Sunday 1 October 2023

575. रहस्यमय लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी

मेरा नाम ही मेजर नहीं, मैं काम में भी मेजर हूँ।
रहस्यमय लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी

एक समय था जब उपन्यास साहित्य का केन्द्र इलाहाबाद था।‌ इलाहाबाद का 'पुष्पी कार्यालय' उपन्यास प्रकाशन में अग्रणी था। जहाँ से बहुत अच्छे जासूसी उपन्यास प्रकाशित होते रहे हैं।
  सुरेन्द्र इलाहाबादी के उपन्यास भी यहीं से प्रकाशित होते थे। यह नाम वास्तविक है या छद्म यह तो कहना संभव नहीं है। इनका एक उपन्यास 'रहस्यमयी लड़कियां' पढने को‌ मिला, जो एक रोचक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है।
रहस्यमयी लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी


       मेजर का नया अदभुत कारनामा
               रहस्यमय लड़कियां
जो भी लड़की मरी हुई मिलती उसके गले में नायलोन का मोजा होता आँखें बाहर को उछली हुई होतीं मुँह से जिह्वा की नोक दिखाई देती !
चारों लड़कियाँ एक-से-एक सुन्दर थीं चारों सुशिक्षिता थीं; आधुनिक थीं उन पर कोई भी प्यार करने को अकुला जाता मगर न जाने हत्यारे को उन पर क्यों तरस नहीं आया ।
हत्याओं की यह अनोखी कहानी है। इसे पढ़ कर रोंगटे खड़े हो जाएँगे यह निराला ही कारनामा है । मेजर का अनोखा कारनामा।
              - सुरेन्द्र इलाहाबादी

 अब बात करते हैं उपन्यास कथानक की।
जासूस मेजर लखनऊ के अपने ऑफिस में बैठा शीरी ओर विजय के साथ मेरठ के हत्याकांड पर विचार विनिमय कर रहा था । तभी मेजर के पास वंदना का फोन आया। मिसेज वन्दना त्रिपाठी को मेजर 'भाभी' कहा करता था । वह उसके अभिन्न मित्र और देश के यशस्वी सर्जन ओमप्रकाश त्रिपाठी की पत्नी थी।
वन्दना बोली - "आप इसी क्षण शिवाजी मार्ग २६ की ऊपरी मंजिल के फ्लैट में चले जाइये । इस इमारत के नीचे 'बंसल एण्ड कम्पनी' का आफिस है। आज इतवार है इसलिए दुकाने बन्द हैं। ऊपरी मंजिल के फ्लैट के बाहर ताला लगा हुआ है। और मैं अन्दर कैद हूँ ।"
    प्रसिद्ध जासूस मेजर जब उस इमारत में पहुंचा तो वहाँ उसे एक बेहोश औरत मिली और एक कमरे में एक मृत्यु औरत की लाश। लेकिन वहाँ मिसेज वंदना कहीं भी नहीं थी।
   मेजर चकित था आखिर यह सब क्या है और मिसेज वंदना त्रिपाठी कहां गायब हो गयी। यह बेहोश औरत कौन है और मृत औरत कौन है?
   मेजर ने इन घटनाओं की जानकारी देने के लिए इंस्पेक्टर अवस्थी को फोन किया तो इंस्पेक्टर ने भी उसे एक कत्ल की जानकारी दे दी- "मेजर साहब ! " इन्सपेक्टर अवस्थी ने कहा, "आपका फोन आने से पहले एक ऐसा ही फोन मुझे 'निराला नगर' के एक ब्लाक के मकान नम्बर २२८ से प्राप्त हुआ है । वहा कुसुम मेहरा नाम की नवयुवती को एक और ही ढंग से कत्ल कर दिया गया है । मैं वहीं पहले जा रहा हूं। आप जिस फ्लैट में हैं, उसे बन्द करके निराला नगर चले आइए।"
   मेजर यह देखकर हैरान था कि दोनों युवतियों का कत्ल रक ही ढंग से हुआ है और दोनों का आपस में कनैक्शन 'मूनलाइट कम्पनी' से जुड़ता है। और मेजर जा पहुंचता है मूनलाइटकी मैनेजर शालिनी भार्गव के पास-
"अच्छा मिस जागृति, आप प्रतिभा के बारे में क्या जानती हैं?"
"वही प्रतिभा जो कुसुम की सहेली है और इलाहाबाद में रहती है ?"
"हाँ ।'
"वह हर पन्द्रहवें दिन इलाहाबाद से दो दिनों के लिए लखनऊ आती थी । लखनऊ से वह कानपुर जाती थी। नीमा और कुसुम आगरा जाती थीं । इस बात का भेद मैं नहीं जान पाई कि वे नियमानुसार आगरा क्यों जाती थीं । प्रतिभा लखनऊ जाकर कानपुर जाया करती थी । वास्तव में वह लोगों पर यह प्रकट करती थी कि लखनऊ आई हुई है, लेकिन जाती वह कानपुर थी और इतवार की शाम को लखनऊ आकर रात को इलाहाबाद चली जाती थी।"

