Sunday 6 December 2020

401. विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा

एक खतरनाक संस्था से टकराव
विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा
मैकाबर सीरीज का प्रथम भाग
 वेदप्रकाश शर्मा जी की 'विजय- विकास' सीरीज में मैकाबर शृंखला के तीन उपन्यास हैं। 'विकास और मैकाबर', 'विकास मैकाबर के देश में',  और 'मैकाबर का अंत'।
     इस शृंखला के प्रथम उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पर चर्चा करते हैं। 
   मैकाबर अपराधियों की एक खतरनाक संस्था है और जिनका आतंक विश्व में फैल रहा है। कजारिया नामक देश से संचालित यह संस्था भारत में भी अपनी दहशत फैलाती है।
     भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर अरोड़ा के मूत्र को मैकाबर चुराना चाहता है और इस के लिए वह अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे को हायर करते हैं।
विजय-विकास और भारतीय सिक्रेट सर्विस इस मूत्र चोरी को रोकना चाहती है।
- मैकाबर संस्था की वास्तिकता क्या है?
- वह भारतीय वैज्ञानिक का मूत्र क्यों चुराना चाहती है?
- क्या इस चोरी में अलफांसे सफल हो पाया?
- क्या विकास और उसके साथी इस चोरी को रोक पाये?
    यह सब जान ने के लिए आपको 'वेदप्रकाश शर्मा जी' का उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पढना होगा।   मेरी इच्छा है वेदप्रकाश शर्मा जी के समस्त उपन्यास पढने की इसलिए शनै-शनै इस सफलता की तरफ अग्रसर हूँ। अभी वेदप्रकाश शर्मा जी के आरम्भिक उपन्यास पढे हैं। इन उपन्यासों में कुछ कहानी के अतिरिक्त कुछ रोचक जानकारियाँ भी प्राप्त हुयी हैं।
जैसे- वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास पढते वक्त पता चलता है की उन्होंने अपने नाम से पहले Ghost writing की है।
- प्रस्तुत उपन्यास में भी एक किस्सा है जब विजय दस साल पूर्व मैकाबर संस्था को पराजित कर देता है। यह घटनाक्रम वेद जी के Ghost writing वाल उपन्यास का भाग है।
उपन्यास की कहानी का आरम्भ विकास के पिता पुलिस सुपरिडेंटड रघुनाथ पर हुये एक हमले से होता है। लेकिन विकास के होते हुये यह हमला विफल हो जाता है। हमलवारों से विकास को एक उपन्यास शीर्षक 'धुंध' से मिलता है।
   विकास इस रहस्य को नहीं समझ पाता।
वहीं भारत के अतिरिक्त विषय के अन्य देशों में भी मैकाबर की दहशत जारी है।
अमेरिका में भी
"मिस्टर माइक, आप मैकाबर के विषय में जानते होंगे?"
"मैकाबर...।"-माइक अपनी कुर्सी से उछलते-उछलते बचा, स्वयं को सयंत करके बोला,-"आप कही उस कजारिया देश वाली मैकाबर की बात तो....।"
    एक मैकाबर सदस्य का पीछा करता-करता न्यूयॉर्क से जासूस ग्रिफित अमेरिका माइक से मिलता है। दोनों के संयुक्त प्रयास भी मैकाबर के सदस्य का रहस्य नहीं जान पाते।
वहीं भारत में मैकाबर अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे के माध्यम से प्रोफेसर अरोड़ा का मूत्र चुराना चाहते हैं।
"किसी वैज्ञानिक की प्रयोगशाला से कुछ चुराना है।"
"सवाल ये उठता है कि चुराना क्या है?"
"उस प्रोफेसर का मूत्र।"
"मूत्र...।"- अलफांसे के मस्तिष्क में घण्टियां सी बजने लगी।
     मैकाबर का कहर प्रत्येक देश में जारी था।
मैकाबर ने क्योंकि समूचे विश्व में तहलका रखा था। इसलिए प्रत्येक देश ने यह फैसला किया कि सब संगठित होकर संयुक्त रूप से मैकाबर का मुकाबला करें। (उपन्यास अंश)
  और फिर धीरे-धीरे विश्व के जासूस मैकाबर के विरोध में एकत्र होने हैं।
भारत - विजय-विकास
अमरीका- माइक स्पेलन
इंग्लैंड - ग्रिफित
बांग्लादेश- रहमान
पाकिस्तान- अकरम
रूस-   बागारोफ
फ्रांस- क्विजलिंग
आस्ट्रेलिया-  क्लार्क राॅबर्ट
जर्मन- हैम्बलर
चीन-फांगसान
   लेकिन मैकाबर के सामने यह जासूस भी टिक न पाये और मैकाबर ने सभी के सामने से कुछ जासूस ही गायब कर दिये। अब विश्व के जासूसों के समक्ष एक ही रास्ता था वह था मैकाबर में जाकर उस संस्थान से टकराना।
लेकिन यह इतना आसान न था।
उपन्यास में अलफांसे, विकास आदि के एक्शन दृश्य बहुत रोचक है। विशेष कर जब अलफांसे को गुस्सा आता है।
  वहीं जासूसी मित्रों में रूस के बागारोफ का हास्य किरदार प्रभावित करता है।
वेदप्रकाश शर्मा जी के जो आरम्भिक उपन्यास हैं वे सब विकास को स्थापित करने वाले उपन्यास हैं। इनमें कहानी पर ध्यान कम दिया जाता है और पात्रों के एक्शन को प्रमुखता दी गयी है। इस उपन्यास में भी विकास सब पर हावी रहता है।
विकास- कलयुग के सबसे बड़े और नन्हें शैतान का नाम विकास था। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में ही यह लड़का बहुत अधिक खतरनाक था। रैना और रघुनाथ का यह इतना अधिक शरारती और चंचल था कि विजय जैसा व्यक्ति भी उसके सामने पनाह मांगता था। इतने भयानक कार्य करता था कि अलफांसे जैसा शातिर भी भी कांप उठता था।
  उपन्यास पढते वक्त कुछ रोचक तथ्य भी मिले।
उपन्यास में एक खलपात्र के पास 'मौत की धुंध' उपन्यास होता है। उस पर लेखक महोदय ने लिखा है।
'मौत की धुंध'- कर्नल सुरेश का यह उपन्यास परशुराम शर्मा जी के उपन्यास 'छाया' सीरीज के चैलेंज में लिखी गयी थी।
'कर्नल सुरेश की यह धुंध सीरीज तो परशुराम शर्मा के 'छाया' सीरीज के चैलेंज में लिखी जा रही है।
प्रस्तुत उपन्यास 'विकास और मैकाबर' एक एक्शन-थ्रिलर उपन्यास है। जिसमें विकास का रौद्र रूप वर्णित है। यह वेदप्रकाश शर्मा जी के आरम्भिक उपन्यास में से एक है जिनमें विकास को स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
   अगर आप वेदप्रकाश शर्मा जी पाठक हैं, अगर आप विकास को पसंद करते हैं, अगर आप एक्शन उपन्यास पसंद करते हैं तब ये उपन्यास आपको अच्छा लग सकता है, अन्यथा नहीं।
उपन्यास - विकास और मैकाबर
लेखक-     वेदप्रकाश शर्मा
शृंखला-     विजय-विकास
मैकाबर सीरीज का द्वितीय भाग समीक्षा


2 comments:

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...