Friday 31 March 2017

30. हंस- पत्रिका, मार्च अंक

हंस पत्रिका का मार्च अंक रहस्य- रोमांच विशेषांक है।

29. नया ज्ञानोदय- पत्रिका, मार्च अंक

 
लीलाधर मंडलोई के संपादन में निकलने वाली मासिक पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' का मार्च अंक व्यंग्य को समर्पित है।
प्रस्तुत अंक में हिंदी के विशिष्ट व्यंग्यकारों को सम्मिलित किया गया है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर राजेन्द्र प्रसाद सक्सेना तक अर्थात प्राचीन से लेकर आधुनिक तक विशिष्ट व्यंग्यकार इस अंक में उपस्थित हैं।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना ' स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन', हरिशंकर परसाई की 'टार्च बेचने वाले'।
धर्म के नाम पर जनता को डरा कर लूटने वालों को 'टार्च बेचने वाले' में बेनकाब किया गया है।
वहीं पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' की रचना ' सनकी अमीर' भी पढने योग्य है।

- "मेरा नाम शकुंतला है और मैं कण्व ऋषि के आश्रम में.....
- "माँ- पिता?"
-"माता मेनका है, जो इन्द्र के अखाङे में नाच करती है। पिता ऋषि विश्वामित्र हैं। जब तपस्या कर रहे थे, तब इन्द्र ने मेरी माँ...."
- "अच्छा-अच्छा, वह काण्ड, हाँ,  मैंने सुना है। तो तुम मेनका की पुत्री हो। तुम्हारी अम्मा के बङे चर्चे हैं। खेर, अपनी कहो...."
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_"ये तुम्हारे कण्व ऋषि हमेशा बाहर ही रहते हैं। जब राजा दुष्यंत आया, तब भी बाहर थे?"- घूण्डीराज ने पूछा।_
_" शकुंतला के सौभाग्य से, नहीं तो यह बुड्ढा हमें किसी से नहीं मिलने देता"_
_"सौभाग्य या दुर्भाग्य ? जानती नहीं, दुष्यंत ने शकुंतला को स्वीकार नहीं किया।"_
_"अरे, दुष्यंत का बाप भी स्वीकार करेगा..."_
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_कण्व पुराने ऋषि थे खुर्राट, बीस - पच्चीस सालों से आश्रम चला रहे थे और अच्छी रकम बना लेते थे_

_"पाखण्डी विश्वामित्र,.... अभी एक यज्ञ में मिल गये थे मैंने शकुंतला वाला मामला उठाया था।"- कण्व ऋषि ने कहा।
व्यंग्य के अतिरिक्त काव्य का रंग भी नया ज्ञानोदय में खूब बिखरा है।
"मोहब्बत इतनी तन्हा क्यों है,
कुबङी उम्र पर चलना क्यों है
धूँ-धूँ जलती चिताओं पर होता है
इसका सजना-धजना क्यों है.."- रविदत्त मोहता(पृष्ठ-92)
" आज सुहानी रात हुई
अपने से ही बात हुई
दिन के शोर शराबे में
तनहाई सौगात   हुई"- रामदरश मिश्र (पृष्ठ-93)
सर्वेश सिंह की एक बहुत ही मार्मिक कविता है, 'लौट जाओ बेटी'
वर्तमान समाज पर कटाक्ष करती यह कविता सच का आईना है।
"लौट जाओ मेरी बेटी
कि यहाँ धर्म, धर्म नहीं, अत्याचार है
न्याय, न्याय नहीं, बलात्कार है
खुदा, खुदा नहीं
धरती पर होता हुआ सनातन व्यभिचारी है"- सर्वेश सिंह (पृष्ठ-85)

इसी अंक में हिंदी कवयित्री गगन गिल का साक्षात्कार भी वर्णित है।
गगन गिल  का मानना है की रचना, मानवीय संवेदना बदलने की पूरी प्रक्रिया है।
इसके अलावा मशहूर रंगकर्मी वामन केन्द्रे का साक्षात्कार भी पठनिय है।
मार्च के इसी अंक से एक नया स्तम्भ भी प्रारंभ हो रहा है, " हासिये का असल रंग"।
और अंत में..
" एक साक्षात्कार के दौरान काशीनाथ ने अपने अग्रज नामवर सिंह से पूछा, "आपको किन लोगों से ईर्ष्या होती है?"
   उत्तर था- " उनसे, जो वही लिख या कह देते हैं जिसे सटीक ढंग से कहने के लिए मैं अरसे से बेचैन रहा होता हूँ। "
पत्रिका- नया ज्ञानोदय
संपादक- लीलाधर मंडलोई
प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली
अंक- मार्च, 2017
पृष्ठ-132
मूल्य- 30₹

28. भक्ति आंदोलन और जांभोजी- पत्रिका

वैश्विक आंदोलन में जांभोजी के चिंतन पर केन्द्रित अंक।
विज्ञान भवन- न ई दिल्ली
एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान विमोचन अंक

