Friday 31 December 2021

500. एक हजार चौरासी वें की माँ - महाश्वेता देवी

एक‌ माँ के दर्द की कहानी
एक हजार चौरासी वें की माँ- महाश्वेता देवी

सन् 1947 के बाद भारतीय जनता के स्वप्न बहुत थे। स्वतंत्र राष्ट्र में एक स्वतंत्र नागरिक बहुत सी इच्छाएं, स्वप्न संजोता है। आजादी, न्याय, समानता और एक खुशहाल परिवार, समृद्ध राष्ट्र। लेकिन 70 के दशक में यह स्वप्न खण्डित होने लग गये। जनता ने जो स्वतंत्र राष्ट्र से इच्छाएं रखी थी वह भ्रष्ट राजनीति की शिकार हो गयी। 
        भारतीय युवा बेरोजगार था, आक्रोशित था और इस आक्रोश का परिणाम था आंदोलन। इंकलाब जिंदाबाद
   इस आंदोलन से उपजी विभीषिका और उस विभीषिका के शिकार हुये युवा। और उन युवाओं के परिवार और वह भी विशेष कर एक माँ के दर्द की कथा है -1084 वें की माँ

499. बदकिस्मत कातिल - शुभानंद

जावेद, अमर,जाॅन (JAJ) सीरीज-02
बदकिस्मत कातिल- शुभानंद

    एक ही दिन में उसके हाथों दो क़त्ल हुए- एक - उसके दुश्मन का दूसरा - उसका जिसे वो पागलपन की हद तक प्यार करता था। वह एक बदकिस्मत कातिल था। पर उसकी किस्मत कुछ ऐसी थी कि जावेद-अमर-जॉन उसे अंत तक पकड़ न सके। (किंडल से) 
बदकिस्मत कातिल - शुभानंद


    लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में शुभानंद जी एक प्रकाशक और कथाकार के रूप में चर्चित व्यक्तित्व हैं। शुभानंद जी ने 'राजन-इकबाल रिबोर्न' सीरीज के अतिरिक्त अन्य पात्रों पर भी उपन्यास रचना की है। जासूस त्रय को लेकर लिखे गये इनके उपन्यास भी काफी  चर्चा में रहे।
      लोकप्रिय साहित्य में लंबे समय पश्चात खुफिया विभाग नाम सुनाई दिया है। इनके प्रसिद्ध जासूस त्रय 'जावेद-अमर- जाॅन' (JAJ) का संबंध खुफिया विभाग से है।
  अब कहानी पर कुछ चर्चा- 

Thursday 30 December 2021

498. जोकर जासूस -शुभानंद

JAJ और जोकर सीरीज का प्रथम उपन्यास
 जोकर जासूस- शुभानंद
   लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के अथाह सागर में एक से एक मोती भरे हुये हैं। आप एक डुबकी लगायेगे तो आपको बहुत कुछ मिलेगा। डिजीटल समय में 'किंडल' ने यह काम और भी सरल कर दिया है। इस माह मैंने किंडल का खूब उपयोग किया है। 
   किंडल पर उपलब्ध शुभानंद जी का उपन्यास 'जोकर जासूस' पढा आज उसी की चर्चा करते हैं। 
जोकर जासूस - शुभानंद
       प्रोफेसर अर्थर स्मिथ एक विदेशी वैज्ञानिक था जिसने एक ऐसे हथियार का आविष्कार कर लिया था जिसे पाने के लिये विश्व के कई आतंकवादी संगठन व माफिया लालायित थे। खुफ़िया एजेंसीज़ व पुलिस इस आविष्कार की तह तक पहुंचना चाहती थी । इस बीच अर्थर स्मिथ की रहस्यमय हालातों में मौत हो जाती है और उसकी एक फ़ाइल जिसमे हथियार से सम्बंधित सीक्रेट कोड्स छिपे थे, कई हाथों से होते हुए जोकर नाम के जासूस के हाथ आ जाती है। फ़ाइल पाते ही जोकर अपनी ही एजेंसी से बगावत करते हुए माफिया से जा मिलता है। आविष्कार को खोजते हुए सभी दिग्गज पहुँचते हैं भारत – जहाँ सीक्रेट सर्विस के एजेंट जावेद-अमर-जॉन उनके मंसूबो पर पानी फेरने के लिए तैयार हैं। 

