Monday 25 June 2018

123. विधि का विधान- अनिल मोहन

चलती वैन से लूट की कथा।
विधि का विधान- अनिल मोहन, उपन्यास, रोचक, औसत।
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मध्य प्रदेश में पुरातत्व विश्लेषण विभाग को खुदाई के दरम्यान, तरबूज के साईज के दो हीरे मिले हैं। वह बेहद कीमती, अमूल्य, बेशकीमती हीरे हैं। विशेषज्ञों का कहना है की ऐसे कीमती, हीरे शायद दुनियां‌ में कहीं भी नहीं हैं। अब उनकी कीमत का तुम‌ लगा ही सकते हो। (पृष्ठ-31)
                    जब देवराज चौहान को इन हीरों‌ की खबर लगी तो उसने अपने मित्र जगमोहन के साथ मिलकर इन हीरों‌ को लूटने का सोचा।
                देवराज चौहान‌ ने कुछ लोगों को साथ लिया और हीरे लूट को लूटने का प्लान बनाया।
          अनिल मोहन जी का एक विशेष पात्र देवराज चौहान और उसका साथी जगमोहन डकैती के लिए प्रसिद्ध हैं।  उपन्यास 'विधि का विधान' में भी वे एक ऐसी डकैती का प्लान बनाते है, जबकि उनके पास कोई अच्छा प्लान भी नहीं है।

122. जगत और चंपा डकैत- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक

चंपा नामक डकैत की कहानी ?
जगत और चम्पा डकैत- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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     जासूस जगत को एक काम मिला। दिल्ली से एक कार मुंबई गोपाली के पास पहुंचाने का। यह भी एक संयोग था की दिल्ली की एक पत्रकार किरण भी मुंबई जा रही थी।
"अगर आप पसंद करें तो मैं साथ चलूं?"
"नहीं बिलकुल पसंद नहीं करुंगा।"
"क्यों?"
......
"......नंबर एक तो मेरे पांवों में चक्कर है, नंबर दो हर सफर में मेरे साथ कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है।" (पृष्ठ-15)
      और अनंतः दोनों एक साथ मुंबई को चल दिये।
            और गड़बड़ हुयी, रास्ते में हुयी।  रास्ते में एक शहर था सरूरपुर।
तीसरा पहर था, सामने बोर्ड लगा था- सरूरपुर नगरपालिका आपका स्वागत करती है। कोई साधारण सा शहर। (पृष्ठ-28)
         क्या हुआ उस शहर में। गड़बड़ हो गयी और जगत का सफर यहाँ से एक नयी दिशा को हो गया।
       शहर के इस तरफ सात किलोमीटर पर सरूरपुर किले और महल के खण्डहर हैं, तकरीबन दो सौ साल पुराने। अब वो जगह अजीब ही है, पहले वहाँ हुआ करता था बल्लू काने का चोर दल। इसी नगर में गांव से ब्याही आयी चम्पा। यूं तो उसका घरेलु नाम कल्लो है। अब वहां कल्लो अर्थात् चम्पा का डकैत गिरोह रहता है.........इस बार उसने रिश्ते में अपनी जेठानी का चार बरस का लङका उठवा लिया है, और एक लाख फिरौती की मांग की है। (पृष्ठ-29)
                 सरुरपुर पहुंचे जगत को जब इस घटना का पता चला तो उसने चम्पा डकैत से उस बच्चे को छुड़वा लेने का वायदा किया। यहाँ पर लगा की अवश्य ही चम्पा और जगत की लङाई होगी और उपन्यास कुछ रोचक बनेगा लेकिन जगत ने एक छोटी सी चालाकी से चम्पा को मूर्ख बना कर बच्चे को आजाद करवा लिया और स्वयं चम्पा को भी अपने साथ ग्वालियर ले चला।
             तब लगा की कहानी में कुछ रोचक मोङ आयेगा। मोङ तो अवश्य आता वह न तो रोचक था और न ही कहानी से संबंधित। ग्वालियर के रास्ते में‌ शिवपुरी में जगत को जासूस जगन और बंदूक सिंह मिल गये और  शेष कथा यही पर सिमट गयी।
     ‌‌‌‌शिवपुरी में अजब सिंह नाम का एक बहुत बङा स्मगलर है। जगन और बंदूक सिंह उसी को पकङने के लिए यहाँ उपस्थित हैं। ‌अपने  जासूस महोदय भी मुंबई और चम्पा डकैत को भूल कर अजब सिंह के अजीब से चक्कर में‌ फंस कर उपन्यास की कहानी को ही अजब -गजब बना देते हैं।
   ‌‌‌       अजब सिंह की एक सहयोगी है रसभरी। पहले रसभरी को पकङा जाता है और कोशिश होती है की मानवता के नाते रसभरी को कुछ नुकसान न हो। दूसरी तरफ अजब सिंह को भी मानवता के नाते तब तक गिरफ्तार नहीं करना जब तक उसकी बेटी की शादी न हो जाये।
      जगत भी चम्पा को अपने साथ इसीलिए चिपकाए हुए है की वह डकैत का जीवन छोङ कर एक अच्छे नागरिक का जीवन जीये।
      तीनों जासूस और इनके सहयोगी उपन्यास में‌ जासूस कम‌ और  समाज सेवक ज्यादा नजर आते हैं।
         उपन्यास ना कोई अच्छा अंत भी नहीं है। कहानी के स्तर पर भी उपन्यास अच्छा नहीं  है। पूरा उपन्यास 'कहीं की ईंट, कहीं‌ का रोङा' वाली पंक्ति को सार्थक करता नजर आता है।

