Thursday 27 February 2020

272. हीरों का बादशाह- वेदप्रकाश शर्मा

भारत- पाक के मध्य युद्ध की कहानी।
हीरों का बादशाह- वेदप्रकाश शर्मा, 
 वेद जी  का 21वांं उपन्यास
विजय- अलफांसे का कारनामा


   इस माह वेदप्रकाश शर्मा जी का यह तीसरा उपन्यास पढ रहा हूँ। इससे पूर्व टुम्बकटू सीरीज के दो उपन्यास 'खूनी छलावा' और 'छलावा और शैतान' पढे थे। दोनों उपन्यास आकार में छोटे थे और प्रस्तुत उपन्यास भी कहानी और कलेवर में उसी प्रकार का है।
        वेद जी के आरम्भिक उपन्यास एक्शन प्रधान होते थे जिनमें कहानी गौण और पात्रों के करतब मुख्यतः दिखाये जाते थे। इस उपन्यास में भी विजय और अलफांसे के करतब देखने को मिलते हैं।
        कहानी कोई बड़ी नहीं है। कुछ परिस्थितियों के चलते भारतीय सेना का मेजर बलवंत और कुछ सैन्य दस्तावेज और एक विशेष हीरा पाकिस्तान को प्राप्त हो जाते हैं इन महत्वपूर्ण सूचनाओं के दम पर पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करना चाहता है।

      भारतीय सीक्रेट सर्विस उन सैन्य दस्तावेजों को और मेजर बलवंत को वापस लाने की जिम्मेदारी जासूस विजय को सौंपती है।
      पूर्वी पाकिस्तान के एक छोटे से गांव में अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी उपस्थित है।

- सैन्य दस्तावेज़ और मेजर बलवंत पाकिस्तान सेना के कब्जे में कैसे आये?
- हीरे का क्या रहस्य था?
- विजय और उसकी टीम ने क्या कारनामे दिखाये?
- अलफांसे पाकिस्तान में क्यों उपस्थित था?
आखिर क्या परिणाम निकला इस कथानक का?

इन प्रश्नों के उत्तर तो उपन्यास पढने पर ही मिलेंगे।

अब उपन्यास के अन्य बिंदुओं पर चर्चा।
         उपन्यास में विजय के अतिरिक्त अशरफ और आशा का किरदार भी रखा है और दोनों ही भारतीय सीक्रेट सर्विस के जासूस हैं। उपन्यास में दोनों का एक-एक घटनाक्रम में ही नजर आते हैं इसके अलावा कहीं उनका कोई काम नहीं है।
उपन्यास में कोई विशेष स्मरणीय संवाद नहीं है, अगर है तो सिर्फ एक्शन है।
       उपन्यास का शीर्षक चाहे 'हीरों का बादशाह' है लेकिन उपन्यास में मात्र एक ही हीरा है और उसका बादशाह किसे कहें? यह सोच से परे है। क्योंकि बादशाह वाली कोई स्थिति नहीं है।
        मेजर बलवंत का फेसमास्क लगा कर हर कोई कहीं भी घूम रहा है और किसी को पता भी नहीं चलता की ये मेजर बलवंत है या कोई और। यह असंभव सा प्रतीत होता है।
उपन्यास में तार्किक स्तर पर बहुत सी गलतियाँ है। कहीं-कहीं तो अचानक से आये घटनाक्रम अनावश्यक से प्रतीत होते हैं। कहीं-कही तो घटनाएं इतनी जल्दी में आरम्भ और खत्म होती ह कुछ समझ में ही नहीं आता और जब कुछ समझमें आने लगता है तो उपन्यास खत्म हो जाता है।

        अगर आप कहानी के स्तर य उपन्यास पढना चाहते हैं तो आपको निराशा हाथ लगेगी। अगर वेदप्रकाश शर्मा जी के नाम से और एक्शन के कारण पढना चाहते हैं तो यह लघु उपन्यास आपका ज्यादा समय नहीं लेगा आप पढ सकते हैं। क्योंकि उपन्यास में एक्शन है लेकिन कहीं बोर करने वाले दृश्य नहीं है।

