Saturday 1 December 2018

155. एक खून और- सुरेन्द्र मोहन पाठक

खून और खून और खून।
एक खून और - सुरेन्द्र मोहन पाठक, रोचक मर्डर मिस्ट्री, पठनीय।
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      कुछ कहानियाँ इतनी रोचक होती हैं की वे प्रथम पृष्ठ से ही पाठक को प्रभावित कर लेती हैं। यह रोचकता जब आदि से अंत तक बनी रहे तो पाठक एक बैठक में ही पुस्तक को पढ जाना चाहता है।
        प्रस्तुत उपन्यास 'एक खून और' भी इतनी ही रोचक और दिलचस्प उपन्यास है।

            माला और सरिता अपने करोड़पति अंकल की संपत्ति की वारिस थी। अंकल की मौत के बाद दोनों के हिस्से में तीन-तीन करोड़ संपत्ति आती।
      करोड़पति माला जायसवाल से स्थानीय समाचार पत्र का खोजी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती इंटरव्यू लेने पहुंचा।
      "....मैं तो यहाँ अपने अखबार के लिए आपका इंटरव्यू लेने आया था।"
      "अखबार! इंटरव्यू! तुम क्या चीज हो।"
      .......
      और सुनील ने अपना  विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसकी और बढाया।"
      माया जायसवाल ने कार्ड लिया, उस पर एक सरसरी निगाह डाली और कार्ड को मेज पर उछाल दिया।
      .....
      "अभी मुझे वक्त नहीं है।  फिर आना।"
      "फिर कब?"
      "आधी रात को ।"
      "जी"
              यह थी करोड़पति बहन सरिता जायसवाल की करोड़पति बहन माला जायसवाल। सरिता शादी शुदा थी और माला अभी शादी के लिए लड़का तलाश कर रही थी। वह भी एक अजीब तरीके से।
              "और तुम्हें मेरे साथ जिंदगी भर बंधे रहने की भी जरूरत नहीं। तुम्हें सिर्फ दो तीन महिने मेरा पति बन कर रहना होगा...।"
              ........
              "दो तीन महि‌ने बाद मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी और साथ में पच्चीस हजार रुपये बोनस दूंगी"
              तो यह थी माला जायसवाल। अजीब फितरत की मालकिन। कम सुनील चक्रवर्ती भी नहीं था। वह भी पट्ठा रात को, आधी रात को माला जायसवाल का इंटरव्यू लेने जा पहुंचा। लेकिन वहाँ तो स्थिति ही कुछ और थी।
              "ड्राइंगरूम के बीचो-बीच औंधे मुँह माला जायसवाल पड़ी थी। उसके सिर का पिछला भाग तरबूज की तरह फट गया था और उसमें से खून बह-बह कर उसकी गरदन और कंधों के आस पास जमा हो रहा था।"

              यही थी माला जायसवाल की जिंदगी, करोड़पति माला जायसवाल एक रात को अपने घर में मृत्यु पायी गयी। जिसका न कोई दुश्मन ना न कोई बैरी,न कोई बैगाना। आखिर ऐसा क्या हुआ की माला जायसवाल को कोई मौत के घटा उतार गया।

             सुरेन्द्र मोहन पाठक वर्तमान उपन्यास जगत में टाॅप मर्डर मिस्ट्री राइटर माने जाते हैं। उनके सुनील सीरिज और सुधीर सीरिज उपन्यास मर्डर मिस्ट्री होते हैं, लेकिन दोनों सीरिज का फ्लेवर अलग-अलग है। जहाँ स्वयं पाठक जी को सुनील ज्यादा पसंद हैं वहीँ मेरे जैसे ज्यादा पाठक सुधीर को पसंद करते हैं।
                 प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है जो मुझे बहुत पसंद आयी‌। कुछ दिन पूर्व पाठक जी का सुनील सीरिज 'सिंगला मर्डर केस' उपन्यास पढा था, एक दम बकवास लगा। लेकिन यह उपन्यास उसके विपरीत है। वह चाहे कहानी के स्तर पर हो या पृष्ठ संख्या के स्तर पर।

                      बात करे इस उपन्यास 'एक खून और' की तो यह काफी दिलचस्प उपन्यास है। पहला कैरेक्टर उभर कर आता है माला जायसवाल का। वह भी एक अजीब तरीके से। माला शादी तो करवाना चाहती है लेकिन दो या तीन महिनों के लिए। आखिर इसके पीछे क्या कारण था?
                      माला इसी दौरान अपने घर में मृत्यु पायी जाती है और उस समय सुनील चक्रवर्ती भी वहाँ उपस्थित होता है।  
    पत्रकार सुनील इस केस को हल करता है, लेकिन यह कातिल को सहन नहीं होता। वह तो सुनील को भी धमकी दे देता है।
    सुनील को एक लिफाफा मिलता है। जिसमें लिखा था।

