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Sunday, 1 June 2025

काला चश्मा- कर्नल रंजीत

चित्रों की चोरी और अंधेरे का रहस्य
काला चश्मा- कर्नल रंजीत

इन दिनों मेरे द्वारा कर्नल रंजीत के उपन्यास पढे जा रहे हैं। इस क्रम में एक और उपन्यास शामिल होता है जिसका नाम है 'काला चश्मा'।
वह काला चश्मा जिसे लोग काली रात में भी पहनते हैं, क्यों?

इसके लिए उपन्यास पढना होगा। पर अब हम बात करते हैं उपन्यास के प्रथम दृश्य की को एक बैंक डकैती से संबंधित हैं और अध्याय का नाम भी 'बैंक डकैती' है।

      सुबह के ठीक नौ बजे थे। प्रिन्सेज स्ट्रीट के दोनों ओर बड़ी बहुमंजिला इमारतों में स्थित शोरूम, विभिन्न कम्पनियों के कार्यालय, बैंक और दुकानें खुलने लगी थीं। बाजार में भीड़-भाड़ बढ़ने लगी थी।
नेशनल ग्रांड बैंक का आगे की ओर का दरवाजा अभी तक बन्द था लेकिन बैंक के कर्मचारी पिछले दरवाजे से अन्दर आ चुके थे। उन्होंने अपनी-अपनी सीटें संभाल ली थीं और अब साढ़े नौ बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
ठीक साढ़े नौ बजे दरबान शक्तिसिंह ने ब्रांच मैनेजर रविराय से सामने वाले दरवाजे की चाबियां लीं और बाले खोलकर शटर ऊपर उठा दिया ।
बाहर खड़े चार-पांच व्यक्ति अन्दर आ गए । बैंक के काम की दैनिक प्रक्रिया आरम्भ हो गई। लेकिन बैंक का काम आरम्भ हुए अभी पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए थे कि अचानक हॉल में हल्का-हल्का-सा अंधेरा छाने चगा।
सब लोग चौंककर इधर-उधर देखने लगे। हॉल में लगी ट्यूबें जल रही थीं। फिर भी उनकी दूधिया रोशनी बड़ी तेजी से मद्धिम पड़ती चली जा रही थीं।
"लगता है एक्स्ट्रा लोड बढ़ जाने के कारण वोल्टेज में कमी आ गई है।" कैशियर विष्णु मेहता ने अपने साथी रामाराब से कहा और कैशबॉक्स में नोटों की गड्डियां रखने लगा जो अभी-अभी एक बहुत बड़ी फर्म का कैशियर जमा कर गया था।

  बैंक में अचानक इतना ज्यादा अंधेरा हो जाता है की कुछ भी दिखाई नहीं देता,यहाँ तक की बल्ब की रोशनी भी अंधेरे में निष्क्रिय हो जाती है। इसी दौरान बैंक में रखी लाखों की राशि चोरी हो जाती है।
   मुम्बई शहर के धनाढ्य सेठ मुरलीधर जालान की पुत्री विभा की सगाई के दिन- अचानक चारों तरफ अंधेरा छा गया। हाॅल में उपस्थित लोग चौंककर इधर-उधर देखने लगे। शायद बिजली चली गयी थी ।
....वे लोग आश्चर्य में डूबे अभी एक-दूसरे की ओर देख हो रहे थे कि दूसरे ही पल अंधेरा इतना बना हो गया कि पास खड़े व्यक्ति का चेहरा देख पाना तो दूर, अपने हाथ तक को देख पाना असम्भव हो गया ।

मेजर बलवंत अपने साथियों के साथ जब ताजमहल देखने गये तो - सहसा उस हर्ष उल्लास-भरे वातावरण में आश्चर्य की एक लहर बिजली की तरह कौंध गई। ताजमहल के चारों ओर खड़ी भीड़ आंख फाड़-फाड़कर ताजमहल के गुम्बद की ओर देखने लगी ।
      क्षण-भर पहले शरद-पूणिमा के चन्द्रमा की दूधिया चांदनी में सफेद नगीने की तरह जगमगाते गुम्बद व सफेदी पर अचानक ही काली-काली परछाइयां उभर आई थीं ।
"यह क्या ?" भीड़ में खड़े लोगों के मुंह से निकला और फिर वे आश्चर्य से आंखें फाड़े दूधिया चांदनी बरसाते आकाश की ओर देखने लगे, जिस पर स्याह बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े न जाने कहां से घुमड़ आए थे।

