Monday 30 December 2019

260. कादम्बिनी पत्रिका

सन् 2019 के साहित्य जगत का विवरण
कादम्बिनी- दिसंबर,2019

कादम्बिनी दिसंबर 2019 अंक पढने को मिला।
'शब्दों की दुनिया' आवरण कथा है। यह अंक सन् 2019 में साहित्य की विभिन्न विधाओं में आयी हुयी किताबों पर आधारित है। विभिन्न विषयों की किताबें हिन्दी में आयी और नये-नये लेखक भी उपस्थित हुये हैं।
स्थायी स्तंभ के अतिरिक्त कहानियाँ, आलेख, रोचक जानकारी जैसे अन्य काॅलम भी आकर्षक हैं।

      अनामिका जी का आलेख 'खुल रही हैं अलग-अलग राहें' में से 'किताबों की दुनिया इस साल काफी समृद्ध रही, लगभग सभी विधाओं में। अच्छी बात यह रही कि अब बड़े और छोटे प्रकाशकों का भेद मिट रहा है और साहित्येतर विधाओं में, खासकर ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रकाशकों की रूचि बढी है। यह हिन्दी की अपनी जनतांत्रिक परम्परा है, जो निरंतर विकसित हो रही है।'
      ‌‌इस आलेख में सन् 2019 में प्रकाशित विभिन्न किताबों की चर्चा की गयी है। यह आलेख बहुत सी किताबों से परिचय करवाता है। मुझे कुछ और पठनीय किताबों की जानकारी उपलब्ध हुयी।
        सबसे अच्छी चर्चा लगी चित्रा मुद्गल जी की। वे 'हाशिये पर नहीं रहे हाशिये के लोग' शीर्षक से साहित्य में फैले भ्रष्ट वातावरण का खुल कर चित्रण करती नजर आती हैं। इस आलेख में चित्रा जी ने कुछ पठनीय रचनाओं का जिक्र किया है तो साथ ही उन रचनाओं की चर्चा भी की है जो साहित्य के नाम पर कचरा फैला रहे हैं। इस क्रम को आगे बढाते हुए सविता सिंह जी 'जगर-मगर बाजार लेकिन...'' शीर्षक आलेख में लिखती हैं की "...साहित्य को कतई सिर्फ कलात्मक मनोरंजन के लिए नहीं, अपितु परिवर्तन के औजार के रूप में लिया गया है। ऐसे कवि जब मिलते हैं, तो देश दुनिया के बारे में चिंता करते हैं।"
       अगर देखा जाये तो वर्तमान अधिकांश साहित्य मात्र पठन-पाठन तक सीमित होकर रह गया, लेखक को सिर्फ 'वाह-वाही' चाहिए उसे समाज से कोई सरोकार नहीं रहा। आजकल तो अश्लिलता भी साहित्य होकर बिक रही है और ऐसे लोग, अश्लील लिखने वाले स्वयं को साहित्यकार भी कहलवाने लग गये। इस बात को आधार बना कर कभी प्रेमचंद ने लिखा है- 'कला संयम और संकेत में है।' जब यह संयम और संकेत तोड़ दिये जाते हैं तो कला भी विकृत हो जाती है।
'साहित्य की नई प्रवृत्ति' आलेख में प्रेमचंद जी लिखते है की 'नंगे चित्र और मूर्तियाँ बनाना कला का चमत्कार समझा जाता है। वह भूल जाता है कि वह काजल जो आंखों को शोभा प्रदान करता है, अगर मुँह पर पोत दिया जाए, तो रूप को विकृत कर देता है। (पृष्ठ-46)

इस अंक में कुल तीन कहानियाँ है। यू. आर. अनंतमूर्ति की 'घटश्राद्ध', कृष्णा अग्निहोत्री की 'मुखोटे' और राजेन्द्र राव की 'वत्सल'। तू तो तीनों कहानियाँ अच्छी हैं लेकिन 'घटश्राद्ध' बहुत ही मार्मिक रचना है। इस कहानी को पढने वक्त मेरे मानस में जैनेन्द्र का उपन्यास 'त्यागपत्र' घूमता रहा। 'वत्सल' कहानी आधुनिक दौर की कहानी है जहां एक दादा-पोते के प्रेम को पोते की माँ से सहन नहीं होता। कहानी 'मुखौटे' भाव स्तर पर अच्छी रचना है पर उसमें ज्यादा पात्र और नकारात्मक विचारों के कार मुझे अच्छी नहीं लगी।

गीतकार शैलेन्द्र जी के पुत्र 'दिनेश शैलेन्द्र' का अपने पिता की पुण्यतिथि 14 दिसंबर पर आलेख 'राजकपूर की आत्मा थे शैलेन्द्र' बहुत ही दिलचस्प है। इस आलेख में राजकपूर और शैलेन्द्र जी के कुछ रोचक किस्से वर्णित है।

