कुशवाहा
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Monday, 29 June 2020
Saturday, 27 June 2020
338. लाल रेखा- कुशवाहा कांत
प्रेम, कर्तव्य और स्वतंत्रता संग्राम की कहानी
लाल रेखा- कुशवाहा कांत
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में कुशवाहा कांत को रोमांस, जासूसी और क्रांतिकारी लेखक के रूप में जाना जाता है। इनके प्रेमपूरक उपन्यासों में भी क्रांति की ध्वनि गूंजती है और क्रांति पर लिखे गये उपन्यासों में भी प्रेम की महक आती है।
लाल रेखा तो क्रांति और प्रेम दोनों पर आधारित एक अविस्मरणीय रचना है। इस उपन्यास ने कुशवाहा कांत को अमर लेखकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
लाल रेखा- कुशवाहा कांत
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में कुशवाहा कांत को रोमांस, जासूसी और क्रांतिकारी लेखक के रूप में जाना जाता है। इनके प्रेमपूरक उपन्यासों में भी क्रांति की ध्वनि गूंजती है और क्रांति पर लिखे गये उपन्यासों में भी प्रेम की महक आती है।
लाल रेखा तो क्रांति और प्रेम दोनों पर आधारित एक अविस्मरणीय रचना है। इस उपन्यास ने कुशवाहा कांत को अमर लेखकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
वह हृदय से प्रेम कर सकता है और शरीर से कर्त्तव्य का पालन। कर्त्तव्य का पालन उसे पहले करना है और हृदय की पीड़ा बाद में देखनी है। (पृष्ठ-119)
मनुष्य कर्तव्य और प्रेम दोनों रास्ते एक साथ तय करता है। लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी विकट हो जाती हैं कि उसे प्रेम और कर्तव्य दोनों में से एक का चयन करना है। तब मनुष्य असमंजस की स्थिति में आजा है, वह किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है। इसी स्थिति को परिभाषित करती है -लाल रेखा। Monday, 22 June 2020
337. कुमकुम- कुशवाहा कांत
द्रविड़ और आर्य राजाओं की संघर्ष गाथा
कुमकुम- कुशवाहा कांत
लेखक अपने जीवन काल में कुछ ऐसी अविस्मरणीय, अमिट रचनाएँ लिख जाता है कि वह उसके सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करती प्रतीत होती हैं। कुछ रचनाएँ सूर्य की भांति होती है जिसके आलोक में अन्य सितारे(रचनाएं) दृष्टिगत नहीं होते।
कुशवाहा कांत मेरे प्रिय लेखक रहे हैं। इनके द्वारा लिखी गयी 35 रचनाओं में से तकरीबन बीस रचनाएँ मैंने पढ ली हैं। इनके कुछ उपन्यास अविस्मरणीय है तो कुछ विस्मरणीय भी हैं। किसी भी लेखक सभी रचनाएँ श्रेष्ठ नहीं होती लेकिन कुछ रचनाएँ श्रेष्ठतम भी होती हैं।
कुशवाहा कांत जी के 'लाल रेखा', 'विद्रोही सुभाष', 'आहुति' आदि वह रचनाएँ हैं जो इनके लेखन का प्रतिनिधित्व करती नजर आती हैं। इसी क्रम में एक और उपन्यास शामिल होता है वह है 'कुमकुम'।
आर्य और द्रविड़ राजाओं के युद्ध को आधार बना कर, इतिहास पर कल्पना का आवरण चढा कर रचा गया यह उपन्यास चाहे ऐतिहासिक नहीं है पर इतिहास के एक अध्याय का इतना रोमांचक वर्णन करता है कि सब जीवंत सा प्रतीत होता हैै।
कुमकुम- कुशवाहा कांत
लेखक अपने जीवन काल में कुछ ऐसी अविस्मरणीय, अमिट रचनाएँ लिख जाता है कि वह उसके सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करती प्रतीत होती हैं। कुछ रचनाएँ सूर्य की भांति होती है जिसके आलोक में अन्य सितारे(रचनाएं) दृष्टिगत नहीं होते।
कुशवाहा कांत मेरे प्रिय लेखक रहे हैं। इनके द्वारा लिखी गयी 35 रचनाओं में से तकरीबन बीस रचनाएँ मैंने पढ ली हैं। इनके कुछ उपन्यास अविस्मरणीय है तो कुछ विस्मरणीय भी हैं। किसी भी लेखक सभी रचनाएँ श्रेष्ठ नहीं होती लेकिन कुछ रचनाएँ श्रेष्ठतम भी होती हैं।
