दो भाइयों की गृहक्लेश कथा
अभागी विधवा- वेदप्रकाश वर्मा
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में तीन 'वेद' थे। प्रथम वेदप्रकाश काम्बोज, द्वितीय वेदप्रकाश शर्मा और तृतीय नाम जो सामने आता है वह है वेदप्रकाश वर्मा । मेरठ जिले के निवासी वेदप्रकाश वर्मा जी का नाम मैंने 2017 के बाद ही सुना था और वह भी सोशल मीडिया के माध्यम से । एक ऐसा लेखक जिसने सौ से ऊपर उपन्यास लिखे पर संयोगसे कभी उनको पढने का अवसर ही नहीं मिला। वेदप्रकाश वर्मा जी के कुछ उपन्यास मेरे पास काफी समय से उपलब्ध थे पर पढने का अवसर अब मिला।
वेदप्रकाश वर्मा जी का जो उपन्यास मैंने सबसे पहले पढा है उसका नाम है 'अभागी विधवा ।' उपन्यास लेखकीय के अनुसार लेखक महोदय का कहना है की यह कहानी लम्बे समय से उनके दिमाग में थी पर उसे उपन्यास का रूप देने मे समय लगा।
अब हम अभागी विधवा उपन्यास का प्रथम पृष्ठ पढते हैं-
पुलिस का सायरन पूरी आवाज से चीख उठा ।
सड़क पर दौड़ने वाले वाहनों की गति में सहसा अन्तर पड़ गया। मगर पीले रंग की वेन की गति सायरन की आवाज के साथ तेजी से बढ़ गयी । पुलिस जीप वेन के पीछे दौड़ रही थी और वेन की गति बढ़ने के साथ ही पुलिस जीप की गति भी बढ़ गयी । स्पीडोमीटर की सुई सौ के बास-पास थिरक रही थी। सहसा इन्सपैक्टर सुनील ने होलस्टर से सर्विस रिवाल्वर निकाल लिया। ड्राईवर ने जीप की गति और बढ़ा दी मगर तब भी पीली वेन और जीप के बीच का फांसला कम नहीं कर पा रहा था। फाँसला धीरे-धीरे वह बढ़ता ही जा रहा था ।
जीप के पिछले भाग में दो कान्सटेबिल रायफल लिये बैठे थे। इन्सपैक्टर सुनील वेन पर फायर करने का निर्णय नहीं ले पा रहा था कि सहसा वेन की गति आश्चर्यजनक रूप से तेज हो गयी...। फांसला बहुत तेजी से बढ़ने लगा जीप के ड्राईवर ने ऐक्सीलेटर पर पूरा दबाव बढ़ा दिया मगर फिर भी बीच की दूरी कम नहीं हो पा रही थी। बल्कि फांसला बढ़ गया था । और तभी वेन बहुत संकरी सी भली में मुड़ गयी ।
उसके पीछे-पीछे पुलिस जीप ने भी गली में प्रवेश किया ।
उपन्यास के प्रथम दृश्य से दो पात्र सामने आते हैं वह है इंस्पेक्टर सुनील जो एक डॉक्टर वैन का पीछा करता है क्योंकि उसे सूचना मिली है फरारा अपराधी 'राम' वैन में बैठकर फरार हो रहा है।
और यह वैन है शहर के लोकप्रिय डॉक्टर राय भूपेन्द्र सिंह की। इंस्पेक्टर सुनील राय साहब तक पहुंच तो जाता है लेकिन उसकी हिम्मत नहीं होती की वह राय साहब पर हाथ डाल सके।
- शहर के प्रतिष्ठित डाक्टर राय भूपेन्द्र सिंह उसके सामने थे । यह वही राय भूपेन्द्र सिह जिनका विशाल राय नसिग होम है। राय भूपेन्द्र सिंह को ख्याति मजदूर और कमजोर समाज में इसलिय अधिक है क्योंकि उनके नर्सिग होम में मजदूर और कमजोर वर्ग के व्यक्तियों का इलाज मुफ्त किया जाता है। पिछले कई वर्षों से जनता उन्हें विधान सभा के लिये अपना नेता चुनना चाहती है मगर उन्होंने हमेशा है। अपने आपको नेतागर्दी के लफडे से दूर रखा था ।(उपन्यास अंश)
इंस्पेक्टर सुनील को अज्ञात फोन द्वारा सूचना मिली थी की डाक्टर राय की वैन में बैठकर अपराधी 'राम' फरार हो रहा है। लेकिन इंस्पेक्टर सुनील अपराधी राम को पकड़ने में असफल रहा, फिर सूचना मिलती है की अपराधी राम तय समय पर एक महिला का खून करने वाला है।
इंस्पेक्टर सुनील सब इंस्पेक्टर हरीश और देशवाल के साथ मिलकर अपराधी को पकड़ने की योजना बनाता है।
लेकिन पुलिस यहाँ भी असफल होती है और इस खून के पश्चात शहर में एक के बाद एक खून होने लगते हैं, जिनका पुलिस आपसी संबंध भी तय नहीं कर पाती।
पुलिस का एक हत्या के पश्चात संवाद देखे जो एक तरफ हो रही लगातार हत्याओं को दर्शाता है और वहीं दूसरी तरफ पुलिस की असफलता को भी।
