Tuesday 27 November 2018

154. The जिंदगी- अंकुर मिश्रा

 जिंदगी के विविध रंगों की कथा...

The जिंदगी- अंकुर मिश्रा कहानी संग्रह, रोचक, पठनीय। ---------- 
          कहानी सुनना या सुनाना मनुष्य का आदिकाल से मनोरंजन का साधन रहा है। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो मानव मन के हृदयतल को छू जाती हैं। कहानियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मनुष्य जीवन से संबंध रखती हैं। मनुष्य जीवन में हमेशा विविधता रही है, कभी सुख, कभी दुख तो कभी समभाव। जिंदगी के कई रंग होते हैं,‌ जिंदगी के इन रंगों से मिलकर बनी है अंकुर मिश्रा जी की किताब 'The जिंदगी। जैसे मनुष्य की जिंदगी में विविधता है, ठीक वैसे ही इस कहानी संग्रह की कहानियोों में विविधता मिलेगी। पहला रंग कहानी संग्रह के शीर्षक में ही देखा जा सकता है- The जिंदगी। 

             कहानी संग्रह को दो भाग में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग 'किस्से-कहानियाँ' जिसमें छह कहानियाँ है। द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' जिसमें दस लघुकथाएं शामिल की गयी हैं। लेकिन साथ में एक और प्रयोग भी शामिल है वह है प्रत्येक कहानी से पूर्व एक कविता। छह कहानियाँ है और सभी से पूर्व एक-एक कविता है जो कहानी के भाव को स्पष्ट करने की क्षमता रखती है।

              प्रथम कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' से पूर्व एक कविता है।

           'ये जो बैठे हुए हैं, 
           चुपचाप से, 
            सहते हैं, 
                       पर बोलते नहीं, 
                       पास कुछ रहता तो है, 
                       पर उगलते नहीं, ...................।
 'अभी जिंदा हूँ मैं' खत्म होती मानवीय संवेदना की कहानी है। भौतिकवादी युग में मनुष्य एक यंत्र होकर रह गया है। पूंजीवाद सभी पर हावी हो रहा है जिसके नीचे मनुष्य की संवेदना दब गयी है और आत्मसम्मान। आत्मसम्मान तो सब किताबी बातें हैं। (पृष्ठ-22) कहानी का नायक नीलेश भी एक ऐसी ही जिंदगी जीता है। जहाँ मनुष्य पर यांत्रिकता हावी है। ऐसी एक और कहानी है 'घुटन'। दोनों कहानियाँ बहुत ही अच्छी और मन को छूने वाली हैं।
             'लाल महत्वाकांक्षाएं' हमारे तेज रफ्तार जीवन की कहानी है। वह जीवन, जिसके लिए हम कमाते तो हैं, लेकिन उसके लिए हमारे समय नहीं है। है ना अजीब बात। बस ऐसी ही अजीब है यह कहानी। मनुष्य जीवन इतना यंत्र बन गया की उसके लिए मानवीय रिश्ते भी कोई महत्व नहीं रखते। हमारी बढती महत्वाकांक्षा एक दिन हमें ही लील जायेंगी। कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' का नायक कहता है "दरअसल पूंजीवाद हमको सोचने की इजाजत नहीं देता।(पृष्ठ-23)। वही स्थिति 'लाल महत्वाकांक्षाएं' के नायक मनीष की है। हम जो सोचते हैं वह बहुत ही निकृष्ट सोचते हैं। पूंजीवाद हमारी सोच के दायरे को बहुत छोटा कर रहा है। कहानी नायक मनीष भी अपनी पत्नी को इसी सोच से प्रेरित होकर कहता है -" कैरियर के इतने गोल्डन पीरियड में तुमने ऐसा डिसीजन कैसे ले लिया बच्चा पैदा करने का?"(पृष्ठ-33) 
               अब इससे आगे कहने/लिखने को कुछ भी नहीं रहा। अगर कुछ है तो यही, यह एक युद्ध है मानवता और स्वार्थ के बीच। (पृष्ठ-25) 
       
