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Tuesday, 9 June 2020

329. उसके साजन- कुशवाहा कांत

प्रेम और वासना की कहानी
उसके साजन- कुशवाहा कांत

मनुष्य के शरीर में जब वासना पूर्ण रूप से व्याप्त हो जाती है तो वह उचित-अनुचित, हानि-लाभ सब कुछ भूल जाता है। वासना उसे पागल बना देती है। वासना के मीठे रस का आस्वादन करता हुआ मनुष्य यही सोचता कि जीवन का समग्र आनंद अपनी वासना पूर्ति में ही है। इसी वासना पूर्ति के लिए मनुष्य घृणित कार्य कर डालता है और अपनी मान-मर्यादा सब कुछ भूलकर जीवन नष्ट करने में तल्लीन हो जाता है। (पृष्ठ-19,20)
       कुशवाहा कांत जी द्वारा रचित उपन्यास 'उसके साजन' प्रेम और शारीरिक वासना पर आधारित है।
यह कहानी है कुन्दन कुमार नामक एक नौजवान की। उस नौजवान की जिसके जीवन में प्रेम, धन और शांति है। वह अपनी पत्नी के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा है। लेकिन यह शांति स्थायी नहीं है।
कुंदन के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं की वह वासना का घृणित रूप देख लेता है। यही घृणित रूप उसके जीवन की शांति को भंग कर देता है।
'जब से मैंने बीरन को देखा है।'-.... पुनः कहने लगी, "तभी से मेरा हृदय उसकी ओर आकर्षित हो गया है। अब कोई ऐसा उपाय करो कि बीरन का हृदय अब तिल्लो से खटक जाय और वह मुझे चाहने लगे।" (पृष्ठ-21)
     यही हृदय एक से संतुष्ट नहीं होता। इस वासना की आग में तिल्लो, बीरन, कुन्दन न जाने और कितने स्वाह हो जाते हैं।
ऐसी ही होती है वासना की आग।

         उपन्यास के पात्र प्रेम और वासना के मध्य अपना अस्तित्व तलाशते नजर आते हैं। जहाँ प्रेम और वासना है तो तय है वहाँ शक और धोखा भी होगा। यही इस उपन्यास में घटित होता है। कुछ पात्र अपनी वासना की पूर्ति के लिए अपने प्रिय से भी छल करते नजर आते हैं तो कुछ पात्र अपना सर्वस्व समर्पित करते भी दृष्टिगत होते हैं।
यही सब घटित होता है कुंदन के जीवन में। वह अपने जीवन में समर्पित प्रेम भी देखता है और वासना का घृणित रूप भी और यही सब उसके जीवन में विरक्ति पैदा कर देते हैं।
        यही विरक्ति भाव चाहे कुन्दन के जीवन के लिए शांति स्थापित करने वाला हो सकता है लेकिन उसके प्रेयसी ले लिए नहीं।
उसकी प्रेयसी तो एक ही शब्द रटती है -साजन-साजन-साजन।
...जोरों से चिल्ला उठी, "साजन! मेरे साजन!!"
दिशाएं प्रतिध्वनित हो उठी, "साजन! मेरे साजन!!"
पास ही वृक्ष पर बैठा हुआ पपीहा करुण स्वर में बोल उठा, "पी कहाँ? पी कहाँ?"

       मेरे साजन वास्तव में किसके साजन हुये। इसके साजन या उसके साजन। यही साजन कथा है 'उसके साजन' की।
लगभग 20- 25 पृष्ठों के बाद कहानी में कुछ नये पात्र आते हैं, अम्बु, अम्बु की माता, अदा, होटल मालिक जान गिलबर्ट और मैनेजर और कहानी एक नयी दिशा की तरफ चल पड़ती है, लेकिन पृष्ठ संख्या 44-45 पर जाकर अदा को छोड़ कर बाकी पात्रों को कहानी से अलग कर दिया जाता है।
जब यही करना था तो उन पात्रों को लेकर अनावश्यक घटनाएं, संवाद दिखाने का क्यों औचित्य था।

      'उसके साजन' एक मध्यम स्तर का उपन्यास है। यह प्रेम और वासना पर आधारित रचना है। उपन्यास अपने बहुत से तथ्यों से भटका हुआ है, बहुत सी कमियां है।
उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास- उसके साजन 
लेखक- कुशवाहा कांत
संस्करण- अप्रैल,1970
प्रकाशक- स्टार पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 144

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