    'नई हिन्दी' के नाम से आजकल चर्चित साहित्य पर दिव्य प्रकाश दूबे ने अच्छी सामग्री दी है। अज्ञेय और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के आलेख भी काफी रोचक और ज्ञानवर्धक हैं।
प्रस्तुत अंक में स्थायी स्तंभ के अतिरिक्त और बहुत कुछ पठनीय सामग्री उपलब्ध है। साहित्य प्रेमियों के लिए यह अंक अच्छी जानकारी प्रदान करता है।

पत्रिका- कादम्बिनी
अंक- दिसंबर-2019
मूल्य- 30₹

259. विज्ञान प्रगति- पत्रिका

एक महत्वपूर्ण पठनीय पत्रिका- विज्ञान प्रगति

विज्ञान प्रगति का मैं बचपन से ही पाठक रहा हूँ। विज्ञान प्रगति घर पर आती थी। तब इसके रंगीन चित्र अच्छे लगते थे, फिर कल्प कथा अच्छी लगने लगी और समय के अनुसार विज्ञान प्रगति के आलेख और भी रूचिकर लगने लगे।
विद्यालय में पुस्तकालय (रा. उ.मा. वि.- माउंट आबू, सिरोही) का प्रभार मेरे पास है। पुस्तकालय में पुस्तकें तो हजारों की संख्या में है लेकिन पत्रिकाएं नहीं आती तब हमने विज्ञान प्रगति की द्विवर्षीय सदस्यता ग्रहण की ताकी विद्यालय के बच्चे इसे पढ सकें।
बच्चों का पुस्तकालय के प्रति बढता रूझान हार्दिक आनंद प्रदान करता है।
       विज्ञान प्रगति का दिसंबर-2019 अंक उपलब्ध है। इसकी कवर स्टोरी 'नोबेल पुरस्कार' से संबंधित है।
यह आलेख सन् 2019 में विभिन्न विधाओं में‌ मिले नोबेल पुरस्कार विजेताओं की अच्छी जानकारी प्रदान करता है।

       इस अंक के कुछ आलेख मुझे बहुत अच्छे लगे।
टेपवर्म फैलाते हैं खतरनाक वायरस- यह आलेख हमारे रहन सहन के सुधार पर जोर देता है। यह एक पठनीय आलेख है। जो हमें टेपवर्म जैसी बिमारी और उसके बचाव के उपाय बताता है।
दूसरा आकर्षण है विज्ञान गल्प 'वसुधैव कुटुंबकम'। हर बार की तरह यह गल्प भी रोचक और दिलचस्प है।

विशेष आकर्षण है
- भारतीय गणित- इतिहास के झरोखे से
- विमानन प्रौद्योगिकी: जमीन से आसमान छूने की चाह
- टेपवर्म फैलाते हैं खतरनाक वायरस
- प्रकृति के बेहतरीन जलीय हवाई विमान: ड्रेगनफ्लाई व डैमजलफ्लाई।


विज्ञान प्रगति हर वर्ग के पाठक के लिए एक आवश्यक पत्रिका की तरह है। यह बच्चों में जहाँ ज्ञान की वृद्धि करती है, उन्हें कुछ नया सीखाती है वही बड़े वर्ग के लिए बहुत से आवश्यक बिंदुओं पर चर्चा करती है

पत्रिका- विज्ञान प्रगति
अंक- दिसंबर-2019, अंक-12, पूर्णांक-787
मूल्य- 30₹

258. कथादेश- पत्रिका

               साहित्य का देश कथादेश

साहित्यिक पत्रिका कथादेश का दिसंबर-2019 अंक मिला। जयपुर आवागमन के दौरान दिसंबर माह की चार पत्रिकाएं खरीदी थी। कथादेश, हंस, कादम्बिनी और विज्ञान प्रगति। पत्रिकाएं समसामयिक साहित्यिक और समाज से अच्छा परिचय करवा देती हैं। मैं पहले पत्रिकाएं खूब पढता था लेकिन अब समयाभाव के कारण कभी-कभार पढी जाती हैं, कई बार तो पत्रिकाएं/किताबें खरीद के रख ली जाती हैं और कभी पढी भी नहीं जाती। लेकिन मेरा मानना है की पत्रिकाओं को समय पर पढना ज्यादा प्रासंगिक होता है। 