  निष्कर्ष-    
प्रस्तुत उपन्यास किसी भी स्तर पर पठनीय नहीं है। कहानी का कहीं को तालमेल नहीं है और न ही कोई समापन। उपन्यास में कहीं कहानी है भी नहीं। यह उपन्यास पढना समय की बर्बादी है।
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उपन्यास- जगत और चम्पा डकैत
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- रजत प्रकाशन
पृष्ठ -235
मूल्य-20₹

Wednesday 13 June 2018

121. हिमालय की चीख- बसंत कश्यप

खजाने के चक्कर में......मौत की घाटी में।
हिमालय की चीख- बसंत कश्यप, हाॅरर-थ्रिलर, रोचक, पठनीय।
हिमालय सीरिज का प्रथम भाग।
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           कई वर्ष पूर्व एक उपन्यास पढा था 'डंके की चोट'। उपन्यास तिलिस्म, हाॅरर, जासूसी और थ्रिलर का इतना जबरदस्त मिश्रण था की मैं उसके आकर्षण से एक दशक बाद तक भी बाहर न निकल सका। उस उपन्यास का आगामी भाग भी लंबे समय पश्चात मिला था। और अब पता चला की डंके की चोट उपन्यास का भी एक पूर्व भाग है 'हिमालय की चीख'।
         ‌‌‌‌‌‌ चार भागों में बिखरी एक अदभुत दास्तान है बसंत कश्यप के ये उपन्यास। इन उपन्यासों की एक विशेषता ये भी है की कहानी एक उपन्यास में पूर्ण लगती है, लेकिन वह पूरी होती नहीं।
         बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' जहां पर खत्म होता है, इस उपन्यास के पात्र तक मर जाते हैं लेकिन कहानी यथावत और पहले से भी ज्यादा रोचकता लिए हुए आगे चलती है। यह क्रम डंके की चोट में भी है।
मुझे अभी तक इस कहानी के दो भागों के नाम याद हैं दो के नहीं और  लगभग चार भाग में से तीन भाग अलग-अलग समय पढ चुका हूँ।
                 अगर बात करें बसंत कश्यप के उपन्यास 'हिमालय की चीख' की तो यह स्वयं में पूर्ण होते हुए भी आगे कहानी के लिए बहुत स्पेश छोङ देता है और उसी पर आगे लगभग तीन पार्ट लिख गये हैं।
    नेशनल लाइब्रेरी एशिया के संग्रह में एक दुर्लभ पाण्डुलिपि है।‌ जो सन् 1820ई. में लिखी गयी थी। जिसमें विवरण है हिमालय क्षेत्र में एक दुर्लभ खजाने का। इसी खजाने की तलाश में कलकत्ता के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग वहां  जाते हैं।
          हिमालय का वह स्थान जहां वह दुर्लभ खजाना है उस जगह स्थित है मौत की घाटी और उस घाटी में‌ है लुईंग की आत्मा। खून की प्यासी आत्मा।
मौत की घाटी-
                       हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में एक निर्जन स्थान पर एक महल है और वह क्षेत्र कहलाता है मौत की घाटी। जहां खजाने की तलाश में हजारों लोग मारे गये। अब अब कलकत्ता के 14 लोग और पहुंचे हैं।
लुईग की आत्मा-
                         लुईंग की आत्मा जो की उस दुर्लभ खजाने की रक्षक है। जिसने मौत की घाटी में प्रवेश करने वाले किसी भी शख्स को जिंदा नहीं छोङा।
हा, अगर इस गुङिया को इंसान हाथों में‌ लेता है तो उसके खून की गर्मी से सोने के पत्थर में कैद यह आत्मा बाहर हो जायेगी। अपने विषाक्त प्रभाव से यह सोने को भी राख बनाकर अपने छूने वाले इंसान के जिस्म में प्रवेश कर जायेगी। इसके अलावा अगर इस गुङिया के ऊपर ताजे खून की बूंद गिर जाती है तो यह सोने के पत्थर को राख में बदल कर बाहर आ जायेगी।"(पृष्ठ-190-91)
      और एक जब लुइंग की आत्मा इस गुङिया से बाहर आयी तो इसने वो कहर मचाया जिसका वर्णन भी मुश्किल है।  एक -एक कर सारे खजाने लालची मारे गये।
    
