चलती वैन से लूट की कथा।
विधि का विधान- अनिल मोहन, उपन्यास, रोचक, औसत।
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मध्य प्रदेश में पुरातत्व विश्लेषण विभाग को खुदाई के दरम्यान, तरबूज के साईज के दो हीरे मिले हैं। वह बेहद कीमती, अमूल्य, बेशकीमती हीरे हैं। विशेषज्ञों का कहना है की ऐसे कीमती, हीरे शायद दुनियां में कहीं भी नहीं हैं। अब उनकी कीमत का तुम लगा ही सकते हो। (पृष्ठ-31)
विधि का विधान- अनिल मोहन, उपन्यास, रोचक, औसत।
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मध्य प्रदेश में पुरातत्व विश्लेषण विभाग को खुदाई के दरम्यान, तरबूज के साईज के दो हीरे मिले हैं। वह बेहद कीमती, अमूल्य, बेशकीमती हीरे हैं। विशेषज्ञों का कहना है की ऐसे कीमती, हीरे शायद दुनियां में कहीं भी नहीं हैं। अब उनकी कीमत का तुम लगा ही सकते हो। (पृष्ठ-31)
जब देवराज चौहान को इन हीरों की खबर लगी तो उसने अपने मित्र जगमोहन के साथ मिलकर इन हीरों को लूटने का सोचा।
देवराज चौहान ने कुछ लोगों को साथ लिया और हीरे लूट को लूटने का प्लान बनाया।
देवराज चौहान ने कुछ लोगों को साथ लिया और हीरे लूट को लूटने का प्लान बनाया।
अनिल मोहन जी का एक विशेष पात्र देवराज चौहान और उसका साथी जगमोहन डकैती के लिए प्रसिद्ध हैं। उपन्यास 'विधि का विधान' में भी वे एक ऐसी डकैती का प्लान बनाते है, जबकि उनके पास कोई अच्छा प्लान भी नहीं है।
"हमारी सबसे बङी मजबूरी तो इस समय यह है कि हमारे पास कोई योजना नहीं है, आने वाले हालात से हम आगाह नहीं है और हीरों को हम हर हाल में लूटना चाहते हैं।- (पृष्ठ-126)
हीरे मध्य प्रदेश से राजस्थान के रास्ते दिल्ली एक मजबूत वैन से जाने थे और रास्ते में घात लगाये बैठा था डकैती मास्टर देवराज चौहान।
चलती वैन से हीरे लूटने का प्लान लिए और हीरों का रक्षक था इंस्पेक्टर वानखेडे।
"इस वैन में पङे हीरे मुझे चाहिए वानखेड़े।" - देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
"नहीं ।"- वैन के भीतर से आती वानखेड़े की आवाज उसके कानों में पड़ी-" हीरे तुम्हे नहीं मिल सकते।"
"देवराज चौहान को जो चीज चाहिए होती है, वह ले लेता है।"- देवराज चौहान ने रिवाॅल्वर की नाल खिड़की के बुलेट प्रूफ शीशे पर ठकठकाई-" वैन में पड़े हीरे भी मैं ले लूंगा।"
"तुम्हारी यह कोशिश पूरी तरह से बेकार जायेगी देवराज चौहान" (पृष्ठ-224)
चलती वैन से हीरे लूटने का प्लान लिए और हीरों का रक्षक था इंस्पेक्टर वानखेडे।
"इस वैन में पङे हीरे मुझे चाहिए वानखेड़े।" - देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
"नहीं ।"- वैन के भीतर से आती वानखेड़े की आवाज उसके कानों में पड़ी-" हीरे तुम्हे नहीं मिल सकते।"
"देवराज चौहान को जो चीज चाहिए होती है, वह ले लेता है।"- देवराज चौहान ने रिवाॅल्वर की नाल खिड़की के बुलेट प्रूफ शीशे पर ठकठकाई-" वैन में पड़े हीरे भी मैं ले लूंगा।"
"तुम्हारी यह कोशिश पूरी तरह से बेकार जायेगी देवराज चौहान" (पृष्ठ-224)
- क्या देवराज चौहान की पार्टी इन हीरों को लूट पायी।
- क्या यह लूट संभव थी?
- क्या हुआ जब देवराज चौहान और वानखेडे टकराये ?
