तलाश अपने ही कातिल की
कौन है मेरा कातिल- राकेश पाठक
कोई इन्वेस्टीगेटर कत्ल होने के पश्चात् जब कातिल की तलाश करता है तो उसकी चेष्टा होती है कि वो जल्द-से-जल्द कातिल को पकड़े और अपने काम से छुट्टी पाये। वो अगर कानून का मुहाफिज है तो उसकी खोज के पीछे कर्त्तव्यनिष्ठता होती है, या कानून की सेवा करने के जज्बात। जबकि पेशेवर जासूस को अपनी फीस से सरोकार होता है।
परन्तु - किसी को अपने ही कातिल की तलाश हो, वो अपने कातिल को ढूंढकर उससे बदला लेने को तड़प रहा हो तो... तो उसके मनोभाव क्या होंगे? उसके दिल और दिमाग में सोचों के कौन-कौन से आंधी-तूफान चल रहे होंगे?
बस, इसी सवाल के दिमाग में आने पर इस उपन्यास का आइडिया अंगड़ाइयां लेने लगा और फिर एक हैरतअंगेज कथानक का जन्म हो गया, जिसमें रहस्य व रोमांच के साथ इन्वेस्टीगेशन का नया आयाम भी सम्मिलित हो गया।
कमल नामक एक ऐसे पात्र की संरचना हो गयी जो अपने कातिल के बारे में जानने के लिये व्याकुल है-उसे पकड़कर इन्तकाम लेने को बेताब है। क्या वो जान पायेगा कि उसका कातिल कौन है और उसके कातिल ने उसे क्यों कत्ल किया है? क्या वो अपने कातिल को पकड़कर उससे अपने कत्ल का इन्तकाम ले पायेगा?
मुझे पूरा विश्वास है कि जब कातिल का चेहरा सामने आयेगा तो आपको एकबारगी तो यकीन ही नहीं होगा- जब यकीन होगा तो आप मारे हैरत के उछल ही पड़ेंगे। आपने बहुत से उपन्यास पढ़े होंगे, बहुत-सी फिल्में भी देखी होंगी, लेकिन इस उपन्यास के जैसा 'क्लाईमैक्स' या अन्त नहीं पढ़ा होगा, नहीं देखा होगा, नहीं सुना होगा ।
राकेश पाठक जी का उपन्यास 'कौन है मेरा कातिल' पढा। उपन्यास अपने शीर्षक से ही जितना आकर्षक प्रतीत होता है कहानी और रहस्य के स्तर पर उतना ही रोचक है।वह अपने ही कातिल ही खोज में निकला तो रहस्यों व रोमांच के जंतर- मंतर में कसता चला गया। जब कातिल उसके सामने आया तो वह मकड़ी के जाल में उलझ रह गया, क्योंकि...?
इस क्योंकि का उत्तर तो खैर राकेश पाठक जी का रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है।
उपन्यास का आरम्भ कमल नामक युवक से होता है जिसे तलाश है अपने कातिल की।
“उसे माफ करने का या छोड़ने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता !” उसका का चेहरा लाल-भभूका हो चला तथा मुख से मानों शब्दों के रूप में अंगारे निकल रहे थे- “ उसने मुझे बहुत ही बेरहमी से कत्ल किया था। तड़पा-तड़पा कर मारा था। कत्ल से पहले के लम्हों को याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। उसी काले ओवरकोट वाले की वजह से मेरी मां बीमार होकर दम तोड़ गयी। मेरे पिता जी वर्षों से हॉस्पिटल के बेड पर पड़े हैं। अब मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा मकसद यही है कि मैं अपने कातिल को ढूंढ़कर सजा दूं। लेकिन पहले मुझे किसी तरीके से ये जानना होगा कि कौन है मेरा कातिल ? उसने मुझे कत्ल क्यों किया था ?”
