Tuesday, 17 June 2025

चांदी मछली - कर्नल रंजीत

मेजर बलवंत की एक मर्डर मिस्ट्री कहानी
चांदी की मछली- कर्नल रंजीत

SVNLIBRARY में आप इन दिनों लगातार पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित रोचक उपन्यास । यह उपन्यास जहाँ मनोरंजन करने में सक्षम है वहीं आपको तात्कालिक जटिल कहानियों से भी परिचित करवाते हैं। 
तो अब आप पढें कर्नल रंजीत के उपन्यास 'चांदी की मछली' की समीक्षा-
गरीबी और बेकारी
रमणीक देसाई के लिए जीवन अचानक एक कटु यथार्थ बन गया था। ऐसा विषैला घूंट जिसे हलक से उत्तारना कठिन था। वह रेलवे - हड़ताल का शिकार हो गया था। उसने किसी प्रकार की तोड़-फोड़ में भाग नहीं लिया था, लेकिन उस पर तोड़-फोड़ करने के आरोप में मुकदमा चल रहा था। उसे आशा थी कि उसके साथ न्याय किया जाएगा। वह तीन महीने से बेकार था। बेकारी के भूत ने उसका स्वास्थ्य चौपट कर दिया था। चिन्ता और परेशानी से उसका रंग पीला पड़ गया था। उसकी जेब में आज केवल अट्ठाईस रुपये बाकी रह गए थे। उसकी आंखों में उसका भविष्य अंधकारमय हुआ जा रहा था और उसको यह भी दिखाई दे रहा था कि राधिका और उसके प्रेम की धज्जियां उड़ जाएंगी और उसका प्यार आत्महत्या कर लेगा।
आज वह अधिक चिन्तित, अधिक दुखी, अधिक परेशान और अधिक भयभीत था। वह बाजार से ह्विस्की का एक अद्धा खरीद लाया था और अपने दो कमरों के फ्लैट में बैठा उबले हुए आलुओं पर नमक छिड़ककर ह्विस्की पी रहा था। महीना खत्म होने वाला था। उसे अपने फ्लैट का किराया चुकाना था। परेशानी के कारण उसे ह्विस्की का मजा नहीं आ रहा था।
राधिका अमीर मां-बाप की बेटी थी। वह रेलवे का एक गरीब मुलाजिम था। एक मामूली-सी घटना ने  राधिका से उसके प्रेम का श्रीगणेश कर दिया गया था। 
(चांदी की मछली- कर्नल रंजीत, उपन्यास अंश)
   मिस्टर रमणीक एक गरीब और बेरोजगारी लड़का था और उसकी प्रेयसी एक अमीर परिवार से संबंध रखती थी। मित्र इसे आप 'अमीर-गरीब वाली प्रेम कहानी' मत समझ लेना, यह तो कर्नल रंजीत का मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है।
तो चलो, बात को आगे बढाते हैं।
राधिका को रमणीक से होटल में मिलना था- "मैं तुमसे आज 'लकी स्टार' होटल में मिलूंगी । तुम शाम के साढे सात बजे वहां आ जाना ।"
       तो अपना मिस्टर रमणीक तय समय पर होटल 'लकी स्टार' पहुंच गया। लेकिन राधिका वहाँ नहीं पहुंची थी, राधिका इंतजार करते हुये रमणीक ने एक खतरनाक घटना देखी ।
होटल के लॉन में शोर मच गया। तरह-तरह की आवाजें आने लगीं। लोग दौड़ने लगे।
         रमणीक ने तूफान की तरह आने वाली कार को पहचान लिया था। वह राधिका के पिता सेठ जमुनादास चतुर्वेदी की कार थी। कार आगे खड़ी कारों से टकराकर धमाके के साथ रुक गई और जलने लगी। उस कार में से शोफर बाहर निकला और अपने हाथ आगे की ओर फैलाकर गिर पड़ा। सबने देखा, उसकी पीठ में एक खंजर धंसा हुआ था। पीठ खून से लाल हो रही थी।
रमणीक घबराकर उस कार की ओर दौड़ा। बहुत-से लोग उससे पहले ही कार के पास पहुंच चुके थे और कार की अगली सीट से किसी को निकाल रहे थे। वह सेठ जमनादास थे। उनकी दाईं कनपटी लाल हो रही थी।
(उपन्यास अंश)
सेठ जमनादास मर चुके थे और उनकी बेटी राधिका घर से गायब थी, घर के नौकर घर में बेहोश थे, घर सारा अस्त-व्यस्त था।
अब रमणीक को राधिका की चिंता थी और इस चिंता में वह जा मिला प्रसिद्ध जासूस मेजर बलवंत से और मेजर बलवंत ने उसकी बातॊं को सुना और इसकी मदद करने का वादा किया ।
- रमणीक बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ मेजर बलवन्त को देखने लगा। वह सोच रहा था, मेजर कितना महान व्यक्ति है! मानवीय भावनाओं का कितना सम्मान करता है! अपने पास आने वाले हर फरियादी की स्थिति को समझता है और केवल अपने परिश्रम का मूल्य लेता है। लोभ और लालच से उसका कोई सम्बन्ध नहीं हैं। (उपन्यास अंश)
  अपने अन्वेषण में मेजर बलवंत को पता चलता है की सेठानी जी की कनाडा जाने के बाद सेठ जमनादास के पास दो व्यक्तियों का आना-जाना हुआ था- एक थी निर्मल कौशिक और दूसरा नाम है बाबू आनंदस्वरूप जी ।
बाबू आनंदस्वरूप जी से चर्चा के बाद मेजर बलवंत के सामने दो और नाम आते हैं। एक नाम है निर्मल कौशिक के भाई -बहन यशपाल कौशिक और श्रद्धा कौशिक का।
      जहाँ एक तरफ मेजर बलवंत सेठ जमनादास चतुर्वेदी और ड्राइवर की हत्या की खोजबीन कर रहा था वहीं गायब राधिका का प्रेमी मिस्टर रमणीक एक हत्या के आरोप में फंस जाता है।
फिर जैसे मेजर बलवंत और उसकी टीम सुधीर, सुनील,मालती, डोरा, सोनिया तथा पुलिस के साथ मिलकर इन्वेस्टिगेशन को आगे बढाते हैं वैसे -वैसे कहानी उलझती जाती है।
फिर कुछ हत्याएं और कुछ घटनाएं घटित होती हैं जिसे मेजर बलवंत भी नहीं समझ पाता, इसलिए वह कहता है-
"हत्या का यह केस बहुत ही पेचीदा है। हर व्यक्ति संदिग्ध है।" सोनिया ने कहा।
"बस, इस केस की विशेषता यहीं है कि जो लोग सामने हैं वे भी संदिग्ध हैं और जो लोग सामने नहीं हैं वे भी संदिग्ध हैं।"

