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Tuesday 11 August 2020

366. घायल आबरू- बसंत कश्यप

 ्एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास

घायल आबरू- बसंत कश्यप, सस्पेंश थ्रिलर

हालांकि वह कठोर जमीन पर भाग रही थी, फिर भी उसे महसूस हो रहा था कि उसके पांव दलदल में धंसे जा रहे हैं। वह समूची ताकत के साथ जैसे पांवों को दलदल से खींचकर आगे बढती जा रही थी। उसके जिस्म के ऊपर जो वस्त्र थे वे तार तार हो चुके थे। लगभग नग्न हुये अपने जिस्म की हालत पर वह आँसू बहाती जा रही थी, भागते हुये जिसकी तरफ उसने गरदन घुमाई।
         भेड़िये जैसे मानव अपने भयावह पंजे फैलाए उसके करीब होते जा रहे थे। उसे विश्वास हो गया कि वह अपने नग्न बदन को भेड़ियों जैसे मानवों के पंजे से नहीं बचा सकती। वे पंजे उसे किसी भी क्षण दबोचने जा रहे हैं।

        यह दृश्य है बसंत कश्यप जी के उपन्यास 'घायल आबरू' का। घायल आबरू नामक उपन्यास अजमेर(राजस्थान) में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना है।  

   वास्तविक घटनाओं पर उपन्यास लिखना बहुत मुश्किल काम होता है। जब एक क्राइम थ्रिलर लेखक वास्तविक घटना पर उपन्यास की रचना करता है तो उसे तात्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ पाठकवर्ग का भी ध्यान रखना है और कहानी को एक अंजाम तक पहुंचाना होता है। वास्तविक जीवन में चाहे वह घटना न्यायालय में न्याय की उम्मीद से दम तोड़ती नजर आये लेकिन लेखक को उस घटना के पात्रों को न्याय दिलाना ही होता है, अन्यथा कहानी अधूरी रह जाती हैऔर पाठक भी असंतुष्ट नजर आते हैं।

     श्री वेदप्रकाश शर्मा जी ने समाज की कुछ घटनाओं पर उपन्यास लिखे हैं‌। इसी क्रम में मुझे बसंत कश्यप जी के दो उपन्यास मिले जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं।
      उपन्यास 'घायल आबरू' अजमेर(राजस्थान) में 'स्कूल-काॅलेज' की बच्चियों के साथ लंबे समय तक घटित होते रहे दुराचार पर आधारित है। वहीं इनका गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित द्वितीय उपन्यास 'नायक' सजय दत्त और मुंबई बम ब्लास्ट पर आधारित है। गौरी पॉकेट से प्रकाशित होने वाला इनका प्रथम उपन्यास 'घायल आबरू' है।

        समाज में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे इज्जत के नाम पर दबा दिया/ लिया जाता है। और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर असामाजिक तत्व शोषण चक्र चलाते रहते हैं। 

       बात करें प्रस्तुत उपन्यास की। यह अजमेर शहर को केन्द्र में रख कर लिया गया है। शहर में 'पंचशूल' नाम से एक ऐसा संगठन सक्रिय है जो प्रतिष्ठित परिवारों की लड़कियों का शोषण करता है और ब्लैकमेल भी। इस पंचशूल के पीछे कुछ राजनैतिक और धार्मिक संगठन के कर्ताधर्ता भी सक्रिय होते हैं।
      वहीं शहर में कुछ नशे के व्यापारी भी समाज और देश को खोखला करने में लगे हुये हैं‌। दूसरी तरफ पंचशूल के पांच शख्स अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को हमेशा के लिए खामोश भी कर देते हैं।
      इंस्पेक्टर विक्रम इस अपराध के खिलाफ सक्रिय होता है- समाज के प्रतिष्ठित लोगों की आबरू को अपने गंदे हाथों का खिलौना बनाकर खेलने वाले अपराधियों को तलाश कर रहूंगा।
      लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई बुराई के खिलाफ खड़ा हो ही जाता है। यहाँ एक रहस्यमयी बिल्ली सामने आती है। एक ऐसी बिल्ली जिसने अपराधी वर्ग में दहशत फैला दी।
सलेकी गहरी सोच में डूबा नजर आने लगा।
ठीक तभी।
मेज पर रखा फोन घनघनाया।
सलेकी ने हाथ बढाकर रिसीवर उठाकर माऊथपीस पर कुछ कहना चाहा तो नहीं कह पाया।
दूसरी तरफ उसके बोलने से पहले स्वर उभरा- "म्याऊ...म्याऊ....।"
"ब...बिल्ली ...बिल्ली...।"- अपने कानों के पर्दे से टकराकर बिल्ली की आवाज सुनकर वह पागलों की भाँति चीखा- " बिल्ली है फोन पर।"

- पंचशूल का रहस्य क्या था?
- ब्लैकमेल के काले धंधे के पीछे कौन थे?
- इंस्पेक्टर विक्रम कहां तक कामयाब रहा?
- धर्म, राजनीति और काले धंधे का परस्पर क्या संबंध था?
- बिल्ली का रहस्य क्या था?
- बिल्ली के कारण दहशत क्यों थी?
-उपन्यास कितना सत्य और कितना काल्पनिक है?
यह सब जानने के लिए बंसत कश्यप जी का उपन्यास 'घायल आबरू' पढें।