एक बार जब कमल अपनी प्रेयसी फुलत सीटी जाता है, उसे यह विश्वास होता है उसका कातिल यहीं पर ही है। (राकेश पाठक जी के उपन्यासों में मुख्य शहर फुलत सीटी ही होता है)
और फिर तलाश होती है कमल द्वारा अपने ही कातिल की। जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढता है, उसी के साथ-साथ रहस्य-रोमांच भी बढता जाता है। पाठक हर पल यही सोचता है की इस उपन्यास का क्लाइमैक्स क्या होगा। और क्लाइमैक्स भी लेखक महोदय ने बहुत शानदार चुना है।
इस उपन्यास की समीक्षा में ज्यादा लिखना इसके वास्तविक आनंद को खत्म कर सकता है। क्लाइमैक्स का रहस्य भी खुल सकता है। इसलिए पाठक मित्रों इस कहानी का आनंद लेने के लिए उपन्यास पढें।
उपन्यास शीर्षक - अगर हम बात करे उपन्यास शीर्षक की तो यह रोचक, प्रभावशाली और पाठक को आकर्षित करने वाला है।
मैं स्वयं इसी शीर्षक के कारण ही उपन्यास की तरफ आकृष्ट हुआ था। आखिर एक व्यक्ति कैसे अपने ही कातिल की तलाश करता है। यह प्रश्न सहज ही मस्तिष्क में आता है। आखिर एक जीवित व्यक्ति का कातिल कैसे हो सकता है और वह व्यक्ति अपने कातिल की तलाश भी कर रहा है। लेखक महोदय ने इस विषय में प्रशंसनीय कार्य किया है।
उपन्यास का शीर्षक कथा के साथ पूरा न्याय करता है।
उपन्यास का एक बहुत ही हास्य पात्र है महेन्द्र चौधरी ।
उसका एक किस्सा देखें-
" ग्वालियर का राजा ?"
"हां, बिटिया ! उस पर क्रिकेट सीखने का जुनून सवार हुआ था। वो सुनील देव और कपिल गावस्कर के पास गया था लेकिन उन दोनों ने कहा कि उनके उस्ताद महेन्द्र सिंह चौधरी के पास जाओ । राजा चतुरसेन मेरे पास आया था। मुझे उस्ताद का दर्जा दिया था उसी। मेरे हाथ-पैर भी दबाता था और चाय बनाकर भी पिलाता थामेरा तो इण्डिया टीम में भी सिलेक्शन हो रहा था। लेकिन लाला चमन नाथ ने आकर पैर पकड़ लिये थे। बोला था कि मेरी वजह से उसे टीम में नहीं रखा जायेगा। उसकी तो नहीं मानता मैं। लेकिन उसके साथ सिफारिश के लिये सरदार किशन सिंह बेदी भी आया था और वो भी मेरा चेला था। सो मैंने त्याग कर दिया । दादा परदादा की खेती की खेती-बाड़ी सम्भाल ली थी- फिर कन्स्ट्रक्शन के बिजनेस में लग गया था।”
उपन्यास पात्र-
उपन्यास में पात्रों की संख्या और भूमिका कथा अनुरूप है। कोई भी पात्र अनावश्यक प्रतीत नहीं होता।
कमल- कथा का मुख्य पात्र
सोनाली- कमल की प्रेयसी
महेन्द्र चौधरी- कमल के पिताजी
गायत्री- कमल की माता
बादल- महत्वपूर्ण पात्र
नागेश्वर- पुलिस इंस्पेक्टर
उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करे तो वह है उपन्यास के मध्य भाग जहाँ कथा खल पात्र गोविंद सहाय के इर्दगिर्द घूमती है। लेखक ने यहा गोविन्द सहाय का पात्र प्रस्तुत किया है वह केशव पण्डित के उपन्यासों के पात्रों की तरह है। वह किसी को पेट्रोल डाल कर सरेआम आग लगा देता है, किसी को भी मार देता है। इस पात्र को लेखक कथा अनुरुप प्रस्तुत नहीं कर पाये।
वहीं एक और घटना है जो अपरिपक्व प्रतीत होती है- कहानी में लगभग पच्चीस साल पुरानी घटना को कुछ पात्र ऐसे याद करते हैं जैसे पच्चीस मिनट पहले की घटना हो।
राकेश पाठक द्वारा रचित 'कौन है मेरा कातिल' एक रोमांचक और रहस्य से परिपूर्ण पठनीय उपन्यास है। जहाँ एक युवक अपने ही कातिल की तलाश करता है।
उपन्यास- कौन है मेरा कातिल