कुशवाहा कांत जी के 'लाल रेखा', 'विद्रोही सुभाष', 'आहुति' आदि वह रचनाएँ हैं जो इनके लेखन का प्रतिनिधित्व करती नजर आती हैं। इसी क्रम में एक और उपन्यास शामिल होता है वह है 'कुमकुम'।
आर्य और द्रविड़ राजाओं के युद्ध को आधार बना कर, इतिहास पर कल्पना का आवरण चढा कर रचा गया यह उपन्यास चाहे ऐतिहासिक नहीं है पर इतिहास के एक अध्याय का इतना रोमांचक वर्णन करता है कि सब जीवंत सा प्रतीत होता हैै।
Saturday, 20 June 2020
336. विद्रोही सुभाष- कुशवाहा कांत
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन पर आधारित एक रोचक उपन्यास ।
लोकप्रिय साहित्य में अद्वितीय कृति
पठनीय रचना
लोकप्रिय साहित्य में अद्वितीय कृति
पठनीय रचना
Friday, 19 June 2020
335. मंजिल- कुशवाहा कांत
प्रेम और स्वतंत्रता की कहानी
मंजिल- कुशवाहा कांत, रोमांटिक उपन्यास
कुशवाहा कांत को रोमांटिक, जासूसी और क्रांतिकारी उपन्यासकार कहा जाता है। उनके सभी उपन्यासों में प्रेम और स्वतंत्रता की भावना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। अगर उपन्यास क्रांति पर आधारित है तो उसमें प्रेम का परिचायक मिलेगा और उपन्यास प्रेम पर आधारित है तो उसमें क्रांति के विचार पढने को मिलेंगे।
प्रस्तुत उपन्यास 'मंजिल' में क्रांति और प्रेम दोनों का मिश्रण है और यह संतुलित भी है।
यह कहानी है शहंशाह मुहम्मद अली बिन ताहिर की-
पचास साल उम्र
मुंह पर रोबीली मूंछें और दाढी।
शहंशाह तातार बूढी उम्र में भी जवान लग रहे थे। मुखाकृति पर क्रूरता एवं में निर्दयता नर्तन कर रही थी। (पृष्ठ-08)
शहंशाह अत्याचारी है, जनता पर अत्याचार हपते हैं और स्वयं शहंशाह शरबते अनार(शराब) और शबाब में डूबा रहता है। लेकिन जनता हिसाब चाहती है-
"...रियाया यह भी चाहती है कि खुद सुल्तान सलामत भी, अपने ऐश व इस पर खर्च की जाने वाली दौलत का रत्ती-रत्ती हिसाब दें और बतायें कि उन्हें खुदाये पाक की ओर से क्या अख्तियार मिले हैं कि रियाया तड़पे और खुद शरबते अनार और साकी के साथ ऐश परस्ती की जिंदगी बार करें..।" (पृष्ठ-27)
लेकिन शहंशाह का भाई शहजादा रशीद अली बिन ताहिर साहब और शहंशाह की मलिका दोनों ही नरमदिल हैं
एक प्रेमी की कथा- शहजादे रशीद के जीचन में शम्सुल नामक एक युवती का प्रवेश होता है लेकिन यह शहंशाह को पसंद नहीं है।
यह उपन्यास एक नरमदिल शहजादे की प्रेम कथा भी है और मार्मिक अंत भी।
प्रेम और उसकी तड़प को लेखक ने बहुत सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
शमा जलती रही।
परवाने जलकर तड़पते रहे।
शमा पूछती है- "मैं तो विभीषिका में जल रही हूँ, तुम क्यों जलते हो? क्यों अपनी तड़पन से हमारी जलन बढाते हो।"
परवाने कहते हैं-"जलने वालों से हमें इश्क है, मुहब्बत है, इसीलिए उनकी जलन खुद बर्दाश्त करके तड़पते हैं हमलोग।" (पृष्ठ-39)
मंजिल- कुशवाहा कांत, रोमांटिक उपन्यास
कुशवाहा कांत को रोमांटिक, जासूसी और क्रांतिकारी उपन्यासकार कहा जाता है। उनके सभी उपन्यासों में प्रेम और स्वतंत्रता की भावना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। अगर उपन्यास क्रांति पर आधारित है तो उसमें प्रेम का परिचायक मिलेगा और उपन्यास प्रेम पर आधारित है तो उसमें क्रांति के विचार पढने को मिलेंगे।
प्रस्तुत उपन्यास 'मंजिल' में क्रांति और प्रेम दोनों का मिश्रण है और यह संतुलित भी है।
यह कहानी है शहंशाह मुहम्मद अली बिन ताहिर की-
पचास साल उम्र
मुंह पर रोबीली मूंछें और दाढी।
शहंशाह तातार बूढी उम्र में भी जवान लग रहे थे। मुखाकृति पर क्रूरता एवं में निर्दयता नर्तन कर रही थी। (पृष्ठ-08)