497. सिहरन - शुभानंद

शी....कोई है।
सिहरन- शुभानंद, हाॅरर

कई साल अमेरिका में गुजारने के बाद आकाश भारत लौटता है। अपने बचपन के दोस्त अभिषेक के हालचाल लेने के बहाने वह अपने ननिहाल लखीमपुर पहुंचता है। अभिषेक के पुश्तैनी घर में रहते हुए उसे कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जिनसे उसे किसी अज्ञात शक्ति के वास होने का अहसास होता है और फिर कुछ ऐसी घटनाओं का सिलसिला उस घर में शुरू होता है जिनकी उन्होंने कल्पना भी न की थी। (किंडल से)

सिहरन शुभानंद

496. मुजरिमों का अजायबघर - अंजुम अर्शी

ब्रेन‌ मास्टर का कारनामा
मुजरिमों‌ का अजायबघर- अंजुम अर्शी

   लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का एक सुनहरा दौर था। और उस दौर में कुछ लेखक और पात्र बहुत प्रसिद्ध हुये हैं। ऐसे ही एक चर्चित नाम थे अंजुम अर्शी और उनका प्रसिद्ध पात्र था मास्टर ब्रेन।
  मेरे पास अंजुम अर्शी के दो-चार उपन्यास उपलब्ध हैं, उनमें से 'मुजरिमों का अजायबघर' उपन्यास पढा। 
   आज चर्चा इसी उपन्यास की।
"वह लाशों‌ का क्या चक्कर था?"- विक्रम ने अपना प्याला अपनी ओर सरकाते हुये वेटर से पूछा।
वेटर अभी-अभी उसके लिए नाश्ता लाया था और फिर उसकी फरमाइश पर चाय भी बना दी थी।
"कौन सी लाशों का जनाब?"- वेटर ने उसे देखते हुये पूछा।
"वही जो अक्सर वृक्षों पर लटकी मिलती हैं।"

495. बंगला नम्बर 420 - परशुराम शर्मा

कहानी एक भूतिया बंगले की
बंगला नम्बर-420- परशुराम शर्मा  

    
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में परशुराम शर्मा एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके पाठकों का एक विस्तृत क्षेत्र है। वर्तमान में विभिन्न प्रकाशको से उनके उपन्यास पुनः प्रकाशित हो रहे हैं।
    प्रस्तुत उपन्यास 'बंगला नम्बर 420' उनके उपन्यास 'कानून की आँख' का द्वितीय और अंतिम भाग है। यह एक जिन्न पर आधारित हाॅरर उपन्यास है। 

पहला बयान
"और जब मेरी आँख खुली तो न सिर्फ मेरा बेडरूम, मेरा लिबास अजनबी था बल्कि मेरा जिस्म और मेरी शक्ल भी अपनी नहीं थी। मैं अपने बंगले में सोया था पर आँख खुली बंगला नंबर 420 में।
दूसरा बयान
“मैंने खुद अपनी लाश बंगला नंबर 420 में देखी है, इंस्पेक्टर।”
तीसरा बयान
“धुएं का आदमी – हाँ – धुएं का आदमी। वह इंसानों का खून पीता है और जिसका भी खून वो पी लेता है वो उसका गुलाम होकर रह जाता है । बंगला नंबर 420 में उसकी पूजा होती है।”
हॉरर, थ्रिल और सस्पेंस से लबरेज सुप्रसिद्ध लेखक परशुराम शर्मा का महाविशेषांक। 

