Monday 31 August 2020

372. बिजली के खंभों जैसे लोग- सूर्यनाथ सिंह

एक रोचक बाल रचना
बिजली के खंभों जैसे लोग - सूर्यनाथ सिंह

वह जून का महिना था। अमेरिका में वसंत का मौसम था। शनिवार का दिन। शाम के सात बजे थे।...
अमेरिका के केनेडी स्पेस सेंटर के वैज्ञानिक लगातार सुपर कम्प्यूटर के परदे पर नजरें गडा़ए हुये थे। इक्कीस दिन तक चक्कर काटने के बाद डिस्कवरी अंतरिक्ष यान धरती पर उतरने वाला था..... 

     यह कहानी गुरु नामक एक छोटे से बच्चे की। जिनका नाम है एस. सुंदरस्वामी। डिस्कवरी के चालक दल की अगुआई भारतीय मूल के वैज्ञानिक एस. सुंदरस्वामी ने की थी।
       यह कहानी अंतरिक्ष विज्ञान पर आधारित है। अंतरिक्ष यान डिस्कवरी तो सकुशल लौट आया पर वह अपने साथ कुछ ऐसा लेकर लौटा जिसका किसी भी पता नहीं था। और उसी का परिणाम यह निकला की सुंदरस्वामी का बच्चा गुरू एक अतिआधुनिक तकनीक 'फ्लक्स' माध्यम से गायब हो गया।
         गुरु की आँखें खुली तो उसने खुद को चार-पांच लंबे चौडे़ए लोगों से घिरा पाया। उसने गर्दन उठाकर देखा। इतने लंबे आदमी उसने कभी नहीं देखे थे। कहीं किसी किताब में भी नहीं पढा। उनकी लंबाई बिजली के खंभों जितनी रही होगी। (पृष्ठ-16)
- गुरु गायब कैसे हुआ?
- 'फ्लक्स' तकनीक क्या है?
- गुरु को कैसे खोजा गया?
- अन्य ग्रह का पृथ्वी से क्या संबंध है?
- अन्य ग्रह के लोग पृथ्वी ग्रह के संपर्क में जैसे आये?
उक्त प्रश्नों को जानने के लिए यह बाल रचना पढनी होगी।

Sunday 30 August 2020

371. खूनी गद्दार- आनंद सागर

कत्ल की कहानी...
खूनी गद्दार- आनंद सागर
डायरेक्टर नीलकान्त भरूचा की फिल्म 'आग और आँसू' के क्लाइमैक्स सीन की शूटिंग में चौथी बार भी 'कट' की आवाज आने पर स्टुडियो में उपस्थित सभी व्यक्ति परेशानी अनुभव करने लगे थे।
     प्रस्तुत दृश्य है अप्रैल 1966 में जासूसी चक्कर पत्रिका में प्रकाशित आनंद सागर जी के उपन्यास 'खूनी गद्दार'। आनंद सागर जी उपन्यास साहित्य में जासूसी उपन्यासकार के रूप चर्चित रहे हैं। 
     उपन्यास का कथानक आरम्भ होता है एक फिल्म की शूटिंग से जहाँ अभिनेता दीपक की तबीयत बिगड़ने से मृत्यु हो जाती है। अभिनेता दीपक अपने मित्र खलनायक प्रकाश के साथ शूटिंग कर रहा था।
  भरूचा रंगीन मियां को एक तरफ ले जाकर बोला-तुमने सुना रंगीन...दीपक को पायजन दिया गया।"
"हाँ, हाँ, सुना। तभी तो डाक्टर कहता है कि पुलिस को बुला लो।" (पृष्ठ-07)
    वहीं अभिनेत्री नैना के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवायी की उसकी पुत्री नैना गायब है और उसे प्रकाश पर शक है। मेरा संदेह प्रकाश बत्रा नामक विलेन पर है जिसने अपनी दुश्मनी निकालने को मेरी बेटी का कहीं भगवा दिया है और या मार डाला है। (पृष्ठ-20)
दीपक की मौत के पीछे क्या रहस्य था?
-  अभिनेत्री नैना कहां गायब हुयी?
-  प्रकाश बत्रा की दोनों घटनाओं में क्या भूमिका थी?
- इन दोनो घटनाओं की सत्यता क्या थी?
  इसी सत्यता का पता लगाने के लिए मैदान में आये जासूस जासूस कंचन और ठक्कर और इंस्पेक्टर फैयाज। 