उपन्यास- हीरों का बादशाह. 
लेखक-  वेदप्रकाश शर्मा

Wednesday 26 February 2020

271. लक्ष्मण रेखा- दत्त भारती

खत्म होने नैतिक मूल्यों की कथा
लक्ष्मण रेखा- दत्त भारती, उपन्यास

       उपन्यास जगत में दत्त भारती जी काफी चर्चित लेखक रहे हैं, मुझे पहली बार उनका कोई उपन्यास पढने को मिला। जैसा की उनके बारे में सुना था वैसा ही उनका यह उपन्यास मुझे लगा।
       समाज में धीरे-धीरे शामिल हो रही कुरीतियों को आधार बना कर लिखा गया 'लक्ष्मण रेखा' नामक उपन्यास पाठक को सोचने के लिए विवश करता है और साथ ही गर्त की ओर अग्रसर समाज का यथार्थवादी चित्रण करता है।
       यह उपन्यास स्वयं में एक प्रयोग है। प्रयोग इस दृष्टि से है यह उपन्यास मुख्यतः नायक शेखर के दृष्टिकोण से लिखा गया है और दूसरा सारा घटनाक्रम एक पार्टी का है। तथाकथित सभ्य समाज की एक ऐसी पार्टी जहाँ मान-मर्यादा कुछ महत्व नहीं रखती, अगर वहाँ कुछ महत्व रखता है तो वह है धन।
धन के लिए मनुष्य किस स्तर तक गिर सकता है यह इस उपन्यास में विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
लेखक लिखता है-
'ऐसी पार्टियों को देखकर तो अनुभव होता है कि कौमार्य नाम की कोई वस्तु नहीं होती।'(पृष्ठ-57)
       कारण यह है की कुछ माँ-बाप ऐसी फिल्मी पार्टियों में अपनी बेटियाँ को लाते ही इसलिए हैं की वे धन कमा सके।- यह सब ऊँचे घराने के लोग है, और लड़कियाँ हैं जिनके माता-पिता उन्हें सजाकर लाए हैं। यह जवान लड़कियों‌ की नुमाइश करना चाहते हैं। शायद किसी प्रोडयूसर या डायरेक्टर की दृष्टि इन पर पड़ जाये और वह इन्हें हिरोईन के रोल के लिए चुन लें। (पृष्ठ-56)
      और कुछ शरीर का सौदा भी करती नजर आती हैं उनके लिए मर्यादा और समाज तुच्छ हैं। एक उदाहरण देखें-
"सैक्स शरीर की आवश्यकता है।"
"लेकिन मान मर्यादा, समाज?"
" वह गरीब, निम्नवर्ग और मध्यम वर्ग के लिए रह गया है।"
(पृष्ठ-116)
      धन का इतना महत्व हो गया है की अब लोग मनुष्य के गुणों का महत्व न समझ कर मात्र धन को महत्व देते हैं। विशेष फिल्मी क्षेत्र में तो आजकल बदनाम लोगों को आगे लाया ज रहा है। फिल्म जगत जिसका समाज पर सर्वाधिक प्रभाव है वह कुछ अच्छा करने की बजाय समाज को गलत रास्ता ही दिखा रहा है। कभी-कभी तो इतिहास और वर्तमान समाज के बदनाम पौत्र को अच्छा दिखाने की कोशिश नजर आती है।
अब तो समाज भी ऐसे लोगों को एक तरह से पूजने लगा है।- पहले सजा पाए लोगों से दूर रहते थे। इनका किसी अच्छे घराने में विवाह न हो सकता था.....लेकिन अब चोरी, स्मग्लिंग, घूस घोरी, हेरा फेरी, चार सौ बीस, गबन के सिलसिले में सजा पाने के उपरांत यदि आपके पास कार है, कोठी है, धन है, तो आप सभ्य नागरिक समझे जाते हैं।(पृष्ठ-80)
      लेखक ने और भी बहुत से विषयों को उपन्यास में स्थान दिया है। जैसे कांग्रेस पार्टी द्वारा किया जा रहा भ्रष्टाचार, आत्मा की आवाज के नाम पर उच्छृंखलता, पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव और खत्म होता अनुशासन इत्यादि।
साहिब जिस देश और जाति में डिसिप्लिन न रहे वह जाति जाति नहीं रहती और वह देश देश नहीं रहता। (पृष्ठ-13)

     इस उपन्यास का प्रकाशन सन् 1970 में हुआ था यह वह दौर था जहां एक तरफ भारतीय संस्कृति और दूसरी तरफ पाश्चात्य सभ्यता दोनों भारतीय जनमासन का मंथन कर रही थी। जहां एक तरफ भारतीय लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति को त्याग नहीं पाये और पाश्चात्य सभ्यता को भी पूर्णतः आत्मसात् नहीं कर पाये और इस चक्कर में हम कहीं के नहीं रहे- यहा एक नई सभ्यता और नई संस्कृति थी जो न भारतीय थी और न पश्चिमीय। (पृष्ठ-60)
कहने को यह कहानी/पार्टी फिल्मी लोगों की है पर यह सच पूरे समाज का है, जो धीरे-धीरे सभी जगह पैर पसार रहा है। इस सच को लेखक ने कथा वाचक शेखर के माध्यम से उजागर किया है।

