Friday 17 November 2017

82. मेरी जीवन यात्रा- अब्दुल कलाम

कलाम की कहानी, उन्ही की जुबानी।
मेरी जीवन यात्रा, आत्मकथा, पठनीय।
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  एक साधारण परिवार के सामान्य से बच्चे से वैज्ञानिक और वैज्ञानिक से राष्ट्रपति बनने  का सफर वास्तव में पढने योग्य है। कलाम की आत्मकथा उनके कई अच्छे-बुरे संघर्षों का चित्रण करती है जो कि पाठक को आगे बढने की प्रेरणा भी देती है।
कलाम लिखते हैं- " मेरे जीवन की यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण अनुभव है, जिन्हें मैंने अपने बचपन से अब तक सँजोया है और अपने जीवन के 80 से अधिक वर्षों में प्राप्त किया है।"
                 इस पुस्तक में क्या है, -" मेरी अन्य पुस्तकों की तरह ' मेरी जीवन यात्रा' में मुख्य केन्द्र कुछ छोटी तथा अनजान सी घटनाएं थी, जो मेरे जीवन में घटित हुयी। अपने माता- पिता से जुङी अनेक घटनाओं की व्याख्या मैंने इस पुस्तक में की है।"
         संपूर्ण किताब को छोटे- छोटे 12 खण्डों में विभक्त किया है, यह किताब की रोचकता भी है। इस आत्मकथा में अधिकतर घटनाएं कलाम जी के बचपन और उनके परिवार का चित्रण करती नजर आती है। 
   कलाम जी के जीवन में अनेक अवरोधक पैदा हुए लेकिन कलाम जी ने कभी हार नहीं स्वीकार की।
जहाँ आजकल शिक्षित वर्ग ईश्वर के अस्तित्व का पूर्णत नकार देते हैं वहीं कलाम उस अदृश्य सत्ता से प्रभावित होकर लिखते हैं, - " हम सबके जीवन में दिव्य शक्ति विद्यमान है, जो हमें नकारात्मक क्षणों में तथा दुःख के पलों से उबरने की शक्ति देती है।" (पृष्ठ-21)
   आठ बरस का कमाऊ लङका नामक खण्ड में कलाम साहब के बचपन के संघर्ष का वर्णन है। मात्र आठ वर्ष की उम्र में कलाम साहब सुबह उठकर घर-घर
अखबार पहुंचाते थे और ट्युशन और विद्यालय भी जाते थे।
छोटी सी उम्र में कठिन मेहनत और उस पर भी कभी उनके चेहरे पर कभी निराशा नहीं झलकी।
     अपने शहर के प्रेम- साम्प्रदायिक सौहार्दपूर्ण वातावरण का चित्रण संकट मोचक तीन व्यक्ति नामक खण्ड में करते हैं।
         शहर के तीन नामी व्यक्ति और वह भी तीनों अलग- अलग धर्म से संबंधित थे पर शहर के अमन-चैन उन तीनों के लिए प्राथमिक था। और सच्चा धर्म भी वही है जो मनुष्य को सच्ची शांति प्रदान करे। इस वातावरण का कलाम के जीवन पर गहरा असर रहा
" अगर मेरे धर्म की बात की जाये तो निश्चित रूप से मेरे भाग्य ने मुझे विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में पहुंचाया था, उसकी बुनियाद रामेश्वरम् से बनी थी। मैं हमेशा से ही विज्ञान में विश्वास करने वाला था, लेकिन इसके साथ ही मेरा आध्यात्मिक विश्वास था, जो कि युवावस्था में हि स्थापित हो चुका था।........मुझे ज्ञान की प्राप्ति कुरान, गीता तथा बाइबिल से मिली। इनके मिलाप से ही मेरे जीवन व संस्कारों का मिलाप मुझे अपनी जन्मभूमि से मिला था  और इस शहर के अनूठे संस्कारों ने मेरा पूर्ण विकास किया। (पृष्ठ 53)