              मेरे मन को अगर किसी ने सर्वाधिक प्रभावित किया या जिस कहानी को पढकर आँखों से आंसू बह निकले वह कहानी है -आत्महत्या। दरअसल 'अभी जिंदा हूँ मैं', 'घुटन' और 'आत्महत्या' तीनों कहानियाँ का केन्द्र बिंदु एक ही है लेकिन उनका विस्तार अलग-अलग है। तीनों कहानियाँ के गर्भ में एक घुटन है जिससे बच कर कोई 'अभी जिंदा हूँ मैं' कहकर संतुष्टि प्राप्त करता है और कोई उस घुटन में दबकर आत्महत्या कर लेता है।
             कहानी 'आत्महत्या' तो वास्तव में राज‌न की मौत के बाद मनीषा के उस संघर्ष पूर्व जीवन की कथा है जहाँ पर वह निर्दोष होकर भी सजा भुगत रही है। यह कहा‌नी हमारे समाज के एक वर्ग का यथार्थवादी चित्रण करती है। ऐसा चित्रण जो पाठक के मर्म को अंदर तक सालता है। ऐसी ही एक और संवेदनशील कहानी है 'वो कुछ अजीब सा था'। हालांकि इस कथ्य पर बहुत सी कहानियाँ बहुत बार लिखी और पढी गयी हैं लेकिन अपने प्रस्तुतीकरण के कारण यह रचना भी अच्छी है।
          
                     "कोई इबादत कहता है,
                     तो कोई आदत कहता है, 
                     आंसुओं का सैलाब है,
                      दरिया-ए-आग है इश्क़। 
                                           पर जो भी है, 
                                            हल्की सी चुभन, 
                                            मीठी सी तड़प है, 
                                            रुसवाइयों में, 
                                           जीने का बहाना है इश्क़। 

                       ये पंक्तियाँ है कहानी 'इश्क़ ऐसा भी' के आरम्भ से पूर्व की। यह कहानी कथा शिल्प के आधार पर सभी कहानियों से अलग है। लेखक ने भाषा का प्रयोग कहानी के अनुरूप ही किया है जो कहानी को वास्तविकता प्रदान करता है। लेकिन कथ्य के स्तर पर कहा‌नी कोई प्रभावशाली नहीं लगी। कहानी में चार दोस्तों का प्रसंग भी कहानी से कोई संबंध नहीं रखता। 

                    इस कहानी संग्रह का द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' है। जिसमें दस लघुकथाएं' संकलित हैं। इस संग्रह की कहानियाँ जितनी अच्छी हैं लघुकथाएं उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी। मेरा लघुकथाओं के साथ काफी समय बीता है। लघुकथाएं अपने एक निश्चित दायरे से आगे नहीं बढ पायी। ज्यादातर लेखक कुछ निश्चित विषयों से आगे नहीं सोच पा रहे। 

                          प्रथम लघुकथा 'फिजुलखर्ची' एक संवेदनशील कथा है। जो वर्तमान संबंधों का यथार्थ चित्रण करती है। लघुकथा 'नारी' लघुकथा है या कविता। यह अभी समझना बाकी है। क्योंकि इस कथा में कथा तो नहीं है सिर्फ संवेदना है और वह भी काव्यनुमा।
                  'द्विसंवाद' हमारे दोहरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है। यह लघुकथा हर दूसरी-तीसरी लघुकथा पत्रिका पात्रों के नाम परिवर्तन के साथ मिल जायेगी। यही हाल 'बरसातें और भी हैं' का है। 
                     अन्य लघुकथाएं कुछ स्तर ठीक हैं और पठनीय हैं। मेरे विचार से लेखक धैर्य के साथ कुछ और कहानियों के साथ एक अच्छा कहानी संग्रह प्रकाशित करवाता तो ज्यादा अच्छा रहता। 
          कहानी संग्रह की भाषाशैली सामान्य पाठक को भी समझ आने वाली और रोचक है। कहीं किसी प्रकार की क्लिष्टता नहीं है। भाषा शैली का एक रोचक उदाहरण देखें। एक ढलकी हुई, खाँसती हुई, तानों के बोझ से झुकी हुई, शीत ऋतु की घनी अंधकारमय रात सी बूढी पर लंबी जिंदगी। (56) 

