Tuesday 3 July 2018

125. डकैती मास्टर- अनिल मोहन

इण्डिया बैं‌क की डकैती की कहानी।
डकैती मास्टर- अनिल मोहन, थ्रिलर उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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     जवाहर सिंह कालिया वह शख्स था जिसने देवराज चौहान से डकैती की एक डील की थी ।
"माल रोड़ पर इण्डिया बैंक की ब्रांच है।"- जवाहर सिंह कालिया ने गंभीर स्वर में कहा - " उसमें लाॅकर की सुविधा भी उपलब्ध है। 402 नंबर लाॅकर में पड़ा सारा सामान तिनका-तिनका, बेशक वह रुपया हो या सोना-हीरे हों या फिर कागजात हों, मुझे चाहिए। यह काम है।"(पृष्ठ-07)
     देवराज चौहान और जगमोहन ने वह डील स्वीकार की। और जगमोहन के साथ एक प्लान बनाया।
"तुम....!" देवराज चौहान मुस्काया-"सिर्फ 402 नंबर लाॅकर के बारे में ही नहीं सोच रहे बल्कि वहां मौजूद सब लाॅकरों के बारे में सोच रहे हो। जाहिर है, जब 402 नंबर लाॅकर खाली करने के लिए बैंक में डकैती डालोगे तो बाकी लाॅकरों पर भी हाथ मारोगे।"(पृष्ठ-13)
               देवराज चौहान ने डकैती की। लेकिन यह एक संयोग था की डकैती के दौरान एक शख्स वहां आ पहुंचा।

" यह तो इण्डिया बैंक की शाखा है। है ना?"- मनमोहन देसाई एकाएक हड़बड़ाकर बोला।
"हां।"
"य..यहाँ तो मैंने भी लाॅकर ले रखा है"- मनमोहन देसाई ने पप्पू सूबेदार की कलाई पकङ ली- " उसमें‌ मेरी बीवी का सोना और कुछ नगद माल है- जो‌ मैंने ऊपर से कमा रखा है। उसे...मत खोलना...देखो, मैं...।"
.........
"चिंता मत कर। तेरा 402 नंबर लाॅकर सलामत रहेगा।"(पृष्ठ-165)
लेकिन जब देवराज चौहान को इस बात की खबर लगी तो उसका चौंकन्ना स्वाभाविक ही था।
पप्पू सुबेदार के शब्दों पर देवराज चौहान जोर से चौंका।
"402 नंबर लाॅकर तुम्हारा है?"
देसाई ने जल्दी से सिर हिलाया।
"चार सौ दो नंबर लाॅकर में क्या है?"- देवराज चौहान की निगाह देसाई पर थी।
" मेरी बीवी का सोना है। मकान के कागजात हैं। तीस-चालीस हजार रुपया पडा़ है।"
........
"इस बैंक डकैती की असल वजह चार सौ दो नंबर लाॅकर ही है। इतना जान लो कि मैंने चार सौ दो नंबर लाॅकर में‌ पडा़ सामान रत्ती-रत्ती किसी को देना है। इस बारे में कोई सवाल मत पूछो। और मैं ज्यादा नहीं बता पाऊंगा।"- देवराज चौहान ने कहा। (पृष्ठ-170,71)
- तो आखिर क्या था 402 नंबर लाॅकर में?
- देवराज चौहान इस लूट में सफल हो पाया।
- मनमोहनदेसाई का बैंक में पहुंचना एक इतेफाक था या साजिश?
- मनमोहन देसाई के अनुसार लाॅकर नंबर 402 में कुछ भी विशेष न था फिर जवाहर कालिया क्यों उस लाॅकर के पीछे पड़ा था?
     उपन्यास में कोई ज्यादा पात्र नहीं हैं, जो हैं हैं वो भी बस अपने कार्य तक सीमित हैं। उपन्यास में एक पात्र है पंडित गौरी शंकर गोरखपुरिया जो उपन्यास में कुछ रोचक है व एक अलग पहचान छोड़ता है।
जो खुद कहता है - मत भूलो कि हम‌ गोरखपुरिया पंडित हैं। हम तो ऐसे- ऐसे....।(पृष्ठ-128-29)
  किसी भी उपन्यास में कोई विज्ञापन देखने का यह पहला अवसर है।   उपन्यास में दादी माॅ बासमती ब्रांड के चावलों‌ का खूब विज्ञापन किया गया हैं।
" दादी मां ब्रांड बासमती चावल हैं। दूसरे होते तो‌ मजा नहीं आता।"-(पृष्ठ-129)
इनके अलावा भी अन्य कई पृष्ठों पर इस चावल का विज्ञापन है।
पृष्ठ- 128,129, 132,134, 220
एक बङी गलती-
             उपन्यास में देवराज चौहान व उसके साथी बैंक लूटने जाते हैं। तब कई जगह कुछ बाते उचित नहीं लगती।
  शाम के पांच बज चुके थे। आज शुक्रवार था।
बैंक बंद हो चुका था।
कल शनिवार और रविवार दो दिन बैंक की छुट्टी थी। बैंक ने अब सोमवार को सुबह खुलना था। (पृष्ठ- 77)
   1. जब इतना समय बैंक लूट में बिताना था तो देवराज चौहान ने सबके लिए कोई भोजन की व्यवस्था क्यों न की। भूखे पेट मंदिर के पूजारी के पास जाना कुछ उचित न लगा।
2. लूट करके के बाद रात को निकलना ज्यादा सुरक्षित था, तब क्या जरूरत थी की सुबह होने का इंतजार किया जाये।
- निष्कर्ष-
            अनिल मोहन जी द्वारा लिखा गया 'डकैती‌ मास्‍टर' उपन्यास एक बैंक पर आधारित उपन्यास है। उपन्यास अच्छा और रोचक है। उपन्यास की ज्यादातर घटनाएं बैंक के अंदर ही घटित होती हैं।
      उपन्यास में नयापन कुछ भी नहीं है। जैसा देवाराज के उपन्यासों में अक्सर डकैती होती है यह भी उसी तरह का एक उपन्यास है।
    अनिल मोहन जी या देवराज चौहान‌ के पाठकों के‌ लिए उपन्यास अच्छा साबि होने के साथ-साथ सामान्य पाठक को भी किसी भी स्तर पर निराश नहीं करेगा। उपन्यास में ऐसा कोई भी घटनाक्रम‌ नहीं जहां बोरियत हो।
   उपन्यास पठनीय और रोचक है।
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उपन्यास -डकैती‌ मास्टर
लेखक- अनिल‌ मोहन
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स।
पृष्ठ- 224
मूल्य- 80₹
      
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सीरिज- देवराज चौहान, जगमोहन

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