Friday 28 August 2020

370. प्रतिशोध- सुरेश चौधरी

चम्बल के डाकू की कहानी
प्रतिशोध- सुरेश चौधरी
       हालातों ने चंदन सिंह को बेरहम डाकू तो बना दिया पर जब उसके अपने खून से उसका सामना हुआ तो जैसे उसके अंदर का इंसान फिर से जी उठा और....(आवरण पेेेज से)
          सुरेश चौधरी उभरते हुए लेखक हैं। अब तक उनके तीन उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। 'खाली आंचल', 'एहसास' और तृतीय उपन्यास है 'प्रतिशोध'। मेरठ निवासी सुरेश चौधरी जी पेशे से वकील हैं।
       मनुष्य अपने जीवन में कुछ जाने-अनजाने में अमानवीय कृत्य कर बैठता है और उसका परिणाम भी उसे भुगतना पड़ता है। ऐसा ही कुछ अपने जीवन में जमींदार भैरो सिंह ने किया और उसी राह पर चंदन सिंह भी चला। जब समय ने अपना प्रतिशोध लिया तो दोनों की जिंदगी में वह बवण्डर उठा जो उनका सब कुछ तबाह कर गया। 
        अब उपन्यास के कथानक पर कुछ चर्चा हो जाये। भैरों सिंह जमींदार थे और सरजू उनका एक खास कारिंदा था। सरजू का पुत्र था चन्दू और जमींदार की पुत्री थी बेला।
वक्त ने चंदू को जमींदार भैरों सिंह का वह रूप दिया दिया जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। भैरों सिंह के आतंक और पुलिस के भ्रष्टाचार ने चंदू को डाकू चंदन सिंह बना दिया‌। "चंदन सिंह नाम है हमार... ।" (पृष्ठ-67)
      अब डाकू चंदन सिंह जीवन का एक ही मकसद था भैरों सिंह से प्रतिशोध लेना। "...आज के मकसद में हमारी जिंदगी भी चली जाये...तो कौनू बात नाही...लेकिन हम चाहत हैं...कि ऊ ससुरे जमींदार को पता लगी जाये कि प्रतिशोध एइसा होत है...।" (पृष्ठ-64)
       प्रतिशोध की राह पर निकला चंदन सिंह सही औत गलत की पहचान भी भूल गया। प्रतिशोध की आग मे उसे अंधा बना दिया लेकिन जब उसकी आँख खुली तो उसका अपना खून उसके सामने दीवार बन कर खडा़ था।
- चंदन सिंह की भैरों सिंह से क्या दुश्मनी थी?
- चंदन सिंह ने कैसे प्रतिशोध लिया?
- चंदन सिंह के सामने दीवार बन कर कौन खड़ा था।
- चंदन सिंह और भैरों सिंह की दुश्मनी क्या रंग लायी?
आदि प्रश्नों के उत्तर के लिए सुरेश चौधरी का उपन्यास प्रतिशोध पढना होगा। 

Monday 24 August 2020

369. शालीमार- हसन अलमास

मौत की अंगूठी
शालीमार- हसन अलमास
The vulture is a patient Bird का हिन्दी अनुवाद

वह एक मौत की अंगूठी। जिसने भी उसे पाना चाहा, वह मौत के मुँह में समा गया। सदियों से वह अपने चाहने/पाने वालों को मौत की नींद सुलाती आयी है, और फिर भी उस अंगूठी को चाहने/ पाने की संख्या में कोई भी कमी नहीं आयी। हर कोई उस अंगूठी को पाना चाहता है।
         रवि पॉकेट बुक्स से अगस्त 2020 में जेम्स हेडली चेइज के उपन्यास 'The Valture is a patient Bird' का हिन्दी अनुवाद शालीमार शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। यह अनुवाद दिल्ली निवासी हसन अलमास साहब ने किया है। यह मात्र शाब्दिक अनुवाद नहीं है, यह शब्दों के साथ-साथ भावों का भी सार्थक अनुवाद है। अगर किसी कहानी का मात्र शब्द अनुवाद किया जाये तो वह कोई अच्छी पठनीय रचना नहीं बन पाती। अनुवाद में भाव, रस आदि का भी आनुपातिक प्रस्तुतीकरण आवश्यक है, इस दृष्टि से यह कृति सही है और अनुवाद महोदय के परिश्रम को दर्शाती है। 
Lower Kodra dam- Mount Abu
          मिस्टर आर्मो शालिक एक एजेंट था जो रुपयों के किए कुछ कानूनी और गैर कानूनी कार्य करता है। -
"...मेरे काम में मेरा पाला दौलतमंद बिगडैलों, काइयां बिजनेसमैनों और अरब के कुछ शहजादों से पड़ता है।" शालिक नर जवाब देते हुए कहा-"और वो मेरे क्लाइंट इसलिए हैं‌ कि मैं उनके कई नामुमकिन समझे जाते काम करता हूँ। "(पृष्ठ-53)
           इस बार उसके पास काम है एक बेहद खतरनाक अंगूठी को प्राप्त करना। जो की अफ्रीका के जंगलों में एक बेहद खतरनाक व्यक्ति के बेहद सुरक्षित म्यूजियम में हैं। इस काम के लिए आर्मो शालिक एक टीम तैयार करता है।
गैरी एडवर्ड्स- हेलिकाॅप्टर पायलट और कार हैंडलिंग का जानकार है।
कैनेडी जौन्स- अफ्रीका के जंगलों का जानकार।
मिस्टर ल्यू फेनल- एक्सपर्ट तिजोरी तोड़।

गे डेस्मंड- ट्रोज हाॅर्स, खतरनाक हसीना।
"... आज यहाँ मैंने आप लोगों को जिस आप्रेशन के तहत इकट्ठा किया है, उसका इकलौता मकसद है।"- शालिक शांत स्वर में बोला-" उस तारीखी अंगूठी को हासिल करना।"(पृष्ठ-41)
- उस अंगूठी में विशेष क्या है?
- वह मौत की अंगूठी क्यों कहलाती है?
- क्या, शालिक की योजना कामयाब रही?
- उस सुरक्षित म्यूजियम से अंगूठी चोरी हो पायी?
- अफ्रीका के खतरनाक जंगलों में कैसे गुजरे ?