      प्रस्तुत कहानी संग्रह मानव मन को छू लेने वाला है। कहानियाँ पाठक प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं।
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पुस्तक- the जिंदगी (कहानी संग्रह) 
लेखक- अंकुर मिश्रा 
Email- mynameankur@mail.com
 प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- 
पृष्ठ-90 
मूल्य-100

Friday 23 November 2018

153. लव जिहाद-राम पुजारी

   जिहाद से लव की ओर...
लव जिहाद...एक चिड़िया- राम पुजारी,सामाजिक उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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लव जिहाद...एक चिड़िया उपन्यास मूलत एक प्रेम कथा है,वह प्रेम कथा जो समाज, धर्म, राजनीति के कई पहलुओं को उजागर करती है।
           उपन्यास प्रेम को आधार बना कर लिखा गया है। एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़के की प्रेम कथा है। दोनों काॅलेज में मिलते हैं, साहिल का काॅलेज में यह अंतिम साल था और सोनिया का ये पहला साल था। (पृष्ठ-03) फिर धीरे-धीरे दोनों में प्रेम प‌नपता है।  बहरहाल दोनों- साहिल और सोनिया, एक ही कश्ती में सवार थे- प्रेम की कश्ती। (पृष्ठ-35)
        कवि बोधा ने कहा है। -"यह प्रेम को पंथ कराल महां, तरवारि की धार पर धावनो है।"
        यह प्रेम का रास्ता बहुत विकट है, यह तो तलवार की धार पर चलने जैसा है और प्रेमी फिर भी चलते हैं। साहिल और सोनिया भी इस राह पर चलते हैं।
   दोनों ही आने वाले भविष्य से बेखबर, ख्वाबों की दुनियां में प्रेम की उड़ान भर रहे थे। (पृष्ठ-35)। लेकिन यह उड़ान सोनिया के परिवार को रास नहीं आयी।  सोनिया के परिवार को रास नहीं आयी लेकि‌न साहिल का तो किस्सा ही कुछ और था।
- एक तरफ जहां, सोनिया पर पाबंदियाँ लगाई जाने लगी और ये रोक-टोक दिन प्रतिदिन बढने लगी। (पृष्ठ-49)। वहीं साहिल के सिर पर एक खतरनाक तलवार लटक रही थी। हमसे गद्दारी की सजा सिर्फ मौत है-सिर्फ मौत। (पृष्ठ-259)
-       जो प्रेम की राह पर चलते हैं, उन्हें पता है यह राह बहुत कठिन है। लेकिन वो फिर भी चलते हैं। इसी राह पर सोनिया चली, घर और समाज की बंदिश तोड़ कर चली। लेकिन क्या साहिल इस राह पर चल पाया। यही प्रश्न  सोनिया ने साहिल से पूछा-मैंने तुम्हें अपना दिल दिया बस और बदले में तुम्हारा प्यार चाहती हूँ । बोलो क्या तुम मेरा साथ दोगे। -(पृष्ठ-196)
- क्या साहिल सोनिया का साथ दे पाया?
     इस प्रेम कथा के साथ एक और कथा है, वह है धार्मिक -साम्प्रदायिक। यह समाज में व्याप्त राजनीति के घिनौने रूप को पाठक के समक्ष लाती है। 
...पिछले कुछ दिनों से उत्तम प्रदेश के एक इलाके सलामतगंज की स्थिति कुछ असामान्य सी थी। दो धार्मिक गुटों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। (पृष्ठ-52)
          उपन्यास एक प्रेम कथा होने के साथ-साथ समाज में व्याप्त और भी बहुत सी बुराईयों का वर्णन करता है।
          समाज में औरत का क्या स्थान है और हम उसे कौनसा स्थान देते हैं। क्या हम औरत की इज्जत करते हैं। इस उपन्यास के संदर्भ में प्रकाशन ने भी लिखा है।- क्या हमारी बेटियों की ईज्जत का पैमाना इस बात पर निर्भर होगा कि वह लड़की किस जाति, धर्म और सम्प्रदाय की है। (प्रकाशक कथन)। औरत होने की पीड़ा रज्जो तो भुगत रही है पर वह चाहती है की उसकी बेटी सोनिया न भुगते।
