Saturday 1 August 2020

361. कदम कदम पर धोखा- वेदप्रकाश कांबोज

धोखे और फरेब से भरा एक रोचक उपन्यास
कदम कदम पर धोखा- वेदप्रकाश कांबोज

     सन् 2020 में जून माह तक मैंने 100 किताबें पढ ली। यह मेरे लिए एक कीर्तिमान है और कम समय में 100 किताबें पढने का कारण Lockdown रहा है।
      विद्यालय बंद था, और में स्वयं भी एक तरह से कमरे में और फिर घर में बंद था। तब किताबें ही सहारा थी। और हां, इस दौरान माह जून में पन्द्रह उपन्यास कुशवाहा कांत जी के पढे लिये थे। साल में एक-दो बार मैं किसी एक लेखक विशेष पर ही ध्यान देता हूँ। इससे पूर्व टाइगर और जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के सतत उपन्यास पढ चुका हूँ। मेरे पास जिस लेखक के उपन्यास उपलब्ध हैं, एक बार उनके सभी उपलब्ध उपन्यास पढ कर अलग रख देता हूँ ताकि इस लेखक को फिर लंबे समय तक नहीं पढना। इसी क्रम में अब अपने समय के चर्चित उपन्यासकार वेदप्रकाश कांबोज जी को पढने जा रहा हूँ। उनके लगगभ मेरे पास तीस उपन्यास उपलब्ध हैं। इसी क्रम में उनका अगस्त माह में प्रथम उपन्यास पढा है- कदम कदम पर धोखा
     कभी-कभी मनुष्य कुछ ऐसी परिस्थितियों में उलझ जाता है की उसे हर जगह धोखा ही मिलता है। इन परिस्थितियों में तो विवेक भी काम नहीं करता। वह जिस भी व्यक्ति पर विश्वास करता है, वही उसे धोखा दे जाता है। यही होता है 'कदम-कदम पर धोखा' उपन्यास में।
   यह कहानी है धनजय और अजय नामक दो भाईयों की। जिसमें मुख्य पात्र छोटा भाई अजय है। धनजय को एक समाचार पत्र में प्रकाशित किसी कार्यक्रम की तस्वीर प्राप्त होती है। वह तस्वीर में एक शख्स की पहचान के लिए एक हद तक पागल हो उठता है।
आखिर उस तस्वीर में ऐसा क्या था? यही रहस्य जानने के लिए धनजय का छोटा भाई अजय आगे बढता है। लेकिन उसकी खोज को रोकने के लिए पहले से ही लोग जाल बिछाकर बैठे थे।
- आखिर उस तस्वीर में ऐसा क्या रहस्य था?
- धनजय और अजय उस तस्वीर से/ में क्या खोज रहे थे?
- कौन लोग उस तस्वीर के रहस्य को सामने नहीं आने देना चाहते थे?
- आखिर वह तस्वीर थी तो एक समाचार पत्र में, जिसे सबने देखा था।

       इस रहस्यमयी कहानी जो को एक तस्वीर से संबंध रखती है को जानने के लिए आपको वेदप्रकाश कांबोज जी का उपन्यास 'कदम-कदम पर धोखा' पढना होगा।        धनजय एक विस्तृत कम्पनी का मालिक था और वह शारदा से प्रेम करता था। धनजय का छोटा भाई अजय है। इन दोनों के संरक्षण है दाई बाबा।
एक बार धनजय ने शारदा और अजय को अपने पुश्तैनी घर बुलाया है। लेकिन अजय को रास्ते में कुछ ऐसे लोग भी मिल जो उसे घर तक पहुंचने नहीं देना चाहते।
कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए जब अजय घर पहुंचा तो वहाँ धनजय नहीं था। उसे बाद में शारदा अवश्य मिली, लेकिन धनजय फिर भी नहीं आया।
यहीं से अजय एक नयी तलाश में निकलता है। वह धनजय के कलकता ऑफिस पहुंचता है तो वहाँ उसे एक समाचार पत्र में प्रकाशित तस्वीर की जानकारी प्राप्त होती है।
        अजय हैरान रह जाता है जब उसे पता चलता है कि धनजय इस तस्वीर के पीछे दीवानों की तरह पागल था। आखिर इस तस्वीर में ऐसा क्या है।
        यहीं से अजय इस तस्वीर के रहस्य को खोजने निकलता है और उसे रास्ते में एक से बढकर एक धोखेबाज इंसान मिलते हैं, कुछ लोग उसे उस रहस्य को खोजने से रोकना चाहते हैं।
        जबकि वह एक समाचार पत्र में प्रकाशित तस्वीर थी, जिसे जनता ने देखा था लेकिन फिर भी उस तस्वीर के चक्कर में कई लोगों की जान चली गयी।
       उपन्यास का कथानक बहुत गहरा है। हालांकि यह एक थ्रिलर उपन्यास है इसलिए कुछ घटनाओं का सहज अनुमान लग जाना स्वाभाविक है लेकिन कुछ रहस्य इतने गहरे हैं की पाठक क्लाईमैक्स से पूर्व तक अनुमान नहीं लगा सकता। 
       उपन्यास में कुछ लोगों का किरदार इतना सशक्त है की उन्हें समझना बहुत मुश्किल है। पता ही नहीं चलता की कब, कौन, किसको, कहां धोखा दे रहा है।
ऐसे ही दो किरदार हैं पुलिस विभाग से दिलबाग और एक है सुभीता। दोनों का चरित्र जानना पाठक के लिए दिलचस्पी है।