मेजर यह कहानी सुनकर अवाक् रह गया। तीनों मृत लड़कियों का जीवन रहस्यों से परिपूर्ण था
 जहाँ से मेजर जो यह जानकारी मिलती है की दोनों मृतक सहेलियां इलाहाबाद की निवासी थी। दोनों कमाई से ज्यादा खर्च करती थी और उनका बार- बार आगरा जाना भी संदिग्ध था।
  वहीं मेजर को दोनों के कमरों से नये सूटकेस, नये गर्म कपड़े मिले और कपड़ों में छुपाये हुये नोट भी।
   मेजर अपने साथियों के साथ-साथ एक शहर अए दूसरे शहर जैसे -जैसे इस केस की छानबीन करता जाता यह केस उतना ही उलझनपूर्ण बनता जा रहा था। 
 मेजर ने शीरी से कहा,- "इस बार हमारा पाला बड़े रहस्यमय अपराधियों से पड़ा है । कोई इतनी चतुराई से अपराध किये जा रहा है कि कहीं कोई त्रुटि हमारे लिए नहीं छोड़ रहा है कि उसे जा थामें।"
   हत्या पर हत्या हो रही थी। जो भी मृतक लड़कियां थी सब सहेलियां थी। आखिर कोई उन्हें क्यों मार रहा था? मेजर के लिए यह रहस्य था। और उपन्यास के अंत तक पांच औरतों और एक पुरुष की हत्या हो जाती है। 
और अंततः मेजर इस रहस्य को सुलझा लेता है की हत्यारा कौन है। और फिर हत्यारा यह भी बता देता है कि इन हत्याओं के पीछे क्या कारण था।
   उपन्यास का आरम्भ बहुत रोचक ढंग से होता है। एक औरत जिसको नग्न अवस्था में कैद कर लिया जाता है। लेकिन जब जासूस मेजर वहां पहुंचता है तो दृश्य बिलकुल अलग ही नजर आता है।
 यहां से आरम्भ होती है एक मर्डर मिस्ट्री और उसे हल करने की जिम्मेदार होती है जासूस मेजर पर। हालांकि यहां इंस्पेक्टर अवस्थी पर उपस्थित है पर उसका किरदार बहुत कम है। 
एक के बाद एक हत्या का होना और फिर मेजर व उसके साथियों का रहस्य को हल करना पठनीय है। अपराधी भी अत्यंत चालाक है वह स्वयं सामने नहीं आता और हत्या पर हत्या होती रहती है।
  कहानी अंत तक जहां उलझाने वाली है वहीं कहानी की गति भी तीव्र है। घटनाक्रम  कई शहरों तक फैला होने के बावजूद भी तेज गति से चलता है।
मुझे कहानी में ज्यादा उलझाव महिला पात्रों के कारण लगा। जहां मुझे उनके नाम देखने के लिए बार-बार पृष्ठ पलटने पड़े थे। कौन जागृति, कौन नीमा, शालिनी, प्रतिभा है? यह कन्फूजन पैदा करता है।
उपन्यास में कुछ बातें या कमियां खटकती हैं। उपन्यास में उठे कुछ प्रश्नों के उत्तर भी नहीं मिलते।
जैसे- 
मेजर ने कहा, "एक बात मुझे रह-रहकर कचोट रही है । श्रीमती अंजना मल्होत्रा का कहना था कि कुमुम का दरवाजा अन्दर से बन्द था, हालांकि डॉक्टर की रिपोर्ट कहती है कि उसकी मौत गला घुटने से हुई।
यहां यह कहीं स्पष्ट नहीं होता की अंदर से कमरा कैसे बंद था।
वहीं शेख के विषय में मेजर को कैसे मालूम‌ हुआ कुछ भी स्पष्ट नहीं ।
- किस व्यक्ति की हत्या कैसे हुयी, कुछ स्पष्ट नहीं।
- अंत में जो हत्या होती है उसमें किस अपराधी का क्या किरदार था, कुछ स्पष्ट नहीं।

