कर्नल रंजीत मार्का असली उपन्यास
सफेद खून- कर्नल रंजीत
इन दिनों कर्नल रंजीत के उपन्यास पढे जा रहे हैं। जो लाफी रोचक और रहस्यमयी होते हैं। वैसे कर्नल रंजीत का लेखन सबसे अलग तरह का होता था, कहानी में अत्यधिक घुमाव और अत्यधिक ही रहस्य होता था।मैंने अप्रेल माह में कर्नल रंजीत के पांच उपन्यास पढे थे- मृत्यु भक्त, लहू और मिट्टी, हांगकांग के हत्यारे, 11 बजकर 12 मिनट और एक उपन्यास था बोलते सिक्के ।
फिर मई माह में कर्नल के उपन्यास नहीं पढे लेकिन जून में एक बार फिर कर्नल रंजीत पढना आरम्भ किया है। जून माह में 'काला चश्मा, सफेद खून, चांदी की मछली, रात के अंधेरे में और एक उपन्यास आग का समंदर आदि पढे और पढे जायेंगे।
अब हम चर्चा कर रहे हैं, उस उपन्यास का नाम है -सफेद खून।
और सफेद खून के बाद 'चांदी की मछली' उपन्यास की समीक्षा प्रकाशित की जायेगी जो 'सफेद खून' के साथ ही संलग्न है।
पहले हम प्रस्तुत उपन्यास का प्रथम दृश्य पढते हैं जिसका शीर्षक है बनफ्शई आंखें
बनफ्शई आंखें
वह शहर का सबसे महंगा होटल था। उसका नाम भी बहुत प्यारा था-'महबूबा', 'होटल महबूबा', जैसे वह होटल न हो, मेहमानों की महबूबा हो। उसका हर कमरा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात प्रेम-कथाओं के हीरो और हीरोइनों के मोहक चित्रों से सजा हुआ था, जैसे सेम्सन और डिलायला, अन्तोनी और क्लियोपेट्रा, रोमियो और जूलियट, हीर-रांझा, सोहनी महिवाल आदि। होटल महबूबा की दूसरी मंजिल के 29 नम्बर फ्लैट में दो स्त्रियां कामकाजी बातें कर रही थीं। उनमें एक स्त्री की आयु कुछ अधिक थी और दूसरी भरपूर जवान थी। लेकिन अधिक आयु वाली स्त्री भी अत्यधिक सुन्दर और आकर्षक थी। अधिक आयु की स्त्री युवा स्त्री का इंटरव्यू लें रहीं थी।
"फिर सोच लो। यह एक अच्छी नौकरी का सवाल है। तुम्हें सायों, परछाइयों, रोशनियों, झिलमिलाहटों और लहरों से डर तो नहीं लगता?" अधिक आयु की स्त्री ने पूछा।
“मैं विज्ञान-युग की आधुनिक विचारों की लड़की हूं। अंधविश्वासी और रूढ़िवादी नहीं हूं।" युवती ने उत्तर दिया।
“तुम्हें दिन में सपने देखने की आदत तो नहीं है?"
"नहीं।"
"अकेलेपन में तुम्हारी कल्पना स्वयं ही कुछ चित्र तो नहीं बनाने लगती ?"
"मैं केवल अपने और मानव जाति के भविष्य के सम्बन्ध में ही सोचती हूं।"
"तुम्हारे इस उत्तर से मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तुम्हारा नाम उपासना, है न?"
"जी हां।"
"तुम्हारे माता-पिता का देहान्त हो चुका है?"
"जी हां।"
"तुम्हारा कोई रिश्तेदार है?"