एक विशेष पंक्ति के साथ समीक्षा को विराम।-
सीता ने लक्ष्मण रेखा पार की थी तो बहुत दुख पाया था।...भारत की सभ्यता और संस्कृति भी लक्ष्मण रेखा पार कर चुकी है। देखिए क्या होता है..... 


उपन्यास- लक्ष्मण रेखा
लेखक-    दत्त भारती
प्रकाशक-  कलाकार प्रकाशन, नई दिल्ली

पृष्ठ-          136
प्रकाशन- 1970

Tuesday 25 February 2020

270. शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द जी के शिक्षा के प्रति विचार

    विद्यालय के पुस्तकालय में एक छोटी सी किताब मिली। जिसका शीर्षक था 'शिक्षा'। यह स्वामी विवेकानन्द जी के शिक्षा के प्रति विचारों का एक छोटा सा संग्रह है। इससे पूर्व (एक दिन पहले) राम पुजारी जी द्वारा लिखित एक बाल साहित्य की किताब 'अन्नु और स्वामी विवेकानन्द' पढी थी जो विवेकानन्द जी की जीवनी थी और यह पुस्तक (शिक्षा) उनके विचारों का संग्रह है।
मैंने विवेकानन्द जी से संबंधित अब तक जो साहित्य पढा है उनमें से यह लघु रचना मुझे श्रेष्ठ लगी।

       शिक्षा कैसी होनी चाहिए इस विषय पर विभिन्न संदर्भों के माध्यम से विचार किया गया है। शिक्षा की मनुष्य  को क्या आवश्यकता है, शिक्षा के तत्व, धार्मिक शिक्षा या स्त्री-शिक्षा सभी पर विवेकानन्द जी ने बहुत सारगर्भित बाते कही हैं।
स्वामी जी कहते हैं की वर्तमान हमारी शिक्षा हमें बौद्धिक दृष्टि से सक्षम बना रही है लेकिन हृदय के स्तर पर हम शून्य होते जा रहे हैं। 
हमें तो ऐसी शिक्षा चाहिये कि जिससे चरित्रगठन हो, मानसिक वीर्य बढे, बुद्धि का विकास हो और उससे मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके। (पृष्ठ-04)

         धर्म के विषय पर स्वामी जी के विचार मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। आज हम धर्म को किस दृष्टि से देखते हैं और स्वामी जी किस दृष्टि से देखते हैं यह इस किताब से पता चलता है।
- हमें मनुष्य का निर्माण करने वाला धर्म चाहिए। हमें आवश्यकता है 'मनुष्य बनाने वाले सिद्धांतों की। हमें चाहिए ऐसी शिक्षा, जो हर तरह से हमें मनुष्य बना सके। (पृष्ठ-05)
धार्मिक शिक्षा अध्याय में लिखते है की 'नये धर्म का कहना है कि जो अपने में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है।'(पृष्ठ-35)

स्री शिक्षा अध्याय में औरतों की दशा पर विचार करते हुए कहते हैं की "यह समझना बहुत कठिन है कि इस देश में पुरुषों और स्त्रियों के बीच इतना भेद क्यों रखा गया है जब कि वेदांत की यह घोषणा है कि सभी प्राणियों में वही एक आत्मा विराजमान है।" (पृष्ठ-43)

कुछ और विशेष विचार जो मुझे अच्छे लगे।
-ज्ञान प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है और वह है एकाग्रता। (पृष्ठ-13)
- जिस अभ्यास के द्वारा मनुष्य की इच्छाशक्ति का प्रवाह और आविष्कार संयमित होकर फलदायी बन सके, उसी का नाम है शिक्षा। (पृष्ठ-05)
- मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।


प्रस्तुत किताब 'शिक्षा' एक पठनीय और विचारणीय रचना है। अगर स्वामी विवेकानन्द जी को समझना है तो यह किताब अवश्य पढें और पढायें। यह किताब हमारे विचारों को परिपक्व करती है और एक नयी दृष्टि देती है। 
किताब-   शिक्षा     
विचारक- स्वामी विवेकानन्द
पृष्ठ-      50
प्रकाशन- 