इस सब प्रश्नों और घटनाओं को जानने के लिए हसन अलमास द्वारा अनुवादित 'शालीमार' उपन्यास पढना होगा।

Friday 21 August 2020

368. टोपाज- कंवल शर्मा

टोपाज का एक रोमांचक सफर
टोपाज- कंवल शर्मा

रवि पॉकेट बुक्स मेरठ से मैंने तीन उपन्यास मंगवाये थे। कंवल शर्मा जी का 'टोपाज', सुरेन्द्र चौधरी जी का 'प्रतिशोध' और जेम्स हेडली चेईज का अनुवादित 'शालीमार'(अनुवाद - हसन अलमास)।
      सर्वप्रथम हम 'टोपाज' पर चर्चा करते हैं वैसे भी मुझे कंवल शर्मा जी के उपन्यास का इंतजार रहता है।
टोपाज शीर्षक देखते ही मन में ख्याल आता है टोपाज नाम क्यों? 
          मेरे प्रस्तुत उपन्यास का नाम टोपाज है और इसके प्रकाश में आते ही मुझसे सबसे पहले यही सवाल हुआ कि ऐसा नाम रखने की वजह क्या है?
मेरा ईमानदाराना जवाब है कि कोई वजह नहीं।
(लेखकीय से, पृष्ठ-18)
       हालांकि ऐसी बात नहीं है, क्योंकि टोपाज तो आखिर टोपाज ही है। वैसे एक बात कहूँ‌ मुझे तो आज से पहले यही पता था की टोपाज नाम से एक सेविंग ब्लेड आता है।
तो अब चले टोपाज की यात्रा पर...
       अगर इंसान का बच्चा विपरीत हालात में जा फंसे तो उसे उनके आगे मजबूर होकर सरेण्डर नहीं कर देना चाहिये बल्कि कमर सीधी कर उन हालात का सामना करना चाहिये। (पृष्ठ-26)
ऐसा ही था वह- अट्ठाईस साल के लंबे गठीले और मजबूत बदन वाला नौजवान पीताम्बर सचदेवानी.......हरियाणा की करनाल जेल से हाल में रिहा हुआ था।
    और एक था पीताम्बर का दोस्त- जग्गी- जिसका असली नाम जगदेव खाकड़ा था और जिसे उसके असली नाम से शायद ही कोई जानता था.....वो कोई पच्चीस साल का नौजवान था जो अपने पैदा होनर से लेकर आज तक केवल एक पेशे, जयरामपेशे, में था। (पृष्ठ-29)
       और एक से दो और दो से चार का कारवां बनता गया।- "तुम्हारे पास एक टीम है जिसका हर मेम्बर अपनी किस्म के फन में‌ माहिर है।"बेनिवाल बोला-" तुम्हारे पास प्लान आउट करने की काबिलियत है, इनके पास उस प्लान पर अमल करते हुए उसे कामयाब कर दिखाने का जज्बा है।"(पृष्ठ-192)
और कामयाब करना था एक प्लान को और प्लान क्या था-  

367. नायक - बसंत कश्यप

सन् 1993 मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट पर आधारित
नायक- बसंत कश्यप, थ्रिलर

   
सन् 1993 में मुंबई में हुये सीरियल वार बम धमाके तो आपको पता ही होंगे। कहीं पढा होगा, देखा होगा या फिर इसके विषय में कहीं सुना होगा।
    इन धमाकों में दो नाम चर्चा में रहे थे एक थे अंडरवर्ल्ड के डाॅन दाउद इब्राहिम और दूसरा नाम चर्चा में रहा वह था फिल्म स्टार संजय दत्त।
          प्रस्तुत उपन्यास 'नायक' लेखक बसंत कश्यप जी ने मुंबई बम धमाकों को आधार बना कर लिखा है। सत्य और कल्पना का इतना अच्छा मिश्रण मिलता है की पाठक के सामने एक-एक दृश्य साकार हो उठता है। इनका एक और उपन्यास है 'घायल आबरू' वह अजमेर के ब्लैकमेलिंग काण्ड पर आधारित है। 

कहानी का आरम्भ मुंबई दंगों से होता है। जहाँ अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यको के मध्य दंगे होते हैं। इसका कारण है अयोध्या की बाबरी मस्जिद का ढहना। मुंबई में अल्पसंख्यक लोग 'देव-दल' और उसके प्रमुख बल्लू वागले को को दंगों का आरोपी मानते हैं।
साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते उस शहर की सड़क पर एक भी आदमी दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा था।  (पृष्ठ-07) 