"जी, कोई नहीं।"
"कांग्रेच्युलेशन्स उपासना ! तुम्हें यह नौकरी आज ही मिल रही है। हर महीने साढ़े छः सौ रुपये मिलेंगे। कपड़ा और खाना मुफ्त। जहां तुम जा रही हो वह राणा प्रताप के जमाने का एक प्राचीन किला है। लेकिन उसमें सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। तुम्हें रहने के लिए शानदार कमरा मिलेगा। घर की सारी व्यवस्था तुम्हें संभालनी होगी। दस-पन्द्रह नौकर तुम्हारे नीचे काम करेंगे। इस किले के सम्बन्ध में आसपास बहुत-सी कहानियां प्रसिद्ध हैं। लेकिन तुम उन कहानियों को एक कान से सुनोगी और दूसरे कान से निकाल दोगी। ठाकुर वीरेन्द्रसिंह बहुत ही सज्जन हैं। उनकी पत्नी तुम्हारे लिए ममतामयी मां सिद्ध होंगी। उनकी बेटी तुम्हें अपनी बहन समझेगी। यह लो फर्स्ट क्लास का टिकटें । कल रात को रवाना हो जाओ और यह है मेरा सिफारिशी पत्र। तुम्हारा स्वागत बड़े हर्ष और उल्लास से किया जाएगा।" अधिक आयु की स्त्री ने टिकटें और एक पत्र उपासना को देते हुए कहा, "अब तुम जा सकती हो।"
"धन्यवाद, मैं आजीवन आपका उपकार न भूलूंगी।" उपासना ने दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा।(सफेद खून- उपन्यास का प्रथम दृश्य )
नौकरी मिलने का बाद उपासना जा पहुंची राजस्थान के भरपूर जिले के ठाकुर वीरेन्द्र सिंह के किले पर और यहाँ पहुंचने पर उसे पता चला की किले को दिल्ली शिफ्ट किया जा रहा है।
"हम अपना यह किला दिल्ली ले जा रहे हैं।" ठकुरानी ने कहा।
"आप अपना किला दिल्ली ले जा रही हैं? कैसे?" उपासना ने चकित होकर पूछा।
"किले को पहिये लगाकर दिल्ली नहीं ले जाया जाएगा," ठकुरानी ने हंसते हुए कहा, "इसका एक-एक पत्थर अलग किया जाएगा। इसकी खिड़कियां और दरवाजे निकाले जाएंगे। फर्श की सिलें उखाड़ी जाएंगी। इसके पूरे खम्भे अलग किए जाएंगे। छतों की कड़ियां और लकड़ी का सारा काम अलग कर दिया जाएगा। दो मालगाड़ियों में भरकर पूरा किला पूसा रोड के एक पथरीले टीले पर पहुंचा दिया जाएगा। उस टीले पर इसके सारे अंजर-पंजर इसी तरह जोड़ दिए जाएंगे। और हमारा रत्नागिरि किला दिल्ली में एक दर्शनीय इमारत बन जाएगा। इस किले को दिल्ली की पूसा रोड पर ज्यों का त्यों नये सिरे से बनाने में बम्बई का एक विख्यात आर्कीटेक्ट अपनी शिल्प-कला के कमाल का प्रदर्शन करेगा।"
"आप इस किले को दिल्ली क्यों ले जा रही हैं?" उपासना ने पूछा।
"मेरे पतिदेव वहां प्राचीन, ऐतिहासिक, दुर्लभ वस्तुओं की दुकान खोलना चाहते हैं।"
यहाँ उपासना को काम मिलता है ठाकुर की बेटी कादम्बरी का दिल बहलाने और घर के व्यवस्था देखने का।
"बेटी, यह मिस उपासना हैं। आज से घर का सारा इन्तजाम यही किया करेंगी।" ठकुरानी ने कहा और फिर उपासना की ओर देखकर कादम्बरी की ओर इशारा करके बोलीं, "यह मेरी बेटी कादम्बरी है। उपासना, तुम्हें इसका दिल बहलाना होगा। कादम्बरी को अपनी ताजगी देनी होगी। इसे अपनी मुस्कराहटें देनी होंगी।"
यहाँ आकर उपासना को महसूस होता है की वह एक अजीब सी दुनिया में फंस गयी है और दिन प्रतिदिन उसे कमजोरी अनुभव होने लगती है।
वहीं किले से ठाकुर साहब गायब हो जाते हैं और आर्किटेक्ट रामचंद्र की हत्या हो जाती है और इस रहस्यमयी माहौल में एक दिन उपासना की भी मृत्यु हो जाती है।
रत्नागिरी किले में घटित हो रही रहस्यमयी घटनाओं को सुलझाने के लिए मेजर अपने स्तर पर अपनी टीम के साथ वहाँ पहुंच जाता है।
लेकिन यहाँ पहुंच कर मेजर और उसकी टीम चकित रह जाती है, वहाँ का रह एक सदस्य स्वयं में एक रहस्य प्रतीत होता है, यहाँ तक की नौकर तक भी इतने अजीब होते है की उन्हे देख की जुगुप्सा होने लगती है।
"तुम चीखना क्यों चाहती थीं डोरा ?" मेजर ने परेशान होकर पूछा।
"आपने शायद पीली जर्द हो चुकी उस युवती के हाथ नहीं देखे। उसके हाथ केकड़े की टांगों की तरह थे और उसकी छाती के दाग..."
