Friday 31 December 2021

499. बदकिस्मत कातिल - शुभानंद

जावेद, अमर,जाॅन (JAJ) सीरीज-02
बदकिस्मत कातिल- शुभानंद

    एक ही दिन में उसके हाथों दो क़त्ल हुए- एक - उसके दुश्मन का दूसरा - उसका जिसे वो पागलपन की हद तक प्यार करता था। वह एक बदकिस्मत कातिल था। पर उसकी किस्मत कुछ ऐसी थी कि जावेद-अमर-जॉन उसे अंत तक पकड़ न सके। (किंडल से) 
बदकिस्मत कातिल - शुभानंद


    लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में शुभानंद जी एक प्रकाशक और कथाकार के रूप में चर्चित व्यक्तित्व हैं। शुभानंद जी ने 'राजन-इकबाल रिबोर्न' सीरीज के अतिरिक्त अन्य पात्रों पर भी उपन्यास रचना की है। जासूस त्रय को लेकर लिखे गये इनके उपन्यास भी काफी  चर्चा में रहे।
      लोकप्रिय साहित्य में लंबे समय पश्चात खुफिया विभाग नाम सुनाई दिया है। इनके प्रसिद्ध जासूस त्रय 'जावेद-अमर- जाॅन' (JAJ) का संबंध खुफिया विभाग से है।
  अब कहानी पर कुछ चर्चा- 
     जामवंत राय करीब पचपन साल का शक्ल से ही रईस दिखने वाला आदमी था। वह निहायत ही मोटा था और चलते वक्त वो एकदम हाथी जैसा लगता था। जौहरी बाज़ार में उसकी चार दुकाने थी। एक पर वह खुद बैठता था बाकियों को उसके आदमी सँभालते थे। निहारिका उसकी बड़ी बेटी थी और उसका एक बारह साल का लड़का था – जयंत।
      कहानी है जामवंत राय की बेटी निहारिका की। जो एक दिन अपने दोस्तों के साथ काली पहाड़ी के पास नदी के किनारे पिकनिक मनाने गयी थी। पर वह वहां से वापस न लौटी।
पूरा मामला भी जासूस मित्रो के शब्दों में-
“सन्डे के दिन जामवंत राय की बेटी निहारिका राय अपने दोस्तों के साथ इस नदी किनारे पिकनिक मनाने आई थी। पिकनिक के दौरान निहारिका नदी किनारे अकेले टहलते हुए काफी दूर निकल गई। उसके दोस्तों ने उसे आवाज़ दी पर उसने उनको हाथ हिलाकर दिखाया कि सब ठीक है। कुछ देर बाद, जब वो दिखाई देना बन्द हो गई तो उसके दोस्त परेशान हो उठे। उन्होंने उसे यहाँ हर तरफ ढूँढा पर कई घंटों बाद भी वो नहीं मिली। न ही उसके मोबाइल से संपर्क हो सका। शाम को उन्होंने उसके पिता को फ़ोन किया। वो वहां आनन-फानन पुलिस के साथ पहुंचा। पुलिस ने सरगर्मी से उसे नदी के चारों तरफ़ और नदी में भी तलाश किया पर उसका कुछ पता नहीं चला।”
   यह केस मिलता है खुफिया विभाग के तीन जासूसों जावेद, अमर और जाॅन (JAJ) को। और यह तीनों खुफिया विभाग के अधिकारी अपने बुद्धिबल से इस केस को हल करते हैं।
     जैसा की शीर्षक से पता चलता है यह कहानी एक ऐसे किरदार की है जो कत्ल भी करता है और जिस वजह से करता है, वह भी उसे प्राप्त नहीं होता।
       उपन्यास में कुछ पात्रों का चित्रण भी पठनीय है।
नीहारिका- वो एक बीस साल की कॉलेज जाने वाली बेहद खूबसूरत युवती थी। उसका रंग गोरा, बाल लंबे व घने और होठ गुलाब की पंखुडियो से थे। चेहरे पर मासूमियत से भरे भाव थे।
श्रीनिवासन- श्रीनिवासन ख़ुफ़िया विभाग में एक एनालिस्ट था जोकि हैडक्वार्टर में बैठकर विभिन्न केस पर काम करता था।
   श्री निवासन की भूमिका बहुत कम है पर जहाँ-जहाँ पर है वहां-वहां यह पात्र मुस्कान दे जाता है।
जावेद- जल्लाद!
जावेद को यूँ ही नहीं कहा जाता था। ख़ुफ़िया विभाग में उसे टॉर्चर एक्सपर्ट की उपाधि हासिल थी।

  उपन्यास में शाब्दिक त्रुटियों के साथ मुझे व्यक्तिगत दृष्टिकोण से कुछ कमी महसूस हुयी।
जैसे- पुलिस द्वारा तात्कालिक माह की काॅल डिटेल न निकलवाना। वह भी चार ज्वैलरी शाॅ रूम के मालिक की बेटी की। यह कुछ सही नहीं लगा।
   उपन्यास में दो जगहों पर मोबाइल नम्बर दिये गये हैं। मेरा व्यक्तिगत विचार है की दस अंकों का पूर्ण नम्बर नहीं देना चाहिए। क्योंकि भविष्य में पता नहीं यह नम्बर किसके पास चला जाये।
   बाकी उपन्यास में ऐसी कोई त्रुटि नहीं जो कहानी को प्रभावित करे।
उपन्यास में जासूस चाहे तीन हैं पर कोई अपनी अमिट छाव नहीं छोड़ पाया। लघु कलेवर के उपन्यास में इतना स्थान होता नहीं है।
   मुझे ऐसे छोटी कहानियाँ बहुत पसंद आती है, क्योंकि इनमें एक तो अनावश्यक विस्तार/वार्तालाप नहीं होता, कहानी की गति तेज होती है।
   अगर आप नये पाठकों को ऐसे रचनाएँ पढने को दो तो वे भी लोकप्रिय जासूसी साहित्य से  जुड़ सकते हैं।
उपन्यास- बदकिस्मत कातिल
लेखक-    शुभानंद
सीरीज- जावेद, अमर, जाॅन (JAJ)
शुभानंद जी‌ के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

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