Tuesday 28 March 2017

24. छठी उंगली- वेदप्रकाश शर्मा

वेदप्रकाश शर्मा का अंतिम प्रकाशित उपन्यास।
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  एक महान जासूसी उपन्यासकार का अकस्मात चले जाना, उपन्यास जगत में अपूर्णीय क्षति है।
   अपने विशेष अंदाज में जासूसी, मर्डर मिस्ट्री व थ्रिलर लिखने वाले वेदप्रकाश शर्मा एक कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण अपने पाठक व चाहने वालों को अकेला कर गये।
  वेदप्रकाश शर्मा का ' आॅनर किलिंग' के पश्चात राजा पाॅकेट बुक्स से आया ' छठी उंगली' एक थ्रिलर उपन्यास है।
यह वेद जी का 176वां प्रकाशित अंतिम उपन्यास है।
सबसे पहले नजर डालते हैं इस उपन्यास के अंतिम कवर पर, जहां पर इस उपन्यास के बारे में चंद पंक्तियाँ है।
"दौलत ऐसी कमबख्त शय है जो अपनों को ही दुश्मन बना देती है। कोई अपना ही अपने का वजूद मिटाने पर उतारू हो जाता है। उसके साथ भी यही हुआ था। एक भयानक एक्सीडेंट में उसे पत्नी और बच्चों सहित मार दिया गया था। मगर वह अचानक जी उठा। अब उसके पास थी एक अतिरिक्त छठी उंगली और फिर शुरु हुआ प्रतिशोध का एक भयानक खेल जिसमें सबकुछ खत्म होता चला गया।"
   थ्रिलर उपन्यास, एक खुली किताब की तरह होता है, जिसमे पाठक को पहले ही पता होता है कि अंत क्या होगा। अब लेखक पर निर्भर करता है कि वह पाठक को कैसे कथानक के साथ बांध कर रखता है। वेदप्रकाश शर्मा इस मामले में अच्छे लेखक हैं कि उनके पाठक एक बार कहानी से जुङ गये तो कहानी का समापन कर ही उठते हैं, पर ' छठी उंगली' में वेदप्रकाश शर्मा मात खा गये।
उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह कहानी गुजरात के अहमदाबाद के दो भाइयों की कहानी है।  प्रह्लाद (प्रहलाद) राय व गोविंद राय दोनों अरबपति भाई हैं, पर दोनों के विचार अलग-अलग हैं। दोनों अलग-अलग ही रहते हैं। जहां गोविंद राय बदमाश प्रवृत्ति का है, और उसके दोनों पुत्र भी, वहीं प्रहलाद राय एक अच्छा कारोबारी व्यक्ति है। प्रहलाद राय का पुत्र राजन एक बिगङैल किस्म का युवक है, इसी वजह से प्रहलाद राय अपने पुत्र को अपनी चल-अचल संपत्ति से अलग कर देते हैं।
  प्रहलाद राय की मृत्यु के पश्चात, गोविंद राय अपने भाई की संपत्ति पर कब्जा करना चाहता है और इसलिए वह राजन, उसकी पत्नी व नन्हें बच्चे को एक कार एक्सीडेंट में मरवा देता है।
पांच साल बाद- राजन जो कि उस एक्सीडेंट में मरा हुआ मान लिया जाता है, पर वह वास्तव में मरता नहीं, राजन के मित्रो द्वारा बचा लिया जाता है और वह कोमा में चला जाता है, और राजन के दो विशेष मित्र उसे सब की नजरों से बचाकर नासिक में ले आते हैं। पांच साल बाद राजन अपने दुश्मनों से बदला लेने निकलता है और धीरे - धीरे कर यह कहानी बीस वर्ष से भी ज्यादा लंबी चली जाती है।
उपन्यास में अहमदाबाद की गैंगवार दिखाई जाती है और बाद में मुंबई की। राजन की कहानी के साथ-साथ इस गैंगवार को भी अनावश्यक विस्तार दे दिया गया है।
कहानी जैसे- जैसे आगे बढती है वैसे- वैसे नाटकीय होती जाती है और समापन तो पूर्णतः हिंदी फिल्मों के कुंभ के मेलें में बिछङे परिवारजन के मिलने जैसा है।
बात करें छठी उंगली की तो यह नाम भी उपन्यास के अनुसार निरर्थक है, अगर पूरी उपन्यास में यह पात्र ना भी होता तो भी कहानी चल सकती थी, शायद अच्छी तरह से चल सकती थी। पूरी उपन्यास में कई ऐसे पात्र हैं जो व्यर्थ भीङ ही पैदा करते हैं। पता नहीं लेखक महोदय ने ऐसे नाटकीय पात्र क्यों एकत्र कर लिये, जिनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
सकल दृष्टि से देखा जाये तो वेदप्रकाश शर्मा का यह उपन्यास किसी भी दृष्टि से उनके अन्य थ्रिलर उपन्यासों से मेल नहीं खाता।

उपन्यास- छठी उंगली
ISBN 978-324-2898-0
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स, दिल्ली
मूल्य- 100₹
पृष्ठ- 316

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