494. कानून की आँख - परशुराम शर्मा

जाना था जापान, पहुँच गये चीन...
कानून की आँख - परशुराम शर्मा

    आदरणीय परशुराम शर्मा जी का प्रस्तुत उपन्यास किंडल पर को मिला।
  सबसे पहले किंडल पर लिखा गया सारांश देखें 
अगर कोई कत्ल हो जाये और उसका न्याय मांगने वाला पुलिस के समक्ष कोई न हो– तब पुलिस और कानून क्या करेगा....?
अगर किसी अपराधी की इतनी पकड़ हो कि वह अदालत तक गवाही को पहुँचने ही न दे तब न्यायाधीश किस तरह अपराधी को सजा देगा....?
अगर पुलिस किसी निर्दोष पर डकैती दिखाकर उसका एनकाउंटर कर दे तो कानून पुलिस को क्या सजा देगा....?
और अगर समाज के सफेदपोश इज्जतदार, धनवान व्यक्ति जरायम में लिप्त हों– कानून और पुलिस अधिकारी उनके घिनौने जुर्मों में साझेदार हों– उनके विरुद्ध कहीं कोई सबूत ही न हो– उनके बलबूते पर चुनाव जीते जाते हों, ऐसे लोगों से क्या कोई व्यक्ति कानून से इंसाफ मांग सकता है...?
ऐसे सभी पात्रों से मुलाकात करिये, जिनके लिए अरविन्द को अर्जुन बनना पड़ा और कानून से इंसाफ मांगने के लिए जंगल का कानून लागू कर दिया।

Monday 27 December 2021

493. बुल्लेलाल - अमरेज अर्शिक

एक कॉमिक उपन्यास
बुल्लेलाल - एक जिंदा कार- अमरेज अर्शिक

 
फतांसी साहित्य में लेखक के कहानी कहने को सामग्री बहुत होती है। वह किसी भी राह से कुछ भी कह सकता है। Flydreams Publication फतांसी लेखन में नये-नये लेखकों और कहानियों को सामने ला रहा है। मैंने इन दिनों फतांसी साहित्य में जो रचनाएँ पढी हैं इनमें से प्रस्तुत रचना मुझे सर्वाधिक अच्छी लगी। 
    एक समय की बात है, एक ज़िंदा कार थी 'बुल्लेलाल', जिसकी सारी दुनिया ही दुश्मन थी और एक था दोस्त 'रेहान', जो बुल्लेलाल को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक देता है। बुल्लेलाल को न तो डीज़ल-पेट्रोल की ज़रूरत थी और न ही ड्राइवर की। बाहर से दिखने में बिल्कुल किसी आम कार सरीखी पर शायद खुद में जादू की पुड़िया।        
    दोस्तों के लिए जान देने और दुश्मनों की जान लेने वाली बुल्लेलाल की चमत्कारी कहानी।दोस्तों के लिए जान की बाज़ी लगाते-लगाते कब बुल्लेलाल की जान मुश्किल में पड़ गयी, पता भी न लगा। पर अब बहुत देर हो गयी थी और रेहान के सामने एक ज़िम्मेदारी आ खड़ी हुई थी, इस ज़िंदा कार को दुश्मन के हाथों में जाने से बचाने की। आखिर क्या था इस ज़िंदा कार बुल्लेलाल का राज़, कोई विज्ञान या चमत्कार। कौन है उसके दुश्मन? क्या रेहान बचा पायेगा उस जिंदा कार को? 

492. ज्वाला- नृपेन्द्र शर्मा

वनवासी से राजमहल तक
ज्वाला- नृपेन्द्र शर्मा

      Flydreams Publication एक प्रयोगशील प्रकाशन संस्‍थान है। यहाँ से विभिन्न विषयों पर आधारित कृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं। Flydreams Publication 'किताबें जरा हटकर' शीर्षक के अन्तर्गत कुछ फतांसी और बच्चों के लिए किताबें प्रकाशित कर रहा है। ऐसी ही एक किताब है नृपेन्द्र शर्मा जी द्वारा लिखित- ज्वाला। 

प्रेम की अग्नि में तप कर निखरने की कहानी है ज्वाला प्रतिशोध को भी मोहब्बत में बदल देने की कहानी है ज्वाला एक पल में दिल हार कर, जीवन भर साथ जीने की कहानी है ज्वाला प्रेम में साहस एवं वीरता की सारी सीमाओं के पार जाने की कहानी है ज्वाला। प्रेम, रहस्य, युद्ध, रोमांच, वीरता, शीतलता से भरपूर एक अद्भुत गाथा। (किंडल से)