Tuesday 11 August 2020

366. घायल आबरू- बसंत कश्यप

 ्एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास

घायल आबरू- बसंत कश्यप, सस्पेंश थ्रिलर

हालांकि वह कठोर जमीन पर भाग रही थी, फिर भी उसे महसूस हो रहा था कि उसके पांव दलदल में धंसे जा रहे हैं। वह समूची ताकत के साथ जैसे पांवों को दलदल से खींचकर आगे बढती जा रही थी। उसके जिस्म के ऊपर जो वस्त्र थे वे तार तार हो चुके थे। लगभग नग्न हुये अपने जिस्म की हालत पर वह आँसू बहाती जा रही थी, भागते हुये जिसकी तरफ उसने गरदन घुमाई।
         भेड़िये जैसे मानव अपने भयावह पंजे फैलाए उसके करीब होते जा रहे थे। उसे विश्वास हो गया कि वह अपने नग्न बदन को भेड़ियों जैसे मानवों के पंजे से नहीं बचा सकती। वे पंजे उसे किसी भी क्षण दबोचने जा रहे हैं।

        यह दृश्य है बसंत कश्यप जी के उपन्यास 'घायल आबरू' का। घायल आबरू नामक उपन्यास अजमेर(राजस्थान) में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना है।  

   वास्तविक घटनाओं पर उपन्यास लिखना बहुत मुश्किल काम होता है। जब एक क्राइम थ्रिलर लेखक वास्तविक घटना पर उपन्यास की रचना करता है तो उसे तात्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ पाठकवर्ग का भी ध्यान रखना है और कहानी को एक अंजाम तक पहुंचाना होता है। वास्तविक जीवन में चाहे वह घटना न्यायालय में न्याय की उम्मीद से दम तोड़ती नजर आये लेकिन लेखक को उस घटना के पात्रों को न्याय दिलाना ही होता है, अन्यथा कहानी अधूरी रह जाती हैऔर पाठक भी असंतुष्ट नजर आते हैं।

     श्री वेदप्रकाश शर्मा जी ने समाज की कुछ घटनाओं पर उपन्यास लिखे हैं‌। इसी क्रम में मुझे बसंत कश्यप जी के दो उपन्यास मिले जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं।
      उपन्यास 'घायल आबरू' अजमेर(राजस्थान) में 'स्कूल-काॅलेज' की बच्चियों के साथ लंबे समय तक घटित होते रहे दुराचार पर आधारित है। वहीं इनका गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित द्वितीय उपन्यास 'नायक' सजय दत्त और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित है। गौरी पॉकेट से प्रकाशित होने वाला इनका प्रथम उपन्यास 'घायल आबरू' है।

        समाज में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे इज्जत के नाम पर दबा दिया/ लिया जाता है। और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर असामाजिक तत्व शोषण चक्र चलाते रहते हैं। 

       बात करें प्रस्तुत उपन्यास की। यह अजमेर शहर को केन्द्र में रख कर लिया गया है। शहर में 'पंचशूल' नाम से एक ऐसा संगठन सक्रिय है जो प्रतिष्ठित परिवारों की लड़कियों का शोषण करता है और ब्लैकमेल भी। इस पंचशूल के पीछे कुछ राजनैतिक और धार्मिक संगठन के कर्ताधर्ता भी सक्रिय होते हैं।
      वहीं शहर में कुछ नशे के व्यापारी भी समाज और देश को खोखला करने में लगे हुये हैं‌। दूसरी तरफ पंचशूल के पांच शख्स अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को हमेशा के लिए खामोश भी कर देते हैं।
      इंस्पेक्टर विक्रम इस अपराध के खिलाफ सक्रिय होता है- समाज के प्रतिष्ठित लोगों की आबरू को अपने गंदे हाथों का खिलौना बनाकर खेलने वाले अपराधियों को तलाश कर रहूंगा।
      लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई बुराई के खिलाफ खड़ा हो ही जाता है। यहाँ एक रहस्यमयी बिल्ली सामने आती है। एक ऐसी बिल्ली जिसने अपराधी वर्ग में दहशत फैला दी।
सलेकी गहरी सोच में डूबा नजर आने लगा।
ठीक तभी।
मेज पर रखा फोन घनघनाया।
सलेकी ने हाथ बढाकर रिसीवर उठाकर माऊथपीस पर कुछ कहना चाहा तो नहीं कह पाया।
दूसरी तरफ उसके बोलने से पहले स्वर उभरा- "म्याऊ...म्याऊ....।"
"ब...बिल्ली ...बिल्ली...।"- अपने कानों के पर्दे से टकराकर बिल्ली की आवाज सुनकर वह पागलों की भाँति चीखा- " बिल्ली है फोन पर।"