लिंक- शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द

Sunday 23 February 2020

269. अन्नु और स्वामी विवेकानन्द- राम पुजारी

अन्नु और स्वामी विवेकानन्द- राम पुजारी

भौतिक युग में हम सात्विकता से दूर होते जा रहे हैं। हम उस वृक्ष की तरह होते जा रहे हैं जिसकी धीरे-धीरे मूल काट दी जाये। इंटरनेट युग के बच्चे अपनी संस्कृति और सभ्यता से विलग होते जा रहे हैं, उन्हें फिल्मों, डिजिटल दुनिया की जानकारी तो है लेकिन अपने देश के युग नायकों को भुल रही है।
     स्वामी विवेकानन्द जिन्हेें युवाओं का प्रेरणा पुरूष कहा जाता है। यह छोटी सी किताब विवेकानन्द जी को बहुत ही सहज और सरल तरीके से प्रस्तुत करती है ताकी किशोरावस्था के बच्चे युग नायक स्वामी विवेकानन्द जी को समझ सके। सिर्फ समझ ही नहीं बल्कि उनकी प्रेरणा से आगे भी बढ सके।
इस लघु जीवनी में हालांकि विवेकानन्द जी के संपूर्ण जीवन को समेटना संभव नहीं है लेकिन लेखक महोदय ने जो आवश्यक और उपयोगी प्रसंग इस किताब में प्रस्तुत किये हैं वे सब बच्चों के संस्कार और विवेकानन्द जी को समझने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
     अन्नु एक छोटी सी बच्ची है जो अन्तरिक्ष जगत की जानकारी तो रखती है लेकिन वह विवेकानन्द जी को नहीं जानती, तब उसके चाचा उसे बहुत ही सरल तरीके से उसे विवेकानन्द जी का परिचय देते हैं।
     विवेकानन्द साहित्य मुझे बहुत प्रभावित करता है इसलिए मैं समयानुसार विवेकानन्द जी के साहित्य को पढता रहता हूँ और मेरी इच्छा होती है की छोटे बच्चे भी विवेकानन्द जी को जाने और इस दृष्टि से यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।
    लेखक का यह प्रयास बहुत अच्छा है। बच्चों के लिए ऐसी प्रेरणादायक किताबें आनी चाहिए ताकी बच्चें सरलता से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन कर भारतीय युुुग पुुुुरुषोंं को जान सके।

कुछ रोचक पंक्तियाँ
- गुरु वो होता है जो हमारे अज्ञान के अंधकार को दूर करता है। हमें सभी मार्ग बताता है। (पृष्ठ-25)
-भय का सामना करने से भय स्वयं खत्म हो जाएगा।
(पृष्ठ-31)
पुस्तक- अन्नु और स्वामी विवेकानन्द
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- निखिल पब्लिशर्स और डिस्ट्रीब्युटर्स, उत्तर प्रदेश
पृष्ठ- 48

मूल्य- 50₹

माउंट आबू स्थित 'चंपा गुफा' जहां विवेकानन्द जी ने शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से कुछ समय पूर्व ध्यान किया था।

 

268. छलावा और शैतान- वेदप्रकाश शर्मा

  चन्द्र ग्रह के फरार अपराधी की कथा
छलावा और शैतान- वेदप्रकाश शर्मा

 छलावा और शैतान वेदप्रकाश शर्मा जी का चौथा उपन्यास है और टुम्बकटू सीरिज का दूसरा उपन्यास है। प्रस्तुत उपन्यास 'खूनी छलावा' का द्वितीय भाग है।
            प्रथम भाग 'खूनी छलावा' में टुम्बकटू ने समस्त पृथ्वी के अपराधियों को एक चैलेंज दिया था की वह उसका कत्ल कर दे। कत्ल करने वाले को इतना धन मिलेगा जितना सम्पूर्ण पृथ्वी पर भी नहीं है। इस चैलेंज को पूरा करने के लिए पृथ्वी के अपराधी टुम्बकटू की जान के पीछे पड़ गये।
       द्वितीय भाग 'छलावा और शैतान' में कहानी आगे बढती है। शहजादी जैक्शन टुम्बकटू को अपने अधीन करना चाहती है तो अपराधी सिहंगी भी यही सपने लेता है। इन दोनों का संघर्ष पठनीय है।
सहसा प्रिंसेज जैक्शन ठिठक गयी।
दुनिया के तख्त का सबसे महान अपराधी, अपराधी सम्राट सिहंगी ठीक सामने था।
इस समय विश्व के दो महानतम अपराधी प्रतिद्वंद्वी के रूप में आमने-सामने खड़े थे।

