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Saturday 18 May 2019

187. काली आँखों वाली बिल्ली- चन्द्रेश

एक खतरनाक बिल्ली का कारनामा
जासूसी उपन्यास

        जासूसी उपन्यासकार चन्द्रेश का नाम मेरे लिए नया ही है, इस से पहले उनका कभी नाम नहीं सुना। इनका एक उपन्यास 'काली आँखों वाली बिल्ली' उपलब्ध हुआ। उपन्यास का शीर्षक भी स्वयं में रोचक है तो सहज ही पढने की इच्छा बलवती हो उठती है।
                कुछ माह पूर्व कैप्टन देवेश नामक लेखक का एक उपन्यास 'काली बिल्ली वाला' पढा था वह काफी रोचक और दिलचस्प था। उतना ही रोचक यह उपन्यास भी है।
बात करें प्रस्तुत उपन्यास की तो यह एक जासूसी उपन्यास है जिसका नायक मोहन है, मेजर मोहन। मेजर मोहन भारतीय खूफिया विभाग में कार्यरत एक जासूस है। हालांकि यहाँ भी एक मिशन पर कार्यरत है लेकिन उपन्यास में उसका साधारण व्यक्तित्व ज्यादा दर्शाया गया है। मोहन...गरीबों का हमदर्द।
मोहन को विभाग की तरफ से एक सूचना मिलती है की उसके पास कभी भी कविता नामक एक स्त्री का फोन आ सकता है और उसे कविता की मदद करनी है। एक दिन यह सच हो जाता है। मोहन के पास फोन आता है।
"हल्लो''- उसने रिसीवर उठा लिया।
''मिस्टर मोहन हैं?''- दूसरी और से बेहद दिलकश नारी अंदाज में पूछा गया।
मोहन चौंका, फिर संभलकर बोला- "मैं मोहन बोल रहा हूँ । कहिए...."
............
"काम फोन पर नहीं बताया जा सकता है। लेकिन यह समझ लीजिए कि मामला बहुत गंभीर है।"
"आप कहां से बोल रही हैं?"
"मैजिस्टिक होटल से।"- नारी स्वर में इस बार व्यग्रता थी।
(पृष्ठ-15)

              जब मोहन होटल पहुंचा तो वहाँ उसे एक काली बिल्ली और कविता की लाश मिली।
भुजंग काली अंगारे जैसी दहकती आँखों से उसे घूरती एक बिल्ली फर्श पर खड़ी थी। उसकी लंबी पूंछ हवा में लहरा रही थी। रह-रह कर एक खतरनाक गुर्राहट उसके कण्ठ से निकल रही थी। (पृष्ठ-31)
            ‌मोहन की खोज जैसे जैसे आगे बढती है वैसे -वैसे ही उसकी उलझने बढती जाती हैं। मोहन‌ को जैसे ही लगता है की वह एक सूत्र तक पहुंच गया तो वह सूत्र ही खत्म हो जाता है।
अभी तो केस आरम्भ भी नहीं हुआ है ठीक से तब दो हत्याएं हो गयी। केस सिद्ध हो इसलिए मुझे कार्य भी अत्यंत सावधानी के साथ करना होगा। (पृष्ठ-60)

- कविता का कत्ल किसने और क्यों किया?
- काली बिल्ली का रहस्य क्या था?
- इन सब रहस्यों के पीछे कौन था?

इन सब प्रश्नों के उत्तर इस उपन्यास में मिलेंगे।


उपन्यास छोटे-छोटे 12 खण्डों में विभक्त है। उपन्यास आरम्भ से एक समान्य कथा रूप में आरम्भ होता है लेकिन प्रथम खण्ड समाप्त होते -होते ही एक रहस्य में परिवर्तित हो जाता है। वह रहस्य है कविता का। हां, कविता का पात्र एक रहस्य लिए है और कविता की मृत्यु के साथ ही यह रहस्य गहरा जाता है।
         यहीं से मोहन का उपन्यास में आगमन होता है और वह कविता की मौत का पता लगाना चाहता है।
लेकिन उपन्यास का खलनायक भी कम नहीं है।- मुझे मौत का फरिश्ता कहा जाता है। यानी मैं ...मैं इस पूरे गिरोह का बाॅस हूँ।(पृष्ठ-114)
लेकिन नायक मोहन भी तो किसी से कम नहीं है।
तुम यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि मैं यानी मोहन जिसके पीछे पड़ जाता हूँ उसको फिर कोई नहीं बचा सकता। (पृष्ठ-50)
उपन्यास में काली बिल्ली या काली बिल्ली वाला दोनों ही खतरनाक हैं। प्रशिक्षित बिल्ली अपने दुश्मनों को बहुत बुरी मौत देती है।‌


          उपन्यास के कुछ दृश्य भी रोचक हैं। जब मोहन का सामना एक खलनायक गणेश से होता है। स्वयं गणेश भी मोहन के व्यवहार से चकित रह जाता है। गणेश की समझ में नहीं आ रहा था कि उसका सामना कैसे आदमियों से है?
उपन्यास आकार में चाहे छोटा है लेकिन कहानी के स्तर पर काफी मजबूत है। कहानी में कहीं कोई कमी या धीमापन नहीं है। एक तय गति से उपन्यास आगे बढता है और उसी के साथ साथ रोमांच भी। उपन्यास का अंत भी शानदार रहा है।
       मुझे इस प्रकार के अर्थात छोटे और तेज रफ्तार जासूसी उपन्यास बहुत पसंद आते हैं। एक दौर था जब जासूसी उपन्यास लगभग दो सौ पृष्ठ के अंदर सिमट जाते थे। ऐसे उपन्यासों में अनावश्यक विस्तार नहीं होता था, सारा ध्यान कहानी पर केन्द्रित होता था। इस प्रकार के उपन्यास जोरावर सिंह वर्मा, निरंजन चौधरी आदि के होते थे।

निष्कर्ष-
          प्रस्तुत उपन्यास एक तेज रफ्तार जासूसी उपन्यास है। उपन्यास की घटनाएं बहुत तीव्रता से घटती हैं जो पाठक को रोचक लगती हैं। उपन्यास का कम पृष्ठों में होना भी कहानी को तीव्र बनाने में सहायक है।
उपन्यास आदि से अंत तक पठनीय और रोचक है।

उपन्यास- काली आँखों वाली बिल्ली
लेखक-   चन्द्रेश उर्फ श्री रमेश चन्द्र गुप्त
प्रकशक- हिन्दी पॉकेट बुक्स- कृष्णानगर, दिल्ली-51
पृष्ठ-       138

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