Tuesday 17 December 2019

256. नीले परिन्दे- इब्ने सफी

दहशत के परिन्दे
नीले परिन्दे- इब्ने सफी

इमरान सीरिज-06

सन् 2019 का दिसंबर माह महान लेखक इब्ने सफी जी को समर्पित रहा। इस माह मैंने इब्ने सफी साहब के ग्यारह उपन्यास पढे जिसमें से आठ उपन्यास 'फरीदी-हमीद' सीरिज के और तीन उपन्यास 'इमरान' सीरिज के। निम्न लिंक पर आप अन्य उपन्यासों की समीक्षा भी पढ सकते हैं।
चट्टानों में आग
खौफनाक इमारत
नकली नाक
चालबाज बुढा
कुएं का राज
फरीदी और लियोनार्ड
तिजोरी का रहस्य
औरतफरोश का हत्यारा
जंगल में लाश
दिलेर मुजरिम
इब्ने सफी उपन्यास समीक्षा

अब चर्चा करते हैं‌ इब्ने सफी साहब के इमरान सीरिज के उपन्यास 'नीले परिन्दे' की।
सरदारगढ़ पहाड़ी इलाक़ा था। अब से पचास साल पहले यहाँ ख़ाक उड़ती रहती थी, लेकिन मिट्टी के तेल का भण्डार मिलने के बाद यहाँ अच्छा-ख़ासा शहर बस गया था।
       यह कहानी सरदारगढ की है। वहाँ के नवाबजादे जमील पर एक नीले परिन्दे ने आक्रमण किया यह घटना 'पेरिसियन नाइट क्लब' की है और अगले दिन जमील के चेहरे पर सफेद दाग उभर आये।


वहीं नाइट क्लब के मैनेजर का मानना है की जमील उसके क्लब को बदनाम करने के लिए नीले परिन्दे की अफवाह फैला रहा है- ‘‘बकवास....बिलकुल बकवास....मेरे क्लब को बदनाम करने की एक सोची-समझी साज़िश....!’’
       नवाब जावेद मिर्जा की पुत्री का परवीन की शादी जमील से होने वाली थी। लेकिन जमील के चेहरे पर दाग उभरने से शादी रुक गयी।
जावेद मिर्जा का भतीजा शौकत है ‘‘उसे साइण्टिस्ट कहलाये जाने का ख़ब्त है..." उसके पास लेबोरेटरी भी है जहां वो विभिन्न प्रकार के वायरस पैदा करता है।
        एक तरफ जमील के रिश्तेदार भी हैं जो उसके धन पर नजर जमाये बैठे हैं।
          इन सब में से असली अपराधी कौन है इसे समझना कठिन है। कभी-कभी तो सब कुछ झूठ सा नजर आता है तो कभी सत्य।
         इमरान और फैयाज और साथ में रूशी तीनों इस फरेब में उलझ जाते हैं लेकिन अंततः इमरान अपने चातुर्य से असली अपराधी को पकड़ ही लेता है।
            ऐसी विभिन्न वजहों, घटनाओं से उलझ हुयी यह थ्रिलर उपन्यास तेज रफ्तार से क्लाईमैक्स की तरफ दौड़ती है। पाठक एक बार इस तेज गति की ट्रेन‌में सवार होने के पश्चात गंतव्य (क्लाईमैक्स) पर पहुँच कर ही ठहरता है।
            उपन्यास के कुछ पात्र रहस्य को बनाते रखने में कामयाब रहे हैं। एक पात्र है सलीम। सलीम का किस्सा समझना बहुत मुश्किल है। स्वयं इमरान और उसकी सहयोगी रूशी भी सलीम‌ को नहीं समझ पाते। उससे भी ज्यादा मुश्किल है असली अपराधी को पहचानता।
उपन्यास की कहानी मुझे काफी मजेदार लगी।

जावेद मिर्जा का किरदार बहुत रोचक है। जहां जावेद मिर्जा को हर बात पर गुस्सा आता है वहीं पाठक के चेहरे पर हँसी आ जाती है।- नवाब जावेद मिर्ज़ा अपनी बातों में झक्की था....और उसके ज़ेहन में जो बात बैठती, पत्थर की लकीर हो जाती... जो लोग उससे किसी बात पर सहमत न होते, उन्हें आम तौर पर नुक़सान ही में रहना पड़ता था।
जावेद के संवाद चाहे अपने परिवार से हो, डॉक्टर से हो या इमरान से हर जगह जावेद का किरदार रोचक लगता है।
संवाद देखें-
‘‘मेरा ख़याल भी कभी ग़लत नहीं होता।’’ जावेद मिर्ज़ा ने परवीन की तरफ़ देख कर कहा, ‘‘या होता है!’’
‘‘कभी नहीं।’’
इतने में डॉक्टर आ गया....वह काफ़ी देर तक इमरान को देखता रहा।
फिर जावेद मिर्ज़ा की तरफ़ देख कर कहा। ‘‘आपका क्या ख़याल है?’’
‘‘नहीं, तुम पहले अपना ख़याल ज़ाहिर करो।’’
‘‘जो आपका ख़याल है, वही मेरा भी है।’’
‘‘यानी....!’’
डॉक्टर कशकमश में पड़ गया। वह यहाँ का फ़ैमिली डॉक्टर था और यहाँ से उसे सैकड़ों रुपये महीना आमदनी होती थी। इसलिए वह बहुत ख़ामोश रहता था.... वह जावेद मिर्ज़ा के सवाल का जवाब दिये बग़ैर एक बार फिर इमरान पर झुक गया।
‘‘हाँ, हाँ!’’ जावेद मिर्ज़ा सिर हिला कर बोला। ‘‘अच्छी तरह इत्मीनान कर लो....फिर ख़याल ज़ाहिर करना।’’
........
................
..................................
‘‘जनाबे आली....! डॉक्टर सीधा खड़ा होता हुआ बोला। ‘‘बेहोशी! गहरी बेहोशी....मगर यह कोई म़र्ज नहीं मालूम होता।’’
‘‘ख़ूब! तो तुम भी मुझसे सहमत हो!’'
‘‘बिलकुल जनाब....!’’
‘‘फिर....! यह होश में कैसे आयेगा।’’
‘‘मेरा ख़याल है....ख़ुद-ब-ख़ुद....दवा की ज़रूरत नहीं!’’
‘‘मगर मेरा ख़याल है कि दवा की ज़रूरत है।’’
‘‘अगर आपका ख़याल है तो फिर होगी....आप मुझसे ज़्यादा तजरुबेकार हैं।’’ डॉक्टर ने कहा।


शीर्षक-
         उपन्यास का शीर्षक कथा के अनुरूप है। कथा का मूल एक परिन्दा है जिसके कारण कहानी आरम्भ होती है।
वह परिन्दा क्या था? कहां से आया? यह सब तो उपन्यास पढने पर ही पता चलेगा।

निष्कर्ष-
प्रस्तुत उपन्यास 'नीले परिन्दे' मुझे बहुत रोचक लगा। उपन्यास का कथानक अच्छा और रोचक है। उपन्यास की कहानी घुमावदार और तेज है।
उपन्यास पठनीय है।

उपन्यास- नीले परिन्दे
लेखक-   इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस

No comments:

Post a Comment

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...