         इन दोनों के साथ-साथ क्रंकीट के जंगल का शेर अलफांसे भी उपस्थित है जो टुम्बकटू को पकड़ना चाहता है।
एक तरफ खूनी छलावा था तो दूसरी ओर शातिरों का बाप।
वहीं विजय- विकास भी रहस्यमयी टुम्बकटू को पकड़ना चाहते हैं।
और इन सब के बीच में है टुम्बकटू।
टुम्बकटू एक रहस्य बन गया था....जो सबकी समझ से बाहर था।

      प्रस्तुत उपन्यास में यही संघर्ष चलता है। कौन टुम्बकटू को पकड़े उसका कत्ल करे और अथाह धन का स्वामी बने।
लेकिन टुम्बकटू तो ठहरा छलावा वह किसी के हाथ नही लगता। अगर किसी‌ ने उसे पकड़ भी लिया तो वह हाथ में से मछली की तरह निकल लेता है।
     'छलावा और शैतान' उपन्यास में मूलतः पृथ्वी के अपराधियों की चन्द्रग्रह के टुम्बकटू को लेकर छिडी़ जंग की कथा है।
       अब कौन किस पर भारी पड़ता है और किसके हाथ क्या लगता है? यह सब उपन्यास पढने पर ही पता चलेगा।
       इस जंग को देखकर टुम्बकटू को भी कहना पड़ता है- "मुझे आप लोगों की बुद्धि पर रहम आता है। आप लोग आपस में लड़ते रहते हैं और यह तक नहीं सोचते कि जिस वस्तु के लिए लड़ रहे हैं, वह वस्तु आप लोगों को मिलेगी भी या नहीं।"-
टुम्बकटू अगर छलावा है तो विकास वह शैतान है जिसके कारनामें देख कर शैतान भी कांप जाता है।
उफ.....।
क्या वास्तव में विकास तेरह वर्ष का लड़का है?
क्या वास्तव में यह भयानक कार्य इंसान का है?
नहीं....।
यह कार्य शैतान का है।
संसार के सबसे खूंखार शैतान का।
अगर विकास अभी से इतना खतरनाक शैतान है तो बड़ा होकर क्या बनेगा?
(पृष्ठ-)

     उपन्यास में विकास को एक विशेष पात्र के रूप में उभारा गया है। हालांकि यह 'विजय-विकास' सीरीज का उपन्यास है, लेकिन विकास के खतरनाक और अविश्वसनीय कारनामें उपन्यास में खूब हैं। कहीं-कहीं तो अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन भी बहुत है।  उपन्यास टुम्बकटू पर आधारित है और यह पात्र वास्तव में बहुत दिलचस्प है।
        वेद जी के पाठकों के लिए यह उपन्यास अच्छा है, सिर्फ उन पाठकों के लिए जो एक्शन कहानियाँ पढना पसंद करते हैं। हालांकि उपन्यास में कोई विशेष कहानी है, सिर्फ टुम्बकटू को पकड़ने का संघर्ष है।

उपन्यास- छलावा और शैतान  


लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली


वेदप्रकाश शर्मा का चौथा उपन्यास
टुम्बकटू सीरीज का द्वितीय उपन्यास

Saturday 22 February 2020

267. खूनी छलावा- वेदप्रकाश शर्मा

टुम्बकटू सीरीज का पहला उपन्यास
खूनी छलावा- वेदप्रकाश शर्मा
वेदप्रकाश शर्मा जी का तृतीय उपन्यास