    जैसा की उक्त कथन से विदित होता है, 'ज्वाला' में प्रेम, वीरता और युद्ध का मिश्रण है। लेकिन यह प्रेम और युद्ध किस में है, किसलिए है इसका पूर्ण रोमांच तो उपन्यास पढने पर लिया जा सकता है। 

Friday 24 December 2021

491. लहू का पुजारी - दिनेश ठाकुर

क्राइम किंग और रीमा भारती की टक्कर
लहू का पुजारी - दिनेश ठाकुर
  लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में दिनेश ठाकुर और रीमा भारती दो सर्वाधिक चर्चित नाम रहे हैं। दिनेश ठाकुर की कलम ने उपन्यास साहित्य की धारा को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी थी। जहाँ कहानी के नाम पर एक्शन और इरोटिक साहित्य ही पाठकों को दिया जाता था‌।  एक समय था जब रीमा भारती की डिमांड खूब थी।
  समय बदला, मनोरंजन के साधन बदले और लोकप्रिय साहित्य लोगों की दृष्टि से गायब हो गया। उस समय के उपन्यासों में से एक उपन्यास है 'लहू का पुजारी' और लेखक हैं -दिनेश ठाकुर।
      रीमा भारती के उपन्यास 'प्रथम पुरूष' में लिखे जाते रहे हैं। रीमा भारती अपने मिशन‌ की जानकारी स्वयं के माध्यम से प्रस्तुत करती है। हालांकि प्रथम पुरुष में लिखे उपन्यासों में जो कुछ भी कहा जायेगा एक व्यक्ति के माध्यम से कहा जायेगा इसलिए बहुत कुछ कहना छूट जाता है। 
लहू का पुजारी - दिनेश ठाकुर
  अब बात करते हैं उपन्यास की....
मैं रीमा....
रीमा भारती आई.एस. सी. अर्थात् इण्डियन सीक्रेट कोर नामक भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था की नम्बर वन एजेंट। माँ भारती की शरारती, उदण्ड, किंतु लाडली बेटी। वो बला, किससे मौत भी पनाह मांगे। दोस्तों की दोस्त और दुश्मनों‌ के लिए साक्षात मौत। (पृष्ठ-) 

Wednesday 22 December 2021

490. काल‌ कलंक - साबिर खान पठान

औघड़ और आदमखोर मेंढक सेना
काल कलंक - साबिर खान पठान
#हाॅरर_उपन्यास

अतीत के परदे को संभलकर हटाना चाहिए क्योंकि कभी-कभी जिसे हम कालिख समझ रहे होते हैं, वो असल में एक दीवार होती है, वर्तमान और अतीत के बीच।
     वर्तमान में झांकता अतीत लगता तो अपना है, पर होता नहीं। मिट्टी और वक़्त की गहराइयों में दफन रहस्यों को बाहर लाना कभी-कभी प्रलय का कारण भी बन जाता है।
अक्सर भूकंप के साथ तबाही आती है, पर उस रोज असल तबाही भूकंप के बाद आई। धरती के झूलने से गांव तो तबाह हुआ, लेकिन अतीत का एक रास्ता भी खुल गया।
    एक अनदेखा रास्ता जो किसी प्राचीन मंदिर के तहखाने तक जाता था। आश्चर्य यह भी कि जिस भूकंप ने इंसानी घरौंदों को उजाड़ दिया, उससे मंदिर की मूर्ति का बाल भी बांका न हुआ। 
काल कलंक साबिर खान पाठन
अनजान तहखाने से आती रहस्यमयी टर्र-टर्र की आवाजों ने खोजकर्ता टेंसी और उसकी टीम को बरबस ही खींच लिया था।
यह सिर्फ एक शुरुआत थी रहस्य, खौफ और एक के बाद एक घटती अजीबोगरीब घटनाओं की।
क्या कुछ संबंध था इस जगह का टेंसी से या यह सिर्फ एक संजोग था!?
समय के चक्र से छूटती कालिख और उससे तबाह होती ज़िंदगियों की रहस्यमयी कहानी है काल कलंक

