प्रतिशोध की भयानक कथा
अगिया बेताल एक हाॅरर श्रेणी का उपन्यास है। यह एक ऐसे युवक की कहानी है जो अपने बाप की मौत का बदला लेने के लिए स्वयं निकृष्ट कोटि का इंसान बन जाता है और वह भी उस बाप का बदला जिससे वह युवक जरा सा भी प्रेम नहीं करता था। लेकिन प्रतिशोध मनुष्य को मनुष्य भी नहीं रहने देता।
परशुराम शर्मा हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के एक वह स्तंभ हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से उपन्यास साहित्य पर अपना गहरा प्रभाव कायम रहा है। जासूसी उपन्यासों के अतिरिक्त परशुराम शर्मा जी ने 'हारर' श्रेणी के भी उपन्यास लिखे हैं।
अगिया बेतान परशुराम शर्मा जी का एक हाॅरर उपन्यास है, जो अगिया बेताल नामक एक प्रेत पर आधारित है। शर्मा जी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था की उन्होंने एक अगिया बेताल जैसी घटना स्वयं देखी थी।
उपन्यास का नायक रोहताश एक डाॅक्टर है। वह बचपन से ही अपने चाचा के पास रहता है, क्योंकि उसे अपने पिता के कार्य से घृणा है। रोहताश का पिता 'साधु नाथ' एक तांत्रिक है। साधु नाथ तंत्र-मंत्र द्वारा सिद्धियाँ प्राप्त करना चाहता है। अपने पिता की मृत्यु पर वह कहता है- एक बुराई का अंत हो चुका था। सवेरे मेरे पिता की चिता शमशान घाट पर लग गई।
रोहताश को जब अपने पिता के मरने की खबर मिलती है तो वह अपने पिता का अंतिम संस्कार करने गाँव जाता है। रास्ते में उसे अगिया बेताल जैसी घटना के दर्शन होते हैं। गाँव में रोहताश से भी कम उम्र की उसकी सौतेली माँ होती है। लेकिन गाँव में उसके कुछ दुश्मन पहले से ही तैयार बैठे हैं। वहीं रोहतास को पता चलता है की उसकी पिता की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी।- मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पिता की मृत्यु स्वाभाविक मौत नहीं है, उसके पीछे कोई न कोई भेद अवश्य है। न जाने कौन सी बात मस्तिष्क में खटक रही थी।
- रोहताश अपने पिता से इतनी दूरी क्यों बना कर रखता है?
- साधु नाथ की हत्या किसने की?
- क्या था अगिया बेताल?
- रोहताश की सौतेली माँ कौन थी?
- आखिर कैसे डाक्टर रोहताश इन शैतानी ताकतों से टकरा पाया?
एक तरफ डाॅक्टर रोहताश है जो भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करता तो दूसरी तरफ उसका पिता इन तांत्रिक सिद्धियों के कारण ही जाना जाता था।
एक तरफ डॉक्टर रोहताश है तो दूसरी तरफ गढी (एक जगह, गढ या किला) के लोग है जो तांत्रिक सिद्धियों से गढी की रक्षा करने में यकीन रखते हैं। लेकिन बदली परिस्थितियों में स्वयं रोहताश भी तांत्रिक सिद्धियों का ज्ञाता बन जाता है और वह प्रतिशोध के रास्ते पर निकल पड़ता है। उसकी मददगार बनती है उसकी सौतेली माँ।
रोहताश का एक ही दुश्मन है- ठाकुर प्रताप जिसकी मैंने शक्ल भी नहीं देखी, क्या वह इतनी बड़ी ताकत है कि जिसकी चाहे जिंदगी उजाड़ दे।
मेरे सीने में बगावत थी।
मैं इसका बदला लूंगा।
बदला...।
यही से रोहताश का प्रतिशोध आरम्भ होता है। स्वयं रोहताश भी कहता है।
मेरा प्रतिशोध शुरू हो गया था। अब मैं कातिल था... क़ानून की निगाह में मुजरिम... पर समय कभी लौट कर नहीं आता। मेरे भीतर का मनुष्य तो कभी का मिट चुका था, अब मैं सिर्फ दरिंदा था, जिसके दिल में दया नाम की कोई वस्तु नहीं होती।
यह उपन्यास प्रथम पुरुष में है। कथानायक रोहताश स्वयं अपनी कहानी बताता है। इसलिए यह सहज ही पता चल जाता है की कथानायक को कुछ नहीं होगा।
