Tuesday 27 November 2018

154. The जिंदगी- अंकुर मिश्रा

 जिंदगी के विविध रंगों की कथा...

The जिंदगी- अंकुर मिश्रा कहानी संग्रह, रोचक, पठनीय। ---------- 
          कहानी सुनना या सुनाना मनुष्य का आदिकाल से मनोरंजन का साधन रहा है। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो मानव मन के हृदयतल को छू जाती हैं। कहानियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मनुष्य जीवन से संबंध रखती हैं। मनुष्य जीवन में हमेशा विविधता रही है, कभी सुख, कभी दुख तो कभी समभाव। जिंदगी के कई रंग होते हैं,‌ जिंदगी के इन रंगों से मिलकर बनी है अंकुर मिश्रा जी की किताब 'The जिंदगी। जैसे मनुष्य की जिंदगी में विविधता है, ठीक वैसे ही इस कहानी संग्रह की कहानियोों में विविधता मिलेगी। पहला रंग कहानी संग्रह के शीर्षक में ही देखा जा सकता है- The जिंदगी। 

             कहानी संग्रह को दो भाग में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग 'किस्से-कहानियाँ' जिसमें छह कहानियाँ है। द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' जिसमें दस लघुकथाएं शामिल की गयी हैं। लेकिन साथ में एक और प्रयोग भी शामिल है वह है प्रत्येक कहानी से पूर्व एक कविता। छह कहानियाँ है और सभी से पूर्व एक-एक कविता है जो कहानी के भाव को स्पष्ट करने की क्षमता रखती है।

              प्रथम कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' से पूर्व एक कविता है।

           'ये जो बैठे हुए हैं, 
           चुपचाप से, 
            सहते हैं, 
                       पर बोलते नहीं, 
                       पास कुछ रहता तो है, 
                       पर उगलते नहीं, ...................।
 'अभी जिंदा हूँ मैं' खत्म होती मानवीय संवेदना की कहानी है। भौतिकवादी युग में मनुष्य एक यंत्र होकर रह गया है। पूंजीवाद सभी पर हावी हो रहा है जिसके नीचे मनुष्य की संवेदना दब गयी है और आत्मसम्मान। आत्मसम्मान तो सब किताबी बातें हैं। (पृष्ठ-22) कहानी का नायक नीलेश भी एक ऐसी ही जिंदगी जीता है। जहाँ मनुष्य पर यांत्रिकता हावी है। ऐसी एक और कहानी है 'घुटन'। दोनों कहानियाँ बहुत ही अच्छी और मन को छूने वाली हैं।
             'लाल महत्वाकांक्षाएं' हमारे तेज रफ्तार जीवन की कहानी है। वह जीवन, जिसके लिए हम कमाते तो हैं, लेकिन उसके लिए हमारे समय नहीं है। है ना अजीब बात। बस ऐसी ही अजीब है यह कहानी। मनुष्य जीवन इतना यंत्र बन गया की उसके लिए मानवीय रिश्ते भी कोई महत्व नहीं रखते। हमारी बढती महत्वाकांक्षा एक दिन हमें ही लील जायेंगी। कहानी 'अभी जिंदा हूँ मैं' का नायक कहता है "दरअसल पूंजीवाद हमको सोचने की इजाजत नहीं देता।(पृष्ठ-23)। वही स्थिति 'लाल महत्वाकांक्षाएं' के नायक मनीष की है। हम जो सोचते हैं वह बहुत ही निकृष्ट सोचते हैं। पूंजीवाद हमारी सोच के दायरे को बहुत छोटा कर रहा है। कहानी नायक मनीष भी अपनी पत्नी को इसी सोच से प्रेरित होकर कहता है -" कैरियर के इतने गोल्डन पीरियड में तुमने ऐसा डिसीजन कैसे ले लिया बच्चा पैदा करने का?"(पृष्ठ-33) 
               अब इससे आगे कहने/लिखने को कुछ भी नहीं रहा। अगर कुछ है तो यही, यह एक युद्ध है मानवता और स्वार्थ के बीच। (पृष्ठ-25) 
       
