Friday 7 August 2020

363. चन्द्रमहल का खजाना- वेदप्रकाश कांबोज

बांग्लादेश के खजाने की कहानी
चन्द्रमहल का खजाना- वेदप्रकाश कांबोज

भारत 2006 से बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम तक

पिछली शाम बाग में टहलते हुये उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की थी-"हे भगवान, तुम कहीं हो तो किसी उपन्यास का नहीं तो कम से कम एक बढिया सी कहानी का प्लाॅट तो इस दिमाग में उतारने की कोशिश करो।"
और लो देखो चमत्कार। प्लाॅट दिमाग में उतरने की बजाय साक्षात उसके सामने उतर आया था।

       रात के अँधेरे में एक लड़की दौड़ी चली आ रही थी। उसके बदन पर कोई कपड़ा नहीं था। दो गुण्ड़े पिस्तौल से उसका पीछा कर रहे थे.........।

         क्या खूब हो जब हम ऐसा सोचे और हमारे सामने एक कहानी आ जाये। हम तो फिर उपन्यासकार बन जाये। क्योंकि हमारे उपन्यास ने नायक ने तो ऐसा ही सोचा और हो गया सत्य। लेकिन यह सत्य उसे बहुत सी कठिनाईयों में भी ले गया। सीधा भारत से बांग्लादेश वाया कोलकाता।
हम बात कर रहे हैं....चलो खुद नायक की ही सुन लेते हैं- मेरा नाम मानव वर्मा है। पेशे से जर्नलिस्ट हूँ और इस जगह पर कुछ दिन से एकांतवास कर रहा हूँ।
     लेकिन यह एकांतवास उसे नसीब न हुआ। उसके जीवन में आयी उस लड़की ने मानव वर्मा को विदेश यात्रा करवा दी। 

        उपन्यास कथानक चाहे सन् 2006 भारत से आरम्भ होता है लेकिन इसकी नीव तो सन् 1971 बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के समय ही रखी गयी थी।
सन् 1971
उस समय पूर्वी पाकिस्तान में जबरदस्त उथल पुथल मची हुयी थी। बरसों बाद पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने देश की जनता को अपने प्रतिनिधित्व चुनने का मौका दिया था।

         लेकिन यह मौका पाकिस्तान को पसंद 
हीं आया और शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया।

        पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश से धन लूट कर पाकिस्तान अपने यहाँ जमा कर रहा था। लेकिन वह धन अचानक ऐसे गायब हुआ की किसी को भी न मिला। धन लूटने वाले, उसे छुपाने वाले सब खत्म हो गये। 

        एक लंबा समय बीत गया। समय के साथ कहानियाँ बदल गयी। और इन्हीं कहानियों में कुछ स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं को बदनाम करने की चालें चली गयी। उनमें से एक चाल यह भी थी की सत्येन्द्र मुखर्जी का परिवार उस खजाने (धन) को लूटकर भारत भाग गया।
       यह तो उपन्यास की पृष्ठभूमि है। सत्येन्द्र मुखर्जी का पुत्र हीरेन इस दाग को अपने परिवार के ऊपर से खत्म करना चाहता है। लेकिन यह इतना आसान न था बांग्लादेश में भी कुछ लोग इस खजाने पर नजर टिकाये बैठे थे। खूब खोजा पर खजाना न मिला। तब कुछ बदमाश किस्म के लोग, 35 वर्ष पश्चात सत्येन मुखर्जी के परिवार को मारने पर उतर आये।
       हालांकि खजाने का हीरेन मुखर्जी को भी कुछ पता न था और वैसे भी उस घटना को 35 वर्ष बीत गये थे। लेकिन उसने अपने परिवार पर लगे दाग को साफ करने की ठान ही ली।
        उपन्यास का कथानक भारत और बांग्लादेश दोनों जगह समान चलता है। कहानी का रोमांच बांग्लादेश के दौरान होता है। जब 35 साल पुराने उस खजाने को खोजने की कोशिश की जाती है जिसके बारे किसी को कुछ पता नहीं सिर्फ एक अनुमान है की खजाना चन्द्रमहल में है। और उस अज्ञात खजाने को लूटने वाले पहले से ही तैयार बैठे हैं।
बांग्लादेश में बहुत से रोचक और हैरानीजनक घटनाएं घटित होती हैं। जो उपन्यास के रोमांच में वृद्धि करने में सक्षम है। उपन्यास सिर्फ खजाने की खोज तक ही सीमित नहीं और भी बहुत सी घटनाएं साथ में शामिल है। विशेष कर जिस ढंग से खजाने का एक-एक सूत्र मिलता है और उससे संबंधित घटनाएं बहुत रोचक हैं।

        उपन्यास की कहानी चाहे सामान्य सी नजर आती है की यह एक खजाने की खोज है। नहीं, यह कहानी ऊपर से चाहे सामान्य नजर आती है लेकिन इसके पीछे भी बहुत से राज छुपे हैं।
        बांग्लादेश में तो इस खजाने को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं और बहुत से लोग इस खजाने के लिए अपनी जान गवा बैठे। लेकिन वह खजान किसी को भी न मिला।
उपन्यास के कुछ विशेष पात्र-
सत्येन मुखर्जी- बांग्लादेश स्वतंत्रता संघर्ष का एक योद्धा
हरिन्द्रनाथ मुखर्जी- सत्येन का पुत्र
शुभांगी- हरिन्द्रनाथ की पुत्री
मानव वर्मा- एक पत्रकार
कैप्टन इरशाद
जफर खाँ-
कासिम और कमाल दोनों भाई बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दो साहसी वीर हैं। हालांकि उपन्यास में इनका किरदार बहुत कम है, लेकिन जितना भी समय इनको उपन्यास में मिला है ये दोनों भाई पाठकों के हृदय पर एक गहरी छाप और टीस छोड़ जाते हैं।
       सत्येन्द्र मुखर्जी वह पात्र है जो इस कहानी में अनुपस्थिति होने पर भी अंत तक अपनी उपस्थित दर्ज करवाता है। खजाने का रहस्य सिर्फ सत्येन्द्र मुखर्जी को ही पता होता है, और वे इस संसार से मुक्ति पा चुके हैं। लेकिन उनके शब्द उपस्थित हैं।
मानव वर्मा पेशे से एक पत्रकार है लेकिन साहसी और खोजी पत्रकार भी है।

वेदप्रकाश कांबोज जी की कुछ और उपन्यास भी बांग्लादेश से संबंधित है। 'कंकालों के बीच' बांग्लादेश स्वतंत्रता संघर्ष से संबंधित रचना है। आखिरी बाजी का एक पात्र 'हनीफ' भी बांग्लादेश स्वतंत्रता संघर्ष में भाग ले चुका है।
'चन्द्रहल का खजाना' एक रोचक उपन्यास है। जिसके कई पक्ष और कई कहानियाँ हैं। उपन्यास का आरम्भ एक अलग ही घटना से होता है जो बाद में मुख्य घटना से जुड़ जाती है। हां, आरम्भ बहुत ही रोमांचक है।
उपन्यास पठनीय है, एक बार पढकर देखें, भरपूर मनोरंजन होगा।

उपन्यास- चन्द्रमहल का खजाना
लेखक-    वेदप्रकाश कांबोज
प्रथम संस्करण- 2008
प्रकाशक- भारत श्री प्रकाशन, दिल्ली, 110032
थ्रिलर उपन्यास

एमेजन लिंक- चन्द्रमहल का खजाना


1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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