489. ऑर्किड विला - संजना आनंद

हाॅरर- मर्डर मिस्ट्री उपन्यास
ऑर्किड विला संजना आनंद
  Flydreams Publication कुछ अलग हटकर साहित्य प्रस्तुत करने में विश्वास रखता है। इसी क्रम में इस प्रकाशन से कुछ अच्छे उपन्यास आये हैं। और इसी विश्वास के चलते मैंने इस प्रकाशन की रचनाएँ पढी हैं। जिसमें से कुछ अच्छी लगी तो कुछ औसत।
    इसी क्रम में संजना आनंद जी का प्रथम उपन्यास 'आर्किड विला' पढा। अब यह उपन्यास मुझे कैसा लगा, यह आप इस समीक्षा के अंत तक समझ जायेंगे।
कहते हैं पुरानी, वीरान इमारतों में, कईं ऐसे राज़ दफन होते हैं, जो अतीत की कब्र से बाहर आने के लिए बेचैन रहते हैं। शायद ऑर्किड विला भी अपने अंदर ऐसे कुछ रहस्यों को समेटे हुए था। अगर ऐसा न होता, तो फिर क्यों अनिकेत को हर रात, ऑर्किड विला के बगीचे में एक खूबसूरत लड़की का साया-सा नज़र आता? मगर इससे पहले की अनिकेत उसके करीब पहुँच पाता, क्यों वह धुन्ध की चादर में कहीं खो जाती थी? आखिर क्या है ऑर्किड विला का सच? (किंडल से)

488. शैवाल - क्षमा कुमारी

धरती का प्रथम मनुष्य और तिलिस्मी हवेली।
शैवाल- समुद्र का महायोद्धा - क्षमा कुमारी
  
हर सदी में एक बार, समुद्र के गर्भ से एक हवेली बाहर आती है, जिसे देखने वाला मंत्र-मुग्ध होकर उसके पीछे भागता है और डूब कर मर जाता है।
क्या ये कोई मरीचिका थी या सचमुच में ऐसी किसी समुद्री हवेली का अस्तित्व था?
क्या तन्मय उस जादुई हवेली से बच पाया या दूसरे लोगों की तरह उसकी भी बलि ले ली उस समुद्री हवेली ने? (किंडल से पुस्तक परिचय) 
       हिंदी में‌ फतांसी रचनाएँ बहुत कम है और जो है वह इस स्तर की नहीं है की उनको याद रखा जाये।‌ इस क्षेत्र में Flydreams Publication द्वारा बहुत अच्छा प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकाशन द्वारा कुछ अच्छी फतांसी रचनाएँ समाने आयी हैं। 
    'शैलाव -समुद्र का महायोद्धा' नवोदित लेखिका क्षमा कुमारी की द्वितीय रचना है। यह रचना मनुष्य जाति के आरम्भ की कहानी है। 

Saturday 18 December 2021

487. काले नाग- इब्ने सफी

कहानी क्वार्टर नम्बर 18 की
काले नाग- इब्ने सफी

जासूसी उपन्यास साहित्य में इब्ने सफी का विशिष्ट स्थान है‌। इब्ने सफी अपने समय के लोकप्रिय उपन्यासकार रहे हैं। वे मूलतः उर्दू के लेखक थे, उनके उपन्यास जितने उर्दू में चर्चित रहे हैं उतने ही अनुवादित होकर हिंदी में भी।
    इब्ने सफी जी का एक उपन्यास है 'काले नाग'। उपन्यास का शीर्षक रोचक है और इसी रोचकता के चलते यह पढा गया।
    कथा नायक इंस्पेक्टर विनोद है और उसके साथ है सार्जेंट हमीद। दोनों मिलकर 'काले नाग' रहस्य को सुलझाते हैं। 

सन् 1832 के दिसंबर माह की आठ तारीख थी।
रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे, ठण्ड अपने यौवन पर थी।