- पंचशूल का रहस्य क्या था?
- ब्लैकमेल के काले धंधे के पीछे कौन थे?
- इंस्पेक्टर विक्रम कहां तक कामयाब रहा?
- धर्म, राजनीति और काले धंधे का परस्पर क्या संबंध था?
- बिल्ली का रहस्य क्या था?
- बिल्ली के कारण दहशत क्यों थी?
-उपन्यास कितना सत्य और कितना काल्पनिक है?
यह सब जानने के लिए बंसत कश्यप जी का उपन्यास 'घायल आबरू' पढें।

       उपन्यास आरम्भ से ही रोचक होता चला जाता है। आरम्भ जहाँ एक लड़की की मजबूरी से होता है, वहीं बाद में नशे पर कहानी घूमती है। उपन्यास में राजनीति का अच्छा चरित्र है, कैसे राजनेता अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे को बलि का बकरा बना देते हैं।
       उपन्यास में ऐसे लोगों का बखूबी चित्रण मिलता है जो सफदेपोश होकर काले धंधे करते हैं।
मुझे उपन्यास में बिल्ली के दृश्य बहुत रोचक लगे। वे दृश्य उपन्यास में/ अपराधी वर्ग में दहशत पैदा करने में सक्षम है। हां लेखक ने सब तर्क संगत लिखा है। पाठक को संतुष्टि होगी। आप उपन्यास पढकर जान सकते हैं।
एक दृश्य देखें, अपराधियों में बिल्ली का कैसा खौफ है-
"म्याऊ...म्याऊ...।"
वे सभी बुरी तरह चौंके, इस बार बिल्ली की आवाज मेज के पीछे से नहीं आयी थी।
"बिल्ली उधर है।"- कोई चीखा- " रियाज बिल्ली तुम्हारे पीछे की तरफ है।"
अचानक...
उसके हलक से चीख उबल गयी। उसके चेहरे पर पंजा टकराया था। सुईयों की नोक की भांति पंजे के नाखून उसके चेहरे को चीरते चले गये।

       उपन्यास में पुलिस की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं। और ऐसा देखा भी गया है की अपराध होते रहते हैं और पुलिस बेखबर रहती है। यहाँ भी पुलिस दोनों तरह के अपराधियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है।
-बड़े अफसोस की बात है कि पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुँच पा रही है जबकि अपराधियों को एक एक कर रहस्यमयी मौत का शिकार बनाया जा रहा है। काली बिल्ली और जहरीला पंजा जिंदाबाद के नारे शहर की दीवारों पर नजर आने लगे हैं। शहर का माहौल पुलिस की खिल्ली उड़ा रहा है। जबकि पुलिस यह तक नहीं जानती हत्यारा आखिर कौन हो सकता है।

      उपन्यास में कुछ एक्शन दृश्य भी हैं, जो काफी रोमांच पैदा करते हैं। हालांकि उपन्यास में रोमांच और सस्पेंश के लिए और काफी जगह है।
एक दृश्य देखें इंस्पेक्टर विक्रम की फाईट का-
विक्रम ने देखा साया दूसरी बार चाकू घोपने जा रहा था कि विक्रम ने अपने जिस्म को झुकाई देकर चाकू के वार से बचा लिया। अपने ही झोंके में चाकू वाला कोठरी के लकड़ी वाले दरवाजे से टकराया। उसके हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में धंस गया था।
ठीक इसी वक्त ।
विक्रम की टांंग लाठी की भांति घूमकर चाकू वाले की पीठ से टकराई। चाकूबाज के हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में फंसा रह गया।


       हमारे समाज में लड़कियों को बहुत कमजोर बना दिया जाता है। अगर हम लड़कियों में हिम्मत और ताकत के भाव भरें तो वे वैसा ही महसूस करेंगी। इस पर उपन्यास की एक पात्र का कथन देखें-    लड़की कमजोर होती है यह बात पूरी दुनिया जानती है। लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि लड़की कितनी कमजोर होती है वक्त पड़ने पर उतनी बहादुर और मजबूत भी हुआ करती है।
        एक बार आप गूगल पर सर्च कर लीजिएगा और फिर उपन्यास को पढे तो आपको पता चलेगा की उपन्यास कितना वास्तविकता के समीप है। लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं जो उन्होंने एक घटना को उपन्यास का रूप दिया। हालांकि यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिए स्वाभाविक है समापन अलग और बहुत अलग होगा। क्योंकि वास्तविक घटनाओं का समापन होना कठिन होता है और जब बीच में न्यायालय (?) आ जाये तो कठिन शब्द असंभव में परिवर्तित हो जाता है तब एक लेखक ही होता है जो उस घटना को अपनी कल्पना शक्ति से एक मुकाम तक पहुंचाता है।

       उपन्यास में बहुत कुछ रहस्य के पीछे छुपा हुआ है वह तो उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
      एक वास्तविक घटना पर आधारित 'घायल आबरू' उपन्यास हमारे समाज की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करता है जो सभ्य समाज को नीची नजर करने के लिए मजबूर कर देता है।
यह उपन्यास पढना चाहिये और समाज में बच्चियों को इतना सशक्त बनाये की वे कठिन से कठिन परिस्थितियों का हिम्मत से सामना कर पातें।
धन्यवाद।
उपन्यास - घायल आबरू
लेखक-    बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स 