     यह पुस्तक जो की कलाम जी के परिवार का मुख्यतः परिचय देती है। इसमें इनके परिवार को जानने- समझने का काफी अच्छा अवसर मिलता है। इसी पुस्तक का एक खण्ड है मेरी माँ और मेरी बहन
  इस खण्ड का आरम्भ इन पक्तियों से होता है
" सागर की लहरें, सुनहरी रेत, यात्रियों की आस्था,
   रामेश्वरम् की मस्जिद वाली गली, सब आपस में मिलकर एक हो जाती हैं,
वह है मेरी माँ।"
  द्वितीय विश्व युद्ध के उन कठिन दिनों का वर्णन भी मिलता है जब पूरे परिवार को राशन तय कोटे के अनुसार ही मिलता था लेकिन कलाम जी की ममतामयी माँ स्वयं भूखी रहकर अपने बच्चों को भरपेट खाना खिलाती थी।
और वहीं बहन जौहरा का वर्णन भी है जिसने कलाम जी की शिक्षा के लिए अपने आभूषण तक बेच दिये।
       कलाम जी का पुस्तक प्रेम तो सर्वविदित है, उन्होने जितना अच्छा पढा है उतना अच्छा लिखा भी है। 
" ...पुस्तकों से मेरा घनिष्ठ संबंध रहा है। वे मेरे अच्छे मित्रों की तरह है।"(पृष्ठ -87)
इस खण्ड में कलाम जी ने अपनी प्रिय पुस्तकों का भी जिक्र किया है।
प्रेरणादायक कथन-
- हमारे अंदर का दृढ विश्वास तथा हमारे अंदर के विचार है, जो हमारे कार्यों को प्रभावित करते हैं।
- मेरा मानना है की एक ही सत्ता (ईश्वर) है जो हर किसी सुनती है।(पृष्ठ 70)
- जो शिक्षक अपने विद्यार्थी की प्रगति का ध्यान रखता है, वही हमारा सर्वश्रेष्ठ मित्र होता है। (पृष्ठ-82)
- निराशा के भाव समाप्त होने के बाद इंसान की सोच में बदलाव आता है और उसके दृष्टिकोण में भी बदलाव आता है। (पृष्ठ 99)
- हम सिर्फ राजनीतिक घटनाओं को ही देश-निर्माण समझते हैं, परंतु बलिदान, परिश्रम तथा निर्भयता ही सही अर्थों में देश बनाती है। (पृष्ठ-106)
- विज्ञान एक आनंद और जुनून है।
         डाॅ. अब्दुल कलाम जी ने स्वयं के बारे में बहुत सुंदर शब्दों में बहुत ही अच्छी बात कही है, - कठिन परिश्रम, अध्ययन करना सीखना, सद्भाव तथा क्षमा कर देना- ये सब मेरी जिंदगी में मील के पत्थर हैं।
     पुस्तक में कई जगह करुण प्रसंग भी हैं जो कलाम जी को ताउम्र याद रहे और किसी भी पाठक को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
अगर किसी भी पाठक को कलाम जी के जीवन को समझना है तो यह पुस्तक उनके परिवार और बचपन का अच्छा चित्रण करती है।
इस पुस्तक का अधिकांश चित्रण इनके परिवार से ही संबंधित है और कुछ अंश इनके वैज्ञानिक जीवन से  भी हैं लेकिन‌ पुस्तक में कलाम जी के राष्ट्रपति कार्यकाल का नाम मात्र वर्णन ही मिलता है।
पुस्तक भी भाषा शैली बहुत ही सरल और सरस है जो किसी भी पाठक को सहज ही समझ में आ जाती है। कहीं भी भारी भरकम या तकनीकी शब्दावली का प्रयोग नहीं किया गया।
हालांकि यह पुस्तक मूलतः अंग्रेजी में थी और यह इसका हिंदी अनुवाद है।
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पुस्तक-  मेरी जीवन यात्रा
ISBN -978-93-5048-797-6
लेखक - ए.पी. जे. अब्दुल कलाम आजाद
( 15.10.1931- 27.07.2015)
मूल पुस्तक- My journey
अनुवादक- महेन्द्र यादव
प्रकाशन- प्रभात पेपरबैक्स
www.prabhatbooks.com
संस्करण- 2017
पृष्ठ- 143
मूल्य- 150₹