पदमा कंचन नौकरी की तलाश में जम्मू जा पहुंची थी। जहाँ 'राव विला' में उस काम मिला था । यहाँ पहुंचते ही कत्ल की वारदात हो जाती है।
पद्मा कंचन जब राव विला पहुंची थी तो यहाँ थियेटर की कुछ और भी लड़कियां भी आयी हुयी थी क्योंकि राव परिवार थियेटर से संबंधित था और प्रतिवर्ष कार्यक्रम करवाता था।
लेकिन उन लड़कियों का जब कत्ल होने लगे तो राव विला में हलचल मच गयी।
वहीं पदमा कंचन को यहाँ बहुत अजीब सा प्रतीत होता है। पदम कंचन जिस कमरे में सोती है उसे लगता है वहां की तस्वीरें बोलती हैं,कभी कभी उसे लगता है रात को कोई स्त्री उसे अपने साथ ले जाती है। और वह कमरे की दीवार से पार निकल जाती है।
पद्मा कंचन को अपने बेडरूम में नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रही थी कि घर वाले उसे मनहूस समझेंगे कि उसके घर में पांव रखते ही हत्या हुई। राव विला में उसकी पहली रात कितनी भयानक थी ! उसे नींद नहीं आ रही थी। वह विचारों में खोई हुई थी कि खटाक से उसके बेडरूम के दरवाजे की चटकनी नीचे गिर पड़ी। दरवाजे के पट आपस में बजकर खुल गए। हवा का एक तेज बगूला उसके बेडरूम में आकर नाचने लगा। फिर वह चक्कर खाता हुआं कमरे से बाहर निकल गया। वह बगूला देर तक उसकी नजरों में समाया रहा। उसे वह किसी नारी की आकृति-सा दिखाई दिया था। वह भय से कांप उठी। कुछ देर बाद वह संभलकर उठी। उसने दरवाजे में अन्दर से ताला लगाया और आकर पलंग पर लेट थी।
यहाँ 'राव विला' में जहां एक तरफ मर्डर मिस्ट्री चलती है
मेजर बलवंत यहाँ मर्डर मिस्ट्री हल करने आता है और हल भी करता है और वापस मुम्बई की तरफ प्रस्थान करने से पूर्व दिल्ली ठहरता है। अभी मेजर दिल्ली में ही था कि उसे सूचना मिलती है राव विला घर की नौकरानी की मृत्यु हो गयी।
और उसका शरीर इतना सफेद हो जाता है जैसे उसमें कभी रक्त ही नहीं था।
मेजर का दिमाग सक्रिय हो जाता है उसे लगता है इस तरह की घटनाएं सामान्य नहीं है, इनके पीछे कुछ रहस्य तो अवश्य है । मेजर को भरतपुर के रत्नागिरि किले की नौकरानी याद आती, उसे ट्रेन में सफेद लड़की मरी हुयी याद आती है और अब राव विला की नौकरानी की सफेद लाश ।
मालती ने कहा, "इस समय तक सफेद लाशों के हमारे सामने तीन केस आए हैं। दो केस ऐसे हैं जिनके साथ हत्या की घटनाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें एक केस भरतपुर का है और दूसरा जम्मू का। दोनों केसों में हत्या की पहेली सुलझ गई, लेकिन उपासना और पद्मा कंचन के दस दिनों के अन्दर ही मर जाने की पहेली हल नहीं हुई। तीसरा केस कलकत्ता का है। वहां रिक्शा में एक युवती ने दम तोड़ दिया था। उसकी लाश भी रूई की तरह सफेद थी। इस केस के साथ हत्या की कोई घटना जुड़ी हुई नहीं थी। अगर होती तो अखबारों में जरूर प्रकाशित होती। क्या आपने इस पहलू पर विचार किया है?"