  आलम खान जीता-जागता पिशाच का रूप धारण कर चुका था। उसके सिर के बाल एकदम जंगली चूहे के ऊपर के कांटों की भांति खङे थे।  उसके खुले मुँह के ऊपर के दो दांत बाहर निकल चुके थे, जिनसे फटे मसूढों से रिसकर खुन टपक रहा था।  उसके गालों की चमङी फट चुकी थी, जहां से मांस बाहर की तरफ उबल रहा था। आँखें‌ कटोरियों से बाहर निकलती प्रतीत हो रही थी.....
...उसके हलक से भयानक गुर्राहटें उबल रही थी, जिससे समूचे गलियारे का वातावरण गूंज रहा था। (पृष्ठ-)
    लुईंग की आत्मा वह रक्तबीज थी जिसे छूने वाला पिशाच का रुप धारण कर लेता था और वह बहुत भी भयानक मौत मरता था। 
                             उपन्यास के एक-एक पात्र मौत के घाट उतरता चला गया। बची तो सिर्फ एक ज्योत्सना श्राफ। ज्योत्सना श्राफ ही एक मात्र वह पात्र है जो मौत के मुँह से जिंदा लौट आती है। लेकिन वह भी हिमालय ‌की बेटी बन कर वहीं रह जाती है।
                 ‌  लेकिन इतना रक्तपात होने के बाद भी लोगों का खजाने के प्रति मोह कम नहीं होता और मौत की घाटी में कुछ और लोग भी पहुंचते हैं।(डंके की चोट)
          उपन्यास बहुत ही खौफनाक है जो पाठक को पृष्ठ दर पृष्ठ बदलने को मजबूर करता है। कहानी बहुत ही रोचक है।
               आखिर वह दुर्लभ खजा‌ना है क्या और कौन लोग हैं जो उस खजाने के लिए अपनी जान तक देने को भी तैयार हैं। ऐसे लोगों की दिलचस्प गाथा है 'हिमालय की चीख'।
   
निष्कर्ष-
         बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' बहुत ही रोचक उपन्यास है। इसकी कहानी पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है।  
           हालांकि इस उपन्यास की कथा इस में‌ पूर्ण होती प्रतीत होती है। लेकिन कहानी का यहीं समापन नहीं है। 'हिमालय की चीख' तो इस महागाथा की‌ भूमिका‌ मात्र कह सकते हैं।
         यह श्रृंखला बहुत ही रोचक और पठनीय है। इसमें तिलस्म, हाॅरर, जासूसी, हास्य आदि का समुचित मिश्रण है जो पाठक को वर्षों तक याद रहेगा।         
प्रथम भाग-    हिमालय की चीख
द्वितीय भाग-  डंके की चोट ( समीक्षा पढने के लिए शीर्षक पर  क्लिक करें)
तृतीय भाग-    तिरंगा तेरे हिमालय का (अप्रकाशित)
चतुर्थ भाग-    द लीजैण्ड आॅफ भारता
यह उपन्यास पढने के लिए मित्र विक्रम चौहान से मिली।
इस सीरिज पर 'बेव सीरिज' की चर्चा चल रहे है। (लेखक मतानुसार)
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उपन्यास- हिमालय की चीख
लेखक - बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 202