27. लेडी नटवरलाल- धीरज


मैंने कभी धीरज का उपन्यास नहीं पढा था। इसलिए  कुछ अलग पढने के लिए इस उपन्यास को खरीदा।
20.03.2017 को दिल्ली में एक सम्मेलन से लौटते वक्त राजा पाॅकेट बुक्स के दरीबा कलां वितरक केन्द्र से आठ उपन्यास खरीदे जिनमें एक धीरज का यह उपन्यास लेडी नटवरलाल था।
जैसा की नाम से पता चलता है की ये कुख्यात ठग नटवर लाल की तरह ठगी/धोखाधङी की कहानी होगी, पर लेडी नटवर लाल कोई ठगी/ धोखाधड़ी की कहानी न होकर एक प्रतिशोध कहानी है।
ज्वाला सिंह, जो की एक ईमानदार बैंक मनैजर का पुत्र है, लेकिन परिस्थितिवश इस परिवार पर एक भयंकर मुसीबत आती है, जिसमें यह सब बिछङ जाते हैं। ज्वाला सिंह अपनी बहन मृणालिणी के साथ अपना शहर छोङ कर दूर चला जाता है और अपनी बहन को अच्छी, शिक्षित जिंदगी देने के लिए स्वयं नटवर लाल बन जाता है।
लेकिन परिस्थितियाँ एक बार फिर बदल जाती हैं और ज्वाला सिंह धोखाधड़ी के इल्जाम में गिरफ्तार हो जाता है दूसरी तरफ मणालिणी एक सेठ से शादी कर लेती है। सेठ ज्वाला सिंह के बारे में कुछ नहीं जानता।
जब ज्वाला सिंह जेल से छूट कर आता है तो सेठ किशन लाल के हाथ से मृणालिणी का कत्ल हो जाता है।
जिसका इल्जाम ज्वाला सिंह पर आता है।
दूसरी तरफ ज्वाला सिंह को पता चलता है की इस सेठ ने पहले भी एक शादी रचा रखी है तो वह पहले वाली पत्नी की बेटी का अपहरण कर उसे लेडी नटवर लाल बना देता है।
        कहानी किसी बदला प्रधान घटिया फिल्म की तरह आगे बढती है। हद तो तब हो जाती है जब अकस्मात टकराते सभी पात्र किसी न किसी रूप में परस्पर रिश्तेदार निकलते हैं, तब तो ऐसा लगता है जैसे उपन्यास का नाम 'रिश्तेदार' होना चाहिए।
        उन रिश्तेदारों के परस्पर संबंध स्थापित करते वक्त पाठक को मानसिक तर्कशक्ति की भी आवश्यकता महसूस होगी।
  चलो अब थोङा कहानी के पात्रों की तरफ चलते हैं।
कहानी का आरम्भ होता है एक सेठ से जो प्रकाश नामक युवक को मुजरिम दर्शाने के लिए पहले उसे जेल करवा देता और फिर ज्वाला सिंह की मदद से फरार करवा देता है।
      इसी दौरान ज्वाला सिंह को पता चलता है की उसकी बहन मृणालिनी सेठ किशन लाल से शादी कर इसी शहर में बसती है, जब ज्वाला सिंह अपनी बहन से मिलने जाता है तो सेठ किशन लाल मृणालिणी की हत्या कर हत्यारे के रूप में ज्वाला सिंह को गिरफ्तार करवा देता है।  किसी तरह ज्वाला सिंह जेल से फरार होकर किशन लाल की हत्या करने के लिए उसके घर जाता है, तब उसे एक रहस्य पता चलता है की किशनलाल ने पहले भी एक शादी की थी और उसके एक लङकी भी है, जब ज्वाला किशन लाल के घर पहुंचता है तब वहां पुलिस भी
_समीक्षा जारी....

26. खाली जगह- अमृता प्रीतम

खाली जगह- अमृता प्रीतम
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स्त्री की स्थिति को जिस मजबूत तरीके से अमृता प्रीतम उठाती है, ठीक उसी भाव से लिखा गया है यह लघु उपन्यास- खाली जगह
एक मध्यमवर्गीय परिवार की शिक्षित, सुंदर लङकी मुक्ता के लिए एक अमीर व्यक्ति दिलीप राय की तरफ से शादी का प्रस्ताव आता है।
यही प्रस्ताव तीन माह पूर्व भी आया था, लेकिन तब भी मुक्ता इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकी और न ही आज स्वीकृति दे रही है।
आखिर मुक्ता स्वीकृति क्यों दे....
दिलीप राॅय की पत्नी की मृत्यु हो गयी और एक छोटा सा बेटा है।
"वह जो पूर्ण था, साबुत सालिम, उसमें से मौत ने एक टुकङा तोङ लिया था, दिलीप राय की पत्नी को, और अब उसी खाली जगह को भरना था, मुक्ता से......."
शादी का यह पैगाम, मुक्ता को लग रहा था, जैसे एक खाली जगह का पैगाम हो.....
एक मर्द के मन का नहीं, केवल घर में खाली हुई एक जगह का......
तो क्या स्त्री मात्र इस खाली जगह भरने को है, कदापि नहीं ।
मिस दिल्ली जैसी सौन्दर्य प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धा करने वाली एक युवती कैसे स्वीकार करेगे इस रिश्ते को, जो एक पत्नी बनने से पहले एक बच्चे की माँ बन जायेगी।
दिलीप राय और मुक्ता की शादी हो जाती है।

"हर लङकी ब्याह की पहली रात किस कमरे में दाखिल होती है, कभी उस कमरे का मालिक उसके स्वागत के लिए वहां नहीं होता....

