Sunday 9 August 2020

365. आखिरी बाजी- वेदप्रकाश कांबोज

 इंस्पेक्टर सूरज और साथियों का कारनामा

आखिरी बाजी- वेदप्रकाश कांबोज, एक्शन उपन्यास


"कहो बेटा, जयराज अब शादी की पार्टी कब कर रहे हो?"
नाम सुनते ही वह इस तरह बुरी तरह से चौंका जैसे किसी खूनी शेर को अपने शिकार की भनक लग गयी हो। शरीर की समस्त शिराएं आक्रमण के लिए तन गयी। झटके साथ गर्दन घुमाकार शब्दों की तरफ देखा।.......

           यह दृश्य है वेदप्रकाश कांबोज जी के एक्शन -थ्रिलर उपन्यास 'आखिरी बाजी' का।
       अगस्त माह में वेदप्रकाश कांबोज का यह क्रमशः पांचवां उपन्यास पढ रहा हूँ। इससे पूर्व 'कदम- कदम पर धोखा', 'चन्द्रहार के चोर' 'चन्द्रमहल का खजाना' और 'चक्कर पर चक्कर' के बाद 'आखिरी बाजी' उपन्यास पढा। इनमें से 'चक्कर पर चक्कर' को 'विजय' सीरीज का एक सस्पेंश- मर्डर मिस्ट्री उपन्यास, 'आखिरी बाजी' एक्शन- थ्रिलर है और शेष तीन सस्पेंश थ्रिलर उपन्यास है। 
अब बात करते हैं उपन्यास 'आखिरी बाजी' की। उपन्यास एक्शन पर आधारित है जिसमें मुख्य पात्र इंस्पेक्टर सूरज होता है। इंस्पेक्टर सूरज सिंह, जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े अपराधियों की फूंक सरक जाती थी, हौंसले पस्त हो जाते थे। उसकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य यही था। अपराध और अपराधियों का सफाया कर देना। इसी तमन्ना के साथ वह पुलिस में भर्ती हुआ और अच्छा नाम भी कमा लिया था उसने।
         सूरज की जिंदगी का एक ही मकसद है अपराधी जयराज को गिरफ्तार करना। सिर्फ जयराज के कारण उसका पूरा पुलिस कैरियर तबाह हो गया।
लेकिन जयराज का कहीं भी कोई पता नहीं। तब सूरज की जिंदगी में प्रवेश होता है एक रहस्यमय व्यक्ति का।
"लेकिन आप हैं कौन?" -पूछा उसने
"दुश्मन का दुश्मन दोस्त ही माना जाता है न? सो आप मुझे अपना दोस्त मान सकते हैं।"
"लेकिन वह दुश्मन कौन है जिसकी वजह से हम दोनों अनजान दोस्त बनने जा रहे हैं?"
"जयराज।"

- यह अज्ञात रहस्यमयी व्यक्ति कौन था?
- उसका जयराज से क्या संबंध था?
- सूरज और जयराज में क्या दुश्मनी थी?
- जयराज कहां गायब हो गया?
- सूरज का कैरियर कैसे तबाह हुआ?
- आखिर क्या अंजाम रहा उस दुश्मनी का?

इन सब प्रश्नों के लिए वेदप्रकाश कांबोज जी का एक्शन- थ्रिलर उपन्यास 'आखिरी बाजी' पढना होगा।            उपन्यास का कथानक भारत से लेकर अरब देशों तक विस्तृत है। जहां सूरज अपने साथियों के साथ एक अभियान पर जाता है।
अरबों ने बारे में एक रोचक कथन उपन्यास में है- अरबों के बारे में मशहूर है कि अगर वे किसी को दोस्त समझते हैं तो उसका दिल खोलकर स्वागत करते हैं। अगर किसी को दुश्मन समझते हैं तो उसका जरूरत से ज्यादा दिल खोलकर स्वागत करते हैं ताकि उसे उनके दिल में छिपी दुश्मनी का आभास न होने पाये।
एक खतरनाक पात्र भी उपन्यास में उपस्थित है- वह है डाॅन पगानो।
डान पगानो- वह आदमी लोमड़ी से ज्यादा चालाक और लकडबग्घे से अधिक धूर्त है।
डाॅन पगानो स्वयं के बारे में बारे में क्या कहता है वह भी सुन लीजिएगा- डाॅन पिगानो उस हस्ती का नाम है जिससे मौत भी पनाह मांगती है।
              लेकिन परिस्थितियों सूरज को डाॅन पगानो तक ले जाती हैं।
उपन्यास में सूरज पांच साथी उसके अभियान में साथ होते हैं। चारों का उपन्यास में रोचक परिचय और कारनामें दिये गये हैं। फिर भी मैं यहाँ मास्टर उर्फ दुली चंद का वर्णन करना चाहूंगा।
मास्टर वह अपने आप को बेहतरीन मैथमिटीशियन मानता है और लोग उसे जबरदस्त जुएबाज।
           लेकिन वह जुआ भी गणित के अनुसार खेलता है, कोई भी शर्ते हारता नहीं यहाँ तक की वह अंतिम युद्ध के समय में भी शर्ते लगाता है और उसे पूरा विश्वास होता है की वह जीतेगा क्योंकि उसके पास गणित है, क्योंकि वह मैथमिटीशियन है। वह कहता है- किसी शर्त अथवा जुए के चक्कर में आदमी फंसता ही तभी है जब स्थिति उसके सामने इस ढंग से प्रस्तुत की जाती है कि जीतने की समस्त संभावनाएं उसके पक्ष में ही है। लेकिन वास्तव में वह प्रस्तुत करने वाले आदमी के पक्ष में होती हैं। ज्यादातर लिये लोग ऐसी परिस्थितियों में फंसकर शर्ते लगाते हैं और हारते रहते हैं।
          इसके अतिरिक्त हनीफ, शिवराज, शमशेर और पत्रकार तिलक शर्मा भी सूरज के साथी होते हैं।
अगर इन पात्रों को लेकर आगे भी शृंखला चलती या चली है तो मुझे जानकारी नहीं लेकिन इन पात्रों में संभावनाएं हैं।

         आखिरी बाजी एक एक्शन-थ्रिलर उपन्यास है‌। कहानी मध्यम स्तर की है। लेकिन उपन्यास में कही नीरसता नहीं है। हालांकि कहानी का समापन पाठक को पता होता है लेकिन रोचक के कारण वह कहीं भी नीरसता अनुभव नहीं करता।
एक्शन के तौर पर उपन्यास को पढा जा सकता है।

उपन्यास- आखिरी बाजी
लेखक- वेदप्रकाश कांबोज

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