Tuesday, 1 July 2025

नीलमणि- आचार्य चतुरसेन शास्त्री

परिवार और आधुनिक में घिरी औरत की कहानी
नीलमणि- आचार्य चतुरसेन शास्त्री

हिंदी कथा साहित्य में आचार्य चतुरेसन शास्त्री जी का नाम उनके उपन्यासों के कारण ज्यादा जाना जाता है । उनके लिखे सामाजिक, ऐतिहासिक और प्रेमपरक उपन्यास पाठकों में प्रिय रहे हैं।
श्री चतुरसेन शास्त्री जी का उपन्यास पढने का यह पहला अवसर है। इनके एक जिल्द में दो उपन्यास मिले थे, एक था 'नीलमणि' और दूसरा था 'अदल- बदल' । दोनों सामाजिक उपन्यास बदलते परिवेश को आधार बनाकर लिखे गये हैं।
पहले उपन्यास 'नीलमणि' का प्रथम पृष्ठ पढे-
मालकिन रसोईघर में बैठी बड़ी तत्परता से पकवान बना रही थीं। महाराजिन सामने बैठी उनकी मदद कर रही थी। रसोई के द्वार के पास मही बैठी दरांत से तरकारी काट रही थी। बहुत-से मीठे और नमकीन पकवान बन चुके थे और उनकी सोंधी सुगन्ध घर में भर रही थी। दिन काफी चढ़ चुका था; हवा में अधिक उष्णता न थी । सूरज की धूप खिल गई थी। परिश्रम और चूल्हे की गर्मी के कारण मालकिन के उज्ज्वल ललाट पर पसीने की बूंदें मोती की लड़ी के समान सोह रही थीं। उन्होंने फुर्ती से हाथ चलाते हुए महरी से कहा - "देख तो री रधिया, यह लड़की अभी सोकर उठी या नहीं। इस लड़की से तो भई नाक में दम है, दिन बांस-भर चढ़ आया और महारानी अभी सो रही हैं। लड़की क्या है, कुम्भकरण की दादी !"
      महरी ने अपनी सुर्मई आंखों से गृहिणी को देखा और हंस दी । इसके बाद ही हाथ की थाली और चाकू नीचे रख, उठकर चली गई । मालकिन ने जो दुलारी बेटी की नींद पर टीका की थी, उसी की टिप्पणी करते हुए महाराजिन ने भुनभुनाकर कहा- "अभी बचपन का अल्हड़पन है, जब घर-गृहस्थी का बोझ सिर पर पड़ेगा और भगवान गोद भरेगा, तो देखना बिट्टोरानी  और कितना सो सकेगी ।"

   यह कहानी है बीट्टोरानी 'नीलू' की जो उच्च शिक्षित, विलायक घूम चुकी आधुनिक विचारों की लड़की है । नीलू की शादी एक वैज्ञानिक महेन्द्र से हो जाती है।
महेन्द्र के परिवार में उसकी वृद्ध माता है और स्वयं महेन्द्र सरकारी नौकरी के कारण घर से दूर रहता है।
अपनी माता की तबीयत खराब होने के कारण जब महेन्द्र पहली बार नीलू को लेने अपने ससुराल जाता है तो, जहाँ सास-ससुर द्वारा उसका हार्दिक स्वागत होता है वहीं नीलू उसे 'अजनबी' कहकर संबोधित करती है।
नीलू का कहना है उसने अपनी शादी के लिए उसे पसंद नहीं किया यह तो परिवार द्वारा उस पर थोपा गया निर्णय है। हालांकि नीलू का महेन्द्र से कोई शिकवा नहीं है, उसे शिकायत है तो बस इस बात की कि एक अजनबी आज से उसका स्वामी हो जायेगा।
दोनों का संवाद देखें-
"मैं तो यही कह रहा हूं, कि मैं गैर नहीं हूं, तुम्हारा हूं। तुम्हें कोई दुःख है तो तुम्हें वह मुझसे कहना चाहिए ।"
"मुझे दुःख यही है कि आप जो मुझपर अपना अधिकार लाद रहे हैं, उसके सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं जानती ।"
"हम लोगों का विवाह हुआ था नीलू, तुम गुड़िया-सी सज-सजा कर आई थीं। मेरे हृदय में एक नई अभिलाषा उत्पन्न हुई थी । अति मधुर, अति प्रिय ।"
"एक रस्म हुई थी, यह याद है। पर उसका मतलब क्या था, तब मैं समझ नहीं सकती थी, और अब कोई समझा नहीं सकता ।"