उपन्यास के मुख्य पात्र-
प्रस्तुत उपन्यास में महिला पात्र ज्यादा हैं, हालांकि महिला पात्र ज्यादा होते हुये भी यह कोई महिला प्रधान उपन्यास नहीं है। और जहां तक मुझे जानकारी है लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में महिला प्रधान उपन्यास नहीं है। 
यहाँ अधिकांश पात्र महिला है, एक जैसे नाम होने के कारण मैं कुछ पात्रों को समझने के लिए उपन्यास के पृष्ठ बार-बार आगे पीछे पलटता रहा।
मेजर- उपन्यास का जासूस
विजय-  मेजर का सहयोगी
शीरी-   मेजर की सहयोगी
 कुसुम मेहरा, प्रतिभा, नी‌मा अग्निहोत्री- तीन सहेलियां
वंदना- ओमप्रकाश त्रिपाठी की पत्नी, मेजर की भाभी
जागृति पाठक ( पिता की द्वितीय शादी) माँ- 
आराधना पाठक- जागृति पाठक की माँ
नीमा अग्निहोत्री
कुसुम मेहरा
प्रतिभा- 
शालिनी भार्गव-  मैनेजर, मूनलाइट कम्पनी
मूनलाइट- नीमा, कुसुम जहा कार्य करती थी।
मैडम मार्था ग्रीन- लुक वण्डरफुल ब्युटी शाॅप की मालिक
प्रतिभा- एक बैंक कार्मिक, 
प्रभा- नीमा की मौसी, जिसने मेजर को जानकारी दी
चन्द्रभानु- नीमा का प्रेमी
राजकिशन- एक अपराधी युवक
इंस्पेक्टर अवस्थी- पुलिस इंस्पेक्टर
नरेन्द्र गणेश बाजोरिया- प्रभा का देवर
रघुनंदन थापर- एक व्यापारी का पुत्र
मिसेज ऐडिथ - कॉलेज प्रोफेसर
शेख मुहम्मद बिन महमूद बिन मंजूर- लीबिया का शेख
खालिद्दीन अयाज- शेख का बंदा
डायलॉग-
उपन्यास मर्डर मिस्ट्री आधारित है। उपन्यास में रहस्य अधिक है और विशेष डायलॉग के लिए जगह नहीं है। फिर भी, जो अच्छे कथन हैं, वह प्रभावित करते हैं।
- मेरा नाम ही मेजर नहीं, मैं काम में भी मेजर हूँ। मैं इस तरह के गिरोहों की धज्जिया उड़ाकर रहूंगा ।
जीवन में हरेक आदमी छोटी-बड़ी घटनाओं से दो-चार हुआ करता है। सच तो यह है कि इन्सान का यह जीवन संकटों की घाटी है । इस घाटी को बड़े साहस और धीरज के साथ पार करना होता है । कभी-कभी छोटी-सी भूल हो जाने पर भी जान के लाले पड़ जाते हैं । 
 सुरेन्द्र इलाहाबादी द्वारा रचित 'रहस्यमय लड़कियां' एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है। मेजर का तरीका भी अच्छा है। लेकिन अंत में मेजर असली अपराधी के मालिक को कैसे पहचाना है यह कहीं स्पष्ट नहीं है। 
उपन्यास मनोरंजन की दृष्टि से पढा जा सकता है, पाठक को कहीं नीरस नहीं लगेगा।

उपन्यास-  रहस्यमय लड़कियां
लेखक-    सुरेन्द्र इलाहाबादी
प्रकाशक- पुष्पी कार्यालय, इलाहाबाद
पृष्ठ-         128
सीरीज-     मेजर

रहस्यमयी लड़कियां- सुरेन्द्र इलाहाबादी


1 comment:

  1. कथानक रोचक लग रहा है। ऊपर लेखक में वंदना को ओम प्रकाश त्रिपाठी की पत्नी बताया है लेकिन नीचे ओम प्रकाश शर्मा लिखा है। एक दो किरदारों जैसे प्रतिभा, चंदभानु के नाम भी नहीं दिए हैं। खैर, उपन्यास कभी मिला तो पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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