Monday 11 June 2018

120. मौत के चेहरे- चंदर

लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में चंदर नाम काफी चर्चित रहा है। चर्चित होने के भी दो कारण है एक तो इनके जासूसी उपन्यास और द्वितीय कारण है चंदर के संयुक्त नाम से एक दम्पति उपन्यास लिखते थे। श्रीमती चन्द्रकांता जैन और आनंदप्रकाश जैन।
मेरे विचार से इस तरह के दम्पति द्वारा लिखे जाने वाला यह प्रथम प्रयास है।
अब चर्चा करते हैं उपन्यास 'मौत के चेहरे' की। यह एक थ्रिलर उपन्यास है और इसके नायक हैं भोलाशंकर जो भारतीय जासूसी संस्था 'स्वीप' के लिए कार्य करते हैं। यह भोलाशंकर सीरीज का सातवां उपन्यास है।
'इण्डियन एयरलाइंस के कैरेवल विमान को नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर अभी उतरने में पन्द्रह मिनिट शेष थे। (उपन्यास की प्रथम पंक्तियाँ)
      इस विमान में प्रसिद्ध जासूस भोलाशंकर अपनी महिला मित्र सविता के साथ उपस्थित था। इस विमान के अंदर के घटना घटित होती है। प्रथम दृष्टया वह एक सामान्य सी घटना नजर आती है लेकिन जैसे ही भोलाशंकर इसमें प्रवेश करता है तो वह घटना भारत के विरूद्ध एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र साबित होती है।
स्वीप संस्था द्वारा भोलाशंकर को इस केस की खोजबीन में नियुक्त किया जाता है।
        मेरे द्वारा पढा गया यह चंदर का प्रथम उपन्यास है।‌ लोकप्रिय जासूसी साहित्य में चंदर का एक समय विशेष नाम रहा है। जैसा सुना जाता है इनके उपन्यास और उपन्यास पात्र मौलिक होते थे। कहानी के स्तर पर भी उपन्यास अच्छे थे। चंदर उस दौर के लेखक हैं जब लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का गढ इलाहाबाद होता था।
'मौत के चेहरे' उपन्यास की कहानी 'भाभा एटमिक रिसर्च सेंटर' के महत्वपूर्ण कागजात चोरी होने की है। उन कागजों के पीछे चीनी जासूस और अंतरराष्ट्रीय अपराधी संगठन 'टौंग' लगा हुआ है।
       एक घटना के तहत के कागज गायब हो जाते हैं। अब भारतीय जासूसी संस्था स्वीप भोलाशंकर को इन कगजों को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपती है।
         हालांकि यह थ्रिलर उपन्यास इसका घटनाक्रम तो उपन्यास के आरम्भ के पांच-दस पृष्ठों पर पता चल जाता है। शेष जो रहता है वह है एक त्रिकोणीय श्रृंखला। एक तरफ खतरनाक अपराधी संगठन टौंग है, एक तरफ चीनी जासूस हैं और एक तरफ भारतीय जासूस भोलाशंकर।
        अब देखना यह है की उन कागजों को चुराना किसने है, आगे वह कागज किसके पास पहुंचते हैं और भोलाशंकर कहां तक कामयाब होता है।
उपन्यास में 'टौंग दल' के सदस्यों को काफी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है। विशेष कर उनकी हत्या करने की कार्यशैली‌।


उपन्यास की एक विशेष कमी और विशेषता यह लगी की उपन्यास का अधिकांश घटनाक्रम जहाज में ही चलता है। पहला घटनाक्रम जहाँ जहाज में कागज गायब होते हैं वहीं द्वितीय घटनाक्रम भी जहाज में ही होता है। लगभग अस्सी फिसदी उपन्यास जहाज में चलता है।
         कहानी के स्तर एक बार पढे जाने वाला उपन्यास है। एक ही जगह और चुनिंदा पात्रों के आधारित उपन्यास में रोचकता कायम नहीं हो पाती। लेखक ने कुछ प्रयोग किये हैं लेकिन उनका कहीं उपयोग कहीं नजर नहीं आता।

यह एक मध्यम स्तर का थ्रिलर उपन्यास है। पढते वक्त न तो ज्यादा उत्सुकता रहेगी और न ही निराशा होगी। उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास- मौत के चेहरे
लेखक- चंदर
प्रकाशक- कुसुम प्रकाशन, इलाहाबाद
पृष्ठ- 160

119. एक्सीडेंट- एक रहस्य कथा- अनुराग कुमार जीनियस

रहस्य से भरी एक कहानी....
एक्सीडेंट-एक रहस्य कथा- अनुराग कुमार जीनियस, सस्पेंश, रोचक।
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  भानुप्रताप के छोटे बेटे ऋषभ की सङक दुर्घटना में मौत हो गयी। लाश परिवार को सौंप दी गयी और उसका विधिवत अंतिम संस्कार कर दिया गया। पर अगले ही दिन उनके सामने जीता जागता ऋषभ वापस आ खङा हुआ, जिसे इस दुर्घटना के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
वह असली ऋषभ था या बहुरुपिया, ये गुत्थी तेज तर्रार पुलिस इंस्पेक्टर दुर्गेश से भी नहीं सुलझ पाई।
  एक अनोखी कहानी, जिसका रहस्य अंत पढे बगैर नहीं जाना जा सकता। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
      