  विनोद और हमीद इस ठण्डी रात में रूपनगर का सफर करते हैं। दोनों को क्वार्टर नम्बर 18 तक पहुंचना होता है। ज्वर से पीडित विनोद इस ठण्ड में भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता। बस उसे किसी भी हालत में क्वार्टर नम्बर 18 तक पहुंचना था।
फिर अचानक चौंक कर उसने कलाई घड़ी की‌ ओर देखा और बोला-
"जल्दी करो। हमें दस-पांच मिनट पहले ही पहुंचना चाहिये।"  

486. इन्दिरा- बंकिमचन्द्र चटर्जी

एक स्त्री की कहानी
इन्दिरा - बंकिमचंद्र चटर्जी

बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी का उपन्यास 'इन्दिरा' पढा। मूलतः बांग्ला में रचित उपन्यास का यह हिंदी अनुवाद है।
   यह कहानी है एक औरत के अपने परिवार से विलग होने की, उसके बाद उपजी परिस्थितियों और उसके संघर्ष की। कहानी रोचक और पठनीय है।
      मैंने इन दिनों बंकिमचंद्र चटर्जी जी के चार उपन्यास पढे हैं। क्रमशः 'विषवृक्ष', 'राज सिंह', 'आनंदमठ' और प्रस्तुत उपन्यास 'इन्दिरा'। चारों उपन्यासों की कथा मर्मस्पर्शी है।  'विषवृक्ष' मनुष्य के चंचल मन और पतनशील होने की कथा, 'राज सिंह' एक सत्य घटना पर आधारित अर्द्ध ऐतिहासिक उपन्यास है, 'आनंद मठ' सर्वाधिक चर्चित उपन्यास है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित है। 
इन्दिरा - बंकिमचन्द्र चटर्जी
   अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'इन्दिरा' की। यह कहानी है इन्दिरा नामक एक उन्नीस वर्षीय युवती की। जो शादी के पश्चात एक लम्बे समय बाद पहली बार अपने ससुराल जा रही है। लेकिन रास्ते में पड़ने वाले 'काली दीधि' तालाब के पास वह डाकुओं की शिकार हो जाती है।

Thursday 16 December 2021

484. राज सिंह - बंकिमचन्द्र चटर्जी

राणा वंश की एक ऐतिहासिक गाथा
राज सिंह- बंकिमचंद्र चटर्जी
 बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी जी का साहित्य क्षेत्र में विशिष्ट नाम है। उनकी रचनाएँ अपने आप में विशिष्ट है। मेरे पास उनके कुछ उपन्यास है जिनको इन पढ रहा हूँ। ।  बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित 'राज सिंह' वास्तविक घटना पर आधारित एक कल्पना और सत्य का मिश्रित उपन्यास है।
   राजस्थान में रूपनगर नाम का एक नितांत छोटा सा राज्य था। वहाँ के राजा का नाम विक्रम सिंह था। यह राज्य की छोटी सी राजधानी का छोटा सा नगर था। राजा विक्रम सिंह राजपूत थे और इनकी पुत्री का नाम था चंचल कुमारी। नाम चाहे चंचल कुमारी था पर थी वह राजपूत शौर्य की धनी।
दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने उसे उसे अपने हरम में बुलाना चाहा तो चंचल कुमारी ने प्रण किया- दिल्ली न जा पाऊंगी, विष खा लूंगी। 
    लेकिन अपनी परम सखी के कहने पर चंचल कुमारी ने राणा सांगा के वंशज राज सिंह को पत्र लिख कर सूचित किया कि वर्तमान में वह एकमात्र राजपूत क्षत्रिय है और आप मेरी रक्षा कीजिए।
   अब एक तरफ औरंगज़ेब है तो दूसरी तरफ उदयपुर के राणा राज सिंह है। इन दोनों के मध्य है चंचल कुमारी। तो तय है संघर्ष तो होगा ही।
     - आखिर इस संघर्ष का परिणाम क्या हुआ?
     -  राजकुमारी के प्रण का क्या हुआ?
बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित अर्द्ध ऐतिहासिक उपन्यास 'राज सिंह' पढे। 