बसंत कश्यप के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

बसंत कश्यप उपन्यास समीक्षा


बिल्ली पर आधारित कुछ रोचक उपन्यास
काली बिल्ली वाला- कैप्टन देवेश

काली आंखों वाली बिल्ली- चन्द्रेश

Sunday 9 August 2020

365. आखिरी बाजी- वेदप्रकाश कांबोज

 इंस्पेक्टर सूरज और साथियों का कारनामा

आखिरी बाजी- वेदप्रकाश कांबोज, एक्शन उपन्यास


"कहो बेटा, जयराज अब शादी की पार्टी कब कर रहे हो?"
नाम सुनते ही वह इस तरह बुरी तरह से चौंका जैसे किसी खूनी शेर को अपने शिकार की भनक लग गयी हो। शरीर की समस्त शिराएं आक्रमण के लिए तन गयी। झटके साथ गर्दन घुमाकार शब्दों की तरफ देखा।.......

           यह दृश्य है वेदप्रकाश कांबोज जी के एक्शन -थ्रिलर उपन्यास 'आखिरी बाजी' का।
       अगस्त माह में वेदप्रकाश कांबोज का यह क्रमशः पांचवां उपन्यास पढ रहा हूँ। इससे पूर्व 'कदम- कदम पर धोखा', 'चन्द्रहार के चोर' 'चन्द्रमहल का खजाना' और 'चक्कर पर चक्कर' के बाद 'आखिरी बाजी' उपन्यास पढा। इनमें से 'चक्कर पर चक्कर' को 'विजय' सीरीज का एक सस्पेंश- मर्डर मिस्ट्री उपन्यास, 'आखिरी बाजी' एक्शन- थ्रिलर है और शेष तीन सस्पेंश थ्रिलर उपन्यास है। 
अब बात करते हैं उपन्यास 'आखिरी बाजी' की। उपन्यास एक्शन पर आधारित है जिसमें मुख्य पात्र इंस्पेक्टर सूरज होता है। इंस्पेक्टर सूरज सिंह, जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े अपराधियों की फूंक सरक जाती थी, हौंसले पस्त हो जाते थे। उसकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य यही था। अपराध और अपराधियों का सफाया कर देना। इसी तमन्ना के साथ वह पुलिस में भर्ती हुआ और अच्छा नाम भी कमा लिया था उसने।
         सूरज की जिंदगी का एक ही मकसद है अपराधी जयराज को गिरफ्तार करना। सिर्फ जयराज के कारण उसका पूरा पुलिस कैरियर तबाह हो गया।
लेकिन जयराज का कहीं भी कोई पता नहीं। तब सूरज की जिंदगी में प्रवेश होता है एक रहस्यमय व्यक्ति का।
"लेकिन आप हैं कौन?" -पूछा उसने
"दुश्मन का दुश्मन दोस्त ही माना जाता है न? सो आप मुझे अपना दोस्त मान सकते हैं।"
"लेकिन वह दुश्मन कौन है जिसकी वजह से हम दोनों अनजान दोस्त बनने जा रहे हैं?"
"जयराज।"

- यह अज्ञात रहस्यमयी व्यक्ति कौन था?
- उसका जयराज से क्या संबंध था?
- सूरज और जयराज में क्या दुश्मनी थी?
- जयराज कहां गायब हो गया?
- सूरज का कैरियर कैसे तबाह हुआ?
- आखिर क्या अंजाम रहा उस दुश्मनी का?

इन सब प्रश्नों के लिए वेदप्रकाश कांबोज जी का एक्शन- थ्रिलर उपन्यास 'आखिरी बाजी' पढना होगा। 

364. चक्कर पर चक्कर- वेदप्रकाश कांबोज

यहाँ हर कोई चला रहा था अपना-अपना चक्कर
 चक्कर पर चक्कर- वेदप्रकाश कांबोज, सस्पेंश-थ्रिलर