  औरत के मन की बात जिस विशेष अंदाज में अमृता प्रीतम प्रस्तुत करती है वह प्रत्येक पाठक को छू जाती है।
औरत मात्र किसी पुरुष या समाज की खाली जगह की पूर्ति करने वाली कोई वस्तु नहीं है।
औरत का स्वतंत्र अस्तित्व है और इसी अस्तित्व को महसूस करती है - मुक्ता।
हालांकि कहानी का समापन एक त्रासदी के अंत तक पहुंच कर भी सुखद है।
एक माँ की ममता को जिस विशेष अंदाज में दिखाया है वह रोचक है।
अमृता प्रीतम का यह लघु उपन्यास पढने योग्य है। सरल, रोचक शब्दावली के साथ लिखा गया यह उपन्यास, अपने अंदर गंभीरता भी समाहित किये हुए है।
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उपन्यास- खाली जगह
लेखिका- अमृता प्रीतम
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25. पिंजर - अमृता प्रीतम

पिंजर- स्त्री के दर्द की कथा।
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अमृता प्रीतम द्वारा लिखित उपन्यास 'पिंजर' साहित्य की अनमोल धरोहर है। एक न मिटने वाली प्यास है- पिंजर। पाठक इस उपन्यास को जितना पढता जायेगा, यह प्यास उतनी ही तीव्र होती जायेगी।
पिंजर एक मार्मिक कहानी है। औरत के मर्म को प्रकट करती वह कहानी जो पाठक के हृदय के अंदर तक उतर जाती है। सन् 1935 से लेकर सन् 1947 के भारत- पाक विभाजन की एक मार्मिक कहानी।

       कहानी- सन् 1935, गांव छत्तोआनी के एक हिंदू परिवार की लङकी है पूरो। पूरो की सगाई पङोसी गांव रत्तोवाल के रामचन्द से हो गयी। अल्हङ पूरो अपनी ख्वाबों की दुनिया में मग्न है, अपने राजकुमार के सपने देखती है, कभी हाथों पर मेहंदी लगती है, कभी दरवाजे पर बारात खङी है।
     पर पूरो की किस्मत इतनी अच्छी नहीं है। एक दिन खेत गयी पूरो का दूर गांव के मुस्लिम परिवार का रशीद अपहरण कर ले जाता है।
"तुझे अपने अल्लाह की कसम है, रशीद! सच- सच बता, तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया है?"
" पूरो, हमारे शेखों के घराने में और तुम्हारे शाहों के घराने में दादा, परदादा के समय से बैर चला आ रहा है.......... मुझसे कौल कराए कि  मैं शाहों की लङकी को ब्याह से पहले किसी भी दिन उठा ले जाऊं।"
पूरो धैर्य से किस्मत की कहानी सुनती रही।
               एक पारिवारिक दुश्मनी का शिकार होती है पूरो। एक रात पूरो अवसर पाकर रशीद की कैद से निकल कर अपने घर जा पहुंचती है
लेकिन मां- बाप इस कारण अपनी बेटी को अपनाने से इंकार कर देते हैं की यह मुस्लिम लोगों के घर रह कर आयी है, इससे अब कौन शादी करेगा।
"हम तुझे कहां रखेंगे? तुझे कौन ब्याह कर ले जायेगा? तेरा धर्म गया, तेरा जन्म गया। हम जो इस समय कुछ भी बोले तो हमारे लहू की एक बूंद भी नहीं बचेगी।"
"हाय! मुझे अपने हाथ से ही मार डालो।"- पूरो ने तङफ कर कहा।
" बेटी जनमते ही मर गयी होती है! अब यहाँ से चली जा। शेख आते ही होंगे....वे हम सबको मार डालेंगे।"- माँ ने न जाने कैसे दिल पर पत्थर रखकर यह बात कही।
पूरो लौट गयी।
एक दिन रशीद पूरो से शादी कर लेता है, उस पूरो से जो अंदर से खत्म हो गयी। वह पूरो जो अब एक पिंजर मात्र है।
समयानुसार पूरो गर्भवती हो गयी। क्या कोई उस संतान को चाहेगी, जबरन थोपी गयी संतान, प्यार के बिना पैदा संतान। क्या औरत मात्र संतान उत्पति का माध्यम मात्र है। पूरो भी तो उस संतान को कहा सहन कर सकती है।
"पूरो को अपने अंग- अंग से घिन आने लगी। मन चाहा कि वह अपने पेट में पल रहे रहीं। को झटक दे, उसे अपने से दूर कर झाङ दे; ऐसे, जैसे कोई चुभे हुए काँटे को नाखूनों में लेकर निकाल देता है.....।"
पूरो की अधूरी जिंदगी यूँ ही चलती रहती है।