'खूनी छलावा' वेदप्रकाश शर्मा जी की आरम्भिक रचनाओं में से है। यह उस समय का उपन्यास है जब उपन्यास साहित्य में आश्चर्यजनक पात्र और अतिशय कल्पना की प्रचुरता थी। पाठक अक्सर ऐसा पढना पसंद करते थे जो उन्हें एक अलग दुनिया का भ्रमण करवा सके, बाकी वास्तविकता और यथार्थवाद तो चारों तरफ फैला ही है। पाठक इस यथार्थवादी दुनिया से अलग अपनी एक कल्पना की दुनिया इन उपन्यासों में ढूंढते थे। इसी कल्पना की दुनिया को कुछ और विचित्र बनाने के लिए वेदप्रकाश शर्मा जी ने अपने एक अदभुत पात्र टुम्बकटू की कल्पना की। उपन्यास पढने पर पता चलता है की यह पात्र कितना अजीब है।
        वेदप्रकाश शर्मा मेरे पसंदीदा उपन्यासकार हैं। मेरी इच्छा है उनके समस्त उपन्यास पढने की और यह क्रम जारी भी है। 'दहकते शहर' और 'आग के बेटे' के बाद यह क्रम से उनका तीसरा उपन्यास पढ रहा हूँ और अक्रम से काफी पढ लिये।
उपन्यास का आरम्भ विकास के 13 वें जन्मदिन से होता है। वेद जी के पाठकों को पता ही है विकास के जन्मदिन पर विश्व के खतरनाक अपराधी अपने-अपने अजीब ढंग से आशीर्वाद देने आते हैं। इस बार तेरहवें जन्मदिन पर चांद का निवासी और खतरनाक अपराधी टुम्बकटू भी विकास को आशीर्वाद देने आता है। लेकिन वह विश्व के अपराधियों को एक चैलेंज भी देता है।
"मैं ....धरती के समस्त देशों की सरकार के साथ-साथ अपराधी जगत के भयानक से भयानक अपराधी को चैलेंज दे रहा हूँ। चैलेंज ये है कि जिसमें भी शक्ति हो, वह मेरा यानी टुम्बकटू का खून कर दे।" (पृष्ठ-09)

266. क्या अब भी प्यार है मुझसे- रविन्दर सिंह

प्यार बस प्यार ही नहीं एक वादा भी है....
क्या अब भी प्यार है मुझसे?- रविन्दर सिंह, उपन्यास



रविन्दर सिंह साहित्य में प्रेम रचनाओं के लिए जाने जाते हैं। 
'क्या अब भी प्यार है मुझसे?' इनके अंग्रेजी उपन्यास.... का हिन्दी अनुवाद है। यह उपन्यास आबू रोड़ (सिरोही) रेल्वे स्टेशन से दिनांक 04.02.2020 को खरीदा था, इसके कुछभाग तो यात्रा के दौरान ट्रेन में ही पढ लिया था और बाकी पढने में कुछ समय लगा। 
      ‌उपन्यास शीर्षक में प्रश्न चिह्न है। यह प्रश्न चिह्न उपन्यास के घटनाक्रम को परिभाषित करता है की आखिर कब, क्यों और किन परिस्थितियों में एक प्रिय को दूसरे से यह पूछना पड़ा की 'क्या अब भी प्यार है मुझसे?' और उसे प्रति उत्तर क्या मिला?
यह सब इस उपन्यास को पढने पर ही पता चलता है।



Pic by- NB08022020


यह कहानी है पंजाब के राजवीर और पूर्वोतर की लावण्या की। जहां दोनों का राज्य अलग है वहीं दोनों की सभ्यता और संस्कृति ही नहीं शारीरिक बनावट भी अलग है। 
एक परम्पराओं के अनुकरण करने वाले परिवार को यह कभी भी स्वीकृत नहीं की उनके परिवार का सदस्य अन्य संस्कृति का हो।
राजवीर के पिता भी यही कहते हैं-"प्यार दे चक्कराँ विच अन्हा होया पया है मुण्डा तेरा।"- राजवीर के पिता ने उसकी माँ से कहा।

लावण्या है शिलौंग की सदाबहार पहाड़ियों की रहने वाली और राजवीर है शाही शहर पटियाला से। भले ही दोनों की परिस्थितियों में धरती आसमान का अंतर है, फिर भी उन्हें मुंबई से चण्डीगढ़ जाने वाली फ्लाइट पर साथ बैठे-बैठे, बातों ही बातों में प्यार हो जाता है। कम से कम दोनों में से एक को तो- दूसरे को लगेगा एक उड़ान से कुछ ज्यादा समय.....
       जब प्यार हो जाता है, तो कई सारी समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं। इसलिए, अगर राजवीर लावण्या का साथ चाहता है, तो उसे अपनों‌ के कड़े विरोध का सामना करना ही पड़ेगा।
      इसी बीच किस्मत एक ऐसा खेल खेलती है कि उनकी रोमांस भरी जिंदगी एक बेहद मुश्किल कगार पर आकर खड़ी हो जाती है। खासकर राजवीर के लिए, जो इस परिस्थिति का गुनाहगार भी है और उद्धारक भी। लावण्या की ओर उसके प्यार की कड़ी परीक्षा है। और यह पता नहीं कि आगे क्या होगा।

आश्रिता- संजय

कहानी वही है। आश्रिता- संजय श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सू...