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Saturday, 14 December 2019

251. बहरूपिया नवाब - इब्ने सफी

लौट आये नवाब......
बहरूपिया नवाब- इब्ने सफी, इमरान सीरीज
एक उपन्यास दो शीर्षक- 'बहरुपिया नवाब' और 'फांसी का फंदा'

कुछ घटनाएं हमारे आस पास ऐसी घटित होती हैं की हम उस घटना के कारण चकित रह जाते हैं। हम कल्पना भी नहीं कर सकते की ऐसा भी कुछ आश्चर्यजनक घटित हो सकता है। लेकिन जासूस के सामने भी एक ऐसी घटना आयी की वह हैरत रह गया।
         यह घटना है एक ऐसे व्यक्ति की जिसे मृत घोषित कर दिया गया और उसी लाश को दफन कर दिया गया लेकिन कुछ समय पश्चात वही व्यक्ति पुन: हाजिर हो गया।
यह व्यक्ति नवाब साजिद का चाचा नवाब हाशिम था।
- हाशिम को दोबारा सामने आये हुये तकरीबन एक हफ्ता गुजर चुका था। इस हैरत अंगेज वापसी की शोहरत न सिर्फ शहर, बल्कि पूरे प्रदेश में हो चुकी थी। यह अपनी तरह का एक ही हंगामा था। गुप्तचर विभाग वालों‌ की समझ में नहीं आता था और कि वे इस सिलसिले में क्या करें। फिलहाल उनके सामने सिर्फ एक ही सवाल था और वह यह कि अगर नवाब हाशिम यही शख्स है तो फिर वह आदमी कौन था जिसकी लाश दस साल पहले नवाब हाशिम के बेडरूम से बरामद हुयी थी।।"  (उपन्यास अंश)
- क्या रहस्य था नवाब का?
- मरने वाला शख्स कौन था?
- उपस्थित नवाब कौन था?
- कौन असली था कौन नकली?

इस रहस्य से पर्दा उठाने का काम करता है इमरान। जासूस इमरान- "मैं अली इमरान, एम.एस. सी., डी.एस.सी. हूँ। अफसर आॅन स्पेशल ड्यूटी फ्राम सेन्ट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो।" 

     लेकिन यह केस इतना सरल न था, क्योंकि नवाब का भतीजा उसे अपना चाचा मानने को तैयार न था, लेकिन वह उसे कोठी में ठहरने की इजाजत दे देता है।
इसके साथ एक कथा और चलती है वह है अंग्रेजी सभ्यता के मूडी नामक युवक और दुर्दाना नामक युवती।
'मूडी एक रोमांटिक अमरीकी नौजवान था। पूरब को बीसवीं सदी के वैज्ञानिक युग में भी रहस्यमय समझता था।(उपन्यास अंश)
दोनों कहानियाँ फिर एक होकर आगे बढती हैं और उपन्यास को रोचक बनाती चलती हैं।

इश्क में चोट खाया आदमी क्या करता है? इस प्रश्न का उत्तर भी समय-समय पर बदलता रहता है। 'बहरूपिया नवाब' में इश्क में चोट खाया आदमी क्या करता है आप स्वयं देख लीजिएगा- "खुदा से डरो फैयाज, वह जंग का जमाना था और उस जमाने का चलन यह था कि लोग इश्क में नाकाम होने पर फौज में भरती हो जाया करते थे।"
ऐसा ही एक उदाहरण कुशवाहा कांत के उपन्यास 'अपना- पराया' में मिलता है।

        इब्ने सफी जी का उपन्यास 'नकली नाक' पढा था जिसमें कबूतरों की नस्ल का वर्णन है, यही विशेषता इस उपन्यास में भी मिलती है। इसमें कुत्तों का अच्छा वर्णन है।
कुत्ते की किस्में- हैंसेंजी, बोरजोती, डैशण्ड, ग्रे हाउड, अफगान हाउड, आइरिश वुल्फ हाउड, हीगल, फिश ईपटर, हियरबेर....फाॅक्स हाउण्ड, ऊटर हाउण्ड, ब्लड हाउण्ड, डियर हाउण्ड, अलक हाउण्ड, बेस्टे हाउण्ड...।"
एक अच्छे लेखक की यही विशेषता होनी भी चाहिए की वह किसी विषय की चर्चा करे तो उसकी अच्छी जानकारी भी दे।

'बहरूपिया नवाब' एक रहस्य कथा है यह रहस्य नवाब से संबंधित है। हां, आप पाठक मित्र जो अंदाजा लगा रहे हैं, वह सही नहीं है। तो सही क्या है? यह जानने के लिए आपको यह रोचक उपन्यास पढना होगा।

उपन्यास- बहरुपिया नवाब
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर कालिंस


इब्ने सफी साहब का यह उपन्यास 'जासूसी दुनिया' पत्रिका में 'फांसी का फंदा' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। इसमें नवाब की जगह ठाकुर केदारनाथ जागीरदार है। वहीं 'हार्पर काॅलिंस में नवाब साहब हैं।
   इब्ने सफी मूलतः उर्दू के लेखक थे। उनका नायक था 'अली इमरान' और जब उनके उपन्यास हिंदी में अनुवादित होते तो 'अली इमरान' की जगह 'इंस्पेक्टर विनोद' होता था। 
 इसी तरह यह उपन्यास है। हार्पर काॅलिंस ने इसे उर्दू से हिंदी में अनुवाद कर प्रकाशित किया है और पात्रों के नाम वास्तविक ही रखे हैं। 
  वहीं 'जासूसी दुनिया' पत्रिका में उर्दू से हिंदी अनुवाद में नाम परिवर्तित कर दिये गये।
   ऐसा अन्य उपन्यासों में भी हुआ है।

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