        उपन्यास का कथानक मुझे बहुत रूचिकर लगा। उपन्यास का आरम्भ कुछ अलग तरह से होता है। तब लगता है की यह एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है, लेकिन शीघ्र ही उपन्यास एक अलग दृष्टिकोण पर चलने लगती है। पाठक नये रहस्य के लिए उतना ही बेचैन नजर आता है जितना की वह प्रथम रहस्य 'मर्डर मिस्ट्री' के लिए। यहाँ कथानायक अजय के सामने दो रहस्य होते हैं एक तो हत्यारे का पता लगाना और द्वितीय इस तस्वीर में छपी तस्वीर की जानकारी को खोज निकालना।
       उपन्यास इसी स्तर पर आगे बढता है। जैसे-जैसे कथानक आगे बढता है वैसे-वैसे ही नये रहस्य और रोमांच बढता जाता है‌।
       पूरे उपन्यास में मर्डर से ज्यादा पाठक का ध्यान इस बात पर रहता है की आखिर उस सार्वजनिक तस्वीर में ऐसा क्या था जिसके लिए कुछ लोगों की जान चली गयी, कुछ लोग उस तस्वीर को खत्म करना चाहते थे जबकि वह एक समाचार पत्र में प्रकाशित और सार्वजनिक हो चुकी तस्वीर थी।
      इस तस्वीर के रहस्य को जानने के लिए पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ उत्सुक नजर आता है।
       उपन्यास का क्लाईमैक्स कुछ हद तक प्रासंगिक नजर नहीं आता। हालांकि इससे कहानी पर कुछ विशेष प्रभाव तो नहीं पड़ता लेेकिन जितना सस्पेंश और रोमांच उपन्यास के क्लाईमैक्स से पूर्व तक रहता है, पाठक की आशा होती है की क्लाईमैक्स उस सस्पेंश और रोमांच को और भी आगे लेकर जाये लेकिन उपन्यास उस स्तर तक जाता नहीं है।

उपन्यास के पात्र एक दृष्टि में-
अजय- उपन्यास का मुख्य पात्र
धनजय- अजय का बडा़ भाई
शारदा- धनजय की प्रेयसी
सुभीता- एक विशेष पात्र
दाईबाबा- धनजय और अजय का संरक्षक
डॉक्टर अरोडा़ -
दिलबाग- पुलिस विभाग से
रोहतगी- एक डॉक्टर
नौरतन केवटिया- जूट व्यापारी
रूपा- केवटिया की पुत्री
मिसेज बलवंत/ अनुराधा
मिस्टर बलवंत
निमाई- एक पत्र संपादक
भण्डारी- कोलकाता मैनेजर
सावंत सुधीर- मुंबई से

'कदम-कदम पर धोखा' एक रोचक थ्रिलर उपन्यास है। मर्डर मिस्ट्री, सस्पेंश और थ्रिलर का भरपूर आनंद इस उपन्यास से लिया जा सकता है‌। उपन्यास का क्लाईमैक्स कुछ अप्रभावी रहता है, लेकिन फिर भी उपन्यास की कसवाट और कथानक पाठक को अपबे साथ बांधने में सक्षम है।  
   उपन्यास जब भी रिप्रिंट हो, कुआवश्यक संशोधन किये जाने चाहिए मुझे उम्मीद है यह उपन्यास पाठकवर्ग को पसंद आयेगा।

उपन्यास- कदम कदम पर धोखा
लेखक- वेदप्रकाश कांबोज

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। मिलेगा तो अवश्य पढ़ना चाहूँगा। तस्वीर से जुड़ी एक व्योमकेश बक्शी वाली कहानी याद आती है। उसमें एक पिकनिक के दौरान खींची गई तस्वीर के लिए हत्या होती है। वो भी रोचक कहानी थी।

    ReplyDelete
  2. शानदार! वेद प्रकाश कम्बोज जी के उपन्यास बेहद शानदार होते हैं. इस लेख ने उत्सुकता बढ़ा दी. इस उपन्यास को अवश्य पढ़ना चाहूँगा. शानदार समीक्षा के लिए बधाई.

    ReplyDelete

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...