81. ए टेरेरिस्ट- इकराम ‌फरीदी

समीक्षा
बाद में।

Wednesday 15 November 2017

80. नीला स्कार्फ- अनु सिंह चौधरी

नीला स्कार्फ, अनु सिंह चौधरी, कहानी संग्रह
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अनु सिंह चौधरी के इस कहानी संग्रह में छोटी-बङी कुल बारह कहानियाँ हैं। सभी कहानियाँ परिवेश, कथ्य और संवेदना के स्तर पर अलग -अलग हैं।
    आपको इनकी कहानियों में गांव भी मिलेगा तो शहर भी मिलेगा, आधुनिकता भी है तो प्राचीन संस्कार भी है, लव इन रिलेशनशिप भी है तो परम्परागत रिश्ते भी हैं।
  हम समग्र रूप से कह सकते हैं की नीला स्कार्फ विविध रंगों का एक गुलदस्ता है।
         इस संग्रह की प्रथम कहानी रूममेंट जहां प्रारंभ में मुझे नीरस सी लगी लेकिन इस कहानी का अंत आंखों में नमी दे गया। और ऐसी ही एक और कहानी है सिगरेट का आखिरी कस
   बिसेसर बो की प्रेमिका एक ग्रामीण परिवेश की वह कहानी है जो पुरुष प्रधान वातावरण को चित्रित करती है। इस के लिए बिसेसर बो का एक कथन ही काफी है, -"मरद जात के गरदन में चाहे जो लटकता रहे, दुनियां को औरत के गले में लटकता हुआ मंगलसूत्तर ही अच्छा लगता है।" (पृष्ठ-44)
      फिल्म दुनिया के सुनहरे पर्दे के पीछे छुपे काले सच को बयान करती है कहानी प्लीज डू नाॅट डिस्टर्ब।
इस संग्रह की कुछ अलग हटकर कहानी है वह है कुछ यूँ होना उसका।
   शिक्षक जीवन में ऐसे कई प्रसंग देखने को मिलते हैं जैसा की इस कहानी में व्यक्त किया गया है। और यह कहानी भी इस संग्रह की वह कहानी है जो सरल शब्दावली में है। न तो इसमें आंचलिक शब्द हैं और न ही अंग्रेजी के।
इस संग्रह की मुख्य कहानी है नीला स्कार्फ। यह वर्तमान हमारी जीवन शैली पर गहरा व्यंग्य है। हम आधुनिकता की दौङ में अप‌ने परिवार तक को भी भूल गये।
  यह एक अच्छी कहानी है लेकिन इस प्रकार की बहुत सी कहानियाँ लघुकथाओं में पढी जा चुकी हैं। कहानी के प्रस्तुतिकरण में कोई नयापन नहीं था। और ऐसी ही कहानी है सहयात्री। जिसे लगभग पाठक पढ चुके होंगे।
हाथ की लकीरें और मर्ज जिंदगी इलाज जिंदगी कहानियाँ कोई विशेष प्रभाव नहीं छोङ पायी।
    ‌प्रस्तुत कहानी संग्रह अच्छा कहानी संग्रह है जिसकी कहानियाँ बहुत रोचक व मन को छू लेने वाली है।
कुछ विशेष संवाद-
मंदिर की सीढियां चढते मन पापी हो सकता है..।(पृष्ठ-35)
- शहर अनजान और अपना नहीं होता। हम उसे अपना या बेगाना बना देते हैं। (पृष्ठ-52)
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पुस्तक- नीला स्कार्फ (कहानी संग्रह)
ISBN: 978-93-81394-85-4
लेखिका- अनु सिंह चौधरी
प्रकाशक- हिंद युग्म
पृष्ठ-160.
मूल्य- 120₹
प्रथम संस्करण- जुलाई 2014
तृतीय संस्करण- सितंबर 2015
लेखिका संपर्क-
www.mainghumantu.blogspot.com
Email- anu2711@gmail.com
 

