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Friday, 19 June 2020

335. मंजिल- कुशवाहा कांत

प्रेम और स्वतंत्रता की कहानी
मंजिल- कुशवाहा कांत, रोमांटिक उपन्यास

कुशवाहा कांत को रोमांटिक, जासूसी और क्रांतिकारी उपन्यासकार कहा जाता है। उनके सभी उपन्यासों में प्रेम और स्वतंत्रता की भावना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। अगर उपन्यास क्रांति पर आधारित है तो उसमें प्रेम का परिचायक मिलेगा और उपन्यास प्रेम पर आधारित है तो उसमें क्रांति के विचार पढने को मिलेंगे।
प्रस्तुत उपन्यास 'मंजिल' में क्रांति और प्रेम दोनों का मिश्रण है और यह संतुलित भी है।
यह कहानी है शहंशाह मुहम्मद अली बिन ताहिर की-
पचास साल उम्र
मुंह पर रोबीली मूंछें और दाढी।
शहंशाह तातार बूढी उम्र में भी जवान लग रहे थे। मुखाकृति पर क्रूरता एवं में निर्दयता नर्तन कर रही थी।
(पृष्ठ-08)
         शहंशाह अत्याचारी है, जनता पर अत्याचार हपते हैं और स्वयं शहंशाह शरबते अनार(शराब) और शबाब में डूबा रहता है। लेकिन जनता हिसाब चाहती है-
"...रियाया यह भी चाहती है कि खुद सुल्तान सलामत भी, अपने ऐश व इस पर खर्च की जाने वाली दौलत का रत्ती-रत्ती हिसाब दें और बतायें कि उन्हें खुदाये पाक की ओर से क्या अख्तियार मिले हैं कि रियाया तड़पे और खुद शरबते अनार और साकी के साथ ऐश परस्ती की जिंदगी बार करें..।" (पृष्ठ-27)
लेकिन शहंशाह का भाई शहजादा रशीद अली बिन ताहिर साहब और शहंशाह की मलिका दोनों ही नरमदिल हैं
एक प्रेमी की कथा- शहजादे रशीद के जीचन में शम्सुल नामक एक युवती का प्रवेश होता है लेकिन यह शहंशाह को पसंद नहीं है।
        यह उपन्यास एक नरमदिल शहजादे की प्रेम कथा भी है और मार्मिक अंत भी।
प्रेम और उसकी तड़प को लेखक ने बहुत सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
शमा जलती रही।
परवाने जलकर तड़पते रहे।
शमा पूछती है- "मैं तो विभीषिका में जल रही हूँ, तुम क्यों जलते हो? क्यों अपनी तड़पन से हमारी जलन बढाते हो।"
परवाने कहते हैं-"जलने वालों से हमें इश्क है, मुहब्बत है, इसीलिए उनकी जलन खुद बर्दाश्त करके तड़पते हैं हमलोग।"
(पृष्ठ-39)


स्वतंत्रता के प्रेमी-
उपन्यास चाहे सल्तनत काल की पृष्ठभूमि पर आधारित है, पर अत्याचारी शासक से जनता त्रस्त है और उससे निजात चाहती है।
"...हाथ पसारकर मांगने से आजादी नहीं मिलती। इस काम में कितनी ही जानें जायेंगी, कितनों को शहीद होना पड़ेगा, मेरे दोस्तो- आजादी ताकत से मिलती है।" (पृष्ठ-64)
           कुशवाहा कांत जी की मृत्यु 1952 में हो गयी थी उनके अधिकांश उपन्यास परतंत्र काल के हैं। इसलिए उनके उपन्यासों में क्रांति के विचार मिलते हैं। तात्कालिक अंग्रेज सरकार के खिलाफ लिखना भी एक चुनौती थी तो मेरे विचार से लेखक के लिए यही एक रास्ता था की वे अन्य माध्यम से अंग्रेज सरकार के खिलाफ विद्रोह को शब्द देते। 


मलिका आलिया-
              उपन्यास का यह एक रहस्यमयी किरदार है। जो क्रांति को बढाता देता है लेकिन स्वयं प्रत्यक्ष नहीं आता।
क्रांति का दूसरा साथी सफ्दर ही प्रत्यक्ष नेतृत्व करता है। 


रेगिस्तान के डाकू- 

             उपन्यास का यह वो अध्याय है जो उपन्यास की कहानी को नया मोड़ देता है। यह प्रसंग बहुत रोचक है। शंहशाह और शहजादे की प्रतिभा और प्रेम दोनों चरित्र यही उभरते हैं।
भाषा शैली -
          कुशवाहा कांत जी की भाषा शैली परिष्कृत और परिमार्जित थी। अगर देखा जाये तो अपने समय के या लोकप्रिय साहित्य में कुशवाहा कांत जी की भाषा श्रेष्ठ थी।
शब्दों का चयन, पात्र और वातावरण के अनुकूल था। मुख्यधारा के साहित्य की अनुभूति करवाती है यह भाषा।
सुबह हुई।
चिड़िया चहचहा उठी।
क्षितिज के शून्य वातावरण में स्वच्छंद विचरण करती ऊषा, आकाश से लिपटकर सिसकियां भरने लगी, जैसे रात भर के मिलन के बाद, वियोग की घड़ी का आगमन उसके लिए पीड़ा का घोतक हो। खजूर का लंबा शरीर, प्रात: समीरण का आनंद लेता हुआ निश्चल खड़ा था।
(पृष्ठ-24)
          प्रस्तुत उपन्यास सल्तनत काल से संबंधित है, उस समय उर्दू की प्रमुखता थी इसलिए प्रस्तुत उपन्यास में भी उर्दू शब्दावली खूब प्रयुक्त हुयी है।
जैसे- शरबते-अनार, ख्वाबगाह, बिस्तर -राहते, सलामत, फरिश्ता, वजीर, शहजादा आदि शब्द।


शीर्षक- मंजिल
      किसी की मंजिल प्रेम है तो किसी की मंजिल स्वतंत्रता। अब किस को मंजिल मिलती है और किस को नहीं, किसने कितना संघर्ष किया और कौ मैदान से भागा, यह पठनीय है।

       'मंजिल' उपन्यास प्रेम और स्वतंत्रता इन दो विषयों पर आधारित है। जहाँ एक तरह शहंशाह के अत्याचारों से परेशान जनता का विद्रोह है वहीं साथ-साथ में पवित्र प्रेम कथा भी चलती है।
अत्याचारी का विरोधी और प्रेम की पवित्रता पर लिखा गया यह उपन्यास रोचक और पठनीय है। 

उपन्यास- मंजिल
लेखक-    कुशवाहा कांत
प्रकाशक- डायमण्ड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-          207

1 comment:

  1. उपन्यास की कथा वस्तु रोचक लग रही है। मिलेगा तो पढ़ने की कोशिश की जाएगी।

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