Thursday 16 December 2021

484. राज सिंह - बंकिमचन्द्र चटर्जी

राणा वंश की एक ऐतिहासिक गाथा
राज सिंह- बंकिमचंद्र चटर्जी
 बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी जी का साहित्य क्षेत्र में विशिष्ट नाम है। उनकी रचनाएँ अपने आप में विशिष्ट है। मेरे पास उनके कुछ उपन्यास है जिनको इन पढ रहा हूँ। ।  बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित 'राज सिंह' वास्तविक घटना पर आधारित एक कल्पना और सत्य का मिश्रित उपन्यास है।
   राजस्थान में रूपनगर नाम का एक नितांत छोटा सा राज्य था। वहाँ के राजा का नाम विक्रम सिंह था। यह राज्य की छोटी सी राजधानी का छोटा सा नगर था। राजा विक्रम सिंह राजपूत थे और इनकी पुत्री का नाम था चंचल कुमारी। नाम चाहे चंचल कुमारी था पर थी वह राजपूत शौर्य की धनी।
दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने उसे उसे अपने हरम में बुलाना चाहा तो चंचल कुमारी ने प्रण किया- दिल्ली न जा पाऊंगी, विष खा लूंगी। 
    लेकिन अपनी परम सखी के कहने पर चंचल कुमारी ने राणा सांगा के वंशज राज सिंह को पत्र लिख कर सूचित किया कि वर्तमान में वह एकमात्र राजपूत क्षत्रिय है और आप मेरी रक्षा कीजिए।
   अब एक तरफ औरंगज़ेब है तो दूसरी तरफ उदयपुर के राणा राज सिंह है। इन दोनों के मध्य है चंचल कुमारी। तो तय है संघर्ष तो होगा ही।
     - आखिर इस संघर्ष का परिणाम क्या हुआ?
     -  राजकुमारी के प्रण का क्या हुआ?
बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखित अर्द्ध ऐतिहासिक उपन्यास 'राज सिंह' पढे। 
    उदयपुर के राणा राज सिंह वास्तव में अपनी परम्परा को जीवित रखने वाले क्षत्रिय थे। जब अधिकांश राजा औरंगजेब के गुलाम थे, ऐसे वक्त में अपने सैन्यबल और चातुर्य से मेवाड़ की रक्षा कर रहे थे राज सिंह।
  राज सिंह और चारुमति दोनों ऐतिहासिक पात्र हैं। किशनगढ़ के राजा रूप सिंह की पुत्री चारुमती पर औरंगजेब की नजर पड़ गई औरंगजेब उसे विवाह करना चाहता था चारुमती ये जान गई और उसने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखा।
     बंकिमचंद्र चटर्जी ने किशनगढ की जगह रूपनगर कर दिया और चारूमति की जगह चंचल कुमारी कर दिया। एक ऐतिहासिक घटना को काल्पनिक रूप देकर इन्होंने इस अर्द्ध-ऎतिहासिक उपन्यास में जो कल्पना के रंग भरे हैं, वह कहानी को और भी रोचक बनाते हैं।
       उपन्यास 'राज सिंह' का आरम्भ चंचल कुमारी की एक चंचलता से होता है। वह चंचलता उसके जीवन में एक नया मोड़ ले आती है। इसी चंचलता के चलते वह औरंगजेब की नजर में आती है। औरंगजेब की हरम में एक उदयपुर की और एक जोधपुर की रानी भी है। दोनों में परस्पर द्वेष है। वहीं औरंगजेब की पुत्री जेबुन्निसा से उसका सेनापति मुबारक प्रेम करता है। लेकिन यह प्रेम सिर्फ मुबारक के हृदय में होता है। जेबुन्निसा तो कहती है- शहजादियां प्रेम नहीं करती।