'एक के बाद दूसरी दूसरी के बाद तीसरी, लाशों का तो जैसे सिलसिला हो शुरु हो गया है-सर, इनका अन्त कहीं होगा ?' देशवाल ने पूछा ।
'रोजी की लाश शायद किसी कड़ी से हमें जोड़ दे देखते है लाश कुछ बोलती है या अगली लाश देखने के लिए हमें बेसहारा छोड़ देती है ।'
पुलिस को शक है की प्रतिष्ठित डॉक्टर राय भूपेन्द्र सिंह अपराधीवर्ग को शरण देता है लेकिन पुलिस के पास उसके विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं हैं।
डाक्टर राय भूपेन्द्र सिंह का भाई राय दीवान सिंह एक एय्याश और औरतबाज आदमी है, जिसे डाक्टर राय मे घर से इसलिए निकाल दिया की उसकी वजह से 'राय खानदान' का नाम धूमिल होता था।
उपन्यास में राय दीवान सिंह के प्रवेश के पश्चात सारी कहानी इधर ही घूमने लगती है। और यहाँ दोनों भाईयों का गृह क्लेश सामने आता है। जहां राय भूपेन्द्र सिंह की नजर में राय दीवान सिंह एय्याश और औरतबाज है वहीं राय दीवान सिंह की दृष्टि में डाक्टर राय भूपेन्द्र सिंह राय दीवान सिंह की पुश्तैनी सम्पत्ति हड़पने के लिए प्रयासरत है। यह कहानी धीरे -धीरे आगे बढती है और फिर दोनों भाई कभी अपराधी तो कभी शरीफ नजर आते हैं।
लेकिन उपन्यास के अंत में अज्ञात अपराधियों का प्रवेश मूल कथा को ही बदल देता है। जो कहानी के साथ अन्यान्य प्रतीत होता है। दोनों भाईयों के कारनामें उपन्यास में ऐसे छुप जाते हैं जैसे अपराधी राम ।
उपन्यास के मध्य भाग के पश्चात लेखक महोदय अपराधी राम को बिलकुल भूल जाते हैं।
उपन्यास के कुछ पठनीय डायलॉग
- सबसे सफल खूनी वही है जो खून को आत्महत्या में बदल दे।
- दीवान सिंह हम जिस आदमी को चाहते है उसके जीवन में बिना इजाजत ही घुसे चले आते हैं ।
उपन्यास की कहानी कुछ हद तक ठीक थी। पहले एक अपराधी राम द्वारा कथा आरम्भ होती है, फिर शृंखला वार होते मर्डर, फिर दो भाईयों की गृह क्लेश की कहानी में बदल जाती और अंत में कुछ अज्ञात अपराधी सामने आते हैं।
कहानी के अंत तक आते-आते कहानी अपनी लय खो बैठती है, पात्रों का कुछ पता नहीं चलता,जहाँ से कहानी आरम्भ हुयी वह पात्र अंत में दिखाई नहीं देते और लगता है लेखक महोदय का कुछ पात्रों से सहानुभूति थी जिन्हें अंत में "अज्ञात अपराधी' के आगमन को दर्शाकर बचा लिया गया।
कहानी अंत इतना नाटकीय होता है की पाठक कल्पना भी नहीं कर सकता।
एक डायलॉग देखे जो उपन्यास के अंतिम पांच पंक्तियों में से एक है- ".... हमारे विभाग की ही लेडी इंस्पेक्टर राधा है।"
आखिर जरूरत ही कथा की इसे लेडी इंस्पेक्टर बनाने की और फिर इस पात्र की जो पीछे पृष्ठभूमि दर्शायी गयी है उसका क्या?
वैसे भी यह पात्र पुलिस द्वारा नहीं लाया गया, इसे तो एक पात्र अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करता है।
उपन्यास का शीर्षक कथा के बिलकुल भी अनुरुप नहीं है। क्योंकि यहाँ कोई विधवा है ही नहीं, फिर अभागी विधवा का क्या अर्थ हुआ ?
इंस्पेक्टर सुनील का कथन- राम की पुरानी जिंदगी में अगर झांका जाये तो स्पष्ट तो यह स्पष्ट है कि वह आदी मुजरिम था, उसने अपना गुनाह भरा जीवन जेब काटने से शुरु किया था। वह पहली बार बारह वर्ष की आयु में पकड़ा गया था।
वहीं एक जगह यह भी लिखा है की राम अपराधी नहीं है । और वहीं उपन्यास के अंत तक आते -आते लेखक महोदय अपराधी राम को भूल ही जाते हैं।
उपन्यास का सार यही है की अच्छा आदमी हमेशा अच्छा नहीं होता और बुरा आदमी हमेशा बुरा नहीं होता ।
उपन्यास का कथानक अत्यंत अपरिपक्व है।
उपन्यास- अभागी विधवा
उपन्यास का कथानक अत्यंत अपरिपक्व है।
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