अब चर्चा करते हैं कथादेश पत्रिका के दिसंबर 2019 अंक की।


      इस अंक में जो कहानियाँ है वे सब अलग-अलग परिवेश को व्यक्त करती हैं। पहली कहानी 'राजा सुनता है!' शीर्षक से है यह एक लंबी कहानी है जो इटली के लेखक 'इटालो काल्विनो की रचना है।
        कलाकारों के शोषण को रेखांकित करती पंकज स्वामी की कहानी 'पानी में फड़फड़ता कौआ' वर्तमान भौतिक वादी समाज का आइना दिखाती है। आज स्मार्ट सीटी तो बना रहे हैं लेकिन इन स्मार्ट सीटी के लोग कितने शोषण वाले हैं इस कहानी को पढकर जाना जा सकता है।
        एक पंजाबी कहानी का अनुवाद प्रस्तुत है। केसरा राम नामक लेखक की कहानी 'रामकिशन बनाम स्टेट हाजिर हो!' शीर्षक की कहानी का अनुवाद किया है 'भरत ओळा' ने।
इस अंक की यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी। किसान वर्ग का शोषण अधिकारीवर्ग किस तरह सड करता है इस विषय को लेखक ने बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। किसान को मिलने वाले लाभ का (वह भी नाममात्र) अन्य लोग हड़प जाते हैं और गरीब किसान अपनी किस्मत पर रोता रह जाता है।
      दो और कहानी है राजगोपाल सिंह वर्मा की 'जिसे बयाँ न किया जा सके....' और प्रकाश कांत की 'रामधुन' दोनों कहानी पत्रिका के पृष्ठों पर फैली स्याही के कारण पढी न जा सकी ऐसा अन्य रचनाओं के साथ भी हुआ है।
ऋचा शर्मा की कहानी 'शोक' और रेणु मिश्रा की कहानी 'दो दूनी पांच' भी अच्छी है। 'दो दूनी पांच' कहानी महिला वर्ग पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी है।

     पत्रिका का विशेष आकर्षण है नामवर सिंह जी पर आधारित देवेन्द्र का संस्मरण 'फलक पर नामवर'। नामवर सच में नामवर ही थे। स्वयं में एक संस्था थे। उनकी छत्रछाया में अनेक पौधे पलवित हुए। इस संस्मरण में बहुत सी खट्टी-मिट्टी याद शामिल हैं।
     'विजयदेव नारायण शाही का एक पत्र इलाचन्द्र जोशी के नाम' भी साहित्य की अमूल्य धरोहर पठनीय है। इसके अतिरिक्त रश्मि रावत का आलेख 'क्या घर एक यूटोपिया है।' शीर्षक से है जो ममता कालिया के लेखन पात्रों पर आधारित है।
प्रस्तुत अंक में अन्य स्थायी स्तम्भ, कविताएं और भी बहुत सी पठनीय सामग्री है।


पत्रिका- कथादेश
अंक-    दिसंबर-2019
पृष्ठ-     98
मूल्य-  40₹

257. हंस - पत्रिका

हंस 

Tuesday 17 December 2019

256. नीले परिन्दे- इब्ने सफी

दहशत के परिन्दे
नीले परिन्दे- इब्ने सफी

इमरान सीरिज-06

सन् 2019 का दिसंबर माह महान लेखक इब्ने सफी जी को समर्पित रहा। इस माह मैंने इब्ने सफी साहब के ग्यारह उपन्यास पढे जिसमें से आठ उपन्यास 'फरीदी-हमीद' सीरिज के और तीन उपन्यास 'इमरान' सीरिज के। निम्न लिंक पर आप अन्य उपन्यासों की समीक्षा भी पढ सकते हैं।
चट्टानों में आग
खौफनाक इमारत
नकली नाक
चालबाज बुढा
कुएं का राज
फरीदी और लियोनार्ड
तिजोरी का रहस्य
औरतफरोश का हत्यारा
जंगल में लाश
दिलेर मुजरिम
इब्ने सफी उपन्यास समीक्षा

अब चर्चा करते हैं‌ इब्ने सफी साहब के इमरान सीरिज के उपन्यास 'नीले परिन्दे' की।
सरदारगढ़ पहाड़ी इलाक़ा था। अब से पचास साल पहले यहाँ ख़ाक उड़ती रहती थी, लेकिन मिट्टी के तेल का भण्डार मिलने के बाद यहाँ अच्छा-ख़ासा शहर बस गया था।
       यह कहानी सरदारगढ की है। वहाँ के नवाबजादे जमील पर एक नीले परिन्दे ने आक्रमण किया यह घटना 'पेरिसियन नाइट क्लब' की है और अगले दिन जमील के चेहरे पर सफेद दाग उभर आये।