समय बदल जाता है, पर पूरो के दिल में अपने माँ-बाप, सहेलियां, गांव, मंगेतर सब धङकते हैं।
सन् 1947, भारत- पाक विभाजन।
एक बार फिर न जाने कितनी 'पूरो' अपने परिवार से बिछङी। लेकिन इस बार पूरो ने संकल्प लिया की वह किसी दूसरी पूरो को अपने परिवार से अलग नहीं होने देगी।
रामचन्द व पूरो का परिवार पाकिस्तान छोङ कर हिंदुस्तान आ जाते हैं। इसी भगदङ के दौरान रामचन्द की बहन लजो गुम हो जाती है। लजो,पूरो के भाई की पत्नी भी है।
जैसे ही पूरो को इस बात का पता चलता है तो वह रशीद के साथ मिलकर लज्जो को ढूंढ निकालती है।
विभाजन के बाद पुलिस घर-घर जाकर उन लङकियों को खोजती है जो जबरन कैद है, जिनका अपहरण हो गया, और उन लङकियों को वापस अपने घर- वतन भेजती  हैं।
पूरो के भाई और रामचन्द ने जब पूरो को वापस घर लौटने के लिए कहा तो।
पूरो की आँखों में आंसू भर आए। उसने धीरे से अपने भाई के हाथ हाथ से अपनी बांह छुङा ली और परे खङे हुए रशीद के पास जाकर अपने बच्चे को उठाकर अपने गले से लगा लिया। कहा,- "लाजो अपने घर लौट रही है, समझ लेना कि इसी में पूरो भी लौट आई। मेरे लिए अब यही जगह है।"
  पूरो तो शायद अपने घर न जा सकी लेकिन इस पूरो ने अन्य लङकियों को पूरो बनने बचा लिया।
"कोई लङकी हिंदू हो या मुस्लमान, जो भी लङकी लौटकर अपने ठिकाने पहुंचती है, समझो उसी के साथ मेरी आत्मा भी ठिकाने पहुंच गई....।"- पूरो ने कहा
           उपन्यास में एक और पात्र है, वह है एक पगली औरत। वह पगली औरत जो संपूर्ण तथाकथित मनुष्य जाति की मनुष्यता पर एक सवालिया निशान खङा कर देती है।
कौन है पगली, कहां से आई है, किस धर्म- जाति से है? कोई नहीं जानता, लेकिन एक दिन वह पगली गर्भवती हो जाती है। पूरा गाँव सन्नाटे में है। कौन होगा वह नीच मनुष्य जो पशु बन गया, क्या वह मनुष्य कहलाने का हकदार है।
और यह प्रश्न यहीं नहीं खत्म होता है, पगली औरत एक लङके को जन्म देकर मर जाती है और उस लङके को पालती है पूरो।
जब वह लङका छह माह का हो जाता है तब धर्म के रक्षक उसे हिंदू बताकर पूरो से छीन लेये है।
पूरो और रशीद का एक ही सवाल है- छह माह तक ये धर्म के ठकेदार कहां थे।
उपन्यास में धर्म और साम्प्रदायिक के कई रूप उभर के सामने आये हैं, पर सब पर मानवता हावी रही है।
वह धर्म भी किस काम का जो मनुष्य को मनुष्य से अलग करे।
सन् 1947 के विभाजन का दर्द भी उपन्यास में उभर कर सामने आया है।
उपन्यास में मात्र दर्द ही नहीं पारम्परिक लोकगीतों का रंग भी देखा जा सकता है।
" लावीं ते लावीं नी कलेजे दे नाल माए,
  दस्सीं ते दस्सीं इक बात नीं।
बातां ते लम्मीयां नी धीयां क्यों जमीयां नीं।
अज्ज विछोङे वाली रात नीं।"
एक बेटी का दर्द है।
"चरखा जू डाहनीयां मैं छोपे जु पानियां मैं,
पिङियां ते वाले मेरे खेस नीं।
पुत्रां नू दित्ते उच्चे महल ते माङियां,
धीया नू दित्ता परदेश नीं।"
  उपन्यास मूलतः पंजाबी भाषा में लिखा गया है। इसलिए उपन्यास में पंजाब की संस्कृति, भाषा व अपनेपन की महक उपस्थित है।
पूरी उपन्यास में एक बात उभर कर आती है, वह है संदेवना। अमृता प्रीतम का जो लिखने का अंदाज है वह पाठक को अपने साथ बहा ले जाता है। पात्र का दुख:- दर्द स्वयं पाठक का दर्द बन जाता है
    " यह वह उपन्यास है जो दुनिया की आठ भाषाओं में प्रकाशित हुआ और जिसकी कहानी भारत के विभाजन की उस कथा को लिए हुए है, जो इतिहास की वेदना भी है और चेतना भी।"
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उपन्यास- पिंजर
ISBN-
लेखिका- अमृता प्रीतम
प्रकाशक- हिंद पाॅकेट बुक्स
मूल्य- 125₹
संस्करण- 2012