79. ब्राउन शुगर- रवि माथुर

भारत से अफ्रीका के कबीले तक फैली हरी मौत का रहस्य
ब्राउन शुगर, रोचक उपन्यास, मध्यम स्तर।
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होटल इंटरनेशनल काॅन्टीनेन्टल
31 दिसंबर की रात
नववर्ष के शुभारंभ की पार्टी चल रही थी और जिसमें एक नीग्रो युवती मिस टोटो नृत्य कर रही थी। इस दौरान किसी ने मिस टोटो की स्टेज पर हत्या कर दी।
इसी वक्त वहाँ उपस्थित कैप्टन हमीद ने इस मामले में हस्तक्षेप किया।
   कैप्टन हमीन और कर्नल विनोद इस केस की जांच पर आगे बढे तो पता चला की कुछ दिन पूर्व एक नीग्रो युवक की लाश शहर में मिली थी और उसका शरीर हरा था।
   मिश्र घूमने गये मिस्टर कोरक और नानसी के सामने वहाँ एक हत्या हो गयी और मृतक का शरीर हरा हो गया।
"कौन थे वे लोग? तुम्हें किसने मारा?"
"हरी मौत।"
     भारत की धरती पर ब्रिटेन, मिश्र के लोगों में उपजी एक अनोखी जंग जिसमें भारत के जासूस कर्नल विनोद और हमीद को भी शामिल होना पङा और जिसका अंत अफ्रीका के कांगो बेसिन के एक टापू पर हुआ।
  विभिन्न देशों में घूमती हुयी एक खतरनाक कहानी।
उपन्यास के पात्र-
कर्नल विनोद- भारत का प्रसिद्ध जासूस।
कैप्टन हमीद- भारतीय जासूस।
कोरक- भारतीय जासूस। जो इस प्रकरण के दौरान मिश्र में था।
नानसी- कोरक की साथी।
कासिम- उपन्यास का एक हास्य पात्र‌।
डेविस- एक खतरनाक अपराधी।
रोजर- माटू देवता की आँख चुराने वाला व्यक्ति।
हारूण- मिश्र पुलिस का अधिकारी।
आयशा- रोजर की साथी।
प्रिंस लुआगा- मारोगाटो कबीले के सरदार का पुत्र ।
माटू देवता- कबीले का देवता।

शीर्षक-
जैसा की उपन्यास का शीर्षक ब्राउन शुगर है तो स्वाभाविक है पाठक का ध्यान नशे की तरह ही जायेगा।
उपन्यास के प्रारंभिक पृष्ठ भी कुछ ऐसा ही लिखा है।
" ब्राउन शुगर...एक ऐसा खतरनाक नशा जो युवा पीढी को को मौत के समुद्र में धकेल रहा था।"
  हालांकि उपन्यास का उपर्युक्त पंक्तियों या शीर्षक से किसी भी प्रकार का कोई भी सबंध स्थापित नहीं होता।
अब पता नहीं लेखक/ प्रकाशक ने यह नाम कैस रख दिया।

गलतियाँ-
उपन्यास में कई जगह गलतियाँ है।
- होटल काॅन्टिनेटल में मिस टोटो का हत्यारा स्टेज पर टोटो की हत्या पहले करता है और उसके कमरे की तलाशी बाद में लेता है।
जबकी होता इसका विपरीत। अगर हत्यारा कमरे की तलाशी पहले लेता तो उसे मिस टोटो की हत्या करने की जरूरत भी न पङती और हत्या के बाद तलाशी लेने का वक्त कहां से मिल गया।

- पृष्ठ 97-100 में
होटल में कोरक और नानसी के सब्जी के बर्तन में दोनों को मारने के लिए जिंदा सांप डाल दिया जाता है।
कमाल है सब्जी में सांप और वह भी जिंदा।

 - कासिम उपन्यास का एक हास्य पात्र है। अफ्रीका के दौरे पर उसे साथ लेकर जाने का कोई औचित्य भी नहीं था।

समापन:-
  किसी भी कहानी का क्लाइमैक्स (समापन) उसका चरम बिंदु कहलाता है। पाठक की पूरी उत्सुकता होती है की अंत में क्या हुआ।
  इस उपन्यास के अंत तक पाठक भी यही सोचता है की अंत में क्या हुआ, क्या सारा खेल ब्राउन शुगर का है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।
लेखक उपन्यास का समापन इतने अच्छे तरीके से न कर सका जितने की उम्मीद थी।