- औरत होने की सजा रज्जो, इस घर में भुगत रही थी और सोनिया को ये सजा कभी भी भुगतनी पड़ सकती थी। (पृष्ठ--88)।
औरत होने की सजा नेहा और रोशनी को आखिर भुगतनी पड़ती है। आखिर कसूर क्या था दोनों का, प्रेम करना।
   उपन्यास में अंकुर का भी दोहरा व्यक्तिगत सामने आता है। वह स्वयं प्रेम करता है लेकिन अपनी बहन के प्रति सख्त है।- अपनी बहन को यूँ किसी लड़के के साथ हँसी-मजाक करना, अंकुर को रास न आया। (पृष्ठ-82)
     उपन्यास का मुख्य विषय 'लव जिहाद' है। क्या यह वास्तविक है, या काल्पनिक। क्या सच में कुछ ऐसा चल रहा है कि हमारी लड़कियों को 'दूसरे लोग' अपने प्यार में फंसा कर शादी करते हैं और इसके एवज में उन्हें रुपया-पैसा दिया जाता है। (पृष्ठ-203)।
            आखिर कौन है ये लोग?
            क्या है इनका मकसद?
            कौन फंसा लव जिहाद?
            क्या रहा परिणाम?
  इन प्रश्नों के उत्तर तो 'लव जिहाद...एक चिड़िया' उपन्यास पढकर ही मिल सकते हैं।
      भोपाल के पाठक मित्र बलविन्द्र सिंह ने इस उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा है की "जिसे पढते वक्त आपके भाव कुछ और होंगे, समाप्त करने के बाद कुछ और।"
          जैसे -जैसे कहानी आगे बढती है वैसे ही कहानी में रोचकता बढती जाती है। पाठक की जिस सोच के साथ उपन्यास आरम्भ होता है वह सोच पृष्ठ दर पृष्ठ बदलती रहती है। कभी सोच सकारात्मक होती है तो कभी नकारात्मक। एक अच्छे लेखक की यह खूबी है की वह कहानी में‌ निरंतर सस्पेंश बना कर रखे, उसमें रोचकता बना कर रखे। इस उपन्यास को पढते वक्त रोचकता और सस्पेंश बना रहता है।
कहानी का विस्तार  'जुलाई 2013, दिल्ली' से लेकर 'मई 2014 कश्मीर' से उत्तम प्रदेश(उत्तर प्रदेश) होते हुए बैंगलोर तक फैला है।
संवाद
         किसी भी कहानी के संवाद उसके महत्व को बढाने में सहायक होते हैं। संवाद पात्र और परिस्थितियों का वर्णन करने में सक्षम होते हैं।
     इस उपन्यास के संवाद भी बहुत अच्छे हैं।
- लड़की के किशोरावस्था से युवा होने तक का समय हर माता-पिता के लिए चिंता का विषय होता है।(पृष्ठ-49)
- जब ये दंगा होता है न। तो ये गाँव, इलाका‌ नहीं देखता- बस भड़कता जाता है और ऐसे में मारे जाते हैं-गरीब, बूढे, बच्चे और औरतें। (पृष्ठ-53)
- लड़कियों‌ का भी अजीब ही मसला है, खूबसूरत हो तो समाज में बैठे 'शिकारियों' का डर और खूबसूरत न हो तो लड़के वालों से शादी के इंकार का डर। (पृष्ठ-81)
नारी की इज्जत, किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति और वर्ण से ऊपर होती है। (पृष्ठ-175)
ये समाज की ऊँच-नीच, धर्म और राजनीति के ठेकेदार,...क्या उन्हें प्रेम के मायने भी मालूम हैं। (पृष्ठ-196)
- शादी के बाद लड़कियां अपनी किस्मत से समझौता करने की जिंदगी में आगे बढ जाती हैं। (पृष्ठ-204)
आजकल अपराधी तो रोशनी में ही ऐसे-ऐसे अपराध करके चुपचाप निकल जाते हैं जिनके बारे में पहले कभी शैतान सोच भी नहीं पाता था। (पृष्ठ-217)
- बसी हुयी दुनियां को उजाड़ने में एक पल नहीं लगता, मगर लाख कोशिशों के बाद भी उजड़ी हुई दुनियां अपने पहले वाले रुप में नहीं लौट पाती। (पृष्ठ-273)
उपन्यास में कमियाँ-
किसी रचना में कमियाँ रह जाना स्वाभाविक है। कुछ कमियाँ सामान्य हैं जिससे कहानी पर कोई असर नहीं पड़ता।
     - उपन्यास की सबसे बड़ी कमी‌ मेरी दृष्टि में उपन्यास का अतिविस्तार है। अगर लेखक इसमें कुछ कोशिश करता तो इस विस्तार को कम करके उपन्यास को कसावट दी जा सकती थी।
     
