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Thursday 12 December 2019

250. फरीदी और लियोनार्ड- इब्ने सफी

इब्ने सफी का चतुर्थ उपन्यास
फरीदी और लियोनार्ड- इब्ने सफी

हार्पर काॅलिंस एक अच्छा किया है वह है इब्ने सफी के 16 उपन्यासों का पुनः प्रकाशन। जिसमें से आठ उपन्यास फरीदी सीरिज के हैं और आठ उपन्यास इमरान सीरिज के। इब्ने सफी के पाठकों के लिए यह एक बहुत अच्छी उपहार है।
दिल्ली के दरियागंज में लगने वाले पुस्तक मेले से मुझे हार्पर काॅलिंस द्वारा दो खण्डों में प्रकाशित ये उपन्यास दो सौ रुपये में मिल गये।
         आजकल इन्हीं उपन्यास को पढा जा रहा है हालांकि इन्हें मैं any book एप पर पढा रहा हूँ। फरीदी सीरिज का पांचवा उपन्यास 'फरीदी और लियोनार्ड' पढा।

लियोनार्ड बेहद घटिया क़िस्म का ब्लैकमेलर है, जो सिर्फ़ ब्लैकमेलिंग तक ही नहीं रुकता, बल्कि क़त्ल और दूसरे ओछे हथकण्डे अपनाने पर उतर आता है। क्या-क्या गुल खिलाता है और फिर कैसे फ़रीदी के हत्थे चढ़ता है–इसे जानने के लिए आइए, इस उपन्यास के हैरत-अंगेज़ सफ़र पर चलें। हमारा य़कीन है आप निराश न होंगे।
(ईबुक से)

www.sahityadesh.blogspot.in
पी०एल० जैक्सन ख़ुफ़िया पुलिस का सुप्रिन्टेंडेण्ट है। उसने एक दिन फरीदी
को बुलाकर कहा।
‘‘कल रात हस्पताल में मुझे इन्स्पेक्टर जनरल की तरफ़ से एक ख़बर मिली है, जो हम सब के लिए बहुत ही दिलचस्प है। तुमने यूरोप के मशहूर ब्लैक-मेलर लियोनार्ड का नाम ज़रूर सुना होगा। वह अपने कुछ साथियों के साथ हिन्दुस्तान आया है और उसने अपना हेडक्वार्टर हमारे ही शहर में बनाया है।’’


   
फरीदी भी जानता है की लियोनार्ड को पकड़ना कोई आसान काम नहीं है।

‘‘मैं यह सोच रहा था कि एक ऐसे शख़्स का पता लगाना कितना मुश्किल है जिसे आज तक किसी ने न देखा हो, जिसकी तस्वीर डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन के दफ़्तर में मौजूद न हो। स्कॉटलैंड यार्ड वाले सिर्फ़ इसी बिना पर उसे पकड़ न सके कि उनके पास न तो तस्वीर थी और न दूसरे ऐसे निशान जिनसे वह पकड़ा जा सके।’’
        लियोनार्ड अंतर्राष्ट्रीय अपराधी भारत में है और भारतीय जासूस उसे पकड़ना चाहते हैं। इसके लिए जासूस मण्डली एकत्र होती है। लेकिन किसी के पास लियोनार्ड के विषय में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। फरीदी की यह चिंता भी उसके शब्दों से व्यक्त होती है- ‘‘मैं आपसे एक बार फिर कहूँगा कि लियोनार्ड को गिरफ़्तार कर लेना हँसी-ठट्ठा नहीं।’’
       अब पता चल गया की लियोनार्ड एक विदेशी ब्लैकमेलर है जो कुछ भारतीय लोगों को ब्लैकमेल करके रूपया कमाना चाहता है। उसके कुछ साथी उसकी मदद करते हैं। लेकिन स्वयं लियोनार्ड इतना चालाक है की वह स्वयं सामने नहीं आता। एक के बाद एक चाल चलता है और फरीदी से एक कदम आगे रहता है उसे फरीदी की हर चाल का पता है। - ‘हाँ, तो लियोनार्ड ख़तरनाक आदमी है। जिसने सारे यूरोप को हिला रखा है। हद तो यह है कि स्कॉटलैण्ड के मशहूर जासूस भी उसे नहीं पकड़ सके।"
तो क्या फरीदी लियोनार्ड को पकड़ सका?
अगर पकड़ा तो कैसे पकड़ा?