सेठ नगीनदास मुम्बई शहर के प्रसिद्ध हीरा व्यवसायी हैं जो की एक दिन गायब हो गये और फिर एक दिन सेठ की पुत्री जया भी घर से गायब हो गयी।
अब घर में जिम्मेदार दो व्यक्ति रह गये थे नौकरानी सोनू और दूसरा देवी सिंह, जो सेठ जी का सेक्रेटरी है।
मेजर बलवंत की नजर में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुयी जहाँ दिन में भी अंधेरा छा गया था। ऐसे अंधेरे में बैंक लूट लिया गया, ऐसे ही अंधेरे में सेठ मुरलीधर जालान की पुत्री विभा का अपहरण हो गया।
वहीं शहर में लगी एक प्रदर्शनी में से चित्रकार बेणीमाधव के असली चित्र चोरी हो गये और उनकी जगह नकली चित्र लगा दिये गये।
  अब मेजर बलवंत के सामने कुछ चुनौतियां थी और यह चुनौतियां थी- बैंक के लूटेरों को ढूंढना, सेठ नगीनदास और उसकी पुत्री जया की खोज, सेठ जालान की पुत्री विभा की खोज करना, अंधेरे के रहस्य का पता लगाना और गायब हुये चित्रों को खोजना।
अब कोई भी कड़ी कहीं किसी के साथ नहीं मिल रही थी। यहां मेजर के सहयोगी सुधीर और मालती का अपहरण भी हो जाता है।
मेजर परेशान था- मैं इन केसों की गुत्थी सुलझाने की जितनी कोशिश करता हूं वे उतनी ही उलझती जा रही हैं। एक के बाद एक रहस्य उन गुत्थियों को पेचीदा बनाता चला जा रहा है।" मेजर बलवन्त ने इजीचेयर पर बैठकर जेब से सिगार निकालते हुए कहा ।
  वहीं संयोग से मेजर का ध्यान सेठ मुरलीधर जालान और नगीनदास के ड्राइंग रूम में लगी पेंटिंग्स पर गया, मेजर को लगा यह पेंटिंग्स बदल दी गयी है। पर बदली किसने ?
मेजर अभी यह किस्सा सुलझा भी न पाया था कि देवी सिंह का भी अपहरण हो गया। वह भी सेठ के बंगले से, सोते वक्त, जबकि देवी सिंह के अलग-बगल में दो और व्यक्ति सो रहे थे।
  मुझे मेरे गांव का एक किस्सा याद आ रहा है। गांव में एक बार कुछ लड़कों की परस्पर लड़ाई हो गयी।
एक दिन तीन लड़के अपने प्रतिद्वंद्वी लड़के को गर्मियों की रात में उनके घर से चारपाई समेत उठाकरले गये, और उनके घर और गांव से कुछ दूर ले जाकर उसे पीटा।
वह लड़का कूलर के आगे, अपने परिवारजनों के मध्य सो रहा था।
और यहाँ उपन्यास में भी ऐसा ही अपहरण काका देवी सिंह का होता है।
वहीं मेजर बलवंत को सेठ जी का एक कथन याद आता है- जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं।
यही कथन खलपात्रों की पहचान का कारण बनता है। मेजर अपने साथियों और पुलिस के सहयोग से वास्तविक अपराधी को आखिर पकड़ ही लेते हैं।
उपन्यास की कहा‌नी काफी रोचक है और कर्नल रंजीत की विशेषताओं से परिपूर्ण है।
अब कुछ और बातों पर चर्चा हो जाये-
इस उपन्यास में मेजर बलवंत की एक रुचि का वर्णन भी है। मेजर फ्रांस के प्रसिद्ध चित्रकार लाॅसार्त्र का व्याख्यान सुनने भी जाता है।
मेजर बलवंत की कला में रूचि देखें-