और फिर मेजर बलवंत अपने बुद्धि कौशल और सहयोगियों के सहयोग से अंततः वास्तविक अपराधी को पहचाने में और उसे पकड़ने में समर्थ होता है।
  उपन्यास की कहानी बहुत जटिल है, कभी कभी तो कुछ समझ में ही नहीं आता की कौन किसका रिश्तेदार है और कौन किसका साथ दे रहा है।
उपन्यास का शीर्षक 'चांदी की मछली' उपन्यास की कहानी के अनुकूल है, लेकिन यह उपन्यास के अंत में जाकर स्पष्ट होता है।
कुछ और विशेष
- इस उपन्यास में सुधीर, डोरा और मालती का अपहरण हो जाता है
कर्नल रंजीत लिखित उपन्यासों में आपको कुछ बातों-घटनाओं का वर्णन बहुत सुक्ष्म मिलता है और वह भी उस व्यक्ति के द्वारा जो इतना वर्णन करने में सक्षम भी नहीं होता ।
यहां एक अपराधी द्वारा एक नौकर को बेहोश किया जाता लेकिन होश में आने के बाद वह नौकर अपराधी का इतना सुक्ष्म वर्णन करता है जैसे दोनों साथ-साथ बैठे चाय पी रहे थे।
- "उनके नाक और मुंह पर चौड़ी सफेद पट्टी बंधी हुई थी। पट्टियों के किनारों पर दो-दो डोरें थीं जिनमें गर्दन के पीछे गांठ त्वगी हुई थी। औरत मझोले कद की थी। उसके बाल भूरे थे। नाक सीधी थी और गर्दन के पीछे जूड़ा था। उसकी आंखें बिल्लौरी थीं। उसने कोटनुमा शर्ट और पैरेलल पतलून पहन रखी थी। पतलून में उसकी जांचें बहुत मोटी मालूम हो रही थीं। मर्द बहुत ही तंग पतलून पहने हुए था। शर्ट बहुत लम्बी थी। उसका कद पांच फुट दस इंच था। पैरों में मोटे-मोटे तस्मों वाले जूते थे। उसकी तंग पतलून की दाईं जेब फूली हुई थी। शायद रिवॉल्वर था उस जेब में।"
मेजर बलवंत के उपन्यासों में आपको मेजर के कुछ शे'र मिल जाते हैं।
यहाँ भी मेजर का एक शे'र प्रस्तुत है।
जो लोग मुल्क भर में मचाते थे खलबली
फैली है आज उनके ही हलके में खलबली ।।


कभी -कभी प्यार के बीच धुआं भी बाधक बन जाता है। यहाँ भी सोनिया और मेजर बलवंत के बीच सिगार का धुआं आ गया-
इंस्पेक्टर के जाने के बाद सोनिया मेजर से लिपट गई। वह भी मेजर की सूझबूझ से बहुत प्रभावित हुई थी। फिर उसने मेजर की जेब में से सिगार निकालकर उसके होंठों में लगा दिया और लाइटर से सुलगा दिया। मेजर ने सिगार का कश लगाया तो सोनिया मेजर की ओर बड़े प्यार से देखने लगी। मेजर इस समय एक महान चिन्तक और विचारक दिखाई दे रहा था। सोनिया को मेजर पर इतना प्यार आया कि उसने मेजर के होंठों से सिगार निकाल लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। लेकिन दूसरे ही पल हटा लिए और खांसने लगी। सिगार के धुएं की गंध उसकी नाक में चढ़ गई थी।
मेजर बलवंत का एक डायलॉग भी पढ लीजिए, जो उन्होंने सोनिया से कहा-
संसार में वही स्त्री महान होती है जिसे हर समय अपने साथी की आवश्यकता का ध्यान रहता हैं।
 
लेखक कर्नल रंजीत द्वारा लिखित उपन्यास 'चांदी की मछली' एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है जो काफी उलझाव लिए हुये और काफी दिलचस्प उपन्यास है।
अगर आप कर्नल रंजीत को पसंद करते हैं तो यह मर्डर मिस्ट्री आपको पसंद आयेगी, इसमें 'कर्नल रंजीत मार्का' समस्त तत्व समाहित हैं।
उपन्यास -चांदी की मछली
लेखक -  कर्नल रंजीत
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स, दिल्ली
कर्नल रंजीत के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

No comments:

Post a Comment

चांदी मछली - कर्नल रंजीत

मेजर बलवंत की एक मर्डर मिस्ट्री कहानी चांदी की मछली- कर्नल रंजीत SVNLIBRARY में आप इन दिनों लगातार पढ रहे हैं कर्नल रंजीत द्वारा लिखित रोचक ...