       कभी कभी किस्मत ऐसे चक्कर चलाती है कि मनुष्य कुछ भी समझ नहीं पाता और जो वह समझता है वह हो नहीं पाता और जो होता है वह समझ नहीं पाता। इस होने, न होने, समझने और न समझने का जो ही किस्मत का चक्कर कहते हैं। अगर मनुष्य इसे समझ ले तो फिर किस्मत जा चक्कर ही कहां रह जाता है।
       आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज का उपन्यास 'चक्कर पर चक्कर' पढा यह वास्तव में एक चक्करदार और दिमाग को चक्करा देने वाला रोचक उपन्यास है।
       मैं अगस्त 2020 में क्रमशः 'कदम-कदम पर धोखा', 'चन्द्रहार के चोर 'चन्द्रमहल का खजाना' के पश्चात चौथा उपन्यास 'चक्कर पर चक्कर' पढा।
अब चर्चा करते हैं उपन्यास के कथानक पर।
पहली बात यह है कि कहानी में कुछ 'चक्कर' है इसलिए एक तरफ की बात करें तो दूसरी तरफ की चर्चा छूट जाती है। अब बात कहां से आरम्भ करें......सोचने दो...
    वकील दिलीप बनर्जी से चर्चा शुरू करते हैं। उपन्यास 'विजय-रघुनाथ सीरीज' का है। जिसमें रघुनाथ का किरदार बहुत कम है और विजय का किरदार मध्य पश्चात रफ्तार में आता है‌ और उससे पहले विजय का एक शिष्य दिलीप बनर्जी उपन्यास में नायक की तरह नजर आता है। वह नायक की तरह नजर आता है, वास्तव में उपन्यास नायक तो विजय है।
       वकील दिलीप बनर्जी से एक महिला मिलती है- वह अपनी सुरक्षा के लिए वकील से चर्चा करती है। लेकिन दिलीप बनर्जी सत्य का अन्वेषण, महिला की सुरक्षा के लिए कहीं और ही जा उलझता है।
वह बहुत ही खतरनाक आदमी है।" वह अपनी नाक साफ करती हुई बोली - "तुम्हें उसे धमकाना नहीं चाहिये था...धमका कर उसे किसी काम के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता...बल्कि धमकाने से वह और भी ज्यादा जिद्दी और खतरनाक हो जाता है।"
"आखिर तुम मुझे उससे इतना डराने की कोशिश क्यों कर रही हो?"
"मैं तुम्हें डरा नहीं रही...बल्कि असलियत बता रही हूँ।"

        वहीं विजय के पास एक अज्ञात फोन आता है की एक आदमी का कत्ल होने वाला है। लेकिन दिलीप बनर्जी तो एक कत्ल के केस में उलझ ही जाता है।
       यहीं से उपन्यास उलझ जाता है। कहानी घुमावदार हो जाती है। एक एक किरदार संदिग्ध नजर आने लगता है। दिलीप बनर्जी जैसा तीव्र दिमागधारी वकील भी चक्कर में आ जाता है।
          विजय जिस कत्ल का अन्वेषण करता है उस घर में मात्र चार सदस्य हैं। जिनमें से दो संदिग्ध है और और मजे की बात ये है की एक को विजय ज्यादा संदिग्ध मानता है और दूसरे को उस घर के सदस्य संदिग्ध मानते हैं।
दिलीप बनर्जी कुछ अलग ही उलझ जाता है-
"तुम्हें देख रहा हूँ और सोच रहा हूँ कि आखिर तुम यह क्या चक्कर पर चक्कर चलाए जा रही हो और क्यों चला रही हो?"
"क्या मतलब?"

बस यही मतलब समझने के लिए उपन्यास 'चक्कर पर चक्कर' पढना होगा।

Friday 7 August 2020

363. चन्द्रमहल का खजाना- वेदप्रकाश कांबोज

बांग्लादेश के खजाने की कहानी
चन्द्रमहल का खजाना- वेदप्रकाश कांबोज

भारत 2006 से बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम तक

पिछली शाम बाग में टहलते हुये उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की थी-"हे भगवान, तुम कहीं हो तो किसी उपन्यास का नहीं तो कम से कम एक बढिया सी कहानी का प्लाॅट तो इस दिमाग में उतारने की कोशिश करो।"
और लो देखो चमत्कार। प्लाॅट दिमाग में उतरने की बजाय साक्षात उसके सामने उतर आया था।

       रात के अँधेरे में एक लड़की दौड़ी चली आ रही थी। उसके बदन पर कोई कपड़ा नहीं था। दो गुण्ड़े पिस्तौल से उसका पीछा कर रहे थे.........।

         क्या खूब हो जब हम ऐसा सोचे और हमारे सामने एक कहानी आ जाये। हम तो फिर उपन्यासकार बन जाये। क्योंकि हमारे उपन्यास ने नायक ने तो ऐसा ही सोचा और हो गया सत्य। लेकिन यह सत्य उसे बहुत सी कठिनाईयों में भी ले गया। सीधा भारत से बांग्लादेश वाया कोलकाता।
हम बात कर रहे हैं....चलो खुद नायक की ही सुन लेते हैं- मेरा नाम मानव वर्मा है। पेशे से जर्नलिस्ट हूँ और इस जगह पर कुछ दिन से एकांतवास कर रहा हूँ।
     लेकिन यह एकांतवास उसे नसीब न हुआ। उसके जीवन में आयी उस लड़की ने मानव वर्मा को विदेश यात्रा करवा दी। 

        उपन्यास कथानक चाहे सन् 2006 भारत से आरम्भ होता है लेकिन इसकी नीव तो सन् 1971 बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के समय ही रखी गयी थी।
सन् 1971
उस समय पूर्वी पाकिस्तान में जबरदस्त उथल पुथल मची हुयी थी। बरसों बाद पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने देश की जनता को अपने प्रतिनिधित्व चुनने का मौका दिया था।

         लेकिन यह मौका पाकिस्तान को पसंद 
हीं आया और शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया।

        पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश से धन लूट कर पाकिस्तान अपने यहाँ जमा कर रहा था। लेकिन वह धन अचानक ऐसे गायब हुआ की किसी को भी न मिला। धन लूटने वाले, उसे छुपाने वाले सब खत्म हो गये। 

Monday 3 August 2020

362. चन्द्रहार के चोर- वेदप्रकाश कांबोज

एक चोर की कहानी
चन्द्रहार के चोर- वेदप्रकाश कांबोज

आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज जी लोकप्रिय जासूसी साहित्य के एक दैदीप्यमान सितारे हैं। विजय-रघुनाथ जैसी चर्चित शृंखला लिखने वाले कांबोज जी ने थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास भी लिखे हैं।
       अगस्त माह में 'कदम-कदम पर धोखा' के पश्चात इसी माह मेरे द्वारा पढा गया उनका द्वितीय उपन्यास है 'चन्द्रहार के चोर'।
     एक चोर के जीवन पर लिखा गया एक रोचक उपन्यास है। चोरी के उद्देश्य से एक रात घर से निकला एक नौजवान, चोरी में तो असफल रहा लेकिन उसके सामने कुछ और ही हैरतजनक घटना घटित हो गयी।  
      आगामी दिवस जब वह अपने कौतुहल का निवारण करने के लिए उस जगह गया तो......
उसे एक अपराधी के रूप में गिरफ्तार किया गया।
उस चोर का उस घटना से कोई संबंध न था।
वह उस शहर/ गांव का निवासी भी न था।
वह अपने उद्देश्य चोरी में भी असफल रहा था।
फिर पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार कर लिया ।
और वह भी उस जुर्म में जो उसने किया ही न था।

है ना एक दिलचस्पी कथानक।
इस दिलचस्पी कथानक के रचनाकार हैं वेदप्रकाश कांबोज और उपन्यास है चन्द्रहार के चोर।

Saturday 1 August 2020

361. कदम कदम पर धोखा- वेदप्रकाश कांबोज

धोखे और फरेब से भरा एक रोचक उपन्यास
कदम कदम पर धोखा- वेदप्रकाश कांबोज

     सन् 2020 में जून माह तक मैंने 100 किताबें पढ ली। यह मेरे लिए एक कीर्तिमान है और कम समय में 100 किताबें पढने का कारण Lockdown रहा है।
      विद्यालय बंद था, और में स्वयं भी एक तरह से कमरे में और फिर घर में बंद था। तब किताबें ही सहारा थी। और हां, इस दौरान माह जून में पन्द्रह उपन्यास कुशवाहा कांत जी के पढे लिये थे। साल में एक-दो बार मैं किसी एक लेखक विशेष पर ही ध्यान देता हूँ। इससे पूर्व टाइगर और जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के सतत उपन्यास पढ चुका हूँ। मेरे पास जिस लेखक के उपन्यास उपलब्ध हैं, एक बार उनके सभी उपलब्ध उपन्यास पढ कर अलग रख देता हूँ ताकि इस लेखक को फिर लंबे समय तक नहीं पढना। इसी क्रम में अब अपने समय के चर्चित उपन्यासकार वेदप्रकाश कांबोज जी को पढने जा रहा हूँ। उनके लगगभ मेरे पास तीस उपन्यास उपलब्ध हैं। इसी क्रम में उनका अगस्त माह में प्रथम उपन्यास पढा है- कदम कदम पर धोखा
     कभी-कभी मनुष्य कुछ ऐसी परिस्थितियों में उलझ जाता है की उसे हर जगह धोखा ही मिलता है। इन परिस्थितियों में तो विवेक भी काम नहीं करता। वह जिस भी व्यक्ति पर विश्वास करता है, वही उसे धोखा दे जाता है। यही होता है 'कदम-कदम पर धोखा' उपन्यास में।
   यह कहानी है धनजय और अजय नामक दो भाईयों की। जिसमें मुख्य पात्र छोटा भाई अजय है। धनजय को एक समाचार पत्र में प्रकाशित किसी कार्यक्रम की तस्वीर प्राप्त होती है। वह तस्वीर में एक शख्स की पहचान के लिए एक हद तक पागल हो उठता है।
आखिर उस तस्वीर में ऐसा क्या था? यही रहस्य जानने के लिए धनजय का छोटा भाई अजय आगे बढता है। लेकिन उसकी खोज को रोकने के लिए पहले से ही लोग जाल बिछाकर बैठे थे।
- आखिर उस तस्वीर में ऐसा क्या रहस्य था?
- धनजय और अजय उस तस्वीर से/ में क्या खोज रहे थे?
- कौन लोग उस तस्वीर के रहस्य को सामने नहीं आने देना चाहते थे?
- आखिर वह तस्वीर थी तो एक समाचार पत्र में, जिसे सबने देखा था।

       इस रहस्यमयी कहानी जो को एक तस्वीर से संबंध रखती है को जानने के लिए आपको वेदप्रकाश कांबोज जी का उपन्यास 'कदम-कदम पर धोखा' पढना होगा। 

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...