       उपन्यास आरम्भ से ही रोचक होता चला जाता है। आरम्भ जहाँ एक लड़की की मजबूरी से होता है, वहीं बाद में नशे पर कहानी घूमती है। उपन्यास में राजनीति का अच्छा चरित्र है, कैसे राजनेता अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे को बलि का बकरा बना देते हैं।
       उपन्यास में ऐसे लोगों का बखूबी चित्रण मिलता है जो सफदेपोश होकर काले धंधे करते हैं।
मुझे उपन्यास में बिल्ली के दृश्य बहुत रोचक लगे। वे दृश्य उपन्यास में/ अपराधी वर्ग में दहशत पैदा करने में सक्षम है। हां लेखक ने सब तर्क संगत लिखा है। पाठक को संतुष्टि होगी। आप उपन्यास पढकर जान सकते हैं।
एक दृश्य देखें, अपराधियों में बिल्ली का कैसा खौफ है-
"म्याऊ...म्याऊ...।"
वे सभी बुरी तरह चौंके, इस बार बिल्ली की आवाज मेज के पीछे से नहीं आयी थी।
"बिल्ली उधर है।"- कोई चीखा- " रियाज बिल्ली तुम्हारे पीछे की तरफ है।"
अचानक...
उसके हलक से चीख उबल गयी। उसके चेहरे पर पंजा टकराया था। सुईयों की नोक की भांति पंजे के नाखून उसके चेहरे को चीरते चले गये।

       उपन्यास में पुलिस की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं। और ऐसा देखा भी गया है की अपराध होते रहते हैं और पुलिस बेखबर रहती है। यहाँ भी पुलिस दोनों तरह के अपराधियों तक पहुंचने में नाकाम रहती है।
-बड़े अफसोस की बात है कि पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुँच पा रही है जबकि अपराधियों को एक एक कर रहस्यमयी मौत का शिकार बनाया जा रहा है। काली बिल्ली और जहरीला पंजा जिंदाबाद के नारे शहर की दीवारों पर नजर आने लगे हैं। शहर का माहौल पुलिस की खिल्ली उड़ा रहा है। जबकि पुलिस यह तक नहीं जानती हत्यारा आखिर कौन हो सकता है।

      उपन्यास में कुछ एक्शन दृश्य भी हैं, जो काफी रोमांच पैदा करते हैं। हालांकि उपन्यास में रोमांच और सस्पेंश के लिए और काफी जगह है।
एक दृश्य देखें इंस्पेक्टर विक्रम की फाईट का-
विक्रम ने देखा साया दूसरी बार चाकू घोपने जा रहा था कि विक्रम ने अपने जिस्म को झुकाई देकर चाकू के वार से बचा लिया। अपने ही झोंके में चाकू वाला कोठरी के लकड़ी वाले दरवाजे से टकराया। उसके हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में धंस गया था।
ठीक इसी वक्त ।
विक्रम की टांंग लाठी की भांति घूमकर चाकू वाले की पीठ से टकराई। चाकूबाज के हाथ का चाकू लकड़ी के दरवाजे में फंसा रह गया।


       हमारे समाज में लड़कियों को बहुत कमजोर बना दिया जाता है। अगर हम लड़कियों में हिम्मत और ताकत के भाव भरें तो वे वैसा ही महसूस करेंगी। इस पर उपन्यास की एक पात्र का कथन देखें-    लड़की कमजोर होती है यह बात पूरी दुनिया जानती है। लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि लड़की कितनी कमजोर होती है वक्त पड़ने पर उतनी बहादुर और मजबूत भी हुआ करती है।
        एक बार आप गूगल पर सर्च कर लीजिएगा और फिर उपन्यास को पढे तो आपको पता चलेगा की उपन्यास कितना वास्तविकता के समीप है। लेखक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं जो उन्होंने एक घटना को उपन्यास का रूप दिया। हालांकि यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिए स्वाभाविक है समापन अलग और बहुत अलग होगा। क्योंकि वास्तविक घटनाओं का समापन होना कठिन होता है और जब बीच में न्यायालय (?) आ जाये तो कठिन शब्द असंभव में परिवर्तित हो जाता है तब एक लेखक ही होता है जो उस घटना को अपनी कल्पना शक्ति से एक मुकाम तक पहुंचाता है।

       उपन्यास में बहुत कुछ रहस्य के पीछे छुपा हुआ है वह तो उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
      एक वास्तविक घटना पर आधारित 'घायल आबरू' उपन्यास हमारे समाज की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करता है जो सभ्य समाज को नीची नजर करने के लिए मजबूर कर देता है।
यह उपन्यास पढना चाहिये और समाज में बच्चियों को इतना सशक्त बनाये की वे कठिन से कठिन परिस्थितियों का हिम्मत से सामना कर पातें।
धन्यवाद।
उपन्यास - घायल आबरू
लेखक-    बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स 

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2 comments:

  1. बसंत कश्यप जी का यह उपन्यास रोचक लग रहा है। मौका मिलेगा तो इसे एक बार जरूर पढ़ना चाहूँगा। हाँ, अजमेर की जिस घटना का जिक्र आपने किया है और लेख में जिसके विषय में गूगल करने को कहा है उस घटना से जुड़े लिंक्स अगर लेख में ही सम्मिलितकर दिये होते तो बेहतर रहता। आभार।

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