         युवा उपन्यासकार अनुराग कुमार जीनियस का ' एक लाश का चक्कर' के बाद यह दूसरा उपन्यास है। जहाँ उनका प्रथम उपन्यास इतनी गहरी कहानी लिये हुये था, लेकि‌न पात्र और पृष्ठ संख्या की अधिकता के कारण रोचकता बरकरार न रख पाया वहीं इनका द्वितीय उपन्यास 'एक्सीडेंट- एक रहस्य कथा' वास्तव में रहस्य से भरपूर है। लेखक ने कहानी पर पूरा नियंत्रण रखा है। अनावश्यक पात्र और कहानी के अनावश्यक विस्तार से बचाव रखा है।
    
               उपन्यास की कहानी युवा ऋषभ के एक्सीडेंट से होती है, उसे मृत मान कर उसकी कथित लाश का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। लेकिन इन सबसे अनजान ऋषभ आगामी दिन घर लौट आता है।
'य..ये ..ये  सब क्या है? मेरी तस्वीर पर माला क्यों टांगी गयी है? ऐसा तो तब होता है जब कोई मर जाता है।"
"तुमने बिलकुल ठीक कहा। किसी की तस्वीर पर माला तभी टांगी जाती है जब वह मर जाता है।"- दुर्गेश ने कौतुहल को मन में दबाकर कहा।
" फ...फिर मेरी तस्वीर पर माला क्यों टांगी गयी है?"- वह गुस्से में घरवालों पर नजरें गङाते हुए बोला।
"क्योंकि तुम मर गये थे?"
"क्या! क्या कहा?...मैं मर गया था। ऋषभ उछल पङा।  (पृष्ठ-15)
        
- आजकल देश में लङके-लङकियों की औसत लंबाई में भारी कमी आयी है और इस तरफ किसी का  ज्यादा - कि ऐसा क्यों हो रहा है-  ध्यान भी खींचा नहीं जान पङता। एक दिन ऐसा भारत दूसरा चीन - लंबाई के मामले में - न बन जाए। (पृष्ठ-109)
         लेखक ने कम शब्दों में एक गंभीर बात को रेखांकित किया है। आजकल लंबाई के साथ-साथ असमय बाल सफेद होना, नजर कमजोर होना जैसे कई रोग प्रचलन में हैं लेकिन इस तरफ कोई भी ध्यान नहीं देना चाहता। हम भौतिकता की दौङ में इतना खो गये की स्वयं को ही भूल गये।
  ‌लेखक को एक विशेष विषय पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए धन्यवाद।
       उपन्यास में बहुत सी जगह रोचक प्रसंग हैं जो पाठक को सहज की आकृष्ट कर लेते हैं। विशेष कर लाली और इंस्पेक्टर दुर्गेश के रोचक दृश्य पाठक को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
उपन्यास में शाब्दिक गलतियाँ-
     हालांकि यह सामान्य गलतियाँ है इन्हें नजरांदाज किया जा सकता है।
शाम को थाने से फोन आया कि मिट्टी थाने आ गयी।(पृष्ठ- 12)
- मिट्टी शब्द सामान्य ग्रामीण परिवेश में प्रयुक्त होता है। यहाँ लाश/शव शब्द ज्यादा उपयोगी था।
- लाली ने पल्लो ठीक कर लिया था। (पृष्ठ-17)
-  यहाँ पल्ला शब्द आना था।
- दरवाजा आॅटोमेटिक था अपने आप उडक गया था।(पृष्ठ-36)
- आपकी बात सही है ऋषभ से शादी की बात करी गयी है...।(पृष्ठ-40)
- निशान। ऋषभ की जांघ पर कटे का निशान है। (पृष्ठ- 67)
उपन्यास में जांघ और नितंब शब्द में‌ लेखक बहुत ज्यादा असमंजस में‌ नजर आता है। कहीं जांघ शब्द लिखता है, तो कहीं जांघ को नितंब। एक बार नहीं कई बार।
          अनुराग कुमार जीनियस का प्रस्तुत उपन्यास 'एक्सीडेंट-एक रहस्य कथा' वास्तव में उतना जबरदस्त रहस्य लिए हुए है की पाठक क्लाइमैक्स पर चौंकता है, बुरी तरह से चौंकता है। 
                 पाठक उपन्यास पढते वक्त स्वयं एक जासूस होता है, वह भी उपन्यास के अंत से पहले असली अपराधी तक पहुंचना चाहता है लेकिन इस उपन्यास में पाठक बहुत कोशिश बाद भी असली अपराधी तक नहीं पहुंच पाता।
          कभी-कभी, कहीं-कहीं लगता है की जैसे ऋषभ एक बहरुपिया है तो कहीं -कहीं लगता है उसके साथ कोई हादसा पेश आया है। ऋषभ का परिवार और पुलिस तक भी इस घटना को समझने में नाकाम रहती है।
       एक समय ऐसा आता है जब विश्वास हो जाता है की ऋषभ सही है कोई बहरुपियां नहीं है लेकिन अगले ही पल ऋषभ कोई न कोई ऐसी गलती कर जाता है की वह एक फ्राॅड लगने लगता है।
           अब सत्यता क्या है यह तो उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है। लेकिन इतना तय है की पाठक जब क्लाईमैक्स पढेगा तो स्वयं आश्चर्यचकित रह जायेगा। उपन्यास अंतिम चरण में पहुंच कर बहुत ज्यादा घुमाव लेती है।
निष्कर्ष-
     प्रस्तुत उपन्यास बहुत रोचक और पठनीय है। इसकी कहानी वास्तव में एक रहस्य लिए हुये है और जब यह रहस्य खुलता है तो पाठक चंभित रह जाता है।
       उपन्यास पाठक का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है।
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उपन्यास- एक्सीडेंट- एक रहस्य कथा।
लेखक- अनुराग कुमार जीनियस
संस्करण- प्रथम, जनवरी-2018
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स-
पृष्ठ-205
मूल्य- 150₹
संपर्क-
लेखक- anuragkumargenius5@gmail.com
प्रकाशक- soorajpocketbooks@gmail.com