तभी बाहर से किसी ने झाँककर दरवाजे पर दस्तक दी।(पृष्ठ-)
    यहाँ 'झाँककर' गलत है, हालांकि यह टंकण में गलती हो कसती है।
- अंकुर उर्फ 'भैया जी' ऊँचे तबकों वालों के गाँव के स्थानीय नेता मलखान सिंह का बेटा था। (पृष्ठ-80)
सोनिया ग्राम सभा के मुखिया की बेटी थी। (पृष्ठ-175)
मलखान सिंह को कभी 'ग्राम मुखिया', कभी...ग्रामों का सरपंच और एक जगह MLA दिखाया गया है।
   ये सामान्य गलतियाँ है जो कथा को प्रभावित ‌नहीं करती।
निष्कर्ष-
           हमारे समाज में पनप रहे जातिवाद, धर्मगत भेदभाव आदि प्रासंगिक विषयों को आधार बना कर लिखा गया यह उपन्यास एक अच्छी रचना है। उपन्यास में वर्तमान में पनप रही बुराइयों का भी चित्रण है।  उपन्यास का अतिविस्तार कहानी को बहुत धीमा बना देता है, जो पाठक को नीरस बना देता है।
              उपन्यास एक बार पढा जा सकता है। मन को छू लेने वाली कथा।
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उपन्यास- लव जिहाल...एक चिड़िया
ISBN- 978-93-86276-55-1
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- गुल्ली बाबा
पृष्ठ- 280
मूल्य- 180
उपन्यास लिंक- Amazon link
समाचार पत्र में प्रकाशित समीक्षा- लव जिहाद उपन्यास