बस यही पकड़म पकड़ाई ही इस उपन्यास का रोमांच है। उपन्यास पढे और रोमांच की दुनिया में खो जाये।

          पूरा उपन्यास लियोनार्ड को पकड़ने पर आधारित है लेकिन उपन्यास में लियोनार्ड का प्रत्यक्ष चित्रण कहीं नजर नहीं आता है अगर लियोनार्ड कहीं है तो वह एक आवरण में लिपटा हुआ ही उपन्यास में दृष्टिगत होता है। लियोनार्ड के चरित्र को और ज्यादा उभारा जा सकता था।
          लियोनार्ड के भारत में आगमन की खबर एक ऐसे पात्र के माध्यम से आगे प्रसारित की गयी है जो लियोनार्ड का ही एक रूप है। अब उसे लियोनार्ड के विषय में चर्चा की क्या आवश्यकता थी। हां कुछ कारणों से संभव भी हो सकता है लेकिन वह पात्र उस चर्चा को दबा भी सकता था।
फरीदी अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास में भी वेश बदलता नजर आता है और यही काम हमीद करता है।

फरीदी का साथी सार्जेंट हमीद जो एक हास्य पात्र है हालांकि वह भी एक जासूस है लेकिन उसका उपयोगी फरीदी के साथ हास्य तक ही नजर आता है। एक दो उदाहरण देखें‌
‘‘अजीब गधे आदमी हो।’’ फ़रीदी ने झुँझला कर कहा।
‘‘यह बिलकुल नामुमकिन है।’’ हमीद ने कहा। ‘‘मैं या तो गधा हो सकता हूँ या आदमी। एक ही वक़्त में गधा और आदमी होना मेरे बस की बात नहीं। चाहे फिर नौकरी रहे या जाये।’’

         हमीद प्रत्युत्पनमत्ति भी है। इसी वजह से फरीदी से उसका साथ है दोनों की नोकझोक उपन्यास में निरंतर चलती रहती है।
'अरे भई, तो क्या मैं आदमी नहीं हूँ।’’ फ़रीदी ने कहा।
‘‘आप आदमी कब से हो गये।’’ हमीद बोला। ‘‘आप तो कहा करते थे कि मैं जासूस हूँ।’’


उपन्यास में कुछ वाक्य ऐसे हैं जो इनके पुराने उपन्यासों के पात्रों के विषय में चर्चा करते हैं।
जैसे

‘‘मैंने आपके बारे में नवाब वजाहत मिर्ज़ा के लड़के डॉक्टर शौकत से सुना था।’’ (उपन्यास दिलेर मुजिरम)

एक दिन राजरूप नगर के नवाज वजाहत मिर्ज़ा अब्बा जान से आपकी बहुत तारीफ़ कर रहे थे। मैंने बातों-ही-बातों में उनसे आपका पता पूछा और यहाँ चली आयी।’’ (उपन्यास- दिलेर मुजरिम)


इस उपन्यास में पहली बार फरीदी के पिताश्री का वर्णन आया है।
‘‘मुझे वजाहत मिर्ज़ा की ज़बानी मालूम हुआ है कि तुम नवाब आबिद अली ख़ाँ मरहूम के लड़के हो।’’ नवाब साहब ने कहा। ‘‘मरहूम मेरे क्लास-फ़ेलो थे और मेरे दूर के रिश्तेदार भी होते थे।

निष्कर्ष-

एक खतरनाक विदेशी ब्लैकमेलर के लिए तैयार जाल है यह उपन्यास। कैसे फरीदी ब्लैकमेलर को फंसा कर कानून के हवाले करता है।
एक अच्छा, लघु कलेवर को पठनीय उपन्यास।

उपन्यास - फरीदी और लियोनार्ड
लेखक-     इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस

जासूसी दुनिया पत्रिका, अंक-05
फरीदी-हमीद सीरिज

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