नीलू महेन्द्र के साथ अपनी ससुराल तो आ जाती है लेकिन दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता नहीं बन पाता ।
जैसे दो प्यासे आदमी नदी के किनारे-किनारे लम्बी यात्रा करें, परन्तु व्रतभंग के भय से जल की बूंद पेट में न उतार सकें ।
   जहां नीलू में अहम था वहीं महेन्द्र उसकी भावना को स्वीकार करते हुये, उसकॆ सम्मान की रक्षार्थ चुप रहता है। महेन्द्र की माता के हस्तक्षेप पश्चात्‌ भी दोनों अपनी जगह स्थिर रहते हैं।
नीलू का अपनी सास से अत्यधिक स्नेह है, वह उसके मृदुल स्वभाव के कारण उसे बहुत चाहती है। वहीं नीलू का मन चाहता है महेन्द्र उसकी सब गलतियों को माफ कर उसे गले से लगा ले और वह बेल की तरह से से चिपक जाये। पर महेन्द्र अपनी मर्यादा और स्वभाव से आगे नहीं बढ पाता और नीलू अपने अहम् के चलते कुछ बोल नहीं पाती ।
दोनों के मध्य संवाद चलता रहता है जो पति-पत्नी के संबधों को बहुत अच्छे से परिभाषित करता है।
इस उपन्यास की जो विशेषता है वह है इसके संवाद । वह चाहे पति-पत्नी के मध्य हो, सास-बहू के मध्य, या दो मित्रों के मध्य (नीलू- विनय) यही संवाद इस उपन्यास के प्राण तत्व हैं।
      नारी की स्वतंत्रता उन हज़ारों घरों के लिए आज भी एक सवाल बनी हुई है, जिन्होंने यूरोपीय सभ्यता के अनुकरण के कारण न केवल अपने परिधान बदले हैं, वरन मन और दिमाग भी बेच डाले हैं, परंतु भारतीय नारी भले ही यूरोपीय सभ्यता का अनुकरण करे, फिर भी वह कभी अपनी भारतीय संस्कृति को नहीं छोड़ती, इसी परिकल्पना को साकार करती है यह कृति। इस पुस्तक में प्रेरक कथावस्तु के माध्यम से महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों के हनन के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठाई गई है।
ऐतिहासिक कथा-साहित्य के कुशल चितेरे तथा लाखों पाठकों में आज भी लोकप्रिय रचनाकार आचार्य चतुरसेन की मुग्ध कर देने वाली लेखनी से उपजा रोचक उपन्यास है नीलमणि। (online Site से)
   उपन्यास का अंत सुखांत है और प्रेरणादायी भी है। लेखन मुख्य उद्देश्य आज की पीढी को अपनी संस्कृति और सभ्यता और रिश्तों का महत्व परिभाषित करना भी रहा है और लेखक इसमें सफल भी रहे हैं।
महेन्द्र की माता का किरदार बहुत अच्छा है जो अपने पुत्र- पुत्रवधू के मध्य पनपे सन्नाटे को महसूस करती है और उन्हें विवाह के दायित्व का निर्वाह का महत्व बताती है। महेन्द्र की माता एक सुलझे हुये विचारों वाली समझदार महिला है। और आज के समय में ऐसी स्त्रियाँ अपने परिवार को सम्भाल सकती हैं जो अपनी पुत्र वधू को अपने पुत्र के समान महत्व देती है और उसे मार्ग दिखाती हैं।
यह उपन्यास भारतीय नारी की स्वतंत्रता और भारतीय संस्कृति के बीच के संबंधों पर केंद्रित है।
रोचक और पठनीय उपन्यास है। हां, ज्यादा संवादों के कारण कहानी में नीरसता आ जाती है।

उपन्यास- नीलमणि
लेखक-   आचार्य चतुरसेन शास्त्री
पृष्ठ-       104

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