खुल गया।                      खुल गया।              खुल गया।
    फ्री शशान घाट
    अब आपको मरने के बाद इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं की आपका क्रिया कर्म कैसे होगा?
    हमारे श्मशान घाट की अनोखी आॅफर।
    फ्री लकड़ियाँ।
    फ्री कफन।
    फ्री आहुति।
    हमारी सेवाओं से आज ही लाभ उठाईये। और जल्दी से जल्दी जिंदगी से किनारा कीजिए।
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     सुनील को ऐसी क्लासिक धमकी आज तक नहीं मिली थी।

    सुनील जैसे -जैसे सत्य के नजदीक पहुंचता जाता है वैसे -वैसे उपन्यास में रोचकता बढती जाती है, एक तरफ जहाँ उपन्यास रोचक होता है, वही सुनील के लिए और इंस्पेक्टर प्रभुदयाल के लिए परेशानियां बढती जाती हैं।
        इन परेशानियों ‌में सुनील प्रभुदयाल को फोन करता है।
  "मैं सुनील बोल रहा हूँ।"
  "अब क्या हो गया।"
  "एक खून और" सुनील बोला।

         एक खून और फिर एक खून......यह सिलसिला खतरनाक हो उठता है।
         आखिर कातिल कौन था?
         वह कत्ल क्यों कर रहा था?

   उपन्यास की मिस्ट्री अजब है। पाठक के लिए प्रथम पृष्ठ से ही रहस्य बनता जाता है। एक ऐसा रहस्य जो धीरे धीरे उलझता ही जाता है।   
   उपन्यास में पात्र भी सीमित हैं लेकिन असली कातिल को पहचानना बहुत मुश्किल है। शक सभी पर हो कसता है लेकिन सत्य की पहचान कठिन है।
        उपन्यास में सुनील के साथ यूथ क्लब के मालिक रमाकांत का किरदार भी बहुत अच्छा है, हालांकि उसको उपन्यास में ज्यादा स्पेश नहीं, स्पेश तो ज्यादा प्रभुदयाल को भी नहीं मिला। यही वजह है की उपन्यास में कसावट है। अक्सर लेखक पात्रों का अनावश्यक विस्तार देकर कहानी को धीमी कर देते हैं।
               इस उपन्यास में सीमित पात्र, दमदार कथानक, तेज रफ्तार और जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री पाठक को प्रभावित करने में सक्षम है।
                अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढने की इच्छा रखते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें। इसमें वह सभी मनोरंजन सामग्री उपलब्ध है जो किसी पाठक को प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष-   अगर आप मर्डर मिस्ट्री पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा। उपन्यास एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है जिसे हल करते-करते एक के बाद एक और खून होते चले जाते हैं।
            पाठक को तेज प्रवाह में बहा लेने जाने में सक्षम और एक ही बैठक पठनीय उपन्यास कहानी के अतिरिक्त कुछ सोचने का अवसर भी नहीं देता।
              उपन्यास रोचक, दिलचस्प और पठनीय है।
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उपन्यास - एक खून और
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
पृष्ठ-100
             
             
     

3 comments:

  1. वाह बेहतरीन समीक्षा

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  2. रोचक। सिंगला मर्डर केस मुझे तो पसंद आया था:

    https://vikasnainwal.blogspot.com/2016/08/Singla-Murder-Case-by-Surendra-Mohan-Pathak.html

    वह एक हुडनइट था इसलिए कहानी की रफ़्तार में कमी लगती है। शायद इसलिए आपको पसंद नहीं आया। एक खून और एक हु डन इट के साथ एक थ्रिलर भी लगता है। जल्द ही पढ़ता हूँ इसे।

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  3. सिंगला मर्डर केस मुझे भी पसंद नही आया था, इसे पढ़ा नही है पर सुरेन्द्र सर के कम ही उपन्यास पढ़े है सर का जो लिखने का स्टाइल है पढ़ने मे थोडा मुश्किल लगता है इसीलिए मै कम ही सर के उपन्यास पढ़ता हु काफी डिफिकल्ट वर्ड्स भी यूज़ करते है सर अपने उपन्यास मे।

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