"केस का यही पहलू तो टेढ़ा है," मेजर ने कहा, "लेकिन मुझे आशा है कि जम्मू में यह रहस्य खुल जाएगा।"
और मेजर बलवंत सक्रिय हो जाता है इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए । और फिर उसे पता चलता है की यह एक बहुत ही अनोखा और रहस्यमयी केस है, जिसका संबंध भारत के अलग-अलग राज्यों/ शहरों और लोगों से है।
और फिर उपन्यास की कहानी अंत में जाकर एक और ही रहस्यमयी मोड़ले लेती है जिसकी किसी ने कल्पना तक भी न की थी।
...एक के बाद एक होने वाली युवतियों की रहस्यमय मौत... हर युवती की लाश पर कोई न कोई रहस्यमय चिह्न...
सफेद खून
कर्नल रंजीत का..... जासूसी उपन्यास, जिसमें अपराध की अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का ऐसा लोमहर्षक स्वरूप उभरकर आता है जो पाठक को पग-पग पर दहलाता चलता है।
अब हम चर्चा करते हैं कर्नल रंजीत के उपन्यासों के विशेष शैलियों की-
- मैंने पूर्व समीक्षाओं में भी लिखा है की इनके उपन्यासों में चीखों का विशेष वर्णन होता है। उपन्यास 'रात के अंधेरे' में तो हर दूसरे पृष्ठ पर 'चीख' है। वहीं इनके उपन्यासों चीखों के अतिरिक्त रहस्यमयी आवाजें भी होती हैं, जैअए मेढक टर्राने की।
प्रस्तुत उपन्यास का उदाहरण देखें-
प्रार्थना एक गिलास में संतरे का जूस लेकर चली गई। पांच मिनट के बाद एक साथ तीन चीखें सुनाई दीं। फिर चार हिचकियों की आवाजें इस तरह आई जैसे मेढके टर्रा रहे हों। फिर दौड़ते हुए कदमों की आवाज आई। प्रार्थना दौड़ती हुई हॉल में पहुंची और हांफती हुई बोली, "चाचाजी मर गए!"
प्रस्तुत उपन्यास में कुछ दृश्य तो इतने वीभत्स है कि उन्हेंपढकर जुगुप्सा पैदा होती है।
बुड्ढे ने पेट के एक चाक हिस्से में खिचड़ी डाल दी और दूसरे हिस्से में हलवा भर दिया। वह विचित्र और भयानक से मन्त्र पढ़ रहा था। बुढ़िया महीन और थूकती हुई आवाज में चीख रही थी। उसकी चीखें सुनने वालों के दिलों में बर्फीली हवा की तरह घुसी जा रही थीं।
फिर बुढ़िया ने पेट के चाक हिस्सों में से खिचड़ी और हलवा खाना आरंभ कर दिया। हलवा और खिचड़ी की एक-एक मुट्ठी खाने के बाद बुड्ढा और बुढ़िया बड़े दर्दभरे स्वर में विलाप करने लगते। दिल हिला देने वाला विलाप, जैसे दूर जंगल में भेड़िये चिल्ला रहे हों।
एक और वीभत्स दृश्य देखें जो आपको विचलित कर सकता है-
- दो मिनट के बाद उसने अपनी उंगलियों की दराज में से फिर खिड़की की ओर देखा। वह चेहरा अभी तक खिड़की के पीछे था। एक स्त्री का सुर्ख-सफेद चेहरा। चेहरे के सफेद हिस्से में केवल हड्डियां ही हड्डियां थीं। जबड़े, गाल और माथे की हड्डी। माथे और गाल की हड्डियों के बीच जगह खाली थी। एक गड्ढा था जिससे लगता था कि यहां कभी आंख होगी। चेहरे का सफेद हिस्सा मुर्दा था। चेहरे का आधा सुर्ख हिस्सा एक युवती के चेहरे का आधा हिस्सा था। जिन्दा हिस्सा। उसमें चमकती हुई आंख थी। आधी नाक गोश्त और हड्डियों की थी। आधे होंठ सुर्ख थे। वह आधा जिन्दा और आधा मुर्दा चेहरा जब मुंह फाड़ता तो कंचन को लगता कि....