प्रथम पुरुष में कथा होने के कारण कुछ प्रसंग जो की रोचक हो सकते थे लेकिन बन नहीं पाये क्योंकि स्वयं नायक चंद शब्दों में बात को समाप्त कर देता है।
मूलतः देखे तो यह उपन्यास रोहताश पर आधारित है न की अगिया बेताल पर। अगिया बेताल तो रोहताश का सहायक मात्र है और कई कगह पर तो वह स्वयं भी निष्क्रिय है।
उपन्यास की कहानी चाहे बदला प्रधान है लेकिन बदला पूर्ण होने पर भी कथा आगे जारी रहती है। अगर उपन्यास रोहताश के प्रतिशोध तक रहती तो ज्यादा अच्छा रहता क्योंकि बाद में उपन्यास का अंदाज बदल जाता है और वह मात्र रोहताश के जीवन पर आधारित हो जाती है।
उपन्यास के कुछ अंश उपन्यास को वीभत्स बना देते हैं। जैसे रोहताश का अपनी सौतेली माँ के प्रति व्यवहार।
निष्कर्ष-
परशुराम शर्मा जी द्वारा लिखा गया 'अगिया बेताल' नामक उपन्यास एक डरावनी कथा है। यह एक बदला प्रधान कहानी है, कैसे एक युवक तांत्रिक विधियों का जानकार होकर अपने दुश्मनों से प्रतिशोध लेता है।
यह दिलचस्प और पठनीय रचना है जो कहीं भी पाठक को निराश नहीं करेगी।
उपन्यास- अगिया बेताल
लेखक- परशुराम शर्मा
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- मुंबई
मूल्य-
अमेजन लिंक- अगिया बेताल
परशुराम शर्मा जी का साक्षात्कार- youtube link interview
परशुराम जी के अन्य उपन्यास - चिनगारियों का नाच
।“जब आदमी का उद्देश्य एक ही रह जाता है और उसका जिन्दगी से कोई मोह नहीं रह जाता तो वह खुली किताब की तरह पढ़ा जा सकता
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अगिया बेताल एक हाॅरर श्रेणी का उपन्यास है। यह एक ऐसे युवक की कहानी है जो अपने बाप की मौत का बदला लेने के लिए स्वयं निकृष्ट कोटि का इंसान बन जाता है और वह भी उस बाप का बदला जिससे वह युवक जरा सा भी प्रेम नहीं करता था। लेकिन प्रतिशोध मनुष्य को मनुष्य भी नहीं रहने देता।
परशुराम शर्मा हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के एक वह स्तंभ हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से उपन्यास साहित्य पर अपना गहरा प्रभाव कायम रहा है। जासूसी उपन्यासों के अतिरिक्त परशुराम शर्मा जी ने 'हारर' श्रेणी के भी उपन्यास लिखे हैं।
अगिया बेतान परशुराम शर्मा जी का एक हाॅरर उपन्यास है, जो अगिया बेताल नामक एक प्रेत पर आधारित है। शर्मा जी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था की उन्होंने एक अगिया बेताल जैसी घटना स्वयं देखी थी।
उपन्यास का नायक रोहताश एक डाॅक्टर है। वह बचपन से ही अपने चाचा के पास रहता है, क्योंकि उसे अपने पिता के कार्य से घृणा है। रोहताश का पिता 'साधु नाथ' एक तांत्रिक है। साधु नाथ तंत्र-मंत्र द्वारा सिद्धियाँ प्राप्त करना चाहता है। अपने पिता की मृत्यु पर वह कहता है- एक बुराई का अंत हो चुका था। सवेरे मेरे पिता की चिता शमशान घाट पर लग गई।
रोहताश को जब अपने पिता के मरने की खबर मिलती है तो वह अपने पिता का अंतिम संस्कार करने गाँव जाता है। रास्ते में उसे अगिया बेताल जैसी घटना के दर्शन होते हैं। गाँव में रोहताश से भी कम उम्र की उसकी सौतेली माँ होती है। लेकिन गाँव में उसके कुछ दुश्मन पहले से ही तैयार बैठे हैं। वहीं रोहतास को पता चलता है की उसकी पिता की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी।- मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पिता की मृत्यु स्वाभाविक मौत नहीं है, उसके पीछे कोई न कोई भेद अवश्य है। न जाने कौन सी बात मस्तिष्क में खटक रही थी।
- रोहताश अपने पिता से इतनी दूरी क्यों बना कर रखता है?