Tuesday 28 March 2017

24. छठी उंगली- वेदप्रकाश शर्मा

वेदप्रकाश शर्मा का अंतिम प्रकाशित उपन्यास।
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  एक महान जासूसी उपन्यासकार का अकस्मात चले जाना, उपन्यास जगत में अपूर्णीय क्षति है।
   अपने विशेष अंदाज में जासूसी, मर्डर मिस्ट्री व थ्रिलर लिखने वाले वेदप्रकाश शर्मा एक कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण अपने पाठक व चाहने वालों को अकेला कर गये।
  वेदप्रकाश शर्मा का ' आॅनर किलिंग' के पश्चात राजा पाॅकेट बुक्स से आया ' छठी उंगली' एक थ्रिलर उपन्यास है।
यह वेद जी का 176वां प्रकाशित अंतिम उपन्यास है।
सबसे पहले नजर डालते हैं इस उपन्यास के अंतिम कवर पर, जहां पर इस उपन्यास के बारे में चंद पंक्तियाँ है।
"दौलत ऐसी कमबख्त शय है जो अपनों को ही दुश्मन बना देती है। कोई अपना ही अपने का वजूद मिटाने पर उतारू हो जाता है। उसके साथ भी यही हुआ था। एक भयानक एक्सीडेंट में उसे पत्नी और बच्चों सहित मार दिया गया था। मगर वह अचानक जी उठा। अब उसके पास थी एक अतिरिक्त छठी उंगली और फिर शुरु हुआ प्रतिशोध का एक भयानक खेल जिसमें सबकुछ खत्म होता चला गया।"
   थ्रिलर उपन्यास, एक खुली किताब की तरह होता है, जिसमे पाठक को पहले ही पता होता है कि अंत क्या होगा। अब लेखक पर निर्भर करता है कि वह पाठक को कैसे कथानक के साथ बांध कर रखता है। वेदप्रकाश शर्मा इस मामले में अच्छे लेखक हैं कि उनके पाठक एक बार कहानी से जुङ गये तो कहानी का समापन कर ही उठते हैं, पर ' छठी उंगली' में वेदप्रकाश शर्मा मात खा गये।
उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह कहानी गुजरात के अहमदाबाद के दो भाइयों की कहानी है।  प्रह्लाद (प्रहलाद) राय व गोविंद राय दोनों अरबपति भाई हैं, पर दोनों के विचार अलग-अलग हैं। दोनों अलग-अलग ही रहते हैं। जहां गोविंद राय बदमाश प्रवृत्ति का है, और उसके दोनों पुत्र भी, वहीं प्रहलाद राय एक अच्छा कारोबारी व्यक्ति है। प्रहलाद राय का पुत्र राजन एक बिगङैल किस्म का युवक है, इसी वजह से प्रहलाद राय अपने पुत्र को अपनी चल-अचल संपत्ति से अलग कर देते हैं।
  प्रहलाद राय की मृत्यु के पश्चात, गोविंद राय अपने भाई की संपत्ति पर कब्जा करना चाहता है और इसलिए वह राजन, उसकी पत्नी व नन्हें बच्चे को एक कार एक्सीडेंट में मरवा देता है।
पांच साल बाद- राजन जो कि उस एक्सीडेंट में मरा हुआ मान लिया जाता है, पर वह वास्तव में मरता नहीं, राजन के मित्रो द्वारा बचा लिया जाता है और वह कोमा में चला जाता है, और राजन के दो विशेष मित्र उसे सब की नजरों से बचाकर नासिक में ले आते हैं। पांच साल बाद राजन अपने दुश्मनों से बदला लेने निकलता है और धीरे - धीरे कर यह कहानी बीस वर्ष से भी ज्यादा लंबी चली जाती है।
उपन्यास में अहमदाबाद की गैंगवार दिखाई जाती है और बाद में मुंबई की। राजन की कहानी के साथ-साथ इस गैंगवार को भी अनावश्यक विस्तार दे दिया गया है।
कहानी जैसे- जैसे आगे बढती है वैसे- वैसे नाटकीय होती जाती है और समापन तो पूर्णतः हिंदी फिल्मों के कुंभ के मेलें में बिछङे परिवारजन के मिलने जैसा है।
बात करें छठी उंगली की तो यह नाम भी उपन्यास के अनुसार निरर्थक है, अगर पूरी उपन्यास में यह पात्र ना भी होता तो भी कहानी चल सकती थी, शायद अच्छी तरह से चल सकती थी। पूरी उपन्यास में कई ऐसे पात्र हैं जो व्यर्थ भीङ ही पैदा करते हैं। पता नहीं लेखक महोदय ने ऐसे नाटकीय पात्र क्यों एकत्र कर लिये, जिनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
सकल दृष्टि से देखा जाये तो वेदप्रकाश शर्मा का यह उपन्यास किसी भी दृष्टि से उनके अन्य थ्रिलर उपन्यासों से मेल नहीं खाता।

उपन्यास- छठी उंगली
ISBN 978-324-2898-0
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स, दिल्ली
मूल्य- 100₹
पृष्ठ- 316