एक बार जब कमल अपनी प्रेयसी फुलत सीटी जाता है, उसे यह विश्वास होता है उसका कातिल यहीं पर ही है। (राकेश पाठक जी के उपन्यासों में मुख्य शहर फुलत सीटी ही होता है)
और फिर तलाश होती है कमल द्वारा अपने ही कातिल की। जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढता है, उसी के साथ-साथ रहस्य-रोमांच भी बढता जाता है। पाठक हर पल यही सोचता है की इस उपन्यास का क्लाइमैक्स क्या होगा। और क्लाइमैक्स भी लेखक महोदय ने बहुत शानदार चुना है।
इस उपन्यास की समीक्षा में ज्यादा लिखना इसके वास्तविक आनंद को खत्म कर सकता है। क्लाइमैक्स का रहस्य भी खुल सकता है। इसलिए पाठक मित्रों इस कहानी का आनंद लेने के लिए उपन्यास पढें।
उपन्यास शीर्षक - अगर हम बात करे उपन्यास शीर्षक की तो यह रोचक, प्रभावशाली और पाठक को आकर्षित करने वाला है।
मैं स्वयं इसी शीर्षक के कारण ही उपन्यास की तरफ आकृष्ट हुआ था। आखिर एक व्यक्ति कैसे अपने ही कातिल की तलाश करता है। यह प्रश्न सहज ही मस्तिष्क में आता है। आखिर एक जीवित व्यक्ति का कातिल कैसे हो सकता है और वह व्यक्ति अपने कातिल की तलाश भी कर रहा है। लेखक महोदय ने इस विषय में प्रशंसनीय कार्य किया है।
उपन्यास का शीर्षक कथा के साथ पूरा न्याय करता है।
उपन्यास का एक बहुत ही हास्य पात्र है महेन्द्र चौधरी ।
उसका एक किस्सा देखें-
" ग्वालियर का राजा ?"
"हां, बिटिया ! उस पर क्रिकेट सीखने का जुनून सवार हुआ था। वो सुनील देव और कपिल गावस्कर के पास गया था लेकिन उन दोनों ने कहा कि उनके उस्ताद महेन्द्र सिंह चौधरी के पास जाओ । राजा चतुरसेन मेरे पास आया था। मुझे उस्ताद का दर्जा दिया था उसी। मेरे हाथ-पैर भी दबाता था और चाय बनाकर भी पिलाता थामेरा तो इण्डिया टीम में भी सिलेक्शन हो रहा था। लेकिन लाला चमन नाथ ने आकर पैर पकड़ लिये थे। बोला था कि मेरी वजह से उसे टीम में नहीं रखा जायेगा। उसकी तो नहीं मानता मैं। लेकिन उसके साथ सिफारिश के लिये सरदार किशन सिंह बेदी भी आया था और वो भी मेरा चेला था। सो मैंने त्याग कर दिया । दादा परदादा की खेती की खेती-बाड़ी सम्भाल ली थी- फिर कन्स्ट्रक्शन के बिजनेस में लग गया था।”
उपन्यास पात्र-
उपन्यास में पात्रों की संख्या और भूमिका कथा अनुरूप है। कोई भी पात्र अनावश्यक प्रतीत नहीं होता।
कमल- कथा का मुख्य पात्र
सोनाली- कमल की प्रेयसी
महेन्द्र चौधरी- कमल के पिताजी
गायत्री- कमल की माता
बादल- महत्वपूर्ण पात्र
नागेश्वर- पुलिस इंस्पेक्टर
उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करे तो वह है उपन्यास के मध्य भाग जहाँ कथा खल पात्र गोविंद सहाय के इर्दगिर्द घूमती है। लेखक ने यहा गोविन्द सहाय का पात्र प्रस्तुत किया है वह केशव पण्डित के उपन्यासों के पात्रों की तरह है। वह किसी को पेट्रोल डाल कर सरेआम आग लगा देता है, किसी को भी मार देता है। इस पात्र को लेखक कथा अनुरुप प्रस्तुत नहीं कर पाये।
वहीं एक और घटना है जो अपरिपक्व प्रतीत होती है- कहानी में लगभग पच्चीस साल पुरानी घटना को कुछ पात्र ऐसे याद करते हैं जैसे पच्चीस मिनट पहले की घटना हो।
राकेश पाठक द्वारा रचित 'कौन है मेरा कातिल' एक रोमांचक और रहस्य से परिपूर्ण पठनीय उपन्यास है। जहाँ एक युवक अपने ही कातिल की तलाश करता है।
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