परिवार और आधुनिक में घिरी औरत की कहानी
नीलमणि- आचार्य चतुरसेन शास्त्री
हिंदी कथा साहित्य में आचार्य चतुरेसन शास्त्री जी का नाम उनके उपन्यासों के कारण ज्यादा जाना जाता है । उनके लिखे सामाजिक, ऐतिहासिक और प्रेमपरक उपन्यास पाठकों में प्रिय रहे हैं।श्री चतुरसेन शास्त्री जी का उपन्यास पढने का यह पहला अवसर है। इनके एक जिल्द में दो उपन्यास मिले थे, एक था 'नीलमणि' और दूसरा था 'अदल- बदल' । दोनों सामाजिक उपन्यास बदलते परिवेश को आधार बनाकर लिखे गये हैं। पहले उपन्यास 'नीलमणि' का प्रथम पृष्ठ पढे-
मालकिन रसोईघर में बैठी बड़ी तत्परता से पकवान बना रही थीं। महाराजिन सामने बैठी उनकी मदद कर रही थी। रसोई के द्वार के पास मही बैठी दरांत से तरकारी काट रही थी। बहुत-से मीठे और नमकीन पकवान बन चुके थे और उनकी सोंधी सुगन्ध घर में भर रही थी। दिन काफी चढ़ चुका था; हवा में अधिक उष्णता न थी । सूरज की धूप खिल गई थी। परिश्रम और चूल्हे की गर्मी के कारण मालकिन के उज्ज्वल ललाट पर पसीने की बूंदें मोती की लड़ी के समान सोह रही थीं। उन्होंने फुर्ती से हाथ चलाते हुए महरी से कहा - "देख तो री रधिया, यह लड़की अभी सोकर उठी या नहीं। इस लड़की से तो भई नाक में दम है, दिन बांस-भर चढ़ आया और महारानी अभी सो रही हैं। लड़की क्या है, कुम्भकरण की दादी !"