Tuesday 11 December 2018

157. रूठी रानी- मुंशी प्रेमचंद

मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।

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मुंशी प्रेमचन्द उपन्यास साहित्य में 'उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास इतने सरल और रोचक होते हैं की सहज ही आकर्षित कर लेते हैं।
               सामान्य परिवेश की कहानी और रोचक भाषा शैली होने के कारण मन को छूने की क्षमता रखते हैं।
               'रूठी रानी' मुंशी प्रेमचंद जी का एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो पहले उर्दू में लिखा गया और फिर हिंदी में। इसका प्रकाशन वर्ष 1907 है।
                   यह कहानी है जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की। उमादे का विवाह मारवाड़ के शक्तिशाली राव मालदेव के साथ होता है।  मालदेव एक पराक्रमी और शक्तिशाली राजा है, लेकिन उसके पराक्रम पर उसके ऐब हावी हैं। इसी ऐब के चलते, नशे की हालत में वे शादी के शुभ अवसर पर एक ऐसा कुकृत्य कर बैठते हैं जो एक राजा को शोभा नहीं देता।
                         प्रथम दिवस पर ही ऐसे कुकृत्य की खबर जब रानी उमादे को पता चलती है तो वह राव मालदेव से रूठ जाती है। स्वाभिमानिनी रानी उमादे एक बार ऐसी रूठी की वह ताउम्र राजा से नाराज ही रही। इसी रूठने के कारण वह इतिहास में 'रूठी रानी' के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
                         मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान।
                         दोमी हाथी बाँधिये एकड़ खतमो ठान।
                        
                         यह कहानी मात्र 'रूठी रानी' की नहीं है, यह राजस्थान के उस गौरवशाली अतीत का चित्रण करती है जहां योद्धा गरदन कटने के बाद भी युद्ध करते रहे।
                         एक तरफ शक्तिशाली राव मालदेव है और दूसरी तरफ विदेशी आक्रांता हुमायूँ और शेरशाह सूरी जैसे लोग हैं।   एक पराक्रमी राजा जिसके पास शेरशाह सुरी से भी ज्यादा सेना थी, लगभग सत्तर हजार सेना आखिर वह कहां मात खा गया।
          
            कम रूठी रानी भी नहीं थी। वह चाहे अपने पति से रूठी हुयी थी लेकिन मुगलों को हमेशा टक्कर देने के लिए तैयार थी। उससे शेरशाह सूरी के सेनापति को जवाब दिया-"मैं लड़ने को तैयार हूँ, तेरा जब जी चाहे, आ जा। मैं औरत हूँ तो क्या, मगर राजपूत की बेटी हूँ।"(पृष्ठ-45)      
       
                        
                        राजस्थान के राजपूत योद्धा, छलकपट न जानते थे। वे तो बस लड़ना और शत्रु को मारना जानते थे। -"हम तो शेरशाह से यहीं जमकर लड़ेंगे। वह भी तो देख कि राजपूत जमीन के लिए कैसी बेदर्दी से लड़कर जान देते हैं।"(पृष्ठ-43)
                         जब शेरशाह सूरी का इनसे सामना हुआ था सूरी को भी कहना पड़ा -"...मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की सल्तनत हाथ से गयी थी।"(पृष्ठ-43)
                         यह उपन्यास एक तरफ रूठी रानी की कथा प्रस्तुत करता है, तो दूसरी तरफ राजमहल में पनपने वाले षड्यंत्रों का भी चित्रण करता है, तीसरी तरफ यह विदेशी आक्रमणकारी और भारतीय राजाओं की आपसी द्वेष को भी प्रस्तुत करता है।
                         उपन्यास की भाषा शैली सामान्य और सहज है। कहीं कोई क्लिष्ट शब्दावली प्रयुक्त नहीं हुयी, हां, उसमें उर्दू के शब्द काफी मात्र में मिल सकते हैं।
                         अगर आपको राव मालदेव, रूठी रानी, शेरशाह सूरी को समझना है तो यह उपन्यास कुछ हद तक आपको इतिहास के उस रोचक पृष्ठ की जानकारी देगी।
                         उपन्यास अच्छा और पठनीय है। अगर ऐतिहासिक उपन्यास कोई पढना चाहता है तो यह निराश नहीं करेगा, क्योंकि उपन्यास लघु कलेवर और तेज प्रवाह का है।
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उपन्यास- रूठी रानी
लेखक- मुंशी प्रेमचंद
प्रकाशन- साहित्यागार, जयपुर
संस्करण-1989
पृष्ठ-54
मूल्य-55₹

4 comments:

  1. The story is fiction or non-fiction?

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    1. ऐतिहासिक घटना में कल्पना का अच्छा मिश्रण है।

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  2. वाह!! इस उपन्यास को जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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  3. जल्द ही पढूंगा।

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