- साधु नाथ की हत्या किसने की?
- क्या था अगिया बेताल?
- रोहताश की सौतेली माँ कौन थी?
- आखिर कैसे डाक्टर रोहताश इन शैतानी ताकतों से टकरा पाया?
एक तरफ डाॅक्टर रोहताश है जो भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करता तो दूसरी तरफ उसका पिता इन तांत्रिक सिद्धियों के कारण ही जाना जाता था।
एक तरफ डॉक्टर रोहताश है तो दूसरी तरफ गढी (एक जगह, गढ या किला) के लोग है जो तांत्रिक सिद्धियों से गढी की रक्षा करने में यकीन रखते हैं। लेकिन बदली परिस्थितियों में स्वयं रोहताश भी तांत्रिक सिद्धियों का ज्ञाता बन जाता है और वह प्रतिशोध के रास्ते पर निकल पड़ता है। उसकी मददगार बनती है उसकी सौतेली माँ।
रोहताश का एक ही दुश्मन है- ठाकुर प्रताप जिसकी मैंने शक्ल भी नहीं देखी, क्या वह इतनी बड़ी ताकत है कि जिसकी चाहे जिंदगी उजाड़ दे।
मेरे सीने में बगावत थी।
मैं इसका बदला लूंगा।
बदला...।
यही से रोहताश का प्रतिशोध आरम्भ होता है। स्वयं रोहताश भी कहता है।
मेरा प्रतिशोध शुरू हो गया था। अब मैं कातिल था... क़ानून की निगाह में मुजरिम... पर समय कभी लौट कर नहीं आता। मेरे भीतर का मनुष्य तो कभी का मिट चुका था, अब मैं सिर्फ दरिंदा था, जिसके दिल में दया नाम की कोई वस्तु नहीं होती।
यह उपन्यास प्रथम पुरुष में है। कथानायक रोहताश स्वयं अपनी कहानी बताता है। इसलिए यह सहज ही पता चल जाता है की कथानायक को कुछ नहीं होगा।
प्रथम पुरुष में कथा होने के कारण कुछ प्रसंग जो की रोचक हो सकते थे लेकिन बन नहीं पाये क्योंकि स्वयं नायक चंद शब्दों में बात को समाप्त कर देता है।
मूलतः देखे तो यह उपन्यास रोहताश पर आधारित है न की अगिया बेताल पर। अगिया बेताल तो रोहताश का सहायक मात्र है और कई कगह पर तो वह स्वयं भी निष्क्रिय है।
उपन्यास की कहानी चाहे बदला प्रधान है लेकिन बदला पूर्ण होने पर भी कथा आगे जारी रहती है। अगर उपन्यास रोहताश के प्रतिशोध तक रहती तो ज्यादा अच्छा रहता क्योंकि बाद में उपन्यास का अंदाज बदल जाता है और वह मात्र रोहताश के जीवन पर आधारित हो जाती है।
उपन्यास के कुछ अंश उपन्यास को वीभत्स बना देते हैं। जैसे रोहताश का अपनी सौतेली माँ के प्रति व्यवहार।
निष्कर्ष-
परशुराम शर्मा जी द्वारा लिखा गया 'अगिया बेताल' नामक उपन्यास एक डरावनी कथा है। यह एक बदला प्रधान कहानी है, कैसे एक युवक तांत्रिक विधियों का जानकार होकर अपने दुश्मनों से प्रतिशोध लेता है।
यह दिलचस्प और पठनीय रचना है जो कहीं भी पाठक को निराश नहीं करेगी।
उपन्यास- अगिया बेताल
लेखक- परशुराम शर्मा
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- मुंबई
मूल्य-
अमेजन लिंक- अगिया बेताल
परशुराम शर्मा जी का साक्षात्कार- youtube link interview
परशुराम जी के अन्य उपन्यास - चिनगारियों का नाच
अगिया बेताल- परशुराम शर्मा |
।“जब आदमी का उद्देश्य एक ही रह जाता है और उसका जिन्दगी से कोई मोह नहीं रह जाता तो वह खुली किताब की तरह पढ़ा जा सकता
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