Monday 16 December 2019

255. चट्टानों में आग- इब्ने सफी

कर्नल, ली यूका और इमरान की कथा
चट्टानों में आग- इब्ने सफी
इमरान सीरिज-02
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दिसंबर में इब्ने सफी उर्फ इसरार अहमद साहब के उपन्यास पढने का क्रम चल रहा है। उनके आरम्भ के 'जासूसी दुनिया' के 'फरीदी-हमीद' सीरिज के उपन्यास पढे और अब इमरान सीरिज के कुछ उपन्यास इसी क्रम में पढे जा रहे हैं।
'चट्टानों में आग' इमरान सीरिज का उपन्यास पढा जो मुझे इब्ने सफी के अब तक पढे गये उपन्यासों में से सबसे अच्छा लगा। इब्ने सफी के फरीदी सीरिज के उपन्यासों में घटनाक्रम जहां ज्यादा उलझन वाला और खल पात्र के अजीबो गरीब हरकते होती हैं वैसा इस उपन्यास में कुछ भी नहीं था।

       अब कहानी पर चर्चा करते हैं। यह कहानी है रिटायर्ड कर्नल जरग़ाम की।- वह अधेड़ उम्र का, मज़बूत शरीर वाला रोबदार आदमी था। मूँछें घनी और नीचे की तरफ़ को थीं। बार-बार अपने कन्धों को इस तरह हिलाता था जैसे उसे डर हो कि उसका कोट कन्धों से लुढ़क कर नीचे आ जायेगा। यह उसकी बहुत पुरानी आदत थी। वह कम-से-कम हर दो मिनट के बाद अपने कन्धों को ज़रूर हिलाता था।

254. खौफनाक इमारत- इब्ने सफी

किस्सा खूनी इमारत का
खौफनाक इमारत- इब्ने सफी
इमरान सीरीज-01

इब्ने सफी साहब द्वारा लिखित 'खौफनाक इमारत' इमरान सीरीज का पहला उपन्यास है।
        इमरान सूरत से ख़ब्ती नहीं लगता था। ख़ूबसूरत और दिलकश नौजवान था। उम्र सत्ताईस के लगभग रही होगी! सुघड़ और सफ़ाई-पसन्द था। तन्दुरुस्ती अच्छी और जिस्म कसरती था। अपने शहर की यूनिर्विसटी से एम.एस.सी. की डिग्री ले कर इंग्लैण्ड चला गया था और वहाँ से साइन्स में डॉक्टरेट ले कर वापस आया था। उसका बाप रहमान गुप्तचर विभाग में डायरेक्टर जनरल था। इंग्लैण्ड से वापसी पर उसके बाप ने कोशिश की थी कि उसे कोई अच्छा-सा ओहदा दिला दे, लेकिन इमरान ने परवा न की।
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        इमरान भी गुप्तचर विभाग में आ गया।
यह कहानी है एक खौफनाक इमारत की। एक ऐसी इमारत जो बंद है, जिसके विषय में बहुत सी अफवाहे फैली हुयी हैं।
इस इमारत की बनावट पुराने ढंग की थी। चारों तरफ़ सुर्ख़ रंग की लखौरी ईंटों की ऊँची-ऊँची दीवारें थीं और सामने एक बहुत बड़ा फाटक था जो ग़ालिबन सदर दरवाज़े के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा होगा।
                  और एक समय आता है उस इमारत में एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ हो जाते हैं। इमारत और भी ज्यादा कुख्यात हो जाती है।- ‘यह इमारत पिछले पाँच बरसों से बन्द रही है। क्या ऐसी हालत में यहाँ एक लाश की मौजूदगी हैरत-अंगेज़ नहीं है।’

Saturday 14 December 2019

253. नकली नाक- इब्ने सफी

अंतरराष्ट्रीय अपराधी जाबिर से फरीदी का मुकाबला।
नकली नाक- इब्ने सफी
एक उपन्यास दो शीर्षक से- 'नकली नाक' और 'नंगी लाश'