Friday 9 November 2018

152. स्वामी विवेकानंद- अपूर्वानंद

स्वामी विवेकानंद-संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
- स्वामी अपूर्वानंद
स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। इनके जन्म दिवस (12 जनवरी) को 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कम उम्र में स्वामी‌ जी ने जो मार्ग/उपदेश विश्व को दिया वह अतुलनीय है।
      प्रस्तुत पुस्तक स्वामी जी सम्पूर्ण जीवन की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत करती है। उनके जीवन का आदि -अंत इस पुस्तक में वर्णित है। स्वामी जी के जीवन को पढना बहुत रोचक और प्रेरणादायक है। उनके जीवन के संघर्ष मनुष्य को बहुत कुछ सिखाते हैं।
       उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने तो वह विवेकानंद जी के बारे में कहा था,-"नरेन्द्र मानो सहस्रकमल है। इतने सारे लोग यहाँ आते हैं, किंतु नरेन्द्र जैसा दूसरा कोई भी नहीं आया।"
          गुरु रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद (नरेंद्र) की दैवीय प्रतिभा को सबसे पहले पहचान‌ लिया था। उन्हीं के ही मार्गदर्शन में स्वामी जी आगे बढे और आगे 'स्वामी विवेकानंद  रामकृष्ण की वाणी के मूर्तरूप थे।(पृष्ठ-03)
          प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी जी के जीवन का काफी रोचक वर्णन मिलता है।  नरेन्द्र के अंतर में जो विराट पुरुष वास करता था, उसी की सक्रिय शक्ति के प्रभाव से उसमें बाल्यावस्था से ही महान तेज दिखायी देता था। (पृष्ठ-7)
             स्वामी विवेकानंद ने भारतवर्ष का भ्रमण भी किया और इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। स्वामी जी भारत की दशा देखकर बहुत परेशान होते थे। वे कहते थे-"मैंने समूचे भारत का भ्रमण किया है।....सर्वत्र ही आम जनता का भयावह दुःख-दैन्य मैंने अपनी आँखों से देखा। वह सब देखकर मैं व्याकुल हो उठता हूँ। "(पृष्ठ-37)
             गुरु रामकृष्ण जी के सोलह शिष्य थे जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया और यही वो शिष्य थे जो बाद में विवेकानंद जी के सहयोगी रहे।
          कुछ सीखने के उद्देश्य से स्वामी जी विदेश यात्रा पर भी गये और यही विदेश यात्रा ने संपूर्ण विश्व के सम्मुख भारत की पहचान बदल दी। विवेकानंद जी के लिए यह यात्रा प्रवास बहुत ही कठिन रहा। श्वेतांग युरोपीय न होने के कारण उन्हे पग-पग पर अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। (पृष्ठ-47)
            11 सितंबर 1883 ई. सोमवार धर्मजगत के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। ...इसी दिन प्राचीन भारत के वेदांत धर्म ने स्वामी विवेकानंद को अपना यंत्र बनाकर महान् धर्मसम्मेलन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।(पृष्ठ-48)
                     उन्होंने अपना संबोधन 'बहनों और भाईयों '  शब्दों से आरम्भ किया। स्वामी जी के संबोधन में विश्व भ्रातृत्व का बीज, विश्व मानवता की झंकार, वैदिक ऋषि की वाणी सभी कुछ निहित था। (पृष्ठ-49)। स्वामी जी के भाषण से आर्यधर्म, आर्यजाति और आर्य भूमि संसार की नजरों में पूजनीय हो गयी। (पृष्ठ-51)
          स्वामी जी की शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन का काम करती है। उनके विचार किसी धर्म, सभ्यता या देश के न होकर सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ हैं।
         
                    हमारे प्रिय प्रेरणा पुरुष भारतीय धर्म संस्कृति के ध्वजावाहक अपने पीछे हम युवा वर्ग पर एक जिम्मेदारी छोड़ कर इस नश्वर संसार से चले गये।
4 जुलाई 1902 ई. को स्वामी विवेकानंद की आत्मा देह-पिंजर से मुक्त होकर असीम में विलीन हो गयी। (पृष्ठ-78)
                        शान्ति:! शान्तिः! शान्तिः!!
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पुस्तक-   स्वामी विवेकानंद, संक्षिप्त जीवनी तथा उपदेश
लेखक-   स्वामी अपूर्वानंद
अनुवाद-  स्वामी वागीश्वरानंद, स्वामी विदेहात्मानंद
प्रकाशक- स्वामी ब्रह्मास्थानंद, धंतोली, नागपुर-440012
पृष्ठ-         90
मूल्य-       10₹
प्रथम प्रकाशन- 1984
प्रकाशन-    सत्रहवाँ-07.06.2013
 