शहंशाह अत्याचारी है, जनता पर अत्याचार हपते हैं और स्वयं शहंशाह शरबते अनार(शराब) और शबाब में डूबा रहता है। लेकिन जनता हिसाब चाहती है-
"...रियाया यह भी चाहती है कि खुद सुल्तान सलामत भी, अपने ऐश व इस पर खर्च की जाने वाली दौलत का रत्ती-रत्ती हिसाब दें और बतायें कि उन्हें खुदाये पाक की ओर से क्या अख्तियार मिले हैं कि रियाया तड़पे और खुद शरबते अनार और साकी के साथ ऐश परस्ती की जिंदगी बार करें..।" (पृष्ठ-27)
लेकिन शहंशाह का भाई शहजादा रशीद अली बिन ताहिर साहब और शहंशाह की मलिका दोनों ही नरमदिल हैं
एक प्रेमी की कथा- शहजादे रशीद के जीचन में शम्सुल नामक एक युवती का प्रवेश होता है लेकिन यह शहंशाह को पसंद नहीं है।
यह उपन्यास एक नरमदिल शहजादे की प्रेम कथा भी है और मार्मिक अंत भी।
प्रेम और उसकी तड़प को लेखक ने बहुत सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
शमा जलती रही।
परवाने जलकर तड़पते रहे।
शमा पूछती है- "मैं तो विभीषिका में जल रही हूँ, तुम क्यों जलते हो? क्यों अपनी तड़पन से हमारी जलन बढाते हो।"
परवाने कहते हैं-"जलने वालों से हमें इश्क है, मुहब्बत है, इसीलिए उनकी जलन खुद बर्दाश्त करके तड़पते हैं हमलोग।" (पृष्ठ-39)
Thursday, 18 June 2020
334. जलन- कुशवाहा कांत
हर दिल में है जलन
जलन- कुशवाहा कांत
"तुरन मैं एक कहानी सुनाने आया हूँ... ।"
"कहानी ?" उसने आश्चर्य से कहा।
"हां, आज मैं तुमसे एक प्यासे आदमी की कहानी कहूंगा, जो जिंदगी भर प्रेम की जलन में झुलसता रहा। मेरी ही तरह उसके दिल में जलन थी, सुनोगी।"
"सुनाइये...." उसने उत्सुकता से कहा।
मैं कहने लगा और तुरन दत्त-चित्त होकर सुनने लगी। (पृष्ठ-11)
तो असली कहानी यहीं से आरम्भ होती है।
कहानी है मेहर के जीवन की जो एक कबायली है। शहर काशगर से दूर एक छोटी सी बस्ती है, जिसमें खानाबदोश कबायली रहा करते हैं। यही मेहर अपने बूढे पिता के साथ रहती है जो उस कबीले का सरदार है। मेहर- पन्द्रह वर्ष की कोमल कलिका, सुडौल शरीर, चांद सा मुखड़ा, बड़ी-बड़ी आँखें गुलाबी अधरोष्ठ....।(पृष्ठ-12)
दुनिया के हर एक आदमी के दिल में जलन होती है। किसी के दिल में जलन है दौलत के लिये, किसी के जिगर में जलन है इज्जतो- इशरत पाने के लिये, किसी के दिलो दिमाग में है अपने दिलबर की मुहब्बत पाने के लिये यह सभी तो जलन ही है। गरज यह कि दुनिया का कोई भी शख्स 'जलन' से बचा नहीं है...(पृष्ठ-99).
जलन- कुशवाहा कांत
"तुरन मैं एक कहानी सुनाने आया हूँ... ।"
"कहानी ?" उसने आश्चर्य से कहा।
"हां, आज मैं तुमसे एक प्यासे आदमी की कहानी कहूंगा, जो जिंदगी भर प्रेम की जलन में झुलसता रहा। मेरी ही तरह उसके दिल में जलन थी, सुनोगी।"
"सुनाइये...." उसने उत्सुकता से कहा।
मैं कहने लगा और तुरन दत्त-चित्त होकर सुनने लगी। (पृष्ठ-11)
तो असली कहानी यहीं से आरम्भ होती है।
कहानी है मेहर के जीवन की जो एक कबायली है। शहर काशगर से दूर एक छोटी सी बस्ती है, जिसमें खानाबदोश कबायली रहा करते हैं। यही मेहर अपने बूढे पिता के साथ रहती है जो उस कबीले का सरदार है। मेहर- पन्द्रह वर्ष की कोमल कलिका, सुडौल शरीर, चांद सा मुखड़ा, बड़ी-बड़ी आँखें गुलाबी अधरोष्ठ....।(पृष्ठ-12)
दुनिया के हर एक आदमी के दिल में जलन होती है। किसी के दिल में जलन है दौलत के लिये, किसी के जिगर में जलन है इज्जतो- इशरत पाने के लिये, किसी के दिलो दिमाग में है अपने दिलबर की मुहब्बत पाने के लिये यह सभी तो जलन ही है। गरज यह कि दुनिया का कोई भी शख्स 'जलन' से बचा नहीं है...(पृष्ठ-99).