कल्पना और जानकारी के घोल से इब्ने सफ़ी ने अपने यादगार जासूसी उपन्यासों का लिबास तैयार किया। कई क़िस्से और किरदार तो चुनौती की तरह आये, मसलन जाबिर जो ‘चालबाज़ बूढ़ा’ के अन्त में फ़रीदी के हाथ से फिसल कर निकल भागा था। इसी जाबिर से ‘नक़ली नाक’ में हम दोबारा रू-ब-रू होते हैं। ‘नक़ली नाक’ बिला शक इब्ने सफ़ी के उन उपन्यासों में शामिल है जिसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होगी और वह आज भी आपको लुभायेगा। आज़मा कर देखिए। इन्स्पेक्टर फ़रीदी के पसन्दीदा मुहावरे में कहें तो न घोड़ा दूर, न मैदान। (ईबुक से)
'नकली नाक' इब्ने सफी साहब का जासूसी दुनिया सीरिज का आठवां उपन्यास है। यह उपन्यास एक कुख्यात अंतरराष्ट्रीय अपराधी जाबिर के कुकारनामों पर आधारित है। फरीदी को एक जाबिर के रामगढ में होने की सूचना मिलती है और वह हमीद के साथ रामगढ को निकल पड़ता है।
‘‘आख़िर आपको अचानक रामगढ़ की क्यों याद आ गयी?’’ हमीद बोला।
‘‘जाबिर...!’’
‘‘ओह... तो आप उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे?’’
‘‘मैं क़सम खा चुका हूँ।’’
‘‘क्या आपको उसकी मौजूदगी की कोई पक्की ख़बर है?’’
‘‘नहीं...!’’
‘‘यानी...!’’
‘‘यहाँ कुछ क़िस्से ऐसे हुए हैं जिनकी बिना पर मैं सोचने पर मजबूर हुआ हूँ।’’


252. चालबाज बूढा- इब्ने सफी

जासूसी दुनिया अंक-07
चालबाज बूढा-  इब्ने सफी, उपन्यास

"गेट पर लाश"
"क्या मतलब?"
"मतलब यह की हमारे गेट पर एक लाश पड़ी हुई है।"
"गेट पर...?" फरीदी ने जल्दी उठते हुए कहा।
"अरे..." फरीदी बरामदे में पहुंच कर ठिठक गया। फिर तेजी से चलता हुआ गेट पर आया। लाश गेट से मिली हुयी बाहर की तरफ पड़ी थी। फरीदी ने जल्दी से गेट को खोला। यह एक नौजवान की लाश थी।
....

उक्त दृश्य है इब्ने सफी के 'फरीदी-हमीद' सीरीज के उपन्यास 'चालबाज बूढा' का।
शहर में एक के बाद एक कत्ल हो रहे थे और लाश प्रसिद्ध जासूस फरीदी के गेट पर पायी जाती थी।
अभी पहली लाश की पहेली सुलझ भी न पायी थी की एक और लाश फरीदी के गेट पर पायी गयी। फरीदी- हमीद के साथ-साथ पुलिस भी हैरान थी की यह लाश का क्या चक्कर है।
सिविल पुलिस के थकहार जाने के बाद यह मामला डिपार्टमेंट आॅफ इन्वेस्टिगेशन को सुंपुर्द कर दिया गया।
फरीदी इस केस का इंचार्ज बन तो गया। लेकिन अभी तक वह किसी रास्ते को चुन नहीं सका। 


251. बहरूपिया नवाब - इब्ने सफी

लौट आये नवाब......
बहरूपिया नवाब- इब्ने सफी, इमरान सीरीज
एक उपन्यास दो शीर्षक- 'बहरुपिया नवाब' और 'फांसी का फंदा'

कुछ घटनाएं हमारे आस पास ऐसी घटित होती हैं की हम उस घटना के कारण चकित रह जाते हैं। हम कल्पना भी नहीं कर सकते की ऐसा भी कुछ आश्चर्यजनक घटित हो सकता है। लेकिन जासूस के सामने भी एक ऐसी घटना आयी की वह हैरत रह गया।
         यह घटना है एक ऐसे व्यक्ति की जिसे मृत घोषित कर दिया गया और उसी लाश को दफन कर दिया गया लेकिन कुछ समय पश्चात वही व्यक्ति पुन: हाजिर हो गया।
यह व्यक्ति नवाब साजिद का चाचा नवाब हाशिम था।
- हाशिम को दोबारा सामने आये हुये तकरीबन एक हफ्ता गुजर चुका था। इस हैरत अंगेज वापसी की शोहरत न सिर्फ शहर, बल्कि पूरे प्रदेश में हो चुकी थी। यह अपनी तरह का एक ही हंगामा था। गुप्तचर विभाग वालों‌ की समझ में नहीं आता था और कि वे इस सिलसिले में क्या करें। फिलहाल उनके सामने सिर्फ एक ही सवाल था और वह यह कि अगर नवाब हाशिम यही शख्स है तो फिर वह आदमी कौन था जिसकी लाश दस साल पहले नवाब हाशिम के बेडरूम से बरामद हुयी थी।।"  (उपन्यास अंश)
- क्या रहस्य था नवाब का?
- मरने वाला शख्स कौन था?
- उपस्थित नवाब कौन था?
- कौन असली था कौन नकली?