Thursday 23 March 2017

23. खम्मा- अशोक जमनानी

खम्मा- मरुस्थल में बिखरी एक स्वाभिमानी गायक की जिंदगी की कथा।
अशोक जमनानी का प्रस्तुत उपन्यास 'खम्मा' एक लोकगायक की कथा है। वर्तमान लोक कलाकारों की स्थिति का चित्रण करता यह उपन्यास एक साथ कई कहानियाँ कह जाता है। प्रेम, धोखा, वासना, दलाली, लोक कलाकारों का जीवन, लोक कलाकारों की वर्तमान स्थिति, स्त्रीवर्ग की स्थिति,  उनका स्वाभिमान इत्यादि रंग इस उपन्यास में शामिल है।
      उपन्यास का नायक बींझा एक लोक गायक है। वह अपनी कला का मूल्य तो चाहता है लेकिन किसी की दया नहीं। इसी कसमकस से गुरजते और सफलता- असफलता के बीच झूलते बींझा को प्रस्तुत किया है लेखक अशोक जमनानी ने।
    कहानी- कहानी का मुख्य नायक बीझा है। वह मांगणियार  जाति से संबंधित है, जो की धनिकवर्ग के उत्सवों में गायन कर अपना जीवन यापन करती है। बींझा का बाप एक बार बींझा को एक धनिक परिवार के कार्यक्रम में गायन हेतु ले जाता है, पर वहाँ इस बाप-बेटे के गायन की कोई महता नहीं। वहाँ पर बींझा व उसके बाप का अपमान तक कर दिया जाता है। यही बात बींझा के मन मस्तिष्क में बैठ जाती है और वह प्रण ले लेता है की वह कभी धनिकवर्ग के यहाँ कभी नहीं जायेगा।
  दूसरी तरफ राज परिवार का पुत्र सूरज, बींझा का घनिष्ठ मित्र है। वह बींझा के गायन से प्रभावित होकर उसको आर्थिक मदद देता है। लेकिन एक बार जब सूरज बिना गीत सुने बींझा को रुपये देता है तो बींझा इसे अपना अपमान मानता है और उसकी धनिकवर्ग के प्रति पूर्वधारणा और मजबूत हो जाती है।
यहीं से बींझा एक अनजान सफर पर निकल जाता है। उस सफर पर जहां उसकी कला का मूल्य तो हो पर दया नहीं ।  इसी सफर में में उसे कई अन्य महत्वपूर्ण पात्र मिलते हैं, जो अपनी जिंदगी में कई रंग देख चुके हैं।  प्यार और नफरत के इन रंगों से गुजरता हुआ बींझा उन लोगों से भी मिलता है जो कला और शारीरिक वासना को एक खेल समझते हैं। दिल से टूटा बींझा एक बार फिर खण्डित हो जाता है, लेकिन उपन्यास के अंत में अपने मित्र सूरज के सहयोग से वह एक नयी कहानी लिखने में सफल हो जाता है‌।
  आदमी अगर सही रस्ते पर चलता है तो अनंतः उसे सफलता मिलती है।
पात्र- कहानी का मुख्य पात्र बींझा है और अन्य पात्र उपन्यास में आते-जाते रहते हैं, पर प्रत्येक पात्र अपनी जगह सशक्त रूप से उभर कर सामने आया है।
सूरज- बींझा का मित्र। राजघराने का पुत्र और उपन्यास का एक विशेष पात्र।
सोरठ- बींझा की पत्नी।
सुरंगी- वक्त की मार खायी यह पात्र, अपना सब कुछ त्यागकर एक नृत्यक का जीवन जीती है।
झांझर- सुरंगी व झांझर एक जैसी कथा है। दोनों के दिल में दर्द है।
क्रिस्टीन- कला की दलाल।
ब्रजेन- कला का पारखी। पर वक्त ने कला छीन कर दलाल बना दिया। अंत में यही ब्रजेन बींझा को रास्ता दिखाता है।
इनके अलावा भी उपन्यास में कई महत्वपूर्ण पात्र हैं, जो उपन्यास के कथानक को आगे बढाने में सहायक व आवश्यक हैं।
संवाद और भाषा शैली - उपन्यास की संवाद शैली जीवंत है। संवाद सरल व कथानक को आगे बढाने के साथ-साथ पात्र के चरित्र को अच्छी तरह से प्रस्तुत करता है।
  कहीं- कहीं तो संवाद विशेष सुक्तियां बन गये जो लेखक की संवाद शैली की विशेषता है। अगर बात करें भाषा की तो यह उपन्यास राजस्थान की पृष्ठभूमि पर रचा गया है, इसलिए यह तो यह है की इसमें राजस्थानी भाषा के शब्द तो अवश्य होंगे।
उपन्यास की भाषा सरल व कोमलकांत है, कहीं पर भी क्लिष्ट शब्द नहीं हैं। प्रत्येक पात्र के संवाद भी पात्रानुकूल हैं।
जब बींझा गलत रास्ते से वापस आकर सोरठ से माफी मांगता है, तब सोरठ उसे जो उत्तर देती है वह स्त्रीवर्ग की पीङा को व्यक्त करने वाले शब्द हैं।
" आपने इन दिनों मुझे मारा नहीं पर घाव देते रहे…अब मेरी रूह सूख गयीहै…आप कुछ भी कहो लेकिन मैं आपको माफ़ नहीं कर पा रही हूँ…क्यों माफ़ करूँ आपको?'
       बीझा के स्वाभिमान को प्रकट करने वाले संवाद देखिएगा। बींझा हक तो चाहता है पर किसी की दया नहीं ।
      “ तू शायद यह बात समझेगी नहीं, लेकिन मैं जानता हूँ कि बिना मेहनत के उनसे उनकी दया दिखाने वाले रूपये अगर मैंने अपने पास रख लिए तोवे मेरे दोस्त नहीं रहेंगे, वो हुकुम हो जाएंगे...... सुना सोरठ, वो हुकुम हो जाएंगे ।” (पृ.39)
सुरंगी का नाम ही सुरंगी है, बाकी तो उसके जीवन में मरुस्थल बिखरा पङा है। वही मरुस्थल जहर के समान है, पर वह दूसरों के लिए नहीं, स्वयं सुरंगी को ही लील रहा है।
“... बस मैंने सोच लिया जैसे उस तमाशे ने मेरीसाँस-साँस में जहर भर दिया वैसे ही जैसे पीवणा भरता है ।” (पृ.61)
"ऐसा कहीं हो सकता है। औरत जिंदगी में आगे तो बढती है लेकिन पीछे छूटे का मोह नहीं छोङ पाती।" (66)
कुछ लेखक की पंक्तियाँ भी देखिए-
"बङे लोगों का क्या है, घोङे से आप गिरे साईस की नौकरी गयी" (09)
लोकगीत- उपन्यास में राजस्थानी लोकगीतों का रंग भी खूब बिखरा है। जब उपन्यास लोक गायक को प्रस्तुत करती है तो लोक गीत तो अवश्य आयेंगे।
गांधी जी ने भी कहा है,-"लोकगीत संस्कृति के पहरेदार हैं।"
लोकरंग देखिए-
"सोना री धरती जथे
चांदी रो असमान
रंग-रंगीलो रस भरो
म्हारो प्यारो राजस्थान जी"
" काली रे काली काजलिये रे रेख जी
कोई भूरोङा  बुरजाँ में चमके बीजली"
कथाक्षेत्र- उपन्यास का कथाक्षेत्र राजस्थान का जैसलमेर है।
लेकिन इसके साथ-साथ जोधपुर व रामदेवरा के पर्यटन स्थलों का वर्णन भी है।
कहानी का अंतिम भाग मुंबई का है।
   प्रस्तुत उपन्यास की कहानी बहुत ही मार्मिक है। वर्तमान लोक कलाकारों के जीवन की वास्तविकता का चित्रण करती यह कहानी पाठक को अंदर तक छू जाती है। पृष्ठ दर पृष्ठ पाठक की आँखों से आँसू बहते हैं।
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उपन्यास- खम्मा
लेखक- अशोक जमनानी
प्रकाशक- श्री रंग प्रकाशन, होशंगाबाद, म.प्र.
पृष्ठ-157
मूल्य-₹250.
लेखक की अन्य रचनाएँ
1. को अहम
2. बूढी डायरी
3. व्यास गादी
4. छपाक-छपाक
5. स्वेटर

