Wednesday 18 October 2023

576. कौन है मेरा कातिल- राकेश पाठक

तलाश अपने ही कातिल की
कौन है मेरा कातिल- राकेश पाठक

कोई इन्वेस्टीगेटर कत्ल होने के पश्चात् जब कातिल की तलाश करता है तो उसकी चेष्टा होती है कि वो जल्द-से-जल्द कातिल को पकड़े और अपने काम से छुट्टी पाये। वो अगर कानून का मुहाफिज है तो उसकी खोज के पीछे कर्त्तव्यनिष्ठता होती है, या कानून की सेवा करने के जज्बात। जबकि पेशेवर जासूस को अपनी फीस से सरोकार होता है।
परन्तु - किसी को अपने ही कातिल की तलाश हो, वो अपने कातिल को ढूंढकर उससे बदला लेने को तड़प रहा हो तो... तो उसके मनोभाव क्या होंगे? उसके दिल और दिमाग में सोचों के कौन-कौन से आंधी-तूफान चल रहे होंगे?
बस, इसी सवाल के दिमाग में आने पर इस उपन्यास का आइडिया अंगड़ाइयां लेने लगा और फिर एक हैरतअंगेज कथानक का जन्म हो गया, जिसमें रहस्य व रोमांच के साथ इन्वेस्टीगेशन का नया आयाम भी सम्मिलित हो गया।
      कमल नामक एक ऐसे पात्र की संरचना हो गयी जो अपने कातिल के बारे में जानने के लिये व्याकुल है-उसे पकड़कर इन्तकाम लेने को बेताब है।
      क्या वो जान पायेगा कि उसका कातिल कौन है और उसके कातिल ने उसे क्यों कत्ल किया है? क्या वो अपने कातिल को पकड़कर उससे अपने कत्ल का इन्तकाम ले पायेगा?
         मुझे पूरा विश्वास है कि जब कातिल का चेहरा सामने आयेगा तो आपको एकबारगी तो यकीन ही नहीं होगा- जब यकीन होगा तो आप मारे हैरत के उछल ही पड़ेंगे। आपने बहुत से उपन्यास पढ़े होंगे, बहुत-सी फिल्में भी देखी होंगी, लेकिन इस उपन्यास के जैसा 'क्लाईमैक्स' या अन्त नहीं पढ़ा होगा, नहीं देखा होगा, नहीं सुना होगा ।

Sunday 1 October 2023

575. रहस्यमय लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी

मेरा नाम ही मेजर नहीं, मैं काम में भी मेजर हूँ।
रहस्यमय लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी

एक समय था जब उपन्यास साहित्य का केन्द्र इलाहाबाद था।‌ इलाहाबाद का 'पुष्पी कार्यालय' उपन्यास प्रकाशन में अग्रणी था। जहाँ से बहुत अच्छे जासूसी उपन्यास प्रकाशित होते रहे हैं।
  सुरेन्द्र इलाहाबादी के उपन्यास भी यहीं से प्रकाशित होते थे। यह नाम वास्तविक है या छद्म यह तो कहना संभव नहीं है। इनका एक उपन्यास 'रहस्यमयी लड़कियां' पढने को‌ मिला, जो एक रोचक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है।
रहस्यमयी लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी


       मेजर का नया अदभुत कारनामा
               रहस्यमय लड़कियां
जो भी लड़की मरी हुई मिलती उसके गले में नायलोन का मोजा होता आँखें बाहर को उछली हुई होतीं मुँह से जिह्वा की नोक दिखाई देती !
चारों लड़कियाँ एक-से-एक सुन्दर थीं चारों सुशिक्षिता थीं; आधुनिक थीं उन पर कोई भी प्यार करने को अकुला जाता मगर न जाने हत्यारे को उन पर क्यों तरस नहीं आया ।
हत्याओं की यह अनोखी कहानी है। इसे पढ़ कर रोंगटे खड़े हो जाएँगे यह निराला ही कारनामा है । मेजर का अनोखा कारनामा।
              - सुरेन्द्र इलाहाबादी

 अब बात करते हैं उपन्यास कथानक की।
जासूस मेजर लखनऊ के अपने ऑफिस में बैठा शीरी ओर विजय के साथ मेरठ के हत्याकांड पर विचार विनिमय कर रहा था । तभी मेजर के पास वंदना का फोन आया। मिसेज वन्दना त्रिपाठी को मेजर 'भाभी' कहा करता था । वह उसके अभिन्न मित्र और देश के यशस्वी सर्जन ओमप्रकाश त्रिपाठी की पत्नी थी।
वन्दना बोली - "आप इसी क्षण शिवाजी मार्ग २६ की ऊपरी मंजिल के फ्लैट में चले जाइये । इस इमारत के नीचे 'बंसल एण्ड कम्पनी' का आफिस है। आज इतवार है इसलिए दुकाने बन्द हैं। ऊपरी मंजिल के फ्लैट के बाहर ताला लगा हुआ है। और मैं अन्दर कैद हूँ ।"

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...