इस रहस्य से पर्दा उठाने का काम करता है इमरान। जासूस इमरान- "मैं अली इमरान, एम.एस. सी., डी.एस.सी. हूँ। अफसर आॅन स्पेशल ड्यूटी फ्राम सेन्ट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो।" 

Thursday 12 December 2019

250. फरीदी और लियोनार्ड- इब्ने सफी

इब्ने सफी का चतुर्थ उपन्यास
फरीदी और लियोनार्ड- इब्ने सफी

हार्पर काॅलिंस एक अच्छा किया है वह है इब्ने सफी के 16 उपन्यासों का पुनः प्रकाशन। जिसमें से आठ उपन्यास फरीदी सीरिज के हैं और आठ उपन्यास इमरान सीरिज के। इब्ने सफी के पाठकों के लिए यह एक बहुत अच्छी उपहार है।
दिल्ली के दरियागंज में लगने वाले पुस्तक मेले से मुझे हार्पर काॅलिंस द्वारा दो खण्डों में प्रकाशित ये उपन्यास दो सौ रुपये में मिल गये।
         आजकल इन्हीं उपन्यास को पढा जा रहा है हालांकि इन्हें मैं any book एप पर पढा रहा हूँ। फरीदी सीरिज का पांचवा उपन्यास 'फरीदी और लियोनार्ड' पढा।

लियोनार्ड बेहद घटिया क़िस्म का ब्लैकमेलर है, जो सिर्फ़ ब्लैकमेलिंग तक ही नहीं रुकता, बल्कि क़त्ल और दूसरे ओछे हथकण्डे अपनाने पर उतर आता है। क्या-क्या गुल खिलाता है और फिर कैसे फ़रीदी के हत्थे चढ़ता है–इसे जानने के लिए आइए, इस उपन्यास के हैरत-अंगेज़ सफ़र पर चलें। हमारा य़कीन है आप निराश न होंगे।
(ईबुक से)

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पी०एल० जैक्सन ख़ुफ़िया पुलिस का सुप्रिन्टेंडेण्ट है। उसने एक दिन फरीदी
को बुलाकर कहा।
‘‘कल रात हस्पताल में मुझे इन्स्पेक्टर जनरल की तरफ़ से एक ख़बर मिली है, जो हम सब के लिए बहुत ही दिलचस्प है। तुमने यूरोप के मशहूर ब्लैक-मेलर लियोनार्ड का नाम ज़रूर सुना होगा। वह अपने कुछ साथियों के साथ हिन्दुस्तान आया है और उसने अपना हेडक्वार्टर हमारे ही शहर में बनाया है।’’

249. तिजोरी का रहस्य- इब्ने सफी

जासूसी दुनिया- अंक-04
तिजोरी का रहस्य- इब्ने सफी, #फरीदी- हमीद सीरीज
लोकप्रिय जासूसी साहित्य के लेखक इब्ने सफी जी का उपन्यास 'तिजोरी का रहस्य' पढा। यह एक लघु कलेवर का रोचक उपन्यास है।
      यह कहानी है एक शहर की जहाँ कुछ रहस्यमयी घटित होगा है। रहस्यमयी होने ले साथ-साथ वह घटना रोचक भी है।
घटना है शहर में तिजोरियों से संबंधित है। एक के बाद एक घटित यह वारदातें पुलिस के लिए हैरतजनक है।
      तीन दिन से शहर की पुलिस बुरी तरह से परेशान थी। सेठ अग्रवाल के यहाँ डाके के बाद से अब तक इसी तरह की दो और वारदातें हो चुकी थी।
शहर के मशहूर दौलतमंदों की तिजोरियां खोली जायें लेकिन कोई चीज गायब न हो और तिजोरियों को खोलने वाले साफ बच कर निकल जायें।
(उपन्यास अंश)
है ना अपने आप में यह रोचक घटना। चोर आते हैं, तिजोरी खोलते हैं, देखते हैं और बिना कुछ चुराये वापस चले जाते हैं।
यह घटनाएं सभी के लिए आश्चर्यजनक हैं।
- आखिर क्या रहस्य है तिजोरी का?
- कौन है इस वारदात के पीछे?
- आखिर क्या खोजा जा रहा है तिजोरियों में से?