Friday 8 June 2018

118. सुनील रैप काण्ड-

एक अनोखा रैप काण्ड
सुनील रैप काण्ड- , जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय, लघु कलेवर।
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सुनील कोठारी‌ ने टैक्सी रुकवाई।
वह टैक्सी से नीचे उतरा और ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर की ओर बढ गया।
"कितने पैसे?"- उसने पूछा।
" साहब...यहाँ? "- ड्राइवर ने हैरानी ने हैरानी से उसके चेहरे की ओर देखा था-" इस निर्जन तट पर क्या करेंगे आप?"
सुनील कोठारी के होंठों पर क्षीण सी मुस्कान उभरी।
"थोङी देर टहलूंगा ड्राइवर।"
"इतनी रात गए!"
"चांदनी रात का आनंद रात गए ही लिया जा सकता है।"- सुनील के होंठों पर मुस्कान गहरी हो गयी थी- " और फिर अभी तो शाम विदा ही हुई है।"

               निर्जन सागर किनारे रात को घूमने गये सुनील कोठारी की अगले दिन लाश मिली।
आखिर क्या वजह रही थी सुनील कोठारी की मौत की। इंस्पेक्टर तेंदुलकर और खोजी पत्रकार अमर भी इस केस में उलझ कर रह गये।
"इतनी मामूली नोच-खसोट से 'हष्ट-पुष्ट लंबे तगङे' युवक की मौत तो दूर, बेहोश भी नहीं किया जा सकता।"
"ओह!"- तेंदुलकर के मुँह से निकला था।
" और ये युवक मर गया।"- अमर आहिस्ता से बोला-"जबकि इसके जिस्म पर कोई भी ऐसा जख्म नहीं, जो जानलेवा हो सके।"

        और जब सुनील कोठारी की हत्या के कारण का रहस्य खुला तो पूरा शहर चौंक उठा।
- क्या वजह थी सुनील कौठारी की मौत की?
- निर्जन तट पर सुनील कौठारी क्यों घूमने गया?
- ऐसा क्या कारण था मौत का की  पूरा शहर चौंक उठा?

ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर इस लघु उपन्यास को पढकर ही जाने जा सकते हैं।
   उपन्यास चाहे कलेवर में छोटा है पर है बहुत ही रोचक।

उपन्यास के संवाद रोचक और उपन्यास के पात्रों के अनुकूल हैं। कुछ संवाद पठनीय और स्मरणीय हैं।
 
- कानून की नजर में अमीर की गर्दन भी उतनी ही नरम हुआ करती है जितनी की गरीब की।

- जो बांह-भर चूङियां पहनाने की हिम्मत रखता हो वह चुटकी भर सिंदूर का बंदोबस्त कर ही लेगा।

- बच्चों को प्यार करने का अर्थ ये नहीं होता की उन्हें अपराध करने की छूट दे दी जाये।
   

