Monday 16 December 2019

255. चट्टानों में आग- इब्ने सफी

कर्नल, ली यूका और इमरान की कथा
चट्टानों में आग- इब्ने सफी
इमरान सीरिज-02
www.sahityadesh.blogspot.in
दिसंबर में इब्ने सफी उर्फ इसरार अहमद साहब के उपन्यास पढने का क्रम चल रहा है। उनके आरम्भ के 'जासूसी दुनिया' के 'फरीदी-हमीद' सीरिज के उपन्यास पढे और अब इमरान सीरिज के कुछ उपन्यास इसी क्रम में पढे जा रहे हैं।
'चट्टानों में आग' इमरान सीरिज का उपन्यास पढा जो मुझे इब्ने सफी के अब तक पढे गये उपन्यासों में से सबसे अच्छा लगा। इब्ने सफी के फरीदी सीरिज के उपन्यासों में घटनाक्रम जहां ज्यादा उलझन वाला और खल पात्र के अजीबो गरीब हरकते होती हैं वैसा इस उपन्यास में कुछ भी नहीं था।

       अब कहानी पर चर्चा करते हैं। यह कहानी है रिटायर्ड कर्नल जरग़ाम की।- वह अधेड़ उम्र का, मज़बूत शरीर वाला रोबदार आदमी था। मूँछें घनी और नीचे की तरफ़ को थीं। बार-बार अपने कन्धों को इस तरह हिलाता था जैसे उसे डर हो कि उसका कोट कन्धों से लुढ़क कर नीचे आ जायेगा। यह उसकी बहुत पुरानी आदत थी। वह कम-से-कम हर दो मिनट के बाद अपने कन्धों को ज़रूर हिलाता था।


     कर्नल ज़रग़ाम के हाथ अंतरराष्ट्रीय अपराधी ली यूका के कुछ महत्वपूर्ण कागजात हाथ लग जाते हैं। ली यूका का कारोबार हर महाद्वीप में फैला था। यह तिजारत सौ फ़ीसदी ग़ैरक़ानूनी थी, मगर फिर भी आज तक कोई ली यूका पर हाथ नहीं डाल सका था।

       ली यूका कर्नल से अपने कागजात वापस पाने के लिए खतरनाक चाल चलता है। दूसरी तरफ गुप्तचर विभाग के सुपरिन्टेंडेण्ट कैप्टन फ़ैयाज़ ने कर्नल की सुरक्षा के लिए जासूस इमरान को उनके घर तैनात करते हैं।
कर्नल ज़रग़ाम को एक दिन एक ल़कड़ी का छोटा सा कलात्मक बंदर मिला। यह सबके लिए हैरानी की बात थी। इमरान ने स्पष्ट किया- ‘अच्छा ठहरिए!’ इमरान ने कुछ देर बाद कहा, ‘ली यूका के आदमी सिर्फ़ एक ही सूरत में इस क़िस्म की हरकतें करते हैं। वह एक ऐसा गिरोह है जो ड्रग्स की तस्करी करता है। ली यूका कौन है, यह किसी को मालूम नहीं, लेकिन तिजारत का सारा नफ़ा उसको पहुँचता है। कभी उसके कुछ एजेंट बेईमानी पर आमादा हो जाते हैं। वे ली यूका की माँगें पूरी नहीं करते। इस सूरत में उन्हें इस क़िस्म की वॉर्निंग मिलती हैं। पहली धमकी बन्दर, दूसरी धमकी साँप...और तीसरी धमकी मुर्ग़। अगर आख़िरी धमकी के बाद भी वे माँगें पूरी नहीं करते तो उनका ख़ात्मा कर दिया जाता है।’
        यहीं से ली यूका, कर्नल और इमरान के टकराव की खतरनाक   कहानी आरम्भ होती है। इमरान बहुत सावधानी रखता है लेकिन खतरनाक ली यूका अपनी हर चाल में कामयाब रहता है। और कहने वाले तो यहां तक भी कहते है की ली यूका का नाम दो सौ साल से ज़िन्दा है।’
आखिर कौन है ली यूका?
- उसका नाम दो सौ साल से कैसे जिंदा है?
- कर्नल के हाथ वह कागजात कैसे लगे?
- उन कागजों में आखिर क्या था?
- कर्नल वह कागज पुलिस को क्यों नहीं सौंपता?
- इमरान ने कैसे रक्षा की कर्नल की?
- क्या ली यूका आखिर पकड़ा क्या?


            ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न है जो उपन्यास को पढने वक्त दिमाग में उठते हैं लेकिन उपन्यास के खत्म होते-होते सब प्रश्नों का समुचित समाधान प्राप्त होता है। आप भी प्रस्तुत उपन्यास पढे और खो जाये इब्ने सफी के सुनहरे मायाजाल में।
कहानी मुख्यतः इमरान के इर्द-गिर्द ही घूमती है। कथा के केन्द्र में चाहे कर्नल है लेकिन मुख्य पात्र इमरान ही है। उपन्यास में खल पात्र का वर्णन तो खूब है लेकिन प्रत्यक्ष चित्रण कम है। अगर खल पात्र स्वयं प्रत्यक्ष रूप सक्रिय नजर आता तो उपन्यास और भी बेहतरीन हो सकता था।
उपन्यास में इमरान का हास्य पुट और कर्नल का रौबिला अंदाज बहुत जबरदस्त लगता है। दोनों एक साथ होते हुए भी अलग-अलग स्वभाव के हैं।
अन्य पात्र भी किरदार के अनुसार उचित भूमिका में हैं। लेकिन खलनायक ली यूका का वर्णन हर किसी पर भारी नजर आता है। उसके सामना करने की किसी में भी हिम्मत नहीं । - ‘तजवीज़ अच्छी है!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘लेकिन अभी आप कह चुके हैं कि...ख़ैर, हटाइए उसे...मगर बिल्ली की गर्दन में घण्टी बाँधेगा कौन? कर्नल साहब पुलिस को इस मामले में डालना नहीं चाहते और फिर यह भी ज़रूरी नहीं कि वह बिल्ली चुपचाप गले में घण्टी बँधवा ही ले।’

उपन्यास शीर्षक-

उपन्यास शीर्षक आकर्षक अवश्य है लेकिन पूर्णतः कहानी के अनुरूप नहीं है। शीर्षक एक छोटे से घटनाक्रम पर आधारित है।

निष्कर्ष-
इब्ने सफी के अब तक पढे गये उपन्यासों में से यह उपन्यास मुझे ज्यादा रोचक लगा। घटनाक्रम व्यवस्थित और तर्क आधारित है। उपन्यास पूर्णतः मनोरंजनक है।

उपन्यास- चट्टानों में आग।
लेखक-     इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस

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