              मेरे मन को अगर किसी ने सर्वाधिक प्रभावित किया या जिस कहानी को पढकर आँखों से आंसू बह निकले वह कहानी है -आत्महत्या। दरअसल 'अभी जिंदा हूँ मैं', 'घुटन' और 'आत्महत्या' तीनों कहानियाँ का केन्द्र बिंदु एक ही है लेकिन उनका विस्तार अलग-अलग है। तीनों कहानियाँ के गर्भ में एक घुटन है जिससे बच कर कोई 'अभी जिंदा हूँ मैं' कहकर संतुष्टि प्राप्त करता है और कोई उस घुटन में दबकर आत्महत्या कर लेता है।
             कहानी 'आत्महत्या' तो वास्तव में राज‌न की मौत के बाद मनीषा के उस संघर्ष पूर्व जीवन की कथा है जहाँ पर वह निर्दोष होकर भी सजा भुगत रही है। यह कहा‌नी हमारे समाज के एक वर्ग का यथार्थवादी चित्रण करती है। ऐसा चित्रण जो पाठक के मर्म को अंदर तक सालता है। ऐसी ही एक और संवेदनशील कहानी है 'वो कुछ अजीब सा था'। हालांकि इस कथ्य पर बहुत सी कहानियाँ बहुत बार लिखी और पढी गयी हैं लेकिन अपने प्रस्तुतीकरण के कारण यह रचना भी अच्छी है।
          
                     "कोई इबादत कहता है,
                     तो कोई आदत कहता है, 
                     आंसुओं का सैलाब है,
                      दरिया-ए-आग है इश्क़। 
                                           पर जो भी है, 
                                            हल्की सी चुभन, 
                                            मीठी सी तड़प है, 
                                            रुसवाइयों में, 
                                           जीने का बहाना है इश्क़। 

                       ये पंक्तियाँ है कहानी 'इश्क़ ऐसा भी' के आरम्भ से पूर्व की। यह कहानी कथा शिल्प के आधार पर सभी कहानियों से अलग है। लेखक ने भाषा का प्रयोग कहानी के अनुरूप ही किया है जो कहानी को वास्तविकता प्रदान करता है। लेकिन कथ्य के स्तर पर कहा‌नी कोई प्रभावशाली नहीं लगी। कहानी में चार दोस्तों का प्रसंग भी कहानी से कोई संबंध नहीं रखता। 

                    इस कहानी संग्रह का द्वितीय भाग 'लघुकथाएं' है। जिसमें दस लघुकथाएं' संकलित हैं। इस संग्रह की कहानियाँ जितनी अच्छी हैं लघुकथाएं उस स्तर तक नहीं पहुंच सकी। मेरा लघुकथाओं के साथ काफी समय बीता है। लघुकथाएं अपने एक निश्चित दायरे से आगे नहीं बढ पायी। ज्यादातर लेखक कुछ निश्चित विषयों से आगे नहीं सोच पा रहे। 

                          प्रथम लघुकथा 'फिजुलखर्ची' एक संवेदनशील कथा है। जो वर्तमान संबंधों का यथार्थ चित्रण करती है। लघुकथा 'नारी' लघुकथा है या कविता। यह अभी समझना बाकी है। क्योंकि इस कथा में कथा तो नहीं है सिर्फ संवेदना है और वह भी काव्यनुमा।
                  'द्विसंवाद' हमारे दोहरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है। यह लघुकथा हर दूसरी-तीसरी लघुकथा पत्रिका पात्रों के नाम परिवर्तन के साथ मिल जायेगी। यही हाल 'बरसातें और भी हैं' का है। 
                     अन्य लघुकथाएं कुछ स्तर ठीक हैं और पठनीय हैं। मेरे विचार से लेखक धैर्य के साथ कुछ और कहानियों के साथ एक अच्छा कहानी संग्रह प्रकाशित करवाता तो ज्यादा अच्छा रहता। 
          कहानी संग्रह की भाषाशैली सामान्य पाठक को भी समझ आने वाली और रोचक है। कहीं किसी प्रकार की क्लिष्टता नहीं है। भाषा शैली का एक रोचक उदाहरण देखें। एक ढलकी हुई, खाँसती हुई, तानों के बोझ से झुकी हुई, शीत ऋतु की घनी अंधकारमय रात सी बूढी पर लंबी जिंदगी। (56) 

      प्रस्तुत कहानी संग्रह मानव मन को छू लेने वाला है। कहानियाँ पाठक प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं।
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पुस्तक- the जिंदगी (कहानी संग्रह) 
लेखक- अंकुर मिश्रा 
Email- mynameankur@mail.com
 प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स- 
पृष्ठ-90 
मूल्य-100

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