      रवि माथुर का प्रस्तुत उपन्यास एक मध्यम स्तर का उपन्यास है जो कई जगह अपनी कहानी से भटकता है लेकिन अंत में क्लाइमैक्स तक पहुंचता है।
  यह एक मध्यम स्तरीय उपन्यास है जिसे पाठक समय बिताने के लिए पढ सकता है।

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उपन्यास- ब्राउन शुगर
लेखक- रवि माथुर।
प्रकाशक- दुर्गा पॉकेट बुक्स, 315, ईश्वर पुरी, मेरठ- 250002
पृष्ठ- 207
मूल्य- 20₹

लेखक संपर्क-.
रवि माथुर
428/ 15 B
ईश्वर पुरी, मेरठ- 250002

Sunday 5 November 2017

78. दौलत सबकी दुश्मन- अरुण अंबानी

रंजन दूबे और शोभराज चार्ल्स की प्रेयसी सुनीता वर्मा का कारनामा
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दौलत सबकी दुश्मन, थ्रिलर उपन्यास, पठनीय।
  सांप पर विश्वास कर लेने वाला तो एक बार जिंदा बच भी सकता है- लेकिन जिसने रंजन दूबे पर विश्वास किया, वह तो गया ही गया। ( उपन्यास के अंदरूनी कंवर पृष्ठ से)
    अरुण अंबानी की कलम से निकला एक जबरदस्त उपन्यास है ' दौलत सबकी दुश्मन'।
  शोभराज चार्ल्स की पूर्व प्रेमिका सुनीता वर्मा शहर के बदमाश रंजन दूबे के साथ मिलकर एक ज्वैलर्स शाॅप को लूटने का प्लान बनाती है।
   लूट के बाद रंजन दूबे जैसा महाहरामी गद्दारी पर उतर आता है। और सुनीता वर्मा जैसी अंतर्राष्ट्रीय शातिर से चालाकी कर बैठता है।
   दूसरी तरफ रंजन दूबे के साथी एक- एक कर मौत को प्राप्त होते हैं वह भी तब जब सुनीता वर्मा पुलिस की गिरफ्त में है।
  स्वयं रंजन दूबे भी तब हैरान रह जाता है जब डकैती के दौरान एक मददगार की लाश उसके सामने पङी होती है, वह मददगार जिसके हत्या रंजन दूबे के साथियों ने की थी।
      क्या रंजन दूबे अंतर्राष्ट्रीय शातिर सुनीता वर्मा के सामने सफल हो पाया?
   - क्या सुनीता वर्मा पुलिस की पकङ से बच पायी?
   - रंजन दूबे के साथियों का हत्यारा कौन था?
   - मददगार की लाश बाहर कैसे निकल आयी?
ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्नों के उत्तर अरुण अंबानी के उपन्यास ' दौलत सबकी दुश्मन' पढकर ही मिलेंगे। 

77. बस्तर पाति- पत्रिका

लोक संस्कृति और आधुनिक साहित्य को समर्पित एक पत्रिका।

बस्तर पाति, त्रैमासिक पत्रिका, दिसंबर-अगस्त-2017

          Bछत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से निकालने वाली एक लघु पत्रिका है बस्तर पाति। यह पत्रिका नाम से ही लघु है लेकिन इसका रचना क्षेत्र बहुत विशाल।
प्रस्तुत अंक खुदेजा खान जी पर केन्द्रित है। जिसमें खुदेजा खान जी की कहानियाँ, कविता के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से लेखकों को स्थान दिया गया है।
पत्रिका का संपादकीय बहुत अच्छा है लेकिन अंत में वह लघु पत्रिका के प्रकाशन पर आकर मूल विषय से भटक गया प्रतीत होता है।
  वहीं एक काॅलम बहस (पृष्ठ-07) में काल्पनिक और भोगे हुए यथार्थ पर अच्छा लिखा गया है।