Monday, 15 June 2020
333. जंजीर- कुशवाहा कांत
स्वतंत्रता वीरों की गाथा...आजादी और उसके बाद
जंजीर- कुशवाहा कांत,
जहाँ तक मैंने कुशवाहा कांत का साहित्य पढा और समझा है उसमें मुझे पृष्ठभूमि के आधार पर मुख्यतः तीन तरह के कथानक मिलते हैं।
प्रथम प्रेम पर आधारित रचनाएं, जिसके लिए कुशवाहा कांत को रोमांटिक उपन्यासकार कहा जाता है।
द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रचनाएँ- जैसे लालरेखा। हालांकि इनके लगभग उपन्यासों में स्वतंत्रता संघर्ष का संक्षिप्त वर्णन मिलता है।
तृतीय राज कालिन कथानक, जैसे-आहुति, मदभरे नयना।
हालांकि सभी उपन्यासों में कहीं न कहीं प्रेम और स्वतंत्रता संघर्ष का चित्रण मिल ही जाता है।
प्रस्तुत उपन्यास 'जंजीर' भारतवर्ष के गुलामी की कहानी है और उसके बाद बदलते परिदृश्य का रोमांचक और हृदयस्पर्शी चित्रण मिलता है।
जंजीर- कुशवाहा कांत,
जहाँ तक मैंने कुशवाहा कांत का साहित्य पढा और समझा है उसमें मुझे पृष्ठभूमि के आधार पर मुख्यतः तीन तरह के कथानक मिलते हैं।
प्रथम प्रेम पर आधारित रचनाएं, जिसके लिए कुशवाहा कांत को रोमांटिक उपन्यासकार कहा जाता है।
द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रचनाएँ- जैसे लालरेखा। हालांकि इनके लगभग उपन्यासों में स्वतंत्रता संघर्ष का संक्षिप्त वर्णन मिलता है।
तृतीय राज कालिन कथानक, जैसे-आहुति, मदभरे नयना।
हालांकि सभी उपन्यासों में कहीं न कहीं प्रेम और स्वतंत्रता संघर्ष का चित्रण मिल ही जाता है।
प्रस्तुत उपन्यास 'जंजीर' भारतवर्ष के गुलामी की कहानी है और उसके बाद बदलते परिदृश्य का रोमांचक और हृदयस्पर्शी चित्रण मिलता है।
Friday, 12 June 2020
332. पागल- कुशवाहा कांत
एक पागल था
पागल- कुशवाहा कांत, सामाजिक उपन्यास
महत्वाकांक्षा ही सफलता की जन्मदात्री है, परंतु कभी-कभी यही महत्वाकांक्षा सर्वनाश भी कर डालती है। कभी मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने ले लिए प्रेरित करती है और कभी उसे घृणित से घृणित दुष्कर्म करने के लिए बाध्य करती है। अच्छी वस्तु की कामना, भले कर्म की महत्वाकांक्षा लाभप्रद हो सकती है, परंतु जब मानवीय हृदय में बुरी भावना, घृणित महत्वाकांक्षा प्रविष्ट हो जाती है तो प्रलय मचा देती है। (पृष्ठ-110)
पागल- कुशवाहा कांत, सामाजिक उपन्यास
तस्वीर का उपन्यास से कोई संबंध नहीं है। |
कुछ इश्क में पागल हुये, कुछ धन के लिए, कुछ सत्ता के लिए पागल हुए और इस असीम संसार में हर एक व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा के लिए पागल हो रहा है।
कोई स्वयं पागल हो गया और किसी को पागल कर दिया गया। महत्वाकांक्षा ही सफलता की जन्मदात्री है, परंतु कभी-कभी यही महत्वाकांक्षा सर्वनाश भी कर डालती है। कभी मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने ले लिए प्रेरित करती है और कभी उसे घृणित से घृणित दुष्कर्म करने के लिए बाध्य करती है। अच्छी वस्तु की कामना, भले कर्म की महत्वाकांक्षा लाभप्रद हो सकती है, परंतु जब मानवीय हृदय में बुरी भावना, घृणित महत्वाकांक्षा प्रविष्ट हो जाती है तो प्रलय मचा देती है। (पृष्ठ-110)
Thursday, 11 June 2020
331. मदभरे नयना- कुशवाहा कांत
प्यार, दोस्ती और दौलत
मदभरे नयना- कुशवाहा कांत
मदभरे नयना- कुशवाहा कांत
- उसकी आँखें थी ही इतनी खूबसूरत की हर कोई उसक दीवाना हो उठता था।
- उसकी आँखें हरिण सी चंचल थी।
- उसके 'मदभरे नयना' हर किसी को मदहोश करने में सक्षम थे।
इन्हीं मदभरे नयनों का शिकार हो गया बसरा के शहंशाह का भाई शहजादा शकीर।
"तुम्हारा नाम क्या है बानू?"- पूछा शहजादे ने।
" मेरा नाम लेकर क्या करोगे तुम।"
"दिल के कोने में बिठाऊंगा...."-शहजादा बोला।
यह थी प्रेम कथा शहजादे शकीर और लैली की।
लेकिन महोब्बत करनी जितनी आसान है उसे मंजिल तक लेकर जाना उतना ही मुश्किल है। और यहाँ तो मुश्किलें दोनों तरफ थी।
लैली के भाई को अमीरों से नफरत थी। वह कहता है- "मैं हमेशा अमीरों को नफरत की निगाह से देखता आ रहा हूँ... खुदा न करे कि किसी अमीर को कभी हमदर्दी और मुहब्बत की नजर से देखना पड़े....।"- बोला सादिक।
दूसरी तरफ शहंशाह एक कबीले की लड़की को अपने महल में नहीं देखना चाहते थे।
- सादिक को अमीर लोगों से नफरत क्यों थी?
- क्या शहंशाह इस प्यार को स्वीकार कर पाये?
- क्या शहजादा सकीर और लैली एक हो पाये?