     औरंगजेब मुबारक को रूपनगर भेजता है चंचल कुमारी को लाने। जब चंचल कुमारी को यह समाचार मिलता है तो वह अपनी प्रिय सखी निर्मल के समक्ष प्रण करती है की वह जान दे दी पर दिल्ली नहीं जायेगी। वही निर्मल के आग्रह पर चंचल कुमारी उदयपुर के राणा राज सिंह को अपने सतीत्व की रक्षार्थ पत्र लिखती है।
      चंचल कुमारी के पत्र को पढकर राज सिंह उसे बचाने का प्रयास करता है। लेकिन हजारों की मुगल सेना के समक्ष राजपूत सेना नाम मात्र की थी। लेकिन अपने चातुर्य और सैन्य दल से राज सिंह हर कठिन परिस्थिति का डट कर सामना करता है।
   यहाँ एक और पात्र का वर्णन आवश्यक है वह है माणिक लाल। माणिक लाल वह पात्र है जो उपन्यास में अपना विशेष प्रभाव छोड़ता है। कुछ परिस्थितियों में तो माणिक लाल पूरी बाजी ही पलट देता है।
     राज सिंह और मुबारक के मध्य और फिर राज सिंह और औरंगजेब के मध्य दोनों युद्ध कथा वस्तु को एक नया मोड़ देते हैं। जहाँ प्रथम युद्ध में मुबारक पराजय के बाद भी वीरता को महत्व देता है वहीं द्वितीय युद्ध में औरंगजेब अपनी हार को पचा नहीं पाता।
    विशेष कर द्वितीय युद्ध कौशल में राज सिंह का बुद्धि बल और उसकी योजना औरंगजेब की स्थिति को बदतर कर देती है। यह घटनाक्रम उपन्यास का रोचक घटनाक्रम है।
    उपन्यास में मुगल शासकों के हरम में होने वाले षड्यंत्र, औरतों की बातें और विशेष कर शहजादी का प्रेम के प्रति विचार पढनीय है। वहीं उदयपुर वाली रानी का चंचल कुमारी से तम्बाकू भरवाने का प्रण भी दिलचस्प है। पठनीय यह भी है कि आखिर कौन किसका तम्बाकू भरता है।
     चंचल कुमारी राजपूत शौर्य का प्रतिनिधित्व करती है। वह युद्ध नहीं चाहती, लेकिन परिस्थितियों के समक्ष विवश है। राज सिंह भी उसे कहता है-"आज राजपूतों को मरना ही होगा, अन्यथा राजपूती नाम पर बहुत बड़ा कलंक लगेगा।''
  यह भी सच है‌ राजपूत हमेशा तलवार के धनी रहे हैं। वे मरना और मारना जानते हैं कुटिलता नहीं। वहीं औरंगजेब जैसे शासक वीरता नहीं कुटिलता का परिचय ही देते हैं। राज सिंह से हारने के पश्चात, संधि के बाद भी औरंगजेब अपनी कुटिलता को त्यागना नहीं है।
उपन्यास के कुछ संवाद तात्कालिक राजपूतों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं, वहीं कुछ संवाद उपन्यास में रोचकता भी बढाते हैं और पात्र का चरित्र भी स्पष्ट करते हैं।-
- आज राजपूतों को मरना ही होगा, अन्यथा राजपूती नाम पर बहुत बड़ा कलंक लगेगा।'' (राज सिंह युद्ध से पूर्व)
मुबारक के एक व्यंग्य पर राज सिंह का उत्तर देखिए-
''उदयपुर के वीर स्त्रियों से कब से मदद मांगने लगे?''
राजसिंह की चमकती हुयी आँखों से आग की चिनगारियां निकल पड़ी। उन्होंने कहा,-"जब से मुगल बादशाहों ने अबलाओं पर अत्याचार आरम्भ किया है। तभी से राजपूत कन्याओं की बाहुओं में बल आ गया है।"(पृष्ठ-57)
   प्रस्तुत उपन्यास एक ऐतिहासिक घटना का ही काल्पनिक रूप है। जो राज सिंह के शौर्य और चातुर्य का प्रदर्शन करता है। यह उपन्यास औरंगज़ेब की कुटिलता, राज सिंह के शौर्य और चंचल कुमारी के सौन्दर्य का जीवंत वर्णन है।
  
उपन्यास - राज सिंह
लेखक -   बंकिमचंद्र चटर्जी
पृष्ठ -        103
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