  एक साक्षात्कार में खुदेजा खान ने कहा है।
" स्त्री अपना भोगा हुआ यथार्थ ही लिखती है, लेकिन उसे पुरुष प्रधान समाज में पुरुष द्वारा बताया गया या निर्धारित किये गये मानदण्डों के अनुरूप मान लिया जाता है। यही तो विडम्बना है।" (पृष्ठ-15)
करमजीत कौर की कहानी  सेतु एक भावुक रचना है जि किसी भी पाठक के मन को छू जाती है।
ऐसी ही एक और कहानी है USA की लेखिका डाॅ. सुदर्शन प्रियदर्शिनी की भीड़। हम भीङ में भी कितने अकेले हैं, इसका दर्द वही समझ सकता है जिसने इस यथार्थ को भोगा है।
नरेश कुमार उदास की कहानी माँ सबकी एक समान होती है (पृष्ठ- 27) एक अच्छी रचना है, पर यह कहानी पाठक बहुत बार बहुत से रूप में पढ चुके हैं। कहानी में कोई नयापन नहीं।
     हमारी राजनीति और हमारे व्यवहार में आये दोहरेपन को बहुत ही अच्छे तरीके से व्यक्त करती है रीना मिश्रा की कहानी फर्क
यह कहानी इस अंक की मेरी दृष्टि में एक अच्छी कहानी है।
इस अंक में काफी लघुकथाए भी हैं जो अच्छी हैं। कम शब्दों में गंभीर बात कहने में लघुकथा सक्षम है।
  पत्रिका में काव्य रचना भी बहुत अच्छी हैं। पत्रिका नये लेखकों को भी खूब अवसर दे रही है।
 

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पत्रिका - बस्तर पाति
अंक- 11,12,13- दिसंबर-अगस्त-2017
(यह संयुक्त अंक है)
प्रकाशक-  सनत कुमार जैन
पृष्ठ-70
मूल्य-25₹
Email- paati.bastar@gmail.com
www.paati.bastar.com

Saturday 4 November 2017

76. चिनगारियों का नाच- परशुराम शर्मा

कैप्टन विनोद और विनोद का कारनामा।
चिंगारियों का नाच, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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    लोकप्रिय उपन्यास जगत के महान लेखक परशुराम शर्मा का उपन्यास चिनगारियों का नाच इनके प्रसिद्ध पात्र हमीद, विनोद और कासिम पर आधारित है और इसमें खलनायक है जीराल्ड शास्त्री।
     जीराल्ड शास्त्री  विश्व विजेता बनने का ख्वाब देखता है और हर बार की तरह हमीद और विनोद उसके ख्वाब को पूर्ण होने से पहले ही खत्म कर देते हैं।
  प्रस्तुत उपन्यास में मात्र यही एक छोटी सी कहानी है। इसमें न तो कोई सस्पेंश है और न ही कोई रोमांच। ऐसा लगता है जैसे लेखक ने अपने प्रसिद्ध पात्रों के नाम का फायदा उठाया हो।
  
   एक दो जगह लगता है की उपन्यास में कुछ रोमांच बनेगा लेकिन बन नहीं पाता।
असली- नकली विनोद का किस्सा भी ज्यादा नहीं चला। उपन्यास के अंत में और वह भी बिलकुल अंत में पाठक को चौंकाने के लिए एक छोटा सा प्रयोग उपस्थित है वह अवश्य उपन्यास में कुछ जान डालता है बाकी उपन्यास किसी भी दृष्टि से पठनीय नहीं है।
    हालांकि किसी भी महान लेखक की प्रत्येक कृति महान नहीं होती यह भी परशुराम शर्मा की एक ऐसी ही कृति है।
     उपन्यास की कहानी कोई विशेष नहीं है। इस उपन्यास को कम पृष्ठ और परशुराम शर्मा का उपन्यास होने के रूप में एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- चिनगारियों का नाच
लेखक- परशुराम शर्मा
प्रकाशक- किरण प्रकाशन, प्रेम पुरी, मेरठ।
पत्रिका- जासूसी तहलका।
संपादक- विजय कुमार जैन।
पृष्ठ- 97
मूल्य-

आश्रिता- संजय

कहानी वही है। आश्रिता- संजय श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सू...