Wednesday, 10 June 2020
330. हमारी गलियां- कुशवाहा कांत
एक जमींदार की कहानी
हमारी गलियां- कुशवाहा कांत
परतंत्र भारत में गांवों में दो वर्ग विशेष थे, हालांकि यह वर्ग गांव ही नहीं, शहर और देश और देश से आगे विश्व में भी है। एक वर्ग है शोषणकर्ता का और दूसरा वर्ग है शोषित जनता का। शोषकवर्ग किसी न किसी तरीके से अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है उसके लिए चाहे उसे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।
चौबीस मार्च सन् 1945 और फिर उसके बाद के कुछ दिनों पश्चात कवि महोदय को कहीं कवि सम्मेलन में जाना होता है। कवि महोदय को रास्ते में वृद्ध भिखारी महिला और पुरुष मिलते हैं और वे अपनी कहानी कवि महोदय को सुनाते हैं। प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः उन दो भिखारियों के जीवन की करूण कथा है।
अब बात करते हैं उपन्यास के मूल कथानक की जो की एक सामंतशाही ठाकुर पर केन्द्रित है।
निरंकुश राज्य था ठाकुर यशपाल सिंह का उसके इलाके में। कोई उनके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता कर सकता था। उसके कार्यों में हस्तक्षेप करना अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना होता था। भला, फिर कौन दुस्साहस करता। (पृष्ठ-40).
हमारी गलियां- कुशवाहा कांत
परतंत्र भारत में गांवों में दो वर्ग विशेष थे, हालांकि यह वर्ग गांव ही नहीं, शहर और देश और देश से आगे विश्व में भी है। एक वर्ग है शोषणकर्ता का और दूसरा वर्ग है शोषित जनता का। शोषकवर्ग किसी न किसी तरीके से अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है उसके लिए चाहे उसे किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े।
चौबीस मार्च सन् 1945 और फिर उसके बाद के कुछ दिनों पश्चात कवि महोदय को कहीं कवि सम्मेलन में जाना होता है। कवि महोदय को रास्ते में वृद्ध भिखारी महिला और पुरुष मिलते हैं और वे अपनी कहानी कवि महोदय को सुनाते हैं। प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः उन दो भिखारियों के जीवन की करूण कथा है।
अब बात करते हैं उपन्यास के मूल कथानक की जो की एक सामंतशाही ठाकुर पर केन्द्रित है।
निरंकुश राज्य था ठाकुर यशपाल सिंह का उसके इलाके में। कोई उनके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता कर सकता था। उसके कार्यों में हस्तक्षेप करना अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना होता था। भला, फिर कौन दुस्साहस करता। (पृष्ठ-40).
Tuesday, 9 June 2020
329. उसके साजन- कुशवाहा कांत
प्रेम और वासना की कहानी
उसके साजन- कुशवाहा कांत
मनुष्य के शरीर में जब वासना पूर्ण रूप से व्याप्त हो जाती है तो वह उचित-अनुचित, हानि-लाभ सब कुछ भूल जाता है। वासना उसे पागल बना देती है। वासना के मीठे रस का आस्वादन करता हुआ मनुष्य यही सोचता कि जीवन का समग्र आनंद अपनी वासना पूर्ति में ही है। इसी वासना पूर्ति के लिए मनुष्य घृणित कार्य कर डालता है और अपनी मान-मर्यादा सब कुछ भूलकर जीवन नष्ट करने में तल्लीन हो जाता है। (पृष्ठ-19,20)
कुशवाहा कांत जी द्वारा रचित उपन्यास 'उसके साजन' प्रेम और शारीरिक वासना पर आधारित है।
यह कहानी है कुन्दन कुमार नामक एक नौजवान की। उस नौजवान की जिसके जीवन में प्रेम, धन और शांति है। वह अपनी पत्नी के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है। लेकिन यह शांति स्थायी नहीं है।
कुंदन के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं की वह वासना का घृणित रूप देख लेता है। यही घृणित रूप उसके जीवन की शांति को भंग कर देता है।
'जब से मैंने बीरन को देखा है।'-.... पुनः कहने लगी, "तभी से मेरा हृदय उसकी ओर आकर्षित हो गया है। अब कोई ऐसा उपाय करो कि बीरन का हृदय अब तिल्लो से खटक जाय और वह मुझे चाहने लगे।" (पृष्ठ-21)
यही हृदय एक से संतुष्ट नहीं होता। इस वासना की आग में तिल्लो, बीरन, कुन्दन न जाने और कितने स्वाह हो जाते हैं।
ऐसी ही होती है वासना की आग।
उसके साजन- कुशवाहा कांत
मनुष्य के शरीर में जब वासना पूर्ण रूप से व्याप्त हो जाती है तो वह उचित-अनुचित, हानि-लाभ सब कुछ भूल जाता है। वासना उसे पागल बना देती है। वासना के मीठे रस का आस्वादन करता हुआ मनुष्य यही सोचता कि जीवन का समग्र आनंद अपनी वासना पूर्ति में ही है। इसी वासना पूर्ति के लिए मनुष्य घृणित कार्य कर डालता है और अपनी मान-मर्यादा सब कुछ भूलकर जीवन नष्ट करने में तल्लीन हो जाता है। (पृष्ठ-19,20)