Wednesday 7 November 2018

151. सिंगला मर्डर केस- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सिंगला मर्डर केस- सुरेन्द्र मोहन पाठक, मर्डर मिस्ट्री, मध्यम स्तर।

     - हिमेश सिंगला एक पचास वर्ष का गंजा व्यक्ति था जो विग लगाकर अपना बचाव करता था।
      - हिमेश सिंगला मामूली शक्ल- सूरत वाला व्यक्ति था लेकिन औरतों का रसिया था।
    - हिमेश सिंगला एक लम्पट प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था जो एक रात अपने घर के ड्राइंगरूम में मरा पड़ा था।


      हिमेश सिंगला की अस्वाभाविक मौत या हत्या के शक के दायरे में कई लोग आते हैं।
          हिमेश सिंगला का एक भाई है शैलेष सिंगला जिसके बुलावे पर ब्लास्ट समाचार पत्र के रिपाॅर्टर सुनील चक्रवर्ती का इस केस में हस्तक्षेप होता है। सुनील ही वह व्यक्ति है जो असली कातिल तक पहुंचता है।
    -  एक बड़े सम्पन्न परिवार का रोशन चिराग बताया जाता है। यानि कि फाईनांशल फैमिली बैकग्राउंड तो बढ़िया है ही, ऊपर से ब्रोकेज का उसका अपना बिजनेस भी ऐन फिट है। कैसानोवा जैसी छवि का आदमी था और सोसायटी के लिहाज से पेज थ्री पर्सनैलिटी माना जाता था। (पृष्ठ-16)
 और एक दिन इसी पर्सनैलिटी की कोई हत्या कर देता है।
वो एक सॊफाचेयर बैठा हुआ था जबकि किसी ने उसका भेजा उड़ा दिया था। (पृष्ठ-17)
         उसके घर में, उसी की गन से, उसी के सोफाचेयर पर किसी ने उसकी हत्या कर दी। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल इस केस की जाँच करता है और दूसरी तरफ पत्रकार सुनील चक्रवर्ती भी इस केस पर कार्यरत है। लेकिन दोनों का तरीका अलग-अलग है। पुलिस की जाँच में एक व्यक्ति स्वयं को कातिल के तौर पर पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करता है लेकिन वह सुनील को कातिल नजर नहीं आता।
 एक आदमी अपनी जुबानी कहता है की वो कातिल है, तुम कहते हो नहीं है। (पृष्ठ-189) 
           सुनील जो की एक खोजी पत्रकार है वह इस मर्डर केस पर कार्य करता है। इसके लिए वह समय-समय पर अपने मित्र रमाकांत और पुलिस विभाग से भी जानकारी एकत्र करता है। सुनील का अपना एक अलग तरीका है जो पुलिस विभाग से अलग है। इस मर्डर की छानबीन पुलिस भी करती है लेकिन सुनील चक्रवर्ती अपने तरीके से पुलिस से कुछ ज्यादा सक्रिय है लेकिन जहां उसे पुलिस की जरूरत होती है वह पुलिस की मदद लेता है।

