पहले उनका कभी नाम नहीं सुना। इनका एक उपन्यास 'काली आँखों वाली बिल्ली' उपलब्ध हुआ। उपन्यास का शीर्षक भी स्वयं में रोचक है तो सहज ही पढने की इच्छा बलवती हो उठती है।
                कुछ माह पूर्व कैप्टन देवेश नामक लेखक का एक उपन्यास 'काली बिल्ली वाला' पढा था वह काफी रोचक और दिलचस्प था। उतना ही रोचक यह उपन्यास भी है।
बात करें प्रस्तुत उपन्यास की तो यह एक जासूसी उपन्यास है जिसका नायक मोहन है, मेजर मोहन। मेजर मोहन भारतीय खूफिया विभाग में कार्यरत एक जासूस है। हालांकि यहाँ भी एक मिशन पर कार्यरत है लेकिन उपन्यास में उसका साधारण व्यक्तित्व ज्यादा दर्शाया गया है। मोहन...गरीबों का हमदर्द।
मोहन को विभाग की तरफ से एक सूचना मिलती है की उसके पास कभी भी कविता नामक एक स्त्री का फोन आ सकता है और उसे कविता की मदद करनी है। एक दिन यह सच हो जाता है। मोहन के पास फोन आता है।
"हल्लो''- उसने रिसीवर उठा लिया।
''मिस्टर मोहन हैं?''- दूसरी और से बेहद दिलकश नारी अंदाज में पूछा गया।
मोहन चौंका, फिर संभलकर बोला- "मैं मोहन बोल रहा हूँ । कहिए...."
............
"काम फोन पर नहीं बताया जा सकता है। लेकिन यह समझ लीजिए कि मामला बहुत गंभीर है।"
"आप कहां से बोल रही हैं?"
"मैजिस्टिक होटल से।"- नारी स्वर में इस बार व्यग्रता थी।
(पृष्ठ-15)

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...