कुशवाहा कांत जी द्वारा रचित उपन्यास 'उसके साजन' प्रेम और शारीरिक वासना पर आधारित है।
यह कहानी है कुन्दन कुमार नामक एक नौजवान की। उस नौजवान की जिसके जीवन में प्रेम, धन और शांति है। वह अपनी पत्नी के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है। लेकिन यह शांति स्थायी नहीं है।
कुंदन के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं की वह वासना का घृणित रूप देख लेता है। यही घृणित रूप उसके जीवन की शांति को भंग कर देता है।
'जब से मैंने बीरन को देखा है।'-.... पुनः कहने लगी, "तभी से मेरा हृदय उसकी ओर आकर्षित हो गया है। अब कोई ऐसा उपाय करो कि बीरन का हृदय अब तिल्लो से खटक जाय और वह मुझे चाहने लगे।" (पृष्ठ-21)
यही हृदय एक से संतुष्ट नहीं होता। इस वासना की आग में तिल्लो, बीरन, कुन्दन न जाने और कितने स्वाह हो जाते हैं।
ऐसी ही होती है वासना की आग।
Monday, 8 June 2020
328. निर्मोही- कुशवाहा कांत
मोह में जकड़ा एक निर्मोही
निर्मोही- कुशवाहा कांत, उपन्यास
निर्मोही- कुशवाहा कांत, उपन्यास
निर्मोही एक ऐसे युवक की कहानी है जिसे 'मोह' तो हर किसी से है लेकिन परिस्थितियों और अपने स्वभाव के चलते वह सभी के लिए 'निर्मोही' ही साबित होता है। यह एक युवक के दर्दभरे जीवन की संघर्ष गाथा है।
मई-2020 में मैंने कुशवाहा कांत के उपन्यास पढने की नीति बनाई थी और उसी क्रम में यह मेरा चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व मैंने कुशवाहा कांत के इसी माह में क्रमश 'अकेला', 'काला भूत', 'अपना-पराया' आदि उपन्यास पढे। और अब 'निर्मोही' की चर्चा।
यह कहानी है मधुकर नामक एक बेरोजगार युवक की। जो अपनी माँ के साथ मकान मालकिन दादी के पास रहता है। दादी भी अकेली है इसलिए वह भी मधुकर को अपना बेटा समझ कर पोषित करती है।
लेकिन मधुकर का जीवन भंवरे की तरह है जो कहीं भी स्थिर नहीं रहता। इसके जीवन में जो भी आता है वह उसी जो समर्पित हो जाता है, जो पीछे रह गया उसे विस्मृत भी कर देता है। मधुकर को इस व्यवहार के लिए उसकी आदत कहें, सहानुभूति की भूख कहे या निर्मोही कहें, लेकिन अपने इसी व्यवहार के चलते मधुकर एक समय जिसके लिए प्रिय तो दूसरे समय में वह उसके लिए नफरत का पात्र भी बन जाता है।
मधुकर को एक साथी की आवश्यकता है, जो उसके अव्यवस्थित जीवन के साथ चिपककर उसे क्रमानुसार कार्य करने को बाध्य करे, जो अपनी सहानुभूति से उसकी आँखों के आंसू सुखा सके, जो उसके तड़पते हुए दिल को अपने कलेजे से लगा कर उसकी हर पीड़ा को हर ले, जो उसके शिथिल शरीर में अपना खून डालकर उसे शक्ति प्रदान करे, जो उसकी उजड़ी दुनिया में, सुख-शांति की वर्षा कर हराभरा करे। (पृष्ठ-45)
Wednesday, 3 June 2020
327. अपना पराया- कुशवाहा कांत
एक जमींदार के अत्याचार की कथा
अपना पराया- कुशवाहा कांत
धन के बल पर अक्सर मनुष्य उच्छृंखल हो जाता है। उसके लिए संबंध इतने महत्वपूर्ण नहीं रह जाते जाते जितना की वह धन को महत्वपूर्ण देने लग जाता है।
समाज सामाजिक संबंधों का समूह है और यह संबंध विश्वास और प्रेम पर आधारित हैं। लेकिन कुछ लोगों धन और ताकत को ही सबकुछ मानकर चलते हैं उनके लिए बाकी सब कुछ गौण हो जाता है। इन्हीं संबंधों पर आधारित है 'अपना-पराया'.
'अपना -पराया' कुशवाहा कांत जी द्वारा लिखा गया एक सामाजिक उपन्यास है जो समाज की कुछ गलत बातों का विरोध करता है। अकसर यह भी देखा गया है समाज की गलत बातों का विरोध हमेशा निर्धन वर्ग ने ही क्या है। यहाँ भी समाज के धनी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले जमींदार साहब स्वयं गलत होते भी गलत का विरोध नहीं करते।
दीपनारायण ठाकुर साहब दाढीराम गांव के जमींदार थे। दाढीराम मिर्जापुर शहर से चौदह मील पूर्व की ओर जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ एक गांव है। आसपास के सभी गांव ठाकुर साहब के ही हैं। ठाकुर साहब का व्यवहार अपने आसामियों से अत्यंत निर्मम था। सभी डर से कांपते रहते थे। जिस समय ठाकुर साहब की सवारी आने लगती, उस समय कोई भी उनके सामने पड़ने का साहस न करता था। ठाकुर साहब बड़े ही क्रोधी एवं जिद्दी स्वभाव के थे। (पृष्ठ-09)
अपना पराया- कुशवाहा कांत
धन के बल पर अक्सर मनुष्य उच्छृंखल हो जाता है। उसके लिए संबंध इतने महत्वपूर्ण नहीं रह जाते जाते जितना की वह धन को महत्वपूर्ण देने लग जाता है।
समाज सामाजिक संबंधों का समूह है और यह संबंध विश्वास और प्रेम पर आधारित हैं। लेकिन कुछ लोगों धन और ताकत को ही सबकुछ मानकर चलते हैं उनके लिए बाकी सब कुछ गौण हो जाता है। इन्हीं संबंधों पर आधारित है 'अपना-पराया'.