यह सब रहस्य समाहित है इब्ने सफी जी के उपन्यास 'तिजोरी का रहस्य' में। 

248. औरतफरोश का हत्यारा इब्ने सफी

जासूसी दुनिया अंक-03
औरत फरोश का हत्यारा- इब्ने सफी

इब्ने सफी साहब का लिखा हुआ इंस्पेक्टर फरीदी सीरिज का द्वितीय उपन्यास है 'औरतफरोश का हत्यारा'.
यह एक मर्डर मिस्ट्री आधारित रोचक उपन्यास है।
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इंस्पेक्टर फरीदी और सार्जेंट हमीद एक दिन मनोरंजन के लिए निकले।
दोनों ने ‘गुलिस्ताँ होटल’ पहुँच कर टिकट ख़रीदे और हॉल में दाख़िल हो गये। सारा हॉल क़ुमक़ुमों से जगमगा रहा था और संगीत की लहरें फ़िज़ा में फैल रही थीं।
            यहाँ उन्हे शहनाज मिली, लेड़ी सीता राम मिली- लेडी सीताराम सत्ताईस-अट्ठाईस साल की औरत थी। उसके होंट बहुत ज़्यादा पतले थे जिन पर बहुत गहरे रंग की लिपस्टिक लगायी गयी थी, ऐसा मालूम होता था जैसे उसने अपने होंट भींच रखे हों। माथे पर पड़ी हुई लकीरें ख़राब नहीं मालूम होती थीं। और अपराधी राम सिंह भी मिला। ‘‘उसका नाम राम सिंह है और यह ख़तरनाक आदमी है।’’
इसी दौरान वहाँ एक वारदात हो गयी।

होटल का मैनेजर ऊपर गैलरी में खड़ा चीख़-चीख़ कर कह रहा था।
‘‘भाइयो और बहनो... मुझे अफ़सोस है कि आज प्रोग्राम इससे आगे
न बढ़ सकेगा।’’
‘‘क्यों? किसलिए?’’ बहुत-सी ग़ुस्सैल आवाज़ें एक साथ सुनाई दीं।
‘‘यहाँ एक आदमी ने अभी-अभी ख़ुदकुशी कर ली है।’’


Wednesday 11 December 2019

247. जंगल में लाश - इब्ने सफी

इब्ने सफी का द्वितीय उपन्यास
जंगल में लाश- इब्ने सफी

इंस्पेक्टर सुधीर को कोतवाली में एक खबर मिली।
एक आदमी धर्मपुर के जंगलों में एक लाश देखकर खबर देने आया है।
उस अजनबी ने बताया- मैंने सड़क के किनारे एक औरत की लाश देखी उसका ब्लाउज खून से तर था। उफ, मेरे खुदा...कितना भयानक मंजर था...मैं उसे जिंदगी भर न भूला सकूंगा।"(पृष्ठ- 12)
जंगल में लाश- इब्ने सफी
इंस्पेक्टर सुधीर अपने सहकर्मियों के साथ जब वहाँ पहुंचा तो वहाँ कुछ भी न था।
"मैंने वह लाश यही देखी थी...मगर...मगर..."
"मगर-मगर क्या कर रहे हो...यहाँ तो कुछ भी नहीं हैं।"

            वहाँ से वह अजनबी गायब हो गया और पुलिस बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर वापस पहुंची। इस अजीबोगरीब घटनाक्रम की खोजबीन के लिए इंस्पेक्टर जासूस फरीदी और सार्जेंट हमीद को मैदान में आना पड़ा। लेकिन एक लाश से आरम्भ हुआ यह खूनी खेल यही खत्म नहीं हुआ एक के बाद कत्ल होते चले गये।
उपन्यास का एक पृष्ठ

जब जंगल में एक के बाद एक लाशें मिलने लगती हैं तो किसी को अन्दाज़ा नहीं होता कि मामला कहाँ अटका है। असली मुजरिम कौन है और इन हत्याओं की असली वजह क्या है? जानने के लिये पढ़िये इब्ने सफ़ी की दूसरी हैरतअंगेज़़ कहानी ‘जंगल में लाश’। (ईबुक से)

Tuesday 10 December 2019

246. दिलेर मुजरिम- इब्ने सफी

इब्ने सफी का प्रथम उपन्यास
दिलेर मुजरिम- इब्ने सफी

जासूसी दुनिया- अंक-01

कहते हैं कि जिन दिनों अंग्रेज़ी में जासूसी उपन्यासों की जानीमानी लेखिका अगाथा क्रिस्टी का डंका बज रहा था, किसी ने उनसे पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में अपने उपन्यासों की बिक्री और अपार लोकप्रियता को देख कर उन्हें कैसा लगता है। अगाथा क्रिस्टी ने जवाब दिया कि इस मैदान में वे अकेली नहीं हैं, दूर हिन्दुस्तान में एक और उपन्यासकार है जो हरदिल अज़ीज़ी और किताबों की बिक्री में उनसे कम नहीं है। यह उपन्यासकार था- इब्ने सफी। ( उपन्यास से)
sahityadesh.blogspot. in


Tuesday 3 December 2019

245. जंगल की कहानी- जेक लंडन

बक नामक कुत्ते की संघर्ष कथा
जंगल की कहानी- जेक लंडन


' जंगल की कहानी' जैक लंडन के उपन्यास ‘कॉल ऑफ दि वाइल्ड’ का सरल हिन्दी रूपान्तर है।