कभी-कभी कर्नल रंजीत भयभीत पात्र से भी इतना सुक्ष्म वर्णन करवा देते हैं, वैसा सामान्य अवस्था में भी कोई पात्र नहीं कर सकता।
एक डरा हुआ व्यक्ति, जिस चीज से डरा है उसका इतना सुक्ष्म वर्णन नहीं कर सकता।
डर कर भागी नौकरानी उपासना के पास इतना समय कहां था की वह यह ध्यान देती मृतक सातवीं सीढी पर है या आठवीं सीढी पर।
उपन्यास 'रात के अंधेरें' में वैशाम्बी रात को एक साय से डरती है और बेहोश हो जाती है, लेकिन बाद में वह साये का इतना विस्तार से वर्णन कर देती है जैसे वह साया उसकी ड्राइंग हो।
प्रस्तुत उपन्यास का एक उदाहरण देखें-
उपासना की आंखें फटी की फटी रह गईं। लाश उस स्थिति में नहीं थी जिसमें उसने उसे पहले देखा था। पहले लाश का सिर और धड़ सातवीं सीढ़ी पर ही था, लेकिन अब सिर आठवीं सीढ़ी पर पड़ा था। रामचन्द्रन का कोट उसके कन्धों पर से खिसका दिया गया था। उसकी पतलून की एक जेब बाहर निकली हुई थी। ऐसा मालूम होता था कि लाश को छेड़ने वाले ने रामचन्द्रन की जेबों की तलाशी ली है।
जासूसी उपन्यास साहित्य में लेखक कर्नल रंजीत की एक विशेष शैली थी, और जहां तक मेरी जानकारी है उस तरह के उपन्यास उनके बाद नहीं लिखे गये। कर्नल रंजीत पात्रों को बहुत अजीब तरह से प्रस्तुत करते थे, उनके उपन्यासों में ज्यादातर घटनाएं असामान्य होती थी । कभी कभी तो इतना अजीब होता था की पाठक कल्पना तक भी नहीं कर सकता ।
अगर कोई पात्र किसी की हत्या भी कर रहा है तो वह भी 'जापानी तकनीक' से हत्या करेगा। अब यह जापानी तकनीक क्या है?
ठीक बैसे ही जैसे पहले जलमुर्गी के सिर पर मोम रखकर आओ, फिर जब मोम पिघल कर उसकी आँखों में चला जाये और जलमुर्गी को दिखाई देना बंद जो जाये तो उसड पकड़ लो।
कुछ ऐसी ही अजीबोगरीब हरकते इनके पात्र करते हैं। जैसा प्रस्तुत उपन्यास में हैं।
कर्नल रंजीत के उपन्यासों मे वातावरण भी बहुत भयावह दर्शया जाता था ताकि उपन्यासों के पात्रों में दहशत बनी रहे ।
उपन्यास का शीर्षक 'सफेद खून' अनुकूल नहीं है, हां, 'सफेद लाश' नाम सार्थक हो सकता था।
उपन्यास की प्रथम घटना जो भरतपुर के रत्नागिरि किले से संबंधित है, अगर उसमें से उपासना वाला प्रसंग अलग कर दिया जाये तो वह एक अच्छा लघु उपन्यास बन सकता है।
-बहुत से लेखक उपन्यास के शीर्षक को लेकर असमंजस में रहते हैं, लेकिन कर्नल रंजीत के उपन्यासों के नाम तो अलग ही रहने दो, उनके अध्ययाओं के शीर्षक भी बहुत से उपन्यासों को मात देते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास में कुछ अध्यायों के शीर्षक देखें-
मडगार्ड पर खून, भयानक रहस्य आदि ।
अगर आप कर्नल रंजीत के उपन्यास पसंद करते हो या आप कर्नल रंजीत के विशेष शैली, उनकी वास्तविक शैली का उपन्यास पढना चाहते हो तो यह उपन्यास अवश्य पढें।
उपन्यास- सफेद खून
लेखक- कर्नल रंजीत
पृष्ठ- 140
प्रकाशक- मनोज पाकेट बुक्स, दिल्ली
कर्नल रंजीत के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
मृत्यु भक्त ।।
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