पिछले कुछ दिनों से मेजर बलबन्त अपना खाली समय पेंटिंग में बिताने लगा था। जब भी उसके पास समय होता था कैनवेस के सामने जा खड़ा होता था। इन थोड़े से दिनों में ही उसने कई चित्र बना डाले थे। चित्रकला के पारखियों ने उसके चित्रों की जी खोलकर सराहना की थी। उसके कई इंटरव्यू देशी-विदेशी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। और यह जानकर कि मेजर बलवन्त केवल एक कुशल जासूस ही नहीं बल्कि एक सफल चित्रकार भी है, लोगों के आश्चर्य की कोई सीमा न रही।
कर्नल रंजीत के उपन्यासों में बंगले हमेशा ही रहस्यमयी होते हैं। वह चाहे उपन्यास 'सफेद खून' का बंगला हो या फिर प्रस्तुत उपन्यास में सेठ नगीनदास का-
"मेजर साहब, सेठ नगीनदास का यह बंगला बहुत ही विचित्र और रहस्यपूर्ण दिखाई दे रहा है। यह बाहर से जितना आधुनिक दिखाई देता है अन्दर से उतना ही पुराना है। लगता है जैसे शताब्दियों पूर्व बनाया गया हो। इसकी भीतरी स्थापत्य कला मुगल कालीन स्थापत्य कला से मिलती-जुलती है। भूल-भुलैया जैसे रास्ते, रहस्यपूर्ण जीने और तह-खाने तथा दरवाजे । पूरी इमारत किसी मुगल कालीन महल की तरह जटिल और रहस्यपूर्ण रहस्यपूर्ण है। यहां आने के बाद से अब तक मैं इस बंगले के थोड़े से हिस्से को ही देख पाई हैं। क्योंकि जब किसी नये दरवाजे से या गलियारे से आगे बढ़ती हूं तो घूमकर वहीं पहुंच जाती हूं जहां से रवाना हुई थी। कभी-कभी भटक भी जाती हूं। वह काली बिल्ली अभी तक रहस्य ही बनी हुई है जिसने काका देवीसिंह पर आक्रमण करने का प्रयत्न किया था और 'जिसके आक्रमण से बचने की कोशिश में वह अपना सन्तुलन गंवा बैठे थे और सीढ़ियों से गिरकर घायल हो गए थे।" डोरा ने बताया।
मेजर बलवंत की कुछ विशेषताएँ जो उनका स्टाइल भी है-
- दूसरे ही पल उसके होंठ गोल हो गए और वह जोर-जोर से सीटी बजाने लगा।
- सहसा उसके होंठ होल हो गए, लेकिन उसने सीटी नहीं बजाई ।
- मेजर बलवंत की एक और विशेषता है किसी रहस्य की खोज हो जाने पर उनके होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान दौड़ जाती है।
मेजर बलवंत जब उपनय के अंत में घटनाएं बताते हैं या प्रेस काॅन्फ्रेंस करते हैं तो 'आगे-पीछे' की समस्त जनता को एकत्र कर लॆते हैं।
यहाँ भी देखें-
- क्या तुम सत्तर- अस्सी आदमियों के लिए काॅफी या चाय की व्यवस्था कर सकती हो?
मेजर की शायरी-
जो निगहवां थे, पासवां थे कभी,
चोर, रहजन और लूटेरे हैं सभी ।।

कर्नल रंजीत द्वारा लिखित उपन्यास 'काला चश्मा' एक रोचक उपन्यास है, जो अपहरण, डकैती जैसी घटनाओं पर आधारित है।
मेजर बलवंत का परम्परागत अंदाज आपको उपन्यास में देखने को मिलता है।
मनोरंजन की दृष्टि से एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास- काला चश्मा
लेखक-    कर्नल रंजीत
प्रकाशक- मनोज पॉकेट बुक्स

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