'अपना -पराया' कुशवाहा कांत जी द्वारा लिखा गया एक सामाजिक उपन्यास है जो समाज की कुछ गलत बातों का विरोध करता है। अकसर यह भी देखा गया है समाज की गलत बातों का विरोध हमेशा निर्धन वर्ग ने ही क्या है। यहाँ भी समाज के धनी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले जमींदार साहब स्वयं गलत होते भी गलत का विरोध नहीं करते।
दीपनारायण ठाकुर साहब दाढीराम गांव के जमींदार थे। दाढीराम मिर्जापुर शहर से चौदह मील पूर्व की ओर जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ एक गांव है। आसपास के सभी गांव ठाकुर साहब के ही हैं। ठाकुर साहब का व्यवहार अपने आसामियों से अत्यंत निर्मम था। सभी डर से कांपते रहते थे। जिस समय ठाकुर साहब की सवारी आने लगती, उस समय कोई भी उनके सामने पड़ने का साहस न करता था। ठाकुर साहब बड़े ही क्रोधी एवं जिद्दी स्वभाव के थे। (पृष्ठ-09)
Tuesday, 2 June 2020
326. काला भूत- कुशवाहा कांत
कहानी लड़कियों के अपहरण की
काला भूत- कुशवाह कांत
कुशवाहा कांत का उपन्यास 'काला भूत' पढा। यह एक सस्पेंश -थ्रिलर उपन्यास है।
जून माह में 'अकेला' के बाद कुशवाहा का यह दूसरा उपन्यास है जो मैंने पढा है और इसके बाद तृतीय उपन्यास 'अपना पराया' क्रम में है।
एक पर्वताकार काला भूत बीच सड़क पर चुपचाप खड़ा था।
भूत के शरीर पर कपड़े बिलकुल नहीं थे। वह एकदम नंगा तथा उसके शरीर का रंग आबनूस की तरह काला था। बदन तथा मुँह पर लम्बे लम्बे बाल थे।
उसके हाथों तथा पैरों में एक एक बालिश्त के नाखून थे। उसकी आंखें अंधेरे में भी दहकते अंगारे की तरह जल रही थी।
वहीं शहर में एक अपराधी संगठन सक्रिय था जो लड़कियों का अपहरण करता था।
मिर्जापुर में गोल्डन गैंग नामक एक बदमाशों का गिरोह था, जो लड़कियों का अपहरण करता था। (पृष्ठ-15)
पुलिस हैरान थी।
डिटेक्टिव परेशान थे।
कोतवाल, दरोगा सब पर हवाइयां उड रही थी, परंतु सब विवश थे।
दिनों दिन 'गोल्डन गैंग' का आतंक बढता जा रहा था। अब स्थिति यहाँ तक हो ग ई थी कि लोग अपनी लड़कियों को बाहर तक न निकलने देते। (पृष्ठ-16)
उपन्यास में तृतीय पक्ष है वह है ब्रजेश नामक एक विद्यार्थी का।
ब्रजेश कुमार की अवस्था केवल बीस वर्ष है अभी। वह नेटिव काॅलेज मिर्जापुर के बी. ए. क्लास का विद्यार्थी है।
इन तीनों पर आधारित है उपन्यास 'काला भूत'।
-आखिर कौन था काला भूत?
- क्या मकसद था उसका?
- 'गोल्डन गैंग' क्या था?
- 'गोल्डन गैंग' लड़कियों का अपहरण क्यों करता था?