यह उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास 'रहस्य के बीच' के पीछे दिया गया है। उपन्यास 'रहस्य के बीच' स्वयं एक लघु उपन्यास है इसलिए पृष्ठ संख्या बढाने के लिए दूसरा लघु उपन्यास 'सुनील रैप काण्ड' इसमें और जोङा गया। प्रकाशक ने दूसरे उपन्यास के लेखक का कहीं‌ कोई वर्णन नहीं किया। हालांकि ऐसा अन्यत्र कभी देखने को नहीं मिला की लेखक का नाम‌ न दिया गया हो यहाँ पता नहीं किस कारण से लेखक का नाम‌ नहीं छापा गया।

निष्कर्ष- 
उपन्यास चाहे लघु कलेवर में है पर है अच्छा और रोचक। पाठक को आकृष्ट करने में सक्षम है। कहानी और प्रस्तुतीकरण शानदार है।

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उपन्यास- सुनील रैप काण्ड
लेखक- .............(कहीं कोई नाम नहीं दिया गया।)
प्रकाशन- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली

Friday 1 June 2018

117. रहस्य के बीच- वेदप्रकाश शर्मा

आखिर क्या था रहस्य के बीच.... भूत-प्रेत या षड्यंत्र
रहस्य के बीच-वेदप्रकाश शर्मा, हाॅरर-थ्रिलर, पठनीय।
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       वेदप्रकाश शर्मा मेरे प्रिय उपन्यास लेखकों में से एक हैं। वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास पढने की मेरी शुरुआत 'रहस्य के बीच' उपन्यास से हुयी थी, और अब एक लंबे समय पश्चात यह उपन्यास पुन: पढने को मिला। इस उपन्यास को पढकर आज भी उतना ही रोमांचित हुआ जितना प्रथम बार हुआ था।
             यह उपन्यास रहस्य के एक ऐसे जाल‌ में उलझा है जिसमें विजय जैसा जासूस भी उलझ कर रह गया।
    
        उपन्यास की कहानी आरम्भ होती है-
सन् 1955 की 5  जनवरी
पांच जनवरी की कङकङाती हुई सर्द स्याह रात-
गर्जना करते हुए बादल, प्रकोप दिखाते हुए मेघ, चमचमाती हुई बिजली और तीव्र हवा के झक्कङ इस स्याह रात को‌ मौत सी भयंकर बना रहे थे।
बात है श्मशानगढ की-
श्मशानगढ-
एक ऐसी स्टेट जो पूर्णतया अपने नाम के समान गुणी थी, अर्थात् श्मशान से भी अधिक भयानक। वहां रात का आगमन होते ही मानों साक्षात मौत सङक पर नृत्य करती थी। (उपन्यास का प्रथम पृष्ठ, पृष्ठ संख्या-07)
             यह कहानी आरम्भ होती है श्मशानगढ से। जहाँ के आत्मा का निवास बताया जाता है।
श्मशानगढ के पूर्व राजा चन्द्रभान सिंह के पुत्र राजीव इस रहस्य के समाधान हेतु जासूस विजय को आमंत्रित करते हैं। लेकिन विजय के हवेली पहुँचते ही कत्ल का वह खेल शुरु होता है जिसे न तो विजय रोक पाता है और न ही उसका शिष्य रहमान( बांग्लादेश का जासूस)।
          दोनों का स्वागत भी बहुत गजब तरीके से होता है।
वास्तव में धीरे-धीरे रात की यह नीरवता -यह सन्नाटा- यह निस्तब्धता भंग होती जा रही थी। ऐसा लगता था जैसे कोई खिलखिला रहा है, जोर-जोर से खिलखिला रहा है। वास्तव में वह खिलखिलाहट बङी ही भयानक थी। लगता था कोई मुर्दा झुंझला रहा है। यह खिलखिलाहट सीधे दिल‌ में‌ उतरती चली जाती थी।
उन दोनों के रोंगटे खङे हो गये। (पृष्ठ-26,27)
   और वहाँ जो रहमान ने देख वह तो बहुत भयानक था। रहमान जैसा जासूस भी दहल उठा।
उसने देखा-
देखकर भय से पीछे हट गया।
उसके चेहरे के ठीक सामने - सिर्फ एक फुट की दूरी पर-
एक चेहरा उभरा था, एक जिस्म‌ उभरा था।
एक‌ पैंतीस वर्ष की युवती का जिस्म।
वृक्ष पर लटका उलटा जिस्म।
वह कांपकर पीछे हट गया।
यह भयानक आवाजें‌ उसी के मुहँ से निकल रही थी।
बङा ही खौफनाक था यह जिस्म।
युवती का शरीर पेङ पर उलटा लटका हुआ था। लेकिन ...लेकिन सबसे खौफनाक बात यह थी कि उस युवती के धङ और गर्दन के ऊपर का भाग पृथक था- बिलकुल पृथक, हवा में‌ लहराता हुआ- उसके धङ के ऊपर के भाग से लहू बह रहा था- गर्दन से भी लहू टपक रहा था।
उफ!
कितना खतरनाक था इस युवती का हवा में‌ लटका चेहरा। (पृष्ठ-33)