एक कुत्ता था। उसका नाम था बक। लम्बा-चौड़ा, बहादुर, और शानदार कुत्ता। देखने में इतना खूबसूरत कि बस देखते ही रहो। लेकिन अनजान आदमी उसके पास आने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था।
बक उत्तरी अमरीका के कैलीफोर्निया प्रदेश की एक सुन्दर घाटी में बसे एक छोटे नगर में रहता था।

          यह कहानी इसी बक नामक कुत्ते की है। एक जज के परिवार में आराम की जिंदगी जीने वाले बक के जीवन में ऐसा परिवेश आता है की उसका पूरा जीवन ही बदल जाता है।
एक के बाद एक बदलती परिस्थितियाँ बक के जीवन को बदल देती है। कभी आराम की जिंदगी जीने वाला बक कठोर मेहनत भी करता है और उसे भरपेट खाना भी नहीं मिलता। और कभी कभी तो उसे मार भी खानी पड़ी।

      बक को चोट से उतना दुःख नहीं हो रहा था, जितना इस अपमान से हो रहा था। अपनी चार साल की जिन्दगी में उसे याद नहीं आ रहा था, आज तक कभी किसी ने उसे इस तरह पीटने या उसपर हँसने की कोशिश की हो। वह फिर झुँझलाकर उठा और तीर की तरह उस आदमी की ओर बढ़ा। लेकिन इस बार भी वह उस आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ सका और उसकी नाक डंडे के बार से झनझना उठी। उसके मुँह से खून निकलने लगा।

       पूरा उपन्यास सिर्फ बक पर ही आधारित है। बक के साथ-साथ उपन्यास के पात्र बदलते रहते हैं।
     बक के बाकी साथियों का संघर्ष भी उपन्यास में वर्णित है। कैसे बक एक-एक करके उसके दोस्त मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
कैसे बक अपने दल का नेता बनता है।
कैसे उसे संघर्ष का जीवन जीना पड़ा ।
आदि रोचक घटनाएं उपन्यास पढने पर ही पता चलेगी।
उपन्यास का घटनाक्रम काफी रोचक है। आगे की घटनाओं के प्रति उत्सुकता बनी रहती है।

अजय सिंह द्वारा लिखा गया 'कौओं का हमला' बाल उपन्यास भी एक कुत्ते की जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास है, जो काफी समय पहले पढा था। इस उपन्यास को पढते वक्त उस उपन्यास की याद आ गयी। हालांकि दोनों की कहानी बिलकुल अलग है।


यह लघु उपन्यास बक नामक कुत्ते पर आधारित है। उसके जीवन में आये विभिन्न परिस्थितियों और घटनाओं का बहुत रोचक तरीके से वर्णन किया गया है।
अनुवाद के स्तर पर भी उपन्यास अच्छा है। प्रस्तुत उपन्यास पठनीय और रोचक है।

जंगल की कहानी- जेक लंडन
रूपान्तरकार : श्रीकान्त व्यास
ISBN : 978-81-7483-035-7
संस्करण : 2014 © शिक्षा भारती
JUNGLE KI KAHANI (Abridged Hindi Edition of Call of The Wild) by Jack London
शिक्षा भारती
मदरसा रोड, कश्मीरी गेट-दिल्ली-110006

Monday 2 December 2019

244. मिस्टर बी.ए.- आर.के. नारायण

एक शिक्षित बेरोजगार की कथा
मिस्टर बी.ए.- आर. के. नारायण

आर. के. नारायण अपनी एक विशिष्ट कथाशैली ले कारण जाने जाते हैं। इनकी रचनाओं में कहीं बनावटीपन न होकर समाज की वास्तविकता का चित्रण होता है, एक ऐसा चित्रण जिससे पाठक सहज ही जुड़ाव अनुभव करता है।
आर. के. नारायण, खुशवंत सिंह और रस्किन बाॅण्ड ऐसे लेखक हैं जो गंभीर बात को भी बहुत सहज अंदाज से कह जाते हैं।
आर. के. नारायण जी के अंग्रेजी उपन्यास 'The Bachelor of Arts' का हिन्दी अनुवाद 'मिस्टर बी.ए.' पढा। यह काफी मनोरंजक उपन्यास है।

‘मिस्टर बी. ए.’ एक ऐसे मनमौजी युवक की कहानी है जिसे बी. ए. पास करने के कुछ समय बाद ही एक लड़की से प्रेम हो जाता है। परिवार उससे अच्छी नौकरी की उम्मीद लगाए है जबकि उसका मन कहीं और ही उलझा है। युवक की इसी कशमकश को बेहद रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत करता उपन्यास। (उपन्यास के आवरण पृष्ठ से)

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...