काला भूत- कुशवाह कांत
कुशवाहा कांत का उपन्यास 'काला भूत' पढा। यह एक सस्पेंश -थ्रिलर उपन्यास है।
जून माह में 'अकेला' के बाद कुशवाहा का यह दूसरा उपन्यास है जो मैंने पढा है और इसके बाद तृतीय उपन्यास 'अपना पराया' क्रम में है।
एक पर्वताकार काला भूत बीच सड़क पर चुपचाप खड़ा था।
भूत के शरीर पर कपड़े बिलकुल नहीं थे। वह एकदम नंगा तथा उसके शरीर का रंग आबनूस की तरह काला था। बदन तथा मुँह पर लम्बे लम्बे बाल थे।
उसके हाथों तथा पैरों में एक एक बालिश्त के नाखून थे। उसकी आंखें अंधेरे में भी दहकते अंगारे की तरह जल रही थी।
वहीं शहर में एक अपराधी संगठन सक्रिय था जो लड़कियों का अपहरण करता था।
मिर्जापुर में गोल्डन गैंग नामक एक बदमाशों का गिरोह था, जो लड़कियों का अपहरण करता था। (पृष्ठ-15)
पुलिस हैरान थी।
डिटेक्टिव परेशान थे।
कोतवाल, दरोगा सब पर हवाइयां उड रही थी, परंतु सब विवश थे।
दिनों दिन 'गोल्डन गैंग' का आतंक बढता जा रहा था। अब स्थिति यहाँ तक हो ग ई थी कि लोग अपनी लड़कियों को बाहर तक न निकलने देते। (पृष्ठ-16)
उपन्यास में तृतीय पक्ष है वह है ब्रजेश नामक एक विद्यार्थी का।
ब्रजेश कुमार की अवस्था केवल बीस वर्ष है अभी। वह नेटिव काॅलेज मिर्जापुर के बी. ए. क्लास का विद्यार्थी है।
इन तीनों पर आधारित है उपन्यास 'काला भूत'।
-आखिर कौन था काला भूत?
- क्या मकसद था उसका?
- 'गोल्डन गैंग' क्या था?
- 'गोल्डन गैंग' लड़कियों का अपहरण क्यों करता था?
Monday, 1 June 2020
325. अकेला- कुशवाहा कांत
एक अकेला शहर में...
अकेला- कुशवाहा कांत
सन् 2020 के जून माह में मैं कुशवाहा कांत के उपन्यास ही पढूंगा। कुशवाहा कांत मे 35 उपन्यास लिखे हैं जिनमें से लगभग बीस मेरे पास हैं। कुशवाहा कांत के अतिरिक्त इनकी पत्नी गीतारानी कुशवाहा, भाई जयंत कुशवाहा और भतीजे सजल कुशवाहा ने भी उपन्यास लेखन किया है। मेरे विचार से एक ही परिवार के चार सदस्य उपन्यास लेखन में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।
कुशवाहा कात के उपन्यास पढन में जो प्रथम उपन्यास आरम्भ किया वह है एक सामाजिक उपन्यास 'अकेला।'
"अकेला हूँ बाबूजी।"
रिक्शेवाले के इस कथन में मार्मिक वेदना अन्तर्निहित थी, उसे बाबूजी न समझ सके। (पृष्ठ-प्रथम, प्रथम पंक्ति)
यह कहानी है विकल नामक एक नौजवान की जो परिस्थितियों से लाचार और हार मानकर सब कुछ छोड़ कर एक 'बनारस' चला आता है। यहाँ उसकी मुलाकात होती है अफजल से। जहाँ विकल एक स्वच्छ हृदय का व्यक्ति लेकिन वह जिस व्यक्ति के साथ वह उतना ही खतरनाक है- "हुजूर मैं अफजल हूँ, जिसके नाम से बनारस कांपता है।" (पृष्ठ-48)
अकेला- कुशवाहा कांत
कुशवाहा कांत मेरे प्रिय लेखकों में से एक हैं। कुशवाहा कांत मुझे इसलिए प्रिय हैं कि इनकी लेखन शैली अपने समकालीन लेखकों से अलग श्रेणी की रही है। इनके उपन्यास लोकप्रिय साहित्य की श्रेणी के होने के बाद भी भाषा शैली और प्रस्तुतीकरण के आधार पर गंभीर साहित्य को स्पर्श करते नजर आते हैं।
इनके कलम से निकली 'लाल रेखा', 'आहूति' जैसे कालजयी रचनाएँ आज भी पाठकवर्ग को सम्मोहित करती हैं।सन् 2020 के जून माह में मैं कुशवाहा कांत के उपन्यास ही पढूंगा। कुशवाहा कांत मे 35 उपन्यास लिखे हैं जिनमें से लगभग बीस मेरे पास हैं। कुशवाहा कांत के अतिरिक्त इनकी पत्नी गीतारानी कुशवाहा, भाई जयंत कुशवाहा और भतीजे सजल कुशवाहा ने भी उपन्यास लेखन किया है। मेरे विचार से एक ही परिवार के चार सदस्य उपन्यास लेखन में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।
कुशवाहा कात के उपन्यास पढन में जो प्रथम उपन्यास आरम्भ किया वह है एक सामाजिक उपन्यास 'अकेला।'
"अकेला हूँ बाबूजी।"
रिक्शेवाले के इस कथन में मार्मिक वेदना अन्तर्निहित थी, उसे बाबूजी न समझ सके। (पृष्ठ-प्रथम, प्रथम पंक्ति)
यह कहानी है विकल नामक एक नौजवान की जो परिस्थितियों से लाचार और हार मानकर सब कुछ छोड़ कर एक 'बनारस' चला आता है। यहाँ उसकी मुलाकात होती है अफजल से। जहाँ विकल एक स्वच्छ हृदय का व्यक्ति लेकिन वह जिस व्यक्ति के साथ वह उतना ही खतरनाक है- "हुजूर मैं अफजल हूँ, जिसके नाम से बनारस कांपता है।" (पृष्ठ-48)