- आखिर वह काला साया किस चक्कर में था?
- वह सफेदपोश कमसिन लङकी कौन थी?
- पीपल के वृक्ष पर नजर आने वाली वह युवती कौन थी?
- वह सफेद चौंगे वाला व्यक्ति कौन था जिसकी लाश अपने स्थान से गायब हो गयी?
- गोल्डन नकाबपोश कौन है?
- क्या ये आत्मा/भूतप्रेत का चक्कर है या किसी का षड्यंत्र?
- आखिर श्मशानगढ में क्या षड्यंत्र रचा जा रहा है?
- कौन लोग हैं इस रहस्य के पीछे?
          इन सभी प्रश्नों के उत्तर तो वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'रहस्य के बीच' को पढकर ही जाने जा सकते हैं। और रहस्य भी धूंध की तरह फैला है जिसके आर-पार देखना संभव नहीं है। विजय-रहमान जैसे खतरनाक जासूस भी भाग खङे होते हैं।
-"गुरु, भागो, बिना पैर के मुकाबला नहीं हो सकता "- सहसा रहमान चीखा तथा तेजी के साथ भागा। विजय को भी न जाने क्या सूझा कि वह भी दुम‌ दबाकर वहाँ से भाग लिया। (पृष्ठ-55)

उपन्यास हाॅरर-थ्रिलर है तो इसमें कोई ज्यादा सार्थक संवाद की संभावना नहीं देखी जा सकती, लेकिन यह भी संभव नहीं की उपन्यास में अच्छे कथन न हो।
कुछ अच्छे संवाद पाठक को हमेशा याद रहते।
जैसे-
"प्यार भी दो प्रकार का होता है। एक तो होता है किसी से सच्चा प्यार, दिली प्रेम और दूसरा होता है झूठा यानि किसी के पैसे इत्यादि से प्यार। (पृष्ठ-62)

         उपन्यास का कथानक कोई ज्यादा विस्तृत नहीं है। लेकिन घटनाक्रम बहुत तीव्र गति से घटता है। एक के बाद घटनाएं घटित होती चली जाती हैं। पाठक भी इस रहस्य के बीच भटक सा जाता है की आखिर ये सब कैसे हो रहा है।‌ कभी वह आत्मा/भूत प्रेत के अस्तित्व पर विश्वास करता है तो कभी वह इन्हें नकार भी देता है। क्योंकि घटनाएं ही ऐसी घटित होती हैं।
  भुतों के अस्तित्व पर विजय रहमान को कहता है। -" तुम‌ बंगालियों की खोपडियों‌ का दिवाला तो निश्चित रूप से पहले ही निकल चुका है जो बीसवीं सदी में भूतों पर विश्वास करते हो।"(पृष्ठ-19)
    लेकिन कुछ घटनाएं स्वयं विजय का दिमाग घूमा देती हैं।  
तभी विजय गजब की फुर्ती के साथ उछला तथा उसने चुङैल के हवा में उलटे लटके जिस्म पर जंप लगा दी लेकिन आश्चर्य यह था कि वह चुङैल के शरीर के बीच से गुजर गया था दूसरी तरफ जाकर मुँह के बल धरती पर गिरा। (पृष्ठ-49)
      अब क्या सत्य है और क्या असत्य,  क्या इस लौकिक का है और क्या पारलौकिक यह सब तो रहस्य के बीच उपन्यास को पढकर जाना जा सकता है।
     

निष्कर्ष-
      वेदप्रकाश शर्मा जी को सस्पेंश का बादशाह कहा जाता है। उनके उपन्यास होते भी सस्पेंश पर आधारित हैं। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ यही सोचता चला जाता है की आखिर आगे क्या होगा।
        प्रस्तुत उपन्यास का तो नाम ही 'रहस्य के बीच' है तो यह है इसमें जबरदस्त रहस्य होगा। उपन्यास प्रथम पृष्ठ से ही जबरदस्त सस्पेंश पैदा करती है जो अंत तक बना रहता है।
     ‌उपन्यास रोचक और पठनीय है। उपन्यास के पृष्ठ कम है इसलिए एक बैठक में आसानी से पढा जा सकता है।

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उपन्यास-  रहस्य के बीच
लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- राजा पाकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 100
मूल्य-15₹ (तात्कालिक)

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