स्त्री स्वतंत्रता या उच्छृंखल
अदल-बदल - आचार्य चतुरसेन शास्त्री
भारतीय समाज में नारी को धार्मिक दृष्टि से चाहे उच्च श्रेणी दी गयी हो पर समाज में उसका स्थान बहुत पीछे है। वह गर की चारदीवारी तक सीमित थी, शिक्षा से दूर रही लेकिन बदलते वक्त के साथ औरत को स्वतंत्रता मिली, वह घर की चारदीवारी से बाहर निकली, यहाँ तक तो सब उचित था लेकिन इस से आगे जो घटित हुआ वह अनुचित था।हम पहले चतुरसेन शास्त्री जी के उपन्यास 'अदल-बदल' का एक पृष्ठ देखें-
डाक्टर कृष्णगोपाल आज बहुत खुश थे। वे उमंग में भरे थे, जल्दी-जल्दी हाथ में डाक्टरी औजारों का बैग लिए घर में घुसे, टेबल पर बैग पटका, कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गए । बाथरूम से सीटी की तानें आने लगीं और सुगन्धित साबुन की महक घर-भर में फैल गई। बाथरूम ही से उन्होंने विमलादेवी पर हुक्म चलाया कि झटपट चाइना सिल्क का सूट निकाल दें।
विमलादेवी ने सूट निकाल दिया, कोट की पाकेट में रूमाल रख दिया और पतलून में गेलिस चढ़ा दी, परन्तु डाक्टर कृष्णगोपाल जब जल्दी-जल्दी सूट पहन, मांग-पट्टी से लैस होकर बाहर जाने को तैयार हो गए तो विमलादेवी ने उनके पास आकर धीरे से कहा, "और खाना ?"