      उपन्यास में एकमात्र रमाकांत ही ऐसा व्यक्ति है जो कुछ स्तर तक प्रभावित करता है स्वयं सुनील भी कोई अच्छा प्रभाव पाठक पर स्थापित नहीं कर पाता।
- यूथ क्लब के रमाकांत का अंदाज ही निराला है- "मैं कार पर यहाँ से निकला तो मोड़ पर ही एक्सीडेंट हो गया। फौरन मैंने महाराज को फोन खड़काया तो जानते हो क्या जवाब मिला?"
- "क्या?"
- कार कुंभ राशि थी और उसके लिए उस शनिवार की भविष्यवाणी थी कि गैराज से ..बाहर न निकाले।"
- "क्या कहने।"
- "दो राशियां क्लैश कर गयी इसलिए नतीजा उलट हुआ।" (पृष्ठ-163)
    रमाकांत का बोलने का अंदाज उपन्यास को कुछ हद तक संभालने में सक्षम है।
     उपन्यास मूलतः एक मर्डर मिस्ट्री है। जो एक कत्ल से आरम्भ होकर एक -एक संदिग्ध से होकर आगे बढती है। उपन्यास में या पात्रों में भी ज्यादा रोचकता या कहानी में कोई घूमाव नहीं बस एक जगह जब एक पात्रों स्वयं को कातिल के तौर पर प्रस्तुत करता है तो कुछ रोचकता बढती है।
         
- उपन्यास इतनी धीमी रफ्तार से आगे बढता है की पाठक उकता जाता है। कहानी का अनावश्यक विस्तार और धीमी गति और उस पर एक जैसे दृश्य उपन्यास के पाठन को बाधित करते हैं। पत्रकार सुनील के पास भी ज्यादा संभावनाएं नहीं है वह बस चंद पात्रों से प्रश्न-उत्तर करता रहता है जिससे सभी दृश्य एक जैसे नजर आते हैं।
     उपन्यास कहानी के स्तर पर अच्छी है लेकिन प्रस्तुतीकरण इसका अच्छा न हो सका
निष्कर्ष- 
                    प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे सुनील नामक पत्रकार हल करता है।   उपन्यास की रफ़्तार बहुत ही धीमी है। इसलिए उपन्यास ज्यादा दिलचस्प नहीं बन पाया। उपन्यास नीरस ज्यादा लगता है।
  उपन्यास को बस एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- सिंगला मर्डर केस
लेखक- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 263
मूल्य- 100₹



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असली अपराधी - सुरेन्द्र मोहन पाठक
थ्रिलर।

उपन्यास के साथ एक और कहानी उपलब्ध है लगभग पचास पृष्ठ की यह कहानी उपन्यास पर भारी पड़ती है। जो लगभग 250 पृष्ठ का उपन्यास न कर सका वह मनोरंजन 50 पृष्ठ की कहानी कर गयी।
        यह कहानी भी एक मर्डर मिस्ट्री है। तीन व्यापारिक दोस्त हैं,बंसल, माथुर और विनोद बाली।
        एक व्यापारिक बात पर माथुर और बाली की आपस में बहस होती है और उसी रात माथुर का कत्ल हो जाता है। कत्ल का इल्जाम आता है विनोद बाली पर।

              यह कहानी क्रिमिनालोजिस्ट विवेक आगाशे सीरिज की है। "मैं क्रिमिनालोजिस्ट हूँ। अब तक दिल्ली में फेमस हो चुकी 'क्राइम क्लब' का संचालक हूँ।" 
                'मुझे हर उस मर्डर केस में दिलचस्पी है जिसमें मुझे कोई पेच दिखाई दे।"
                और उस पेच के बल विवेक आगाशे इस केस को देखता है। अपने स्तर पर कार्यवाही करता है।
              विनोद बाली अपने पक्ष में जो भी सबूत इकटे करता है वे भी एक-एक कर गायब हो जाते हैं। विवेक आगाशे भी इस घटना हैरान है।
              कहानी में रहस्य शुरु से अंत तक जबरदस्त है। कहानी स्वयं में बांधने में सक्षम है।
              पाठक भी आश्चर्यचकित होता है की आखिर ये सब कैसे हो रहा है हालांकि पाठक भी यहाँ एक जासूस बनता‌नजर आता है लेकि‌न यह लेखक की प्रतिभा है की वो असली कातिल तक किसी जो भी पहुंचने नहीं देता।
                कहानी जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।

       


      

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...