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- क्या यह लूट संभव थी?
- क्या हुआ जब देवराज चौहान और वानखेडे टकराये ?
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उपन्यास में मुझे जो विशेष बात लगी वह है सड़क पर चलती वैन को लूटना और प्लान क्या है। प्लान तो है भी नहीं । मुझे यह दृश्य बहुत रोचक लगा की जब देवराज चौहान अपने साथियों से कहता है की आप बस वैन के पीछे लगे रहो, रस्ते में चलते वक्त कोई प्लान बना लेंगे। ....और प्लान बना भी, जबरदस्त बना।
उपन्यास में एक-दो जगह कुछ कमियां रह गयी हैं।
जैसे वैन को बहुत मजबूत बनाया गया है। लेकिन वैन में कोई वायरलैस जैसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। इस बात का ज़िक्र स्वयं इंस्पेक्टर वानखेड़े भी करता है।
"यह वैन अपने आप में सुरक्षित -मजबूत अवश्य है।"- वानखेङे ने कहा,-" परंतु एक बहुत बङी कमी रह गई इसमें।"
"वैन में ट्रांसमीटर या वायरलैस सेट अवश्य होना चाहिए था।" (पृष्ठ-193)
देखा जाये तो यह वैन की ही नहीं उपन्यास की भी एक बड़ी कमी रही है। अगर उपन्यास में वायरलैस जैसी कोई व्यवस्था होती तो कहानी का रूप ही अलग होगा।
- जब वैन को एक बार टक्कर मार कर पलट देने की कोशिश की जाती है, जो की असफल रही थी। फिर भी इंस्पेक्टर वानखेङे स्थानीय पुलिस का सहयोग नहीं लेता।
अगर वह स्थानीय पुलिस का सहयोग लेता तो किसी भी लूटेरे की हिम्मत न होती वैन को लूटने की।
जैसे वैन को बहुत मजबूत बनाया गया है। लेकिन वैन में कोई वायरलैस जैसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। इस बात का ज़िक्र स्वयं इंस्पेक्टर वानखेड़े भी करता है।
"यह वैन अपने आप में सुरक्षित -मजबूत अवश्य है।"- वानखेङे ने कहा,-" परंतु एक बहुत बङी कमी रह गई इसमें।"
"वैन में ट्रांसमीटर या वायरलैस सेट अवश्य होना चाहिए था।" (पृष्ठ-193)
देखा जाये तो यह वैन की ही नहीं उपन्यास की भी एक बड़ी कमी रही है। अगर उपन्यास में वायरलैस जैसी कोई व्यवस्था होती तो कहानी का रूप ही अलग होगा।
- जब वैन को एक बार टक्कर मार कर पलट देने की कोशिश की जाती है, जो की असफल रही थी। फिर भी इंस्पेक्टर वानखेङे स्थानीय पुलिस का सहयोग नहीं लेता।
अगर वह स्थानीय पुलिस का सहयोग लेता तो किसी भी लूटेरे की हिम्मत न होती वैन को लूटने की।
अनिल मोहन जी का उपन्यास 'विधि का विधान' एक रोचक उपन्यास है। जिसमें डकैती के साथ-साथ धोखाधड़ी और चालबाजी भी है। कौन सा पात्र कब, कहां बदल जाये यह पढना रोचक है।
निष्कर्ष-
'विधि का विधान' उपन्यास एक डकैती पर आधारित है। उपन्यास रोचक है, लेकिन उपन्यास की कुछ कमियां उपन्यास को प्रभावित करती हैं।
उपन्यास औसत से थोङा ठीक है। पढने लायक है
निष्कर्ष-
'विधि का विधान' उपन्यास एक डकैती पर आधारित है। उपन्यास रोचक है, लेकिन उपन्यास की कुछ कमियां उपन्यास को प्रभावित करती हैं।
उपन्यास औसत से थोङा ठीक है। पढने लायक है
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उपन्यास- विधि का विधान
संस्करण- 2013
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-239
मूल्य-80₹
उपन्यास- विधि का विधान
संस्करण- 2013
लेखक- अनिल मोहन
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-239
मूल्य-80₹
सीरिज- देवराज चौहान
अभी अजय देवगन की एक मूवी आई थी इमरान हाशमी भी होता है उसमे ऐसी ही लूट थी वहा भी
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