Tuesday 14 December 2021

483. विष वृक्ष- बंकिमचन्द्र चटर्जी

एक स्त्री की दर्द कहानी
विष वृक्ष- बंकिमचंद्र चटर्जी

नगेन्द्र दत्त नौका पर जा रहे थे। ज्येष्ठ का महीना था और तूफानी हवा चल रही थी। उनकी पत्नी सूर्यमुखी ने अपनी कसम देकर कह दिया था,-'तूफान में नाव न खेना। तूफान आए तो नौका किनारे लगा देना और नौका से उतर जाना।' पत्नी की बात स्वीकार करके नगेन्द्र नौका पर सवार हुये थे। उन्हें भय था कि कहीं वह जाने को मना न कर दे। उन्हें कलकत्ता जाना आवश्यक था, क्योंकि कई काम रुके हुये थे। (पृष्ठ-प्रथम) 
    रास्ते में तूफान भी आया, नगेन्द्र बाबू ने अपनी पत्नी सूर्यमुखी का कहना भी माना। नाव को किनारे लगा -आश्रय की खोज में वह गाँव की ओर चल पड़े।
   गाँव में जाना और वहाँ की घटना ने एक लम्बे समय पश्चात नगेन्द्र बाबू के जीवन का ऐसा खून चूसना आरम्भ किया कि वह सपना सब कुछ गवा बैठ।
आखिर नगेन्द्र बाबू के जीवन में ऐसा क्या घटित हुआ?
   यह जानने के लिए बंकिमचंद्र चटर्जी का उपन्यास 'विष वृक्ष' पढें। 

Monday 13 December 2021

482. माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया

जयदेव चावरिया का प्रथम उपन्यास
माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया

जूलरी शॉप के मालिक अशोक नंदा को एक रात किसी ने वक़्त से पहले परलोक पहुंचा दिया। पुलिस को पक्का शक था कि खून उसके दोनों बेटो में से किसी एक ने ही किया है । फिर कहानी में दखल होता है ऐसे जासूस का जिसका अशोक नंदा मर्डर केस पहला मर्डर केस था। जिसने जासूस को यह केस सौंपा उसे खुद यकीन नहीं था कि वह यह केस हल कर पायेगा।
-अशोक नंदा का खून किसने किया ?
- क्या पुलिस कातिल को पकड़ पाई ?
- क्या जासूस अपना पहला मर्डर केस हल कर सका ?
-  या यह केस उसका आखिरी केस साबित हुआ ?
एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री जिसमें आप उलझकर रह जायेंगे। 
माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया
नमस्कार पाठक मित्रो,
      लोकप्रिय साहित्य के आकाश में एक और सितारा उदय हुआ है और वो है हरियाणा का युवा जयदेव चावरिया। 

Friday 10 December 2021

481. दौलत के दीवाने - अमित श्रीवास्तव

दौलत खून मांगती है।
दीवाने दौलत के- अमित श्रीवास्तव
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अमित श्रीवास्तव एक नवोदित लेखक हैं। सन् 2017 में 'फरेब' के पश्चात नवम्बर 2021 में प्रकाशित 'दौलत के दीवाने' इनका द्वितीय उपन्यास है। दोनों ही उपन्यासों में इनकी लेखन क्षमता पल्लवित होती नजर आती है। प्रथम उपन्यास 'फरेब' एक मर्डर मिस्ट्री था तो द्वितीय उपन्यास 'दौलत के दीवाने' एक थ्रिलर उपन्यास है। 
दौलत के दीवाने - अमित श्रीवास्तव
लेखक अमित श्रीवास्तव जी के साथ

दौलत के दीवाने- अमित श्रीवास्तव
   यह कहानी है चेन्नई के द्वीप पर सदियों पुराने छुपे अकूत खजाने की। जैसे पाना तो हर कोई चाहता है, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं था। क्योंकि दौलत खून मांगती है। प्रथम बार उस खजाने को देखने वाले भी दौलत की हवस में खून का सौदा कर बैठे थे। बाद में इस खजाने को पाने वाले लोग भी खून का खेल खेलने से पीछे नहीं हटे। 

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...