Monday 6 March 2017

22. नशीला जहर- विक्की आनंद


विक्की आनंद हिंदी के असाहित्यिक उपन्यास क्षेत्र में जासूसी उपन्यासकार माने जाते हैं। इनके उपन्यास डायमंड पाॅकेट बुक्स से प्रकाशित होते रहें हैं।
प्रस्तुत उपन्यास  ' नशीला जहर' विक्की आनंद का डैडमैन सीरीज का एक तेज रफ्तार जासूसी उपन्यास है।
इस उपन्यास की एक झलक इसके शीर्षक को स्पष्ट कर देगी।
"उसे नहीं मालूम था कि ओसमन उसकी बोतल में वह चमत्कारी 'सेक्स कैप्सूल' डाल चुकी थी....जिसने चौधरी साहब जैसे ब्रह्मचारी के शरीर में सैक्स का वह लावा भर दिया था कि वह अपनी बेटी समान धर्मप्रसाद की नवविवाहिता बेटी से अनायास चिपट गया और  उस दौरान मची अफरा-तफरी के दौरान किसी ने धर्म प्रसाद जी का कत्ल कर दिया"
      धर्म प्रसाद जी विधायक  हैं, जनता के सच्चे साथी। किसान- मजदूर के सच्चे हमदर्द, लेकिन एक दिन उनकी पुत्री के विवाह समारोह में उनका कत्ल कर दिया जाता है। चौधरी साहब धर्मप्रसाद जी के सर्वाधिक विश्वसनिय मित्र। लेकिन कातिल का कुछ पता नहीं चलता।  तब मैदान में उतरती है मेरिया। 

Sunday 5 March 2017

21. पानी का पाट- कमलेश चौरसिया

महाराष्ट्र की कवयित्री कमलेश चौरसिया का कविता संग्रह 'पानी के पाट' एक अच्छा कविता संग्रह है। यह इनका प्रथम कविता संग्रह होते हुए भी रचनाकर्म में किसी भी रूप में कमत्तर नहीं है। जैसे पानी में असंख्य लहरें उठती हैं, ठीक वैसे ही इस प्रस्तुत कविता संग्रह में कविताओं के असंख्य भाव हैं। विभिन्न विषयों पर लिखी गयी कविताएँ पाठक के मर्म को छू जाती हैं।
प्रोफेसर सूरज पालीवाल (महाराष्ट्र) लिखते है की -" श्रीमती कमलेश चौरसिया का यह पहला कविता संग्रह अंधेरे में जुगनू की तरह नहीं बल्कि एक चमकभरी रोश्नी लेकर आया है, जिसके उजास में हम अपने आसपास को देख सकने में समर्थ होते हैं।"

इस संग्रह की प्रथम कविता है, समर्पण। ईश्वर के प्रति हमारा समर्पण ही हमें सद् मार्ग की तरफ लेकर जायेगा।
"अहंकार और समस्याओं का ताला
स्वत: टूट जायेगा
बस! एक बार
गुरु चरणों में तिरोहित हो जाओ"
कविता क्या है? इस बात को रेखांकित करते हुए कमलेश चौरसिया जी ने अच्छा लिखा है
"कविता तो!
सृष्टि के बीच संवेदना का
भास्वर स्वर है
कविता के लिए
उतर जाना होता है
जीवन में"
और 'सांसों की कविता' में कवि को प्रेरित किया है
"प्रिय कवि
तुम कहो अपने मन की बात
कविता में ढाल कर" (पृष्ठ-100)
        मात्र शारीरिक अंगों का कमजोर होना विकलांग नहीं है, वह व्यक्ति भी विकलांग है जो अन्याय, भ्रष्टाचार व असत्य के सम्मुख चुप है।
"विकलांग!
नहीं बोल पाता 'सत्य'
जो उपजा है अंतः करण में
वह सत्य, जो अटल है।"(73)

   एक कविता है 'शक्ति' है(70)जो दर्शाती है की अगर हमने गलत राह चुना है तो हमारा विनाश तय है। जिस प्रकार रेलगाड़ी को एक इंजन‌ खींचता है, उसी प्रकार हमारे जीवन को ईश्वर खींचता है, पर इसे सही दिशा देना हमारा कार्य है।
' भूख' कविता हमारे वर्तमान जीवन को रेखांकित करती है, की मनुष्य की जैसे -जैसे भूख को तृप्त किया जाता है, वैसे-वैसे वह ज्यादा भङक उठती है और दया, ममता, करुणा व मानवता सब भस्म हो जाता है।
" भूख की आग में
आहूति के साथ-साथ
भूख की लपटें
ऊंची दर ऊंची
उठती, लपेटती, समेटती रहती
दया, ममता, करुणा, मानवता....
....धरती को बनाता
बंजर।"
        जंगली राजनीति कविता बहुत ही अच्छी कविता है, एक शब्द चित्र है, सत्य है।
"बियाबान जंगल में
बियाबान अंधेरा.....
.....सब मुँह बाये बैठे
निगलने को तैयार
एक क्षण की रोशनी को।"(85)

           जो व्यक्ति जीवन की इस दौङ में पीछे रह जाता है वह हमेशा दौङ जीतने वाले को गलत ठहराने की कोशिश करता है, इसी बात को कमलेश जी ने 'अङियल टट्टू' कविता में दर्शाया है।
इस विविधतारूपी कविता संग्रह में प्रेम की चर्चा न हो ऐसा तो हो नहीं सकता
प्रेम के संयोग व वियोग दोनो रूप विद्यमान है। 'इंतजार'(90) में जहां किसी के इंतजार में आंसू बहाये जा रहें है तो वहीं 'तुम्हारा दिप-दिप अक्स' में उसके आने की खुशी का वर्णन मिलता है।
"लो !
बहार आ गयी
तुम्हारे आने की खुशबू से
फूल रंगीन हो गये
तुम्हारी छोटी सी हँसी से" (91)
और कविता 'नई सृष्टि' इसी प्रेम का आगामी पडाव है-
"क्या तुम ?
चलोगी
मेरे साथ डेट पर......
......श्रद्धा और मनु की तरह
हम रचेंगे
एक नई सृष्टि"

     बालश्रम पर लिखी गयी कविता 'बचपन' पाठक को भी आईना दिखाती है, क्योंकि इस बालश्रम में हम भी जाने-अनजाने शामिल हो जाते हैं।
अकेलेपन के दर्द को 'टूटा तारा' में अभिव्यक्ति मिली है।
' देखूं वह तारा,
जो अपनों से दूर
खोकर अपना नूर
निर्जीव अकेला....
विलीन हो जाता है
शून्य में"(99)
नारी को समर्पित एक अच्छी कविता है 'सोने का उजाला'।
"नारी ही
माँ दुर्गा है, शक्ति है, भवानी है
सुख-समृद्धि दायनी लक्ष्मी है।"
लेकिन इस लक्ष्मी का जीवन बहुत कठिन परिस्थितियों से भरा है, इसी दर्द को कवयित्री ने इसी कविता में उठाया है-
"धर्म के ठेकेदार
उस नन्हीं लक्ष्मी को
फेंक देते कचरे के ढेर में।"
स्त्री की समस्याओं पर लिखी गयी एक और कविता है ' तीन औरतें'
"तीन औरतें
बैठी चौखट के बाहर
छपरी के नीचे...
......
तीसरी औरत..
वह जानती है
अपनी सहेलियों का दर्द
वह मनन करती है कि
यदि मै
मन,मस्तिष्क, आत्मा से विहीन
यंत्र नहीं बनूंगी तो
मेरे कानों
उबलता सूरज भर दिया जायेगा"(133)
माँ पर आधारित कविताएँ, काफी प्रभावी हैं, जहां माँ का ममतामयी रूप का चित्रण मिलता है वहीं एक कविता 'कमजोर नजर' में एक बेबस का का मार्मिक चित्रण उभारा गया है।
" माँ
विशालता है उस तत्व की
जो कण-कण में व्याप्त है"(138)
"उंगली पकङ राह दिखाती है,
टिमटिमाता उजाला दिखाती है" (पृष्ठ-139)
वर्तमान भौतिकवादी युग में हम अपने रिश्तों से किस कदर दूर होते जा रहें हैं इसका भी स्टिक उदाहरण माँ के माध्यम से 'कमजोर नजर' कविता में दर्शाया गया है।
उपर्युक्त चंद उदाहरणों के अतिरिक्त भी कमलेश चौरसिया जी द्वारा रचित काव्य संग्रह ' पानी का पाट' में विभिन्न विषयों पर बहुत सी प्रभावी कविताएँ हैं जो बरबस पाठक को अपने सम्मोहन में बांध लेती है।
कुछ उदाहरण देखिए-
कश्मीर समस्या पर लिखी कविता  ' आधिपत्य'(121)
नशे पर प्रहार किया है ' बूंद-बूंद अंधकार'(123)
होली पर ' गमकती होली' (128)
वेलेंटाइन डे पर कविता 'वेलेंटाइन डे' (129)
देश दशा पर ' हड्डी जुङने का इंतजार'(147)
कुछ कविताओं में प्रयुक्त पंक्तियाँ पाठक के मन-मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव छोड जाती हैं।
"मेरा मन
तेरा मन
हम दोनों का मन
हमारा मन" (112)
        ओ मृत्यु देवता!
         तुम हमें भी
         एक दिन
         अपनी जिह्वा में समेट लोगे
         आश्वाद लेकर।(83)
           इस कविता संग्रह की कविताएं शब्द चित्र की तरह हैं, जैसे-जैसे आप कविता पढते जाओगे आपके समक्ष कविता चित्र की भांति उतरती जायेगी।
ऐसी ही एक कविता है 'पीली पत्ती'(43)
और एक शब्द चित्र 'रस बरसाने विधना' कविता में दिखाई देता है।
"झोपङिया के आगे तलैया
तलैया के आगे गाछ
गाछ पे चिङिया
तलैया में मछरिया
छोपङी में मानुस"
         इस पुस्तक की प्रकाशन संस्था विश्व हिंदी साहित्य परिषद के अध्यक्ष आशीष कंधवे लिखते हैं -"समय को साक्ष्य बनाकर रची गयी ये कवितायें भाषा, भाव और मूल्य बोध की दृष्टि से संश्लिष्ट हैं। तीक्ष्ण दृष्टि और सत्यपथ का अनुगामी ही अपने शब्दों को जीवन दे सकता है। कमलेश चौरसिया का यही सत्य और सार्थक प्रयास आज हम सबके सम्मुख-'पानी के पाट' के रूप में अवतरित हुआ है।"
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पुस्तक- पानी का पाट (काव्य संग्रह)
ISBN No.- 978-93-84899-13-4
लेखक- कमलेश चौरसिया
चित्रांकन- कमलेश चौरसिया
प्रकाशक- विश्व हिंदी साहित्य परिषद